Diseases Search
Close Button

Stay Healthy with Ayurveda

Search Icon

गर्भधारण से पूर्व महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक योग और विधि

आयुर्वेद में गर्भाधान को केवल इन्द्रिय सुख से उत्पन्न आकस्मिक या अवांछित परिणाम नहीं माना गया है। इसके लिए शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व आर्थिक स्तर पर पूर्ण स्वास्थ्य व दक्षता के अनुसार पूर्व तैयारी करने के बारे में बताया गया है।

गर्भावस्था में ध्यान, वरदान हैः

किसी भी निर्माण या संरचना के लिए उसकी पूरी जानकारी और पूर्व तैयारी करना आवश्यक और उपयोगी होता है। पारिवारिक जीवन की पूर्णता व विस्तार के लिए गर्भाधान एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। आधुनिक जीवनशैली के कारण उत्पन्न तनाव और भागदौड़ के स्तर ने कई अन्य रोगों के साथ गर्भ स्थापन को भी काफी प्रभावित किया है। इस बढ़ते हुए विकार का अनुमान सहज ही चारों ओर नए खुल रहे फर्टिलिटी सेन्टर व नई-नई तकनीकों के प्रयोग से हो जाता है।

गर्भाधान के चार घटकः

आयुर्वेद में गर्भाधान के चार घटक हैं, स्वस्थ बीजाणु (शुक्र व डिम्ब), गर्भाशय, उचित पोषण और उपयुक्त काल। इन चारों घटकों की स्वस्थावस्था व संतुलित कार्य प्रणाली पर ही गर्भाधान होना माना जाता है। इनमें किसी भी घटक का विकृत होना गर्भाधान की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।

वात दोष का महत्त्वः

वायु का प्रधान कार्य शरीर में रक्त परिसंचरण, श्वसन, तंत्रिका तंत्र, उत्सर्जन इत्यादि माना जाता है। वायु को प्राण ऊर्जा के नाम से भी जाना जाता है। इसका एक भेद होता है - अपान वायु, जो प्राकृतिक रूप से शुक्र स्खलन, आर्तव स्राव मल-मूत्र इत्यादि का निकलना जैसे कार्यों के लिए उत्तरदायी मानी जाती है। प्रजनन संस्थान या श्रोणि भाग वायु के प्राकृतिक स्थानों में से एक माना जाता है। अतः विभिन्न कारणों से विकृत अपान वात अपने कार्यों का सही संचालन नहीं करने से शुक्र धातु सम्बन्धित विकार, मासिक धर्म की अनियमितता, गर्भाशय जन्य विकार या पोषण सम्बन्धी विकृतियाँ उत्पन्न कर सकती है।

गर्भाधान-पूर्व उपयोगी योगः

इस सच्चाई से अब सभी परिचित हैं कि योगा मानसिक तनाव को कम करने में सहायक है, साथ ही शारीरिक स्तर पर रक्त संचरण में सुधार कर सभी अंगों को आवश्यक पोषण प्रदान करता है। गर्भाधान से पूर्व की प्रक्रिया में स्त्री-पुरुष दोनों का ही तनाव रहित व चिंता मुक्त होना अनिवार्य है और यौन हार्मोन्स के संतुलित स्राव का होना भी जरूरी होता है। इसे विभिन्न ध्यान प्रक्रियाओं व आसनों द्वारा किया जा सकता है। धैर्य पूर्वक योग का नियमित अभ्यास शुक्र धातु की गुणात्मक वृद्धि, प्रजनन अंगों में बेहतर रक्त संचार, श्रोणि प्रदेश की मांसपेशियों में बल, आर्तव चक्र का नियमित होना, डिम्ब का उचित निर्माण व उत्सर्जन इत्यादि में सहायक होता है।

गर्भाधान में उपयोगी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देखेंः

प्राणायाम - कपालभाति, नाड़ीशोधन प्राणायाम, भ्रामरी

पुरूषों के लिए लाभदायक आसनः

  • अधोमुख शवासन

  • अश्विनी मुद्रा

  • सर्वांगासन, मत्स्यासन

  • शीर्षासन

  • उत्थिष्ठ त्रिकोणासन

  • अर्ध

  • मत्स्येन्द्रासन

  • वीर

  • भद्रासन

  • भुजंगासन

  • अधोमुख शवासन

महिलाओं के लिए लाभदायक आसनः

  • पश्चिमोत्तानासन

  • पवन मुक्तासन

  • शवासन

  • भुजंगासन

  • बलासन

  • विपरीत करणी

  • बद्ध

  • कोणासन

  • हस्तपादासन

आशा है आपने अब यह जान लिया होगा कि स्वस्थ गर्भाधान से पूर्व कौन से पहलुओं पर ध्यान दिया जाना महत्त्वपूर्ण है।

To Know more , talk to a Jiva doctor. Dial 0129-4040404 or click on ‘Speak to a Doctor
under the CONNECT tab in Jiva Health App.

SHARE:

TAGS:

Comment

Be the first to comment.

Leave a Reply

Signup For Jiva Newsletter

Subscribe to the monthly Jiva Newsletter and get regular updates on Dr Chauhan's latest health videos, health & wellness tips, blogs and lots more.

Please fill your Name
Please fill your valid email
Book An Appointment Chat With Us