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यह वसंत है / आ गयी है वसंत

चारों ऋतुओं में वसंत ऋतु बहुत शांत होती है। मौसम विज्ञान के मुताबिक उत्तरी गोलार्द्ध में यह पूरे मार्च, अप्रैल, मई और दक्षिणी गोलार्द्ध में सितंबर,अक्तूबर और नवंबर में आती है।

भारत की परिस्थितियां ऐसी हैं जहां सूर्य की किरणों का खासा प्रभाव पड़ता है और यही वजह है कि यहां पर 6 ऋतुएं हैं और उनका समय लगभग एक जैसा होता है।

  • शिशिर- जनवरी, फरवरी

  • वसंत- मार्च, अप्रैल

  • ग्रीष्म- मई, जून

  • वर्षा- जुलाई,अगस्त

  • शरद- सितंबर, अक्तूबर

  • हेमंत- नवंबर, दिसंबर

वसंत ऋतु

वसंत ऋतु गर्माहट के साथ आती है, जो लंबी सर्दियों के बाद राहत देती है। यह सूर्य के उत्तरायण होने के समय आती है, जब सूर्य हल्का सा उत्तर की ओर जाता है। प्रसिद्ध कवि कालीदास ने वसंत ऋतु को इन शब्दों में पिरोया है‘दक्षिण से बहने वाली हल्की हवाएं, सर्दियों की ठंडी हवा को नर्म करती हैं। भूमि में जीवन पनपता है क्योंकि वनस्पतियों में अचानक परिपक्वता फूट जाती है और युवा फूल पूरी तरह खिल उठते हैं। हवाएं ताजा फूलों की मदमस्त गंध से भरी हुई हैं और इसका प्रभाव कोयल पर दिखता है जो इसके नशे की डूबी हुई है।‘

हर मौसम का त्रिदोषों पर अपना एक अलग प्रभाव होता है, ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि आप खास दिनचर्या का पालन करें जो अनोखी हो और मौसम के अनुकूल हो। आयुर्वेद ने इसकी व्याख्या ऋतुचर्या में की है जिसमें मौसम के मुताबिक आहार नियम बताए गए हैं। ऋतु का मतलब है मौसम और चर्या का मतलब है आहार नियम।

वसंत के लिए आहार नियम यानि वसंत ऋतुचर्या:

वसंत में जब सूर्य की गर्मी बढ़ती है,कफ दोष जो सर्दियों के दौरान शरीर में इकट्ठा हो जाता है, वह टूटना और बिखरना शुरू हो जाता है। इसकी वजह से जठराग्नि यानि पाचन की अग्नि कमज़ोर हो जाती है और कफ से जुड़ी कई बीमारियाँ हो जाती हैं। यह वो कारण है जिससे मार्च, अप्रैल या वसंत के मौसम में सर्दी, खांसी, साइनस और बुखार की समस्या हो जाती है। आहार नियमों की सही जानकारी हो तो बढ़े हुए कफ से होने वाली इन परेशानियों से बचा जा सकता है।

आहार:

सर्दियों की तुलना में वसंत में शारीरिक मजबूती और भूख की इच्छा कम हो जाती है। इसलिए सर्दियों में खाए जाने वाले भारी और गर्म आहार को ऐसे भोजन के साथ बदल देना चाहिए जो गर्मियों में खाए जाते हैं। हल्के और ठंडी तासीर वाले आहार के सेवन की सलाह दी जाती है। गरिष्ठ, खट्टा, तैलीय और मीठे से परहेज़ करें। दूध से बनी गरिष्ठ चीजें जैसे पनीर,दही के सेवन की मात्रा कम कर दें क्योंकि इससे कफ बढ़ता है।

ऐसे अनाज जो ताज़ी फसल के ना हों उनका सेवन करें। खासतौर से हर्बल शराब का सेवन करें लेकिन नशे के लिए नहीं, शहद और ताज़े आम का सेवन भी फायदेमंद रहेगा।

आयुर्वेद में 6 तरह के स्वाद वाले आहार बताए गए हैं- मीठा, खट्टा, नमकीन, तेज़, कसैला, और कड़वा। वसंत ऋतु में अधिक मात्रा में कसैला, कड़वा और तेज़ स्वाद वाले आहार का सेवन करें, साथ ही कम मात्रा में मीठा, खट्टा, और नमकीन स्वाद वाला आहार भी लें।

गतिविधि:

चूंकि वसंत ऋतु में बहुत अधिक मात्रा में कफ दोष बढ़ता है, कुछ गतिविधियां जिससे कफ दोष बढ़ता है उससे बचना चाहिए जैसे दिन में सोना नहीं चाहिए। हर्बल पाउडर से मालिश, चंदन और केसर से गर्म सेंक की सलाह दी जाती है। नियमित व्यायाम, गुनगुने पानी से गरारे करना और गर्म पानी पीना वसंत के मौसम में फायदेमंद रहेगा।

वसंत ऋतु में कफ को शांत करने के लिए वमन और नास्या उपचार लेना बहुत अच्छा रहेगा। ध्यान रखें कि यह सब आयुर्वेदिक डॉक्टर की देखरेख में ही होना चाहिए।

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