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आयुर्वेद एक ऐसा चिकित्सा विज्ञान है जिसकी उत्पत्ति का उल्लेख ज्ञान के प्राचीनतम स्रोत वेदों में भी मौजूद है। इसके लाभों को वैज्ञानिकों ने माना है और साबित किया है कि यह एक सबसे पुरानी और बेहतर चिकित्सा प्रणाली हैं जो अब पूरी दुनिया में प्रख्यात हो चुकी है और इसी आयुर्वेद में शरीर की संपूर्ण शुद्धि के लिए पंचकर्म चिकित्सा का वर्णन किया गया है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर के स्वस्थ रहने के लिए त्रिदोष का संतुलित रहना ज़रूरी है। पंचकर्म चिकित्सा से शरीर का शोधन कर त्रिदोषों को संतुलित किया जाता है और विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकाला जाता है। पंचकर्म को आयुर्वेद की विशिष्ट चिकित्सा प्रक्रिया कहते हैं। इस विधि से शरीर में होने वाले रोगों के कारणों को दूर करने के लिए और त्रिदोष के विषम रूप को समरूप में पुनः स्थापित करने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाएं प्रयोग में लाई जाती हैं। लेकिन इन कई प्रक्रियाओं में पांच कर्म मुख्य हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं-
वमन
विरेचन
बस्ति
रक्त स्रावण
नस्य
रोग व रोगी की अवस्थानुसार आयुर्वेद चिकित्सा में औषधी के अतिरिक्त शोधन या पंचकर्म का विशेष महत्व हैए विशेषतः जीर्ण रोगों में। रोगों के पुराने हो जाने या विषैले द्रव्यों के अधिक गहराई तक पहुंच जाने पर औषधी का प्रभाव कम या सीमित अवस्था तक ही हो पाता है। ऐसी अवस्था में पंचकर्म द्वारा शरीर की शुद्धि कर विजातीय पदार्थों को दूर कर औषधी सेवन करने से रोगों का समूल नाश होता है। कायाकल्प या निरोगी व दीर्घायु की प्राप्ति के उद्देश्य से रसायन सेवन का पूर्ण लाभ भी पंचकर्म के द्वारा ही मिलता है। पंचकर्म चिकित्सा से आहार व औषधी का उचित अवशोषण होता है जो रोगों से बचाने व उन्हें नष्ट करने में उपयोगी है।
आज की इस आधुनिक जि़ंदगी में भागदौड़ हर किसी के जीवन का हिस्सा हो चुकी है और इसी थकान को दूर करने का एक फैशनेबल व अस्थायी तरीका है....स्पा। लेकिन स्पा और पंचकर्म को एक ही चीज़ समझना एक भूल है। क्योंकि पंचकर्म केवल थकान नहीं बल्कि रोग को पूर्णतः नष्ट करने के लिए किया जाता है। इसमें शामिल 5 क्रियाओं को करने से पहले स्नेहन और स्वेदन नामक दो पूर्वकर्म किए जाते हैं। इससे शरीर लचीला और पंचकर्म सहन करने योग्य बनता है। इस पूर्वकर्म के बाद ही पंचकर्म क्रिया को किया जाता है।
वर्षा ऋतु में होने वाली परेशानियों से निजात पाने के लिए आप निम्न पंचकर्म क्रियाओं को अपना सकते हैं-
अभ्यंग
धारा
स्वेदनम
विरेचन
वैसे इन सबके अलावा पंचकर्म क्रियाओं का चुनाव मरीज की जांच और रोग के अनुरूप भी किया जाता है।
पंचकर्म से शारीरिक व मानसिक संतुलन बनाएं रखने में मदद मिलती है।
इसकी मदद से शरीर के छिद्र खुल जाते हैं जिससे टॉक्सिन्स बाहर निकल जाते हैं।
त्वचा बेहतर तरीके से सांस लेती है और स्वस्थ व जवां नज़र आने लगती है।
इससे शरीर की अग्नि, वात, पित्त, कफ इत्यादि संतुलित हो जाते हैं जिससे आप मानसिक ही नहीं शारीरिक तौर भी फिट महसूस करते हैं।
शरीर के सभी अंगों की कार्यप्रणाली उचित प्रकार से कार्य करने लगती है जिससे व्यक्ति रोगमुक्त रहता है।
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