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आयुर्वेद के अनुसार फटी एड़ियों का कारण बढ़ा हुआ वात है। एड़ियों में दर्द होना, बढ़े हुए वात दोष का लक्षण है।
फटी हुई एड़ियां, पैरों के खुले रहने या नमी की कमी से कहीं ज्यादा पैरों का खयाल न रखने की ओर संकेत करता है। मेडिकल की भाषा में फटी हुई एड़ियों यानी क्रैक्ड हील को हील फिस्सर कहा जाता है। फिस्सर, नियमित रूप से कटने के बाद बने लम्बे घाव होते हैं और ये अक्सर त्वचा की ऊपरी सतह पर होते हैं। कभी-कभी से त्वचा की गहराई तक भी जा सकते हैं और बेहद दर्द की वजह भी बन सकते हैं। पैर के तलवों पर अत्यधिक दबाव आने के कारण पैर बाहरी किनारों की तरफ फैलने की कोशिश करते हैं। ऐसे में पैरों के किनारे पर मौजूद त्वचा शुष्क हो कर चटखने के बाद फटी हुई एड़ियों का कारण बन सकती है। फटी हुई एड़ियों शरीर में ज़िंक और ओमेगा-3 फैटी एसिड की कमी की ओर भी संकेत करती हैं।
आयुर्वेद में फटी हुई एड़ियों को क्षुद्र रोगों श्रेणी में रखा गया है, जिसका अर्थ है किसी जटिलता के बिना सामान्य रोग। वास्तव में पसीना आने से हमारी त्वचा में नमी बनी रहती है और यह मुलायम भी रहती है। वात बढ़ने के कारण हमारे पसीने की ग्रंथियां सूख जाती हैं, जिसें कारण त्वचा में भी खुष्की आ जाती है। फटी हुई एड़ियों को पद्दरी भी कहा जाता है। ये शुद्ररोग की श्रेणी में आता है। इसे बिवाई और विपादिका भी कहा जाता है। इसलिए, फटी हुई एड़ियों दर्दनाक होती हैं। अगर आपको लंबे समय तक नंगे पैर चलने की आदत है, तो भी विटामिन वात के कारण एड़ियों फट सकती हैं।
फटी एड़ियों की समस्या से चार तरीकों से निबटा जा सकता हैः
बराबर मात्रा में गेहूं की भुसी, अच्छी तरह कुटे हुए बादाम और कुटी हुई मसूर की दाल में दूध मिला कर एक पेस्ट तैयार करें। इस पेस्ट से फटी हुई एड़ियों की क्लींज़िंग करें।
सोते समय पैरों में 10-15 मिनट के लिए गुनगुना सरसों का तेल लगाएं और सोने से पहले पोंछ दें।
मधुमक्खी का शहद (50 ग्रा.) और सैंधा नमक (10 ग्रा.) मिलाकर एक पैक तैयार करें और इसे एड़ियों पर लगाएं। इसके बाद आप मोजे पहन सकते हैं।
50ग्रा. शहद, 25 ग्रा. घी और 25 ग्रा. सरसों के तेल का एक मल्लहम बना लें और इसे प्रभावित भाग पर लगाएं।
यदि आपका वजन ज्यादा है, तो पैरों पर आने निरंतर आने वाला दबावफटी एड़ियों का कारण बन सकता है।
लंबे समय तक नंगे पैर चलने से बचें, ऐसा न करने पर वात बढ़ने के कारण भी एड़ियों फट सकती हैं।
शुष्क और ठंडे मौसम के कारण शरीर में वात की वृद्धि होती है और एड़ियों फट सकती हैं, इसलिए मोजे पहनने रखने की कोशिश करें।
पतले तलवों (सोल) वाले और जूते-चप्पल और पीछे से खुले जूते पहनने से बचें।
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