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आयुर्वेद और त्वचा की समस्याएं

जुलाई और अगस्त का महीना वर्षा ऋतु का होता है, इस मौसम में खूब बारिश होती है। आयुर्वेद के मुताबिक यह एक ऐसा समय है जिसमें पित्त की अधिकता हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु यानि गर्मियों में शरीर के अंदर जो गर्मी इकट्ठा हो जाती है, बारिश के मौसम में वह भड़क उठती है। बहुत सारी त्वचा की बीमारियाँ बारिश के मौसम में फैलती हैं। खासतौर से भारत में यह एक ऐसा समय है जिसमें बड़ी संख्या लोग त्वचा की बीमारियों का इलाज कराने अस्पताल में पहुंचते हैं। आयुर्वेद का सामान्य ज्ञान भी आपको दर्द भरी त्वचा की परेशानियों से राहत दिला सकता है।

आयुर्वेद के मुताबिक त्वचा में 6 परतें होती हैं,यह शरीर की गहराई तक मौजूद होती हैं। त्वचा के रोगों की जड़ें आमतौर पर त्वचा की गहराई में मौजूद धातु जैसे वसा, मांस, खून वगैरह से जुड़ी होती हैं। त्वचा के ज्यादातर उपचार सामान्य रूप से त्वचा के ऊपर लगाई जाने वाली क्रीम या तेल होते हैं। ये अलग बात है कि वो कभी भी त्वचा की गहराई तक नहीं पहुंच पाते। इनके इस्तेमाल से लक्षण कुछ समय के लिए गायब हो जाते हैं लेकिन बीमारी जड़ से खत्म नहीं होती है। आयुर्वेद हमेशा से ही किसी भी बीमारी का इलाज उसकी जड़ों को मिटाकर करता है।

आयुर्वेद की कोशिश रहती है कि किसी बीमारी को खत्म करने के लिए उसके कारणों के मुताबिक उपचार किया जाए। चूंकि बीमारी गहराई तक पैठ बना लेती है तो ऐसे में तुरंत राहत नहीं मिलती। त्वचा के आयुर्वेदिक उपचार में कुछ हफ्ते जरूर लगते हैं लेकिन बीमारी का स्थाई इलाज होता है।

कारण:

आयुर्वेद में बीमारी के दो मुख्य कारण बताए गए हैं, वो हैं गलत आहार और जीवनशैली, यह वो कारण है जिनको कोई भी व्यक्ति जानते हुए या अनजाने में अपना लेता है। ऐसी जीवनशैली या आहार अपनाना जो मौसम या व्यक्ति की प्रकृति के खिलाफ हो, शरीर की ऊर्जा में असंतुलन लाने वाला हो, उससे शरीर के धातु दूषित हो जाते हैं जिससे त्वचा की बीमारियां हो जाती हैं।

आयुर्वेद की भाषा में कहें तो त्वचा की बीमारियों का कारण होता है तीन दोषों में असंतुलन लेकिन इसमें भी मुख्य दोष होता है पित्त। पित्त गर्मी या आग का प्रतीक है। इसलिए वो सभी आहार या गतिविधियां जिससे शरीर में आग्नि तत्व बढ़ता हो उनसे बचना चाहिए। इसमें गर्म, मसालेदार, तला हुआ या चिपचिपे आहार का सेवन शामिल है। टमाटर, खट्टे रसदार फल, दही और सिरके के सेवन से बचें। गर्मी या धूप में रहने, ज्यादा मात्रा में चाय, कॉफी, शराब और सिगरेट पीने से बचें इससे पित्त की अधिकता हो जाती है।

उपचार:

आयुर्वेद में उपचार का मुख्य तरीका है कारणों की जड़ों को हटाना। इसलिए ऐसे आहार का सेवन और गतिविधियां न करें जिससे पित्त बढ़ता हो और यही मुख्य उपचार माना जाता है। यहां हम आपको कुछ सामान्य उपचार बताते हैं जो हर तरह की त्वचा से संबंधित बीमारियों में काम आते हैं।

  • हल्दी, आंवला और नीम की पत्तियों को बराबर मात्रा में मिलाकर पाउडर बना लें। एक चम्मच इस पाउडर को दिन में दो बार पानी के साथ लें। अगर आंवला या नीम उपलब्ध न हो तो सिर्फ हल्दी पाउडर का ही आधा चम्मच दिन में दो बार सेवन करें

  • अगर नीम की पत्तियाँ मिल जाएं तो उन्हें हर दिन उबालें और प्रभावित जगहों पर लगाएँ। साबुन और शैम्पू का इस्तेमाल प्रभावित जगहों पर न करें।

  • पीले गंधक के 50 ग्राम पाउडर को 250 मिली. सरसों के तेल या नारियल तेल के साथ मिलाएँ। इस मिश्रण को प्रभावित जगहों पर हर दिन सुबह के समय लगाएं और आधे घंटे बाद धो लें। इस मिश्रण को लगाकर धूप में या गर्म जगह पर बैठने से भी लाभ होगा।

  • अगर शुद्ध गंधक मिल जाए जिसका सेवन किया जा सकता हो तो 1-2 ग्राम मात्रा में दिन में दो बार पानी के साथ इसका सेवन करें।

  • 100 मिली नारियल तेल में 5 ग्राम कपूर मिला लें। इस मिश्रण को शीशे की बोतल में रखें और उसका ढक्कन कसकर बंद कर दें। इस बोतल को सूर्य की रोशनी में 2 घंटे तक के लिए रखें। इस मिश्रण को प्रभावित जगहों पर लगाएं फायदा होगा

  • मलत्याग को आसान बनाने वाली दवा का सेवन भी त्वचा की बीमारियों के उपचार में फायदा पहुंचाता है। गर्म दूध या पानी के साथ एक चम्मच त्रिफला पाउडर का सेवन रात में रोने से पहले करें। कुछ दूसरी मुलायम करने वाली औषधियां जैसे आलूबुखारा,अंजीर और किशमिश का सेवन भी किया जा सकता है।

  • खुबानी की पत्तियों के ताज़ा रस भी शरीर की प्रभावित जगहों पर लगाने से लाभ मिलता है। इससे एग्जिमा और खुजली से राहत मिलती है

  • गेहूं की घास का जूस भी त्वचा के रोगों में फायदा पहुंचा है यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है, जिससे बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है।

  • मरीज को जितना हो सके खुली हवा में रहना चाहिए। कसे हुए कपड़े नहीं पहनने चाहिए। मरीज को दिन में कम से कम 3-4 लीटर पानी पीना चाहिए।

  • त्वचा की बीमारियों में एलोवेरा का इस्तेमाल भी फायदा पहुंचाता है ये खून साफ करता है।एक चम्मच ताजे एलोवेरा जेल का दिन में दो या तीन बार खाली पेट सेवन करने से लाभ होगा।

  • चाय, कॉफी, एल्कोहल, गर्म मसालेदार, तला हुआ और खट्टे आहार के सेवन से बचें। सफेद चीनी, मैदे से बनी चीजें और पैकेटबंद खाना खाने से बचना चाहिए। मांस का सेवन खासतौर से लाल मांस का सेवन कम मात्रा में करें। इन आसान से उपचारों और खानपान के उपायों को अपनाकर आपको त्वचा से जुड़ी परेशानियों से राहत मिल सकती है।

हजारों की संख्या में ऐसे मरीज जो त्वचा से जुड़ी गंभीर बीमारियों से परेशान थे उन्हें इन आयुर्वेदिक उपचारों से राहत मिली है। जीवा आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ने त्वचा से जुड़ी परेशानियों के उपचार के लिए आयुर्वेदिक दवाइयाँ, चाय और पाउडर भी बनाए हैं। इसको जीवा सत्व स्किन डिजीज़ हेल्थकेयर पैक कहा जाता है। इसके साथ ही जीवा आयुर्वेद क्लीनिक त्वचा से जुड़ी अलग-अलग बीमारियों के लिए व्यक्ति के मुताबिक आयुनीक पैक्स भी बनाता है।

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