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तनाव एक उलझा हुआ सिद्धांत है जिसमें मानसिक और शारीरिक तत्व शामिल हैं। हालांकि ज्यादातर तनाव मानसिक होते हैं, वो कई तरह के मानसिक परिवर्तन लाते हैं। इन बदलावों में शरीर की प्रतिरक्षा भी शामिल है जो तनाव और शरीर की रक्षा प्रणाली के संबंध का इशारा देता है।
पिछले कुछ दशकों में तनाव से जुड़े मामले तेजी से बढ़े हैं । मनोचिकित्सक मानते हैं कि ये बढ़ोतरी पिछले 10 सालों में 1000 गुनी हुई है। चिकित्सीय रूप से तनाव को शरीर के अंदरूनी संतुलन की गड़बड़ी के तौर पर देखा जाता है। तनाव के कुछ खास इशारे होते हैं-
जैव रासायनिक मापदंड जैसे इपिनफेरिन और एड्रेनल स्टेरॉयड,
शारीरिक मापदंड जैसे दिल धड़कने की गति और ब्लड प्रेशर
व्यवहारिक प्रभाव जैसे चिंता, डर और तनाव
तनाव की वजह से घबराहट,दिल का दौरा, माइग्रेन और तनाव, सिरदर्द, खाने पीने से जुड़ी बीमारियाँ, अल्सर, मलत्याग में दिक्कत, कोलिटिस, डायबिटीज़, कमर दर्द, क्रोनिक फेटीग सिंड्रोम, त्वचा से जुड़ी बीमारियाँ, एलर्जी, सर्दी-खांसी,अस्थमा, अनिद्रा, कंपकंपी, डर, अवसाद, समय से पहले उम्र ढलना वगैरह दिक्कतें होती हैं, हलांकि ये लिस्ट कभी न खत्म होने वाली लिस्ट है
तनाव के कुछ लक्षणों में अनिद्रा, एकाग्रता में कमी, बेचैनी, काम में ध्यान न लगना, अवसाद, नशे की इच्छा, अत्यधिक गुस्सा और निराशा, परिवार में कलह और शारीरिक बीमारियाँ जैसे दिल से जुड़ी परेशानी, माइग्रेन, सिरदर्द, पेट से जुड़ी परेशानियाँ और कमर से जुड़ी दिक्कतें शामिल हैं।
आजकल तनाव और थकान तो ऐसा है जैसे घर का कोई सामान हो।वास्तविक रूप से हर कोई कुछ हद तक तनाव झेलता है। हर किसी को पागलपन से भरी इस जीवनशैली की काली छाया से बचने की जरूरत है, जिसमें शामिल है थकाऊ काम, निरंतर यात्रा, टूटते रिश्ते, गला काट प्रतियोगिता, उम्र और बीमारी से मुकाबला और हमेशा जवान को खूबसूरत बने रहने की चाहत।
आयुर्वेद के मुताबिक दिमाग को तीन उप दोष चलाते हैं। वात का उप दोष है प्राण वात जो दिमाग की संवेदी धारणाओं और मन को चलाता है। कफ का उप दोष है तरपाक कफ, यह मस्तिष्कमेरू द्रव्य को नियंत्रित करता है। पित्त का उप दोष है साधक पित्त, यह भावनाओं और उसका दिल पर पड़ने वाले प्रभाव को नियंत्रित करता है।
दिमाग की तीन अवस्थाएं होती हैं। यह हैं सत्व,रजस और तमस। सत्व सेहतमंद दिमाग की अवस्था है, रजस और तमस दिमाग की अस्वस्थ अवस्था हैं। जब दिमाग रजस और तमस से प्रभावित होकर चलता है तब उप दोष असंतुलित हो जाते हैं। साधक पित्त जलन का प्रभाव पैदा करता है और प्राण वात सूखेपन का प्रभाव पैदा करता है। तब तरपाक कफ अधिक मात्रा में मस्तिष्कमेरू द्रव्य बनाता है जिसके प्रभाव से दिमाग की रक्षा होती है।
लेकिन जब मानसिक क्षमताएं जरूरत से ज्यादा तमस और रजस गुणों से प्रभावित होती हैं तब तरपाक कफ का चिपचिपापन अधिक हो जाता है और पाचन तंत्र या पाचन अग्नि को कमजोर करता है। यह वैसा ही प्रभाव डालता है जैसे पाचन में बहुत अधिक मात्रा में नमी हो जाने पर होता है- यह पाचन की अग्नि को शांत कर देता है। जब ऐसा होता है तब आम यानि विषैले तत्वों का बनना शुरू हो जाता है। यही आम दिमाग की खाली जगहों और दिमाग की वाहिकाओं में इकट्ठा हो जाता है और यह तरपाक कफ के बनाए गए तरल में मिल जाता है, इससे नुकसानदायी कॉर्टिसोल बनता है जो तनाव का संकेत होता है। कॉर्टिसोल खुद में नुकसानदायक चीज़ नहीं है, वास्तव में तो यह दिमाग की रक्षा के लिए शरीर ही बनाता है। लेकिन जब तरपाक कफ की मात्रा अधिक हो जाती है और जीवतत्व में आम होता है, तब यह अच्छे के बजाय बुरा प्रभाव डालता है। यह वो समय होता है जब बेचैनी हमला करती है और तनाव के कई दूसरे लक्षण भी दिखने लगते हैं।
बढ़ते तनाव से निपटने के लिए कई तरह के आयुर्वेदिक उपचार हैं।
एडेप्टोजेन्स नाम की जड़ी बूटियां बढ़ते तनाव में बहुत फायदा पहुंचाती हैं। यह जड़ी बूटियां तनाव को झेलने की ताकत देती है, इसमें साइबेरियन जिनसेंग, जिनसेंग, वाइल्ड यम, बोराज, मुलैठी, बबूने के फूल, मिल्क थिसल और नेटल शामिल हैं। पारंपरिक रूप से आयुर्वेद अश्वगंधा की जड़, शकपुषादि, ब्राह्मी, जटामानसी, शंखपुष्पी, धात्री रसायन, प्रवल पिष्टी और आंवला का इस्तेमाल करता है जो तनाव को कम करते हैं और वात दोष के असंतुलन को ठीक करते हैं।
रिसर्च बताती है कि खास आयुर्वेदिक फार्म्यूले जड़ी बूटियों से बनते हैं जैसे ब्राह्मी, शंखपुष्पी, और गुडुची बेचैनी दूर करते हैं, तनाव कम करते हैं, सतर्कता बढ़ाते हैं और मानसिक तनाव को बढ़ने से रोकते हैं इन खास आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को आयुर्वेद की किताबों में मेधा जड़ी बूटियां कहा गया है, यह व्यक्तिगत रूप दिमाग के ऐसे खास हिस्सों को पोषण देती है जो तनाव से प्रभावित होते हैं।
अश्वगंधा संपूर्ण दिमाग को तनाव से लड़ने की क्षमता देता है क्योंकि यह मानसिक क्रियाओं में मदद करता है। जटमानसी और ग्रेटर गलंगल भी दिमाग की वाहिकाओं का रास्ता खोलते हैं। ये दिमाग और शरीर को विषैले तत्वों और रुकावटों से बचाते हैं। अश्वगंधा एक तेज और प्राकृतिक शोधन जड़ी बूटी है, लेकिन इसके साथ जटमानसी और ग्रेटर गलंगल के मिश्रण से ये बहुत प्रभावी हो जाती है। यह पाचन की अग्नि को बढ़ाते हैं जिससे आम कम होता जाता है।
चूंकि तनाव की वजह से शरीर की रक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है ऐसे में पोषण से भरा हुआ आहार लेना काफी फायदेमंद होता है। सही आहार का सेवन करने से तनाव को झेलने में मदद मिलती है जो कि बहुत जरूरी है। आयुर्वेदिक भाषा में कहें तो कम मात्रा में राजसिक और तामसिक भोजन का सेवन करें और अपने आहार में सात्विक भोजन शामिल करें।
कॉफी और बाकी कैफीन वाले पेय से बचें क्योंकि कैफीन वाले पेय तनाव, असहजता, बेचैनी और अनिद्रा पैदा करते हैं। जितना हो सके कार्बोनेटेड पेय और शराब के सेवन से बचें। जानवरों वाले हाई प्रोटीन आहार से भी बचें क्योंकि इससे दिमाग में डोपामाइन और नॉरपिनफ्राइन का स्तर बढ़ता है, इससे बेचैनी और तनाव की मात्रा बढ़ती है। जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा हरी पत्तेदार सब्जियाँ, फल खाएं और फलों का रस पिएँ। मैदा और चीनी वाले उत्पाद, जमे हुआ भोजन, पैकेट बंद या बचा हुए आहार के सेवन से बचें। अपने भोजन में अनाज बढ़ाएं, इससे दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटर सिरोटोनिन बनता है जो कल्याण की भावना पैदा करता है।
आयुर्वेद पंचकर्म उपचार की सलाह देता है जिससे एक सेहतमंद पाचन तंत्र मिलता है साथ ही यह शरीर में इकट्ठा हुए नुकसानदायक विषैले तत्वों को दूर करता है। पंचकर्म की प्रक्रिया में तनाव की समस्या की जड़ों को पहचान कर मन, शरीर और भावनाओं को संतुलित किया जाता है। माना जाता है कि रसायन या हर्बल दवाइयों को खाकर इलाज करने से बेहतर है पंचकर्म उपचार लेना। यह शरीर को साफ करता है, पाचन बेहतर करता है और मन को भी शुद्ध करता है।
ऊपर बताए गए उपचार के साथ-साथ आयुर्वेद तनाव को नियंत्रित करने के लिए योग,ध्यान और प्राणायाम की भी सलाह देता है। कुछ खास मुद्राएं काफी फायदा पहुंचाती हैं। सकारात्मक सोच, साफ सफाई, साफ वातावरण और सभी स्तर पर खुशहाली तनाव को हमेशा के लिए दूर करने के लिए बहुत ज़रूरी है।
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