यह एक ऐसी आयुर्वेदिक प्रक्रिया है, जिसमें औषधी युक्त तेल या घी को दवा के रूप में कानों में बूंद-बूंद करके डाला जाता है। यह कान से जुड़े रोगों के लिए लाभकारी है।
कैसे होती है पूर्ण, कर्णपूरण प्रक्रिया:
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इस प्रक्रिया में पहले मरीज के सिर की तेल मालिश 15-30 मिनट तक करनी चाहिए। इसके लिए ब्राह्मी तेल का प्रयोग किया जा सकता है।
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मरीज को पार्श्व मुद्रा में लेटने को कहें और औषधीय तेल को आवश्यकता के अनुसार इस्तेमाल करें।
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गर्म औषधीय तेल की कुछ बूंदे संक्रमित कान में डालें और मरीज को 15-20 मिनट के लिए पार्श्व भाग की अवस्था में छोड़ दें।
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इसके बाद मरीज को 30 मिनट यूं ही आराम करने को कहें।
कब होती है इसकी जरूरत:
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कानों में मैल जमना या दर्द
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कानों में रक्त का जमाव
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झनझनाहट
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सुनने की शक्ति कम होना
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कान बहना
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सिर/गर्दन/जबड़ों में दर्द
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माइग्रेन
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कर्णेन्द्रिय संबंधी नस का कमजोर हो जाना
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चक्कर आना
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शरीर में दर्द व जकड़न
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मस्तिष्क संबंधी विकार
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अवसाद
कर्णपूरण के लाभ:
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कर्णपूरण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले औषधीय तेल कानों के लिए शक्तिवर्धक गुणों का कार्य करते हैं तथा यह तेल कान के सारे भाग व पर्दे को उचित पोषण देते हैं।
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संतुलन विकारों में भी यह ट्रीटमेंट बहुत लाभदायक है।
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जल्दी-जल्दी होने वाली खुजली व संक्रमण के लिए भी यह ट्रीटमेंट फायदेमंद है। कर्णपूरण में इस्तेमाल किए जाने वाले आयुर्वेदिक तेल के प्रयोग से इलाज में बहुत फायदा होता है। इससे सूजन तथा कान का दर्द कम होता है।
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कर्णपूरण से सुनने की क्षमता में सुधार आता है। यह कर्णेन्द्रिय को पोषण प्रदान करता है तथा सांकेतिक चिह्नों को दिमाग तक पहुंचाने में मदद करता है। इसके साथ ही यह भिन्न-भिन्न प्रकार की ध्वनियों को पहचानने के लिए मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ाता है।
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कई बार अवसाद, अनिद्रा या किसी मानसिक सदमे के कारण दिमाग परेशान रहता है। कर्णपूरण की मदद से मन और मस्तिष्क को शांति मिलती है।
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यह कानों के कार्यों को बढ़ाकर सुनने की शक्ति में भी सुधार लाता है।
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आवश्यकतानुसार नियमित अंतराल पर कर्णपूरण की सिटिंग्स लेते रहने से कान का संक्रमण जल्दी ठीक हो जाता है व रोग होने की संभावना कम हो जाती है।
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सिरदर्द और माइग्रेन से मुक्ति मिलती है।