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आज हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जो भोग पर आधारित है। हमारे युवाओं की जीवनशैली इसका सबसे बड़ा सबूत है। स्वच्छंद यौन संबंध, बढ़ती कामुकता आदि ऐसे ज्वलंत विषय हैं, जिनसे आज की पीढ़ी जूझ रही है। आइए जानें आयुर्वेद उस यौन स्वतंत्रता के बारे में क्या सोचता है, जिसे आज के युवाओं ने अपनाया है?
अत्यधिक यौन संबंध, हस्तमैथुन छोटी उम्र में मैथुन करने के कारण ओज और रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होना, बदन कमजोर होना, बुढ़ापा जल्दी आना जैसे उपद्रव हो सकते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, हमारे शरीर में सात धातुएँ होती हैं। रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र। शुक्र धातु सभी धातुओं का सार होती है। मज्जा धातु, शुक्र धातु को बनाने में पोषण प्रदान करती है। आयुर्वेद में वर्णित ग्रंथों के अनुसार शुक्र धातु शरीर के हर हिस्से में उसी तरह अदृश्य उपस्थित रहता है, जिस प्रकार कि दूध में घी उपस्थित रहता है। यह अदृश्य शुक्र धातु मैथुन के समय दृश्य रुप में स्खलित होती है। शुक्रधातु सभी धातुओं का सार होती है, इसलिए इसे सभी धातुओं का निचोड़ कह सकते हैं। अतः शुक्रधातु के शरीर में अधिकाधिक मात्रा में रखने के लिए पौष्टिक आहार और सात्विक जीवन जीना चाहिए। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शुक्रधातु की रक्षा करनी चाहिए। अत्यधिक यौन संबंध, हस्तमैथुन छोटी उम्र में मैथुन करने के कारण ओज और रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होना, बदन कमजोर होना, बुढ़ापा जल्दी आना जैसे उपद्रव हो सकते हैं।
नर्त्ते वै षोडशाद् वर्षात्सप्तत्याः परतो न च। आयुष्कामो नरः स्त्रीभिः संयोगं कर्तुमर्हति।।
अतिबालो ह्यसम्पूर्ण सर्वधातुः स्त्रियो व्रजन्। उपसुष्येत सहसा तडागमिव काजलम्।।
महर्षि अग्निवेश कहते हैं कि 16 वर्ष से नीचे के तथा 80 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को दीर्घ जीवन के लिए मैथुन नहीं करना चाहिए। यदि बहुत कम आयु में स्त्री संभोग से किया जाए, तो उसकी सभी धातुएँ वैसे ही सूख जाती हैं, जैसे कि तालाब का पानी सूख जाता है।
हमारे पूर्वजों ने जीवन को चार भोगों में विभाजित किया है-ब्रह्मचर्याश्रम, इसमें विद्या अध्ययन करनी चाहिए और भौतिक सुखों से दूर रहते हुए शुक्र की पूरी रक्षा करनी चाहिए। काम संबंध ग्रहस्थाश्रम को विशेषाधिकार हैं, अतः शारीरिक सुखों के पीछे भागना, पोर्नोग्राफी देखना जैसे तामसिक क्रियाओं से दूर रहना चाहिए और सात्विक जीवन जीना चाहिए। सही चीज़ सही वक्त पर करना चाहिए।
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