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आयुर्वेद के अनुसार स्ट्रेस, चिन्ता व तनाव को रसवह स्रोतस विकृति का कारण बताया गया है।
अर्थात : अत्यधिक चिंतन करने से रसवाही स्रोतस की विकृति होती है। रसवह स्रोतस का मूल हृदय और रसवाहिनी धमनियों को बताया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि इस स्रोतस में विकार उत्पन्न होने से हृदय व अन्य कई प्रकार के रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली तनाव का मुख्य कारण है। तनाव न सिर्फ हमारे मस्तिष्क पर बल्कि शरीर व व्यवहार पर भी विपरीत प्रभाव डालता है। यदि तनाव लम्बे समय तक बना रहे तो कई रोगों को जन्म दे सकता है जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, आस्टियोपोरोसिस, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता, पाचन सम्बन्धित विकार, कमजोर याददाश्त इत्यादि।
तनाव के दौरान हमारे शरीर में प्रमुख रूप से 3 स्ट्रेस हार्मान का स्राव अत्यधिक बढ़ जाता है। एड्रीनेलिन, कार्टीसोल व नारइपिनेफ्रिन नामक ये हार्मोन्स जब शरीर में ज्यादा समय तक बने रहते हैं तो गम्भीर बीमारियाँ हो सकती है। कार्टीसोल की लगातार अधिक मात्रा से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
तनाव से मुक्ति का सबसे बेहतरीन तरीका है- तनाव के कारण को समझना तथा उसे दूर करना।
सकारात्मक सोच, सात्विक भोजन व सही जीवनशैली अपनाना।
नियमित योग व ध्यान क्रिया करें। यह मस्तिष्क को एकाग्रता व स्थिरता प्रदान कर तनाव मुक्त करता है।
ग्रीन टी का प्रयोग करें। इसमें उपस्थित एन्टी ऑक्सीडेन्ट्स जैसे पालीफिनाल, फ्लेवेनायड व कैटेचिन तनाव कम करने में सहायक हैं।
सुबह के नाश्ते में साबुत आनाज व फैट फ्री दूध का प्रयोग करें तथा ताजे फल खाएं।
रात में सोते समय 1 गिलास गुनगुना दूध पिएं। ट्रिप्टोफेन नामक अमिनो एसिड जो दूध में उपस्थित होता है तनाव कम करने में सहायक है।
शहद को आयुर्वेदिक चाय व ग्रीन टी में डालकर पिएं। शहद में एन्टी ऑक्सीडेन्ट्स प्रचुर मात्रा में होते हैं।
ओट स्ट्रा (जई का जल) तथा कैमोमाइल टी का सेवन भी तनाव घटाने में सहायक है।
एकाकी जीवन न बिताएं, मिलनसार रहें तथा अच्छी सोच रखें।
ईर्ष्या, द्वेष, काम व क्रोध इन भावनाओं को न रखें। ये शरीर में स्ट्रेस हार्मोन के स्राव को बढ़ाते हैं।
सुबह देर तके सोना व रात में देर तक जगना।
फर्मेण्टेड फूड प्रोडक्ट्स, जंक फूड व ऑयली फूड खाना।
नकारात्मक सोच रखना।
किसी भी प्रकार के नशे का प्रयोग।
बिना डॉक्टर की सलाह के तनाव कम करने वाली दवाईयों का सेवन।
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