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बहुत पुरानी कहावत है कि, ‘‘जब तक सांस है, तब तक आस है‘‘...अपने जीवन की इस आस यानि आशा को दमा से निराश न होने दें और आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा पद्धति का लाभ उठाएं।
यदि आप अक्सर सांस की तकलीफ का अनुभव करते हैं, सीने में भारीपन, सांस लेते वक्त अजीब सी ध्वनि या सीटी की आवाज सुनते हैं या फिर सामान्य रूप से सांस नहीं ले पाते हैं तो आप अस्थमा यानि दमा के रोग से पीडि़त हो सकते हैं।
दरअसल अस्थमा या दमा श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है जिसके चलते सांस लेना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि श्वसन मार्ग में सूजन आ जाने के कारण वह संकुचित हो जाती है। इस कारण छोटी-छोटी सांस लेनी पड़ती है, छाती मे कसाव जैसा महसूस होता है, सांस फूलने लगती है और बार-बार खांसी आती है। कई प्रकार के ट्रीटमेंट के द्वारा दमा के लक्षणों को नियंत्रण में लाया जा सकता है या बेहतर रखने की कोशिश की जा सकती है।
आयुर्वेद के अनुसार, श्वसन मार्ग और पाचन तंत्र दोनों में वात-कफ दोष का असंतुलन अस्थमा या तमक श्वास रोग का कारण होता है। अस्थमा के इलाज के लिए पंचकर्म एक उत्कृष्ट आयुर्वेदिक समाधान है। इस उपचार के जरिए शरीर में विकृत दोषों को संतुलित किया जाता है और वायुमार्ग में आए अवरूद्ध को दूर किया जाता है।
अस्थमा के उपचार के लिए औषधियों के अतिरिक्त पंचकर्म चिकित्सा को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। पंचकर्म यानि पांच मुख्य कर्म जिनको स्नेहन व स्वेदन के पश्चात् आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है, वो कुछ इस प्रकार हैं-
इस प्रक्रिया में प्रकुपित दोष को आमाशय से बाहर उल्टी द्वारा निकाला जाता है। वमन पंचकर्म में विशेष औषधी देकर व्यक्ति को उल्टी करवायी जाती है। इस माध्यम से अतिरिक्त कफ और विषाक्त पदार्थों को पाचन तंत्र प्रणाली व उसके ऊपर से हटाया जाता है।
प्रकुपित दोष, विशेषतः पित्त दोष को गुदमार्ग से बाहर निकालने को विरेचन कहते हैं। विरेचन द्वारा प्रकुपित दोष का निर्हरण केवल आंतों या गुदमार्ग से नहीं होता अपितु संपूर्ण शरीर से होता है।
औषधी युक्त स्नेह, चूर्ण को नासा मार्ग से देने की प्रक्रिया को नस्य कर्म कहते हैं। नाक को शिर का द्वार समझा जाता है और इस द्वार से दी जाने वाली दवा सिर से गर्दन तक समाए सभी विषैले पदार्थों को बाहर निकालती है।
इस प्रक्रिया में औषधी युक्त तेल अथवा क्वाथ को गुदमार्ग से विशेष यंत्र द्वारा प्रविष्ट किया जाता है। बस्ति का उपयोग सिर से पांव तक सभी रोगों में किया जाता है। बस्ति के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं। शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करवाने वाले इन पंचकर्म उपचार के अलावा स्वस्थ आहार, योग, श्वास व्यायाम और प्राकृतिक उपचार से आपको रोग मुक्त जीवन जीने में मदद मिलेगी।
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