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क्या Delivery के बाद महिलाओं में Fissure ज़्यादा देखा जाता है? आयुर्वेद बताता है कारण और देखभाल

Information By Dr. Keshav Chauhan

Delivery के बाद महिला का शरीर बाहर से भले ही सामान्य दिखने लगे, लेकिन भीतर बहुत कुछ बदल चुका होता है। यह बदलाव केवल हार्मोनल नहीं होता, बल्कि शरीर की पूरी कार्यप्रणाली, विशेषकर पाचन और मल त्याग की प्रक्रिया पर इसका गहरा असर पड़ता है। इसी दौरान कई महिलाएँ एक ऐसी समस्या से जूझने लगती हैं, जिसके बारे में वे खुलकर बात नहीं कर पातीं—गुदा के पास जलन, खिंचाव, दर्द और कभी-कभी हल्का खून। अक्सर इसे बवासीर मान लिया जाता है, लेकिन वास्तव में यह Anal fissure होता है।

आयुर्वेद इस स्थिति को केवल एक स्थानीय घाव नहीं मानता। उसके अनुसार Delivery के बाद fissure होना शरीर के भीतर चल रहे गहरे असंतुलन का संकेत होता है, जिसे समझे बिना समस्या बार-बार लौट सकती है।

Delivery के बाद शरीर क्यों बन जाता है संवेदनशील

प्रसव के दौरान महिला का शरीर अत्यधिक परिश्रम से गुजरता है। गर्भावस्था के नौ महीनों में शरीर ने जिस तरह खुद को बच्चे के अनुसार ढाला होता है, Delivery के बाद उसे दोबारा संतुलन में आने में समय लगता है। इस दौरान रक्त की कमी, शारीरिक थकान, हार्मोनल बदलाव और मानसिक तनाव एक साथ काम कर रहे होते हैं।

आयुर्वेद में इसे “धातु क्षय” की अवस्था माना जाता है। विशेषकर रक्त धातु और मांस धातु कमजोर हो जाती हैं। जब शरीर की पोषण शक्ति कम होती है, तब सबसे पहले वे हिस्से प्रभावित होते हैं जो पहले से ही दबाव में रहे हों। गुदा मार्ग ऐसा ही एक क्षेत्र है, जो प्रसव के समय और उसके बाद अप्रत्यक्ष रूप से तनाव में रहता है।

कब्ज़: Delivery के बाद fissure का सबसे आम कारण

Delivery के बाद महिलाओं में कब्ज़ बहुत आम समस्या बन जाती है। इसके कई कारण होते हैं—दर्द के डर से शौच को टालना, ऑपरेशन या टांकों की वजह से बैठने में परेशानी, कम पानी पीना और आयरन सप्लीमेंट्स का सेवन। यह कब्ज़ धीरे-धीरे मल को कठोर बना देती है।

जब पहली बार Delivery के बाद महिला शौच के लिए जाती है, तो कठोर मल गुदा मार्ग की संवेदनशील त्वचा पर चोट पहुँचा सकता है। यही चोट fissure का रूप ले लेती है। आयुर्वेद के अनुसार यह केवल एक यांत्रिक चोट नहीं होती, बल्कि वात दोष के अत्यधिक बढ़ने का परिणाम होती है।

क्यों कुछ महिलाओं में fissure बार-बार लौटता है

कई महिलाएँ कहती हैं कि Delivery के कुछ महीनों बाद fissure ठीक हो गया था, लेकिन फिर कुछ समय बाद दोबारा समस्या शुरू हो गई। आयुर्वेद इसे अधूरे संतुलन का परिणाम मानता है। जब केवल बाहरी घाव पर ध्यान दिया जाता है, लेकिन भीतर के वात असंतुलन, कब्ज़ और धातु क्षय को नज़रअंदाज़ किया जाता है, तब fissure पूरी तरह समाप्त नहीं होता। प्रसव के बाद शरीर को जिस विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, अगर वह नहीं मिलती, तो छोटी-सी समस्या भी पुरानी बन सकती है।

आयुर्वेद की दृष्टि से fissure कोई अलग रोग नहीं

आयुर्वेद fissure को अलग-थलग बीमारी के रूप में नहीं देखता। वह इसे शरीर के भीतर चल रहे असंतुलन का बाहरी संकेत मानता है। प्रसव के बाद जब वात, अग्नि और धातुओं का संतुलन बिगड़ता है, तो fissure उस असंतुलन की अभिव्यक्ति बन जाता है। इसीलिए आयुर्वेद में केवल fissure पर काम करने के बजाय पूरे शरीर को पुनः संतुलन में लाने पर ज़ोर दिया जाता है।

प्रसव के बाद Fissure में पित्त और कफ की भूमिका

Delivery के बाद fissure को केवल वात से जोड़कर देखना अधूरी समझ होगी। आयुर्वेद में किसी भी समस्या को एक दोष से नहीं आँका जाता, विशेषकर तब जब शरीर पहले से ही कमजोर अवस्था में हो। प्रसव के बाद महिला का शरीर वात प्रधान जरूर होता है, लेकिन उसी समय पित्त और कफ भी अपने-अपने तरीके से प्रभाव डालते हैं। यही कारण है कि कुछ महिलाओं में fissure केवल हल्की दरार बनकर रह जाता है, जबकि कुछ में वही fissure जलन, सूजन और लगातार असहजता का कारण बन जाता है।

पित्त दोष: कई महिलाओं को Delivery के बाद यह अनुभव होता है कि शौच के समय या उसके बाद तेज़ जलन होती है। कभी-कभी हल्का खून भी दिखाई देता है। अक्सर इसे “घाव का हिस्सा” मानकर सह लिया जाता है, लेकिन आयुर्वेद इसे पित्त दोष के बढ़ने का स्पष्ट संकेत मानता है।

प्रसव के बाद शरीर में आंतरिक गर्मी बढ़ी हुई होती है। रक्तस्राव, थकान, नींद की कमी और मानसिक तनाव, ये सभी पित्त को भड़काने वाले कारक हैं। जब पित्त बढ़ता है, तो वह शरीर के संवेदनशील हिस्सों में जलन पैदा करता है। गुदा मार्ग की त्वचा पहले से ही fissure के कारण घायल होती है, ऐसे में बढ़ा हुआ पित्त उस घाव को भरने के बजाय और अधिक संवेदनशील बना देता है।

यही वजह है कि कुछ महिलाओं को दर्द से ज़्यादा जलन परेशान करती है। यह जलन केवल बाहरी नहीं होती, बल्कि भीतर तक महसूस होती है, मानो वहाँ गर्मी जमा हो गई हो।

कफ दोष: कुछ महिलाओं में fissure के साथ-साथ गुदा के आसपास भारीपन और हल्की सूजन महसूस होती है। दर्द बहुत तेज़ नहीं होता, लेकिन एक अजीब-सी असहजता बनी रहती है। आयुर्वेद इसे कफ दोष की भागीदारी से जोड़ता है। Delivery के बाद कई महिलाएँ शारीरिक रूप से कम सक्रिय हो जाती हैं। लंबे समय तक लेटे रहना, पर्याप्त चलना-फिरना न होना और भारी, मीठा या दूध-प्रधान आहार कफ को बढ़ा देता है। बढ़ा हुआ कफ पाचन को मंद करता है और शरीर में जड़ता पैदा करता है।

जब कफ बढ़ता है, तो fissure के आसपास सूजन और भारीपन महसूस होने लगता है। यह सूजन कभी-कभी बाहर से दिखाई नहीं देती, लेकिन भीतर दबाव जैसा एहसास बना रहता है। यही स्थिति fissure को भरने की प्रक्रिया को धीमा कर देती है।

दोषों का मिश्रण: क्यों हर महिला का अनुभव अलग होता है

आयुर्वेद कहता है कि कोई भी दो शरीर बिल्कुल एक जैसे नहीं होते। प्रसव के बाद fissure में भी यही नियम लागू होता है। किसी महिला में वात प्रधान लक्षण दिखाई देते हैं सूखापन, खिंचाव और तेज़ दर्द। किसी में पित्त प्रधान लक्षण, जलन और खून। वहीं किसी में कफ प्रधान, सूजन और भारीपन।

अक्सर ये दोष अलग-अलग नहीं, बल्कि मिश्रित रूप में काम करते हैं। उदाहरण के लिए, कब्ज़ से बढ़ा वात fissure बनाता है, पित्त उस fissure में जलन पैदा करता है और कफ उसे भरने से रोकता है। यही कारण है कि केवल एक लक्षण पर ध्यान देने से समस्या पूरी तरह हल नहीं होती।

प्रसव के बाद देखभाल क्यों होती है सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण

आयुर्वेद में प्रसव के बाद की अवधि को “सूतिका काल” कहा गया है। यह समय केवल आराम का नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण का होता है। इस दौरान शरीर को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, ताकि दोष संतुलन में लौट सकें। जब सूतिका काल में सही देखभाल नहीं होती, जैसे अनियमित भोजन, पर्याप्त आराम की कमी और मानसिक तनाव, तो छोटी-छोटी समस्याएँ जड़ पकड़ लेती हैं। fissure इसी का एक उदाहरण है।

भोजन की भूमिका: घाव भरने में या बिगाड़ने में

Delivery के बाद कई महिलाएँ जल्दी-जल्दी कुछ भी खा लेती हैं, क्योंकि समय और ऊर्जा दोनों की कमी होती है। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार यही समय भोजन के प्रति सबसे अधिक सजग रहने का होता है। बहुत अधिक मसालेदार और तला-भुना भोजन पित्त को बढ़ाता है। अत्यधिक सूखा और ठंडा भोजन वात को और असंतुलित करता है। वहीं बहुत भारी और चिकना भोजन कफ को बढ़ाकर पाचन को धीमा कर देता है। इन तीनों स्थितियों में fissure को भरने का अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाता।

मानसिक अवस्था और fissure का संबंध

Delivery के बाद महिला केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी बदलावों से गुजरती है। चिंता, नींद की कमी और भावनात्मक उतार-चढ़ाव आम हैं। आयुर्वेद मन और शरीर को अलग नहीं देखता। जब मन में तनाव होता है, तो शरीर में संकुचन बढ़ता है। यह संकुचन गुदा मार्ग की मांसपेशियों को भी प्रभावित करता है। परिणामस्वरूप शौच कठिन हो जाता है और fissure का दर्द बढ़ सकता है।

क्यों fissure कभी-कभी अपने आप ठीक नहीं होता

कई महिलाएँ उम्मीद करती हैं कि समय के साथ fissure अपने आप ठीक हो जाएगा। लेकिन आयुर्वेद कहता है कि यदि कारण बने रहते हैं, तो परिणाम भी बना रहता है। कब्ज़, दोष असंतुलन और अनुचित दिनचर्या fissure को बार-बार सक्रिय करती रहती है। जब तक शरीर को वह वातावरण नहीं मिलता जिसमें वह स्वयं को ठीक कर सके, तब तक fissure केवल दबा रहता है, समाप्त नहीं होता।

प्रसव के बाद Fissure में आयुर्वेदिक देखभाल

Delivery के बाद fissure की समस्या केवल एक घाव भरने की चुनौती नहीं होती, बल्कि यह उस पूरे शारीरिक संतुलन को दोबारा स्थापित करने की प्रक्रिया होती है जो प्रसव के दौरान और उसके बाद बिगड़ चुका होता है। आयुर्वेद इस अवस्था को बहुत संवेदनशील मानता है, क्योंकि यहाँ शरीर स्वयं को फिर से गढ़ रहा होता है। यदि इस समय सही दिशा में सहयोग न मिले, तो छोटी-सी दरार भी लंबे समय तक पीड़ा का कारण बन सकती है।

आयुर्वेद fissure को “स्थानीय समस्या” क्यों नहीं मानता

आधुनिक सोच अक्सर fissure को केवल गुदा के पास बना एक घाव मानती है। इसी वजह से इलाज भी ज़्यादातर वहीं तक सीमित रह जाता है। लेकिन आयुर्वेद की दृष्टि इससे कहीं व्यापक है। उसके अनुसार fissure उस असंतुलन का बाहरी रूप है, जिसकी जड़ें पाचन, दोष-संतुलन और जीवनशैली में छिपी होती हैं।

प्रसव के बाद शरीर में वात की अधिकता स्वाभाविक मानी जाती है। यह वात ही शरीर की रिकवरी प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। लेकिन जब यही वात असंतुलित हो जाए, तो वह शुष्कता, संकुचन और दर्द पैदा करता है। fissure इसी बढ़े हुए वात का एक परिणाम होता है। इसलिए आयुर्वेद का पहला उद्देश्य fissure को दबाना नहीं, बल्कि वात को शांत करना होता है।

सूतिका काल: healing का असली समय

आयुर्वेद में प्रसव के बाद का समय केवल “आराम की अवधि” नहीं, बल्कि “चिकित्सात्मक काल” माना गया है। इसे सूतिका काल कहा जाता है। इस दौरान शरीर के ऊतक, मांसपेशियाँ और स्नायु दोबारा अपनी स्थिति में लौटते हैं। यदि इस समय महिला का आहार, दिनचर्या और मानसिक स्थिति संतुलित रखी जाए, तो शरीर में स्वयं healing की क्षमता बहुत तेज़ होती है। fissure जैसे घाव इसी अवधि में पूरी तरह भर सकते हैं। लेकिन अगर इस काल को नज़रअंदाज़ किया जाए, तो वही fissure पुरानी समस्या का रूप ले सकता है।

आहार: भीतर से भरने की प्रक्रिया

प्रसव के बाद fissure में आहार केवल पेट भरने का साधन नहीं होता, बल्कि उपचार का हिस्सा बन जाता है। आयुर्वेद के अनुसार ऐसा भोजन चाहिए जो वात को शांत करे, पित्त को न भड़काए और कफ को भारी न बनाए। बहुत रूखा भोजन शरीर की शुष्कता बढ़ाता है। बहुत तीखा भोजन fissure में जलन बढ़ाता है। और बहुत भारी भोजन पाचन को मंद कर देता है। इसलिए इस समय भोजन का संतुलन सबसे अधिक ज़रूरी होता है।

जब भोजन ऐसा होता है जो पाचन अग्नि को सहारा देता है, तब मल स्वाभाविक रूप से नरम बनने लगता है। नरम मल का अर्थ है, शौच के समय कम दबाव, कम खिंचाव और fissure को भरने का अवसर।

पाचन अग्नि को मजबूत करना क्यों ज़रूरी है

कई महिलाएँ सोचती हैं कि fissure का संबंध केवल शौच से है, पाचन से नहीं। लेकिन आयुर्वेद में ये दोनों एक ही श्रृंखला के हिस्से हैं। जब अग्नि कमजोर होती है, तो भोजन अधपचा रहता है। यही अधपचा भोजन आगे चलकर मल की गुणवत्ता को बिगाड़ता है। यदि अग्नि सही हो, तो मल न तो बहुत सूखा होता है और न ही बहुत चिपचिपा। वह सहज रूप से बाहर निकलता है। यही सहजता fissure के दर्द को कम करती है और घाव भरने की गति को बढ़ाती है।

दिनचर्या: शरीर को फिर से भरोसा दिलाना

प्रसव के बाद शरीर को समय, नियमितता और धैर्य की आवश्यकता होती है। अनियमित दिनचर्या शरीर को भ्रमित कर देती है। शौच का समय बदलता रहता है, नींद पूरी नहीं होती और भोजन के समय का कोई नियम नहीं रहता। आयुर्वेद मानता है कि शरीर लय में काम करना चाहता है। जब रोज़ एक ही समय पर शौच का प्रयास किया जाता है, तो आंतें उस समय सक्रिय होने लगती हैं। इससे ज़ोर लगाने की आवश्यकता कम होती है और fissure पर दबाव घटता है।

क्यों ज़बरदस्ती शौच करना fissure को बिगाड़ता है

कई महिलाएँ शौच के समय जल्दबाज़ी करती हैं, क्योंकि बच्चे की देखभाल का दबाव होता है। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार ज़ोर लगाकर शौच करना वात को और अधिक बिगाड़ देता है। जब शरीर तैयार नहीं होता और फिर भी दबाव डाला जाता है, तो गुदा मार्ग की त्वचा पर खिंचाव बढ़ता है। fissure इस खिंचाव से दोबारा खुल सकता है। इसलिए आयुर्वेद सहजता पर ज़ोर देता है, जल्दबाज़ी पर नहीं।

मानसिक स्थिति: अनदेखा किया गया पहलू

प्रसव के बाद महिला का मन भी एक बदलाव के दौर से गुजरता है। चिंता, डर और थकान आम अनुभव हैं। लेकिन fissure जैसी समस्या में मन की भूमिका को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। आयुर्वेद कहता है कि जब मन तनाव में होता है, तो शरीर सिकुड़ता है। यह सिकुड़न गुदा की मांसपेशियों तक पहुँचती है। इससे शौच कठिन हो जाता है और fissure का दर्द बढ़ सकता है। जब मन शांत होता है, तो शरीर भी ढीला और ग्रहणशील होता है। यही स्थिति healing के लिए सबसे अनुकूल होती है।

निष्कर्ष

Delivery के बाद fissure का होना कमजोरी नहीं, बल्कि शरीर की एक चेतावनी है। यह संकेत है कि शरीर अभी पूरी तरह संतुलन में नहीं लौटा है। आयुर्वेद इस संकेत को दबाने के बजाय सुनने की सलाह देता है। जब आहार, अग्नि, दिनचर्या और मन,  चारों एक साथ संतुलन में आते हैं, तब fissure को बने रहने का कोई कारण नहीं मिलता। यही आयुर्वेद की सबसे बड़ी शक्ति है, समस्या को जड़ से समझना और शरीर को स्वयं ठीक होने का रास्ता देना।

FAQs

  1. क्या Delivery के बाद fissure अपने आप ठीक हो सकता है?
    हाँ, शुरुआती अवस्था में यह संभव है। यदि कब्ज़ न हो, आहार संतुलित हो और शरीर को पर्याप्त आराम मिले, तो fissure स्वयं भर सकता है।
  2. क्या C-section के बाद भी fissure हो सकता है?
    हाँ। fissure का सीधा संबंध डिलीवरी के तरीके से नहीं, बल्कि कब्ज़, वात असंतुलन और पाचन से होता है।
  3. क्या breastfeeding के दौरान fissure का इलाज अलग होता है?
    हाँ। इस समय उपचार में अधिक सावधानी रखी जाती है ताकि माँ और शिशु दोनों सुरक्षित रहें। आयुर्वेद इस अवस्था में सौम्य और संतुलित दृष्टि अपनाता है।
  4. fissure में जलन ज़्यादा क्यों होती है?
    यह पित्त दोष के बढ़ने का संकेत हो सकता है, जो प्रसव के बाद आम है।
  5. क्या fissure बार-बार लौट सकता है?
    अगर कब्ज़ और जीवनशैली के कारण बने रहते हैं, तो fissure दोबारा हो सकता है। इसलिए देखभाल लंबे समय तक ज़रूरी होती है।

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