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प्राकृतिक तरीके से संतान प्राप्ति – आयुर्वेदिक इलाज और परामर्श

Information By Dr. Sapna Bhargava

भारत में लगभग 10 से 14 प्रतिशत दंपति ऐसे हैं जो लगातार कोशिशों के बावजूद संतान प्राप्ति में सफल नहीं हो पा रहे हैं। यह संख्या हर साल बढ़ती जा रही है, जिसका मुख्य कारण है हमारी बदलती जीवनशैली, असंतुलित खान-पान, बढ़ता तनाव और प्रदूषित वातावरण। अगर आप भी इस चुनौती से गुज़र रहे हैं, तो यह जानना ज़रूरी है कि समाधान केवल महँगे तकनीकी इलाजों में नहीं छिपा है। आयुर्वेद एक ऐसा प्राकृतिक और सुरक्षित विकल्प है जो आपके शरीर, मन और जीवनशैली—तीनों को संतुलित करके गर्भधारण की संभावना को स्वाभाविक रूप से बढ़ा सकता है। यह केवल लक्षणों पर नहीं, बल्कि उनकी जड़ पर काम करता है, ताकि आप मातृत्व या पितृत्व की ओर एक स्वस्थ और उम्मीद भरा कदम बढ़ा सकें।

आज के समय में संतान प्राप्ति में कठिनाई क्यों बढ़ रही है?

भारत में अधिकांश जोड़ों द्वारा गर्भाधारण करना अब पहले जैसा सहज नहीं रहा है। इस तरह की चुनौती पुरुषों और महिलाओं दोनों में देखने को मिल रही है। आइए समझते हैं कि आपकी जीवनशैली, खान-पान और पर्यावरण में कौन-कौन सी बातें हैं, जो संतान प्राप्ति में बाधा बन सकती हैं।

पुरुषों में मुख्य कारण

  • अनियमित खान-पान, बहुत अधिक जंक फूड, लंबी देर तक बैठने की आदत या मोबाइल लैपटॉप को गलती से गद्दे-ऐसा इस्तेमाल करना, यह शुक्राणुओं की संख्या व गति पर असर डाल सकता है।

  • अधिक तनाव, काम का दबाव, नींद की कमी—ये वात दोष को बढ़ावा देते हैं और वीर्य-धातु कमज़ोर कर देते हैं।

  • शराब, धूम्रपान, मोटापा, उनके कारण हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं, जिससे शुक्राणु स्वस्थ नहीं रहते।

  • पुरुष-निसंतानता में लगभग 40-50 % मामले पुरुष कारणों से होते हैं।

महिलाओं में मुख्य कारण

  • उम्र का बढ़ना, बहुत देर से विवाह, ओव्यूलेशन न होना, पीसीओएस या एंडोमेट्रिओसिस जैसी स्थिति—ये कारण महिलाओं में गर्भधारण में समस्या ला सकते हैं।

  • गलत जीवनशैली: देर से खाना, अनियमित दिनचर्या, तनाव, नींद नहीं पूरी होना—all ये अग्नि (पाचन शक्ति) को कमज़ोर करते हैं, जिससे संतान-प्राप्ति की संभावना घट सकती है।

  • हार्मोनल असंतुलन, कम एएमएच (ओवरी रिज़र्व), फैलोपियन ट्यूब में रुकावट जैसी चिकित्सकीय बातें भी भूमिका निभाती हैं।

आधुनिक जीवनशैली क्यों दोषी बन रही है?

  • लगातार बैठने की आदत, सुबह-सुबह उठने का समय बिगड़ा हुआ, अधिक स्क्रीन टाइम एवं कम शारीरिक गतिविधि—ये बातें वात व पित्त दोष को बढ़ाती हैं।

  • प्रदूषण, ध्वनि, तनाव जैसे बढ़ते माहौल भी आपके प्रजनन-स्वास्थ्य पर असर डाल देते हैं।

  • फलस्वरूप आपके शरीर में प्रजनन-धातु (शुक्र धातु) बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, जिससे गर्भधारण के प्रयासों में बाधा आती है।

जब आप इन कारणों को समझते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि आपके द्वारा अपनाई गई दिनचर्या, खान-पान और जीवन-शैली सीधे तौर पर आप और आपके साथी की संतान-प्राप्ति की संभावना पर असर डाल सकती है।

आयुर्वेद निसंतानता को कैसे समझता है?

जब आप आधुनिक चिकित्सकीय भाषा में निसंतानता की बात करते हैं, तो बहुत-से विश्लेषण हार्मोन, ट्यूब ब्लॉकेज, शुक्राणु-गुण आदि पर आधारित होते हैं। लेकिन आयुर्वेद में यह इस तरह समझा जाता है कि शरीर में मूलभूत संतुलन बिगड़ गया है—विशेष रूप से वात, पित्त, कफ तीनों दोषों का संतुलन। अग्नि कमज़ोर हो जाना, अम्ल-विष का संचय होना और शुक्र धातु का निर्माण सही नहीं होना—इन सब को निसंतानता के मुख्य कारणों में माना जाता है।

त्रिदोष और अग्नि का महत्व

  • वाता दोष जब बढ़ जाता है, तो शरीर की गतिशीलता एवं संघटन बिगड़ जाती है—जैसे पाचन शक्ति कमज़ोर होना, वात प्रधान अशुद्धियाँ बढ़ जाना।

  • पित्त दोष अधिक हो तो ऊष्णता, जलन, सूजन-प्रक्रिया तेज हो जाती है, जो प्रजनन-धातु को प्रभावित करती है।

  • कफ दोष बढ़ने से स्थिरता बहुत बढ़ जाती है, लेकिन गति और उत्तेजना कम हो जाती है—उदाहरण के लिए फैलोपियन ट्यूब में जमे जमावट, शुक्रवाहिनी मार्ग में अवरोध।

  • अग्नि यानी हमारी पाचन-उर्जा जब कमज़ोर होती है, तो भोजन से सही पोषण नहीं बनता, अम्ल (आम) बनता है और वह उतने अच्छे ढंग से सप्त धातुओं (शरिर के सात ऊतक) में परिवर्तित नहीं होते।

शुक्र धातु क्या है और क्यों यह महत्वपूर्ण है?

आयुर्वेद के अनुसार मन्त्र हैः सप्त धातुओं में अंतिम धातु शुक्र धातु है, जो पुरुषों में वीर्य और महिलाओं में अंडाणु एवं उनकी प्रजनन-उर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। 

जब शुक्र धातु स्वस्थ होती है, तो आपके शरीर और मन में वेजित्व, स्वस्थ-ऊर्जा, और प्रजनन की क्षमता बनी रहती है। लेकिन यदि वात, पित्त या कफ दोष शुक्र धातु के मार्ग में बाधा डालें, तो गर्भधारण की संभावना कम हो सकती है।

प्राकृतिक उपचार पर ज़ोर

यहाँ ध्यान देने योग्य है कि आयुर्वेद में निसंतानता का इलाज केवल बाहरी हार्मोन या तकनीकी हस्तक्षेप नहीं होता। बल्कि आपके पूरे शरीर-मन-आहार-जीवनशैली को समग्र रूप से देखा जाता है। आपका पाचन, दोष-बैलेंस, भाव-स्थिति, ऊतक-स्वास्थ्य—इन सब को सुधारना आवश्यक माना जाता है। इस तरह, जब आप प्रकृति-अनुकूल तरीके अपनाते हैं, तो आपका शरीर “गर्भधारण के लिए तैयार” हो जाता है।

जब आप इस दृष्टिकोण से देखेंगे, तो समझ में आएगा कि यह कोई तुरन्त समाधान नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे परिवर्तन लाने वाला, टिकाऊ रास्ता है—जिसमें आपका और आपके साथी का संयोजन, आहार-जीवनशैली और आयुर्वेदिक परामर्श एक साथ काम करते हैं।

आयुर्वेदिक इलाज से संतान प्राप्ति कैसे संभव होती है?

यदि आपने निर्णय कर लिया है कि आप प्राकृतिक तरीके से संतान प्राप्ति के लिए कदम उठाएँगे, तो आइए देखें कि आयुर्वेद किस तरह से मार्गदर्शन करता है—कदम-ब-कदम, सरल शब्दों में।

1. शुद्धि-चरण (शोधन)

सबसे पहले आपके शरीर को बाहरी व आंतरिक अशुद्धियों (आम) से मुक्त करना ज़रूरी है। आयुर्वेद में शोधन जैसे कि वमन, विरेचन, बस्ती आदि प्रयोग में आते हैं। ये प्रक्रियाएँ आपके रक्त, मज्जा, शुक्र वाहिनी स्थान आदि को संतुलित करती हैं और शरीर को एक “नया आरंभ” देने में सहायक होती हैं। जब आपका शरीर शुद्ध होता है, तो आगे की प्रक्रिया बेहतर रूप से काम करती है।

2. पोषण-चरण (शमन और स्नेहन)

शुद्धि के बाद अब शरीर को सक्रिय रूप से पोषण देने और दोष-संतुलन की दिशा में काम करने का समय है। इसमें

  • पौष्टिक आहार: दूध, घी, खजूर, नट्स, हरी सब्ज़ियाँ, हल्दी-जीरा जैसे मसाले।

  • जड़ी-बूटियाँ: शतावरी, अश्वगंधा, सफेद मूसली, कौंच आदि, जो आपके प्रजनन-ऊतक को मजबूत करती हैं।

  • योग-स्वास्थ्य: रोज थोड़ी योगासन, प्राणायाम, पर्याप्त नींद और तनाव-मुक्त जीवन।

इस चरण में आपका शरीर धीरे-धीरे “गर्भधारण की दिशा में” ठीक-ठीक तैयार होता है।

3. संरचना-चरण (पंचकर्म एवं संतुलन)

पंचकर्म यानी शोधन-संतुलन की समग्र प्रक्रिया जिसमें नियमित अवधि के लिए तप, स्नेहन, बस्ति-स्नेह, स्वेदन आदि शामिल हो सकते हैं। यह चरण पुरुष एवं महिला दोनों के प्रजनन-चक्र को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। 

इस प्रक्रिया से:

  • शरीर में दोषों का संतुलन बनता है।

  • शुक्र धातु और प्रजनन-ऊतक बेहतर बनते हैं।

  • आपके गर्भधारण-मार्ग में रक्त-प्रवाह, ऊतक-स्वास्थ्य बेहतर होता है।

4. हार्मोन-वृद्धि एवं शरीर-तैयारी

जैसे-जैसे आपने उपरोक्त चरण पूरे कर लिए, आपका उद्देश्य होता है हार्मोन-संतुलन बनाए रखना, शुक्रावस्था (fertility window) में शरीर को सक्षम बनाना और मानसिक रूप से भी तैयारी करना। इस दौरान आप देखेंगे कि पहले की तरह तनाव कम हुआ है, ऊर्जा बेहतर है, जीवनशैली अधिक सहज है और शरीर “गर्भधारण के लिए तैयार” महसूस करता है।
इस तरह, आप और आपका साथी प्राकृतिक रूप से संतान-प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

पुरुष निसंतानता के लिए कौन-से आयुर्वेदिक इलाज और उपाय उपयोगी हैं?

आज के समय में पुरुष निसंतानता (Male Infertility) की समस्या तेजी से बढ़ रही है। यह सिर्फ महिला-संबंधी समस्या नहीं है—लगभग 40% मामलों में कारण पुरुषों से जुड़े होते हैं। अगर आप भी लगातार प्रयासों के बावजूद संतान-सुख नहीं पा रहे हैं, तो यह जानना ज़रूरी है कि आयुर्वेद आपके लिए कैसे मददगार साबित हो सकता है।

पुरुष निसंतानता के प्रमुख कारण

  • शुक्राणु की कमी या गुणवत्ता में गिरावट: गलत खान-पान, अत्यधिक शराब-धूम्रपान, या लंबे समय तक लैपटॉप/मोबाइल की गर्मी में रहना शुक्राणुओं की संख्या कम कर सकता है।

  • तनाव और नींद की कमी: तनाव से शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन बढ़ जाता है, जिससे टेस्टोस्टेरोन कम होता है और प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।

  • मोटापा या कमज़ोरी: मोटापा हार्मोनल असंतुलन लाता है, जबकि अत्यधिक कमज़ोरी शुक्र-धातु को कमज़ोर बनाती है।

  • संक्रमण या अवरोध: कुछ मामलों में शुक्रवाहिनी नलिकाओं में रुकावट या संक्रमण भी जिम्मेदार होता है।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से पुरुष निसंतानता का इलाज

आयुर्वेद में पुरुष-निसंतानता को वात दोष और शुक्र-धातु की दुर्बलता से जुड़ा माना जाता है। इलाज का मुख्य उद्देश्य शरीर की शुद्धि, ऊतक-पोषण और मानसिक शांति लाना होता है।

  1. पंचकर्म और शोधन-चिकित्सा:
  • योग से शरीर का रक्त-संचार बढ़ता है और तनाव घटता है। बस्ती-चिकित्सा (औषधीय एनीमा) शुक्रवाहिनी मार्ग को शुद्ध करती है और वीर्य की गुणवत्ता बढ़ाती है।

  • शोधन-प्रक्रिया से शरीर में जमा विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं, जिससे शुक्र-धातु निर्माण बेहतर होता है।

  1. आयुर्वेदिक औषधियाँ:
  • अश्वगंधा: यह शरीर की ताकत बढ़ाती है, तनाव कम करती है और शुक्राणुओं की संख्या व गति सुधारती है।

  • सफेद मूसली: वीर्य-वर्धक और बलवर्धक मानी जाती है। यह पुरुष-हार्मोन को संतुलित करती है।

  • कौंच बीज: यह प्राकृतिक रूप से टेस्टोस्टेरोन स्तर को बेहतर करता है और कामेच्छा बढ़ाता है।

  • गोक्षुर और शिलाजीत: यह मूत्र-प्रजनन तंत्र को मजबूत बनाते हैं और थकान घटाते हैं।

  1. योग और दिनचर्या:
  • पद्मासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, धनुरासन और उत्तानपादासन पुरुष-फर्टिलिटी के लिए उपयोगी माने गए हैं।

  • नियमित योग और प्राणायाम (विशेषकर अनुलोम-विलोम और भ्रामरी) आपके मन को शांत रखकर शुक्र-धातु के निर्माण में मदद करते हैं।

  1. आहार-विहार के सुझाव:

आपका आहार ही आपकी शक्ति का आधार है।

  • दूध, घी, बादाम, खजूर, अंजीर और शहद का नियमित सेवन करें।

  • फास्ट-फूड, कोल्ड-ड्रिंक्स और बहुत मसालेदार भोजन से बचें।

  • रोज पर्याप्त नींद लें और देर रात तक जागने की आदत छोड़ें।

महिलाओं के लिए आयुर्वेदिक इलाज और फर्टिलिटी बढ़ाने के प्राकृतिक तरीके क्या हैं?

अगर आप लंबे समय से गर्भधारण की कोशिश कर रही हैं, पर सफलता नहीं मिल रही, तो आप अकेली नहीं हैं। भारत में हर दस में से लगभग एक महिला को फर्टिलिटी-समस्या होती है। इसका सबसे बड़ा कारण है आज की तनावपूर्ण और अनियमित जीवनशैली।

महिलाओं में निसंतानता के सामान्य कारण

  • पीसीओडी/पीसीओएस: हार्मोनल असंतुलन से अंडे (एग्स) समय पर नहीं बनते।

  • एंडोमेट्रिओसिस या ट्यूब ब्लॉकेज: गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में रुकावट आ जाती है।

  • तनाव, थकान और गलत आहार: लगातार तनाव और फास्ट-फूड पाचन और हार्मोन दोनों को बिगाड़ देते हैं।

आयुर्वेदिक दृष्टि से महिलाओं का इलाज

आयुर्वेद मानता है कि महिलाओं में गर्भधारण तभी संभव है जब शरीर, मन और आहार का संतुलन बना रहे।

  1. पंचकर्म थेरेपी:
  • उत्तर बस्ती: यह गर्भाशय और ओवरीज़ की शुद्धि करती है, जिससे अंडे बेहतर बनते हैं।

  • वमन और विरेचन: शरीर से अतिरिक्त दोष और विषैले तत्व बाहर निकालते हैं।

  • शिरोधारा: मानसिक तनाव घटाकर हार्मोन संतुलित करती है।

  1. आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ:
  • शतावरी: महिलाओं के गर्भाशय को पोषण देती है, हार्मोन संतुलन में मदद करती है और ओव्यूलेशन नियमित बनाती है।

  • पुत्रजीवक: ओवरीज़ की कार्यक्षमता बढ़ाती है और गर्भाशय को स्वस्थ रखती है।

  • अश्वगंधा: तनाव घटाकर शरीर की ऊर्जा और प्रजनन-शक्ति बढ़ाती है।

  1. फर्टिलिटी मालिश:
    आयुर्वेदिक तेलों से की गई हल्की मालिश गर्भाशय में रक्त-संचार बढ़ाती है और ट्यूब-ब्लॉकेज में राहत देती है।
  2. सही आहार और जीवनशैली:
  • नियमित समय पर भोजन करें—फल, दालें, घी, दूध, सूखे मेवे, खजूर, और हल्दी-जीरा जैसे मसाले शामिल करें।

  • फोलेट-युक्त चीज़ें (हरी सब्ज़ियाँ, बीन्स, मटर) ओवरी स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हैं।

  • योगासन जैसे सुप्त बद्ध कोणासन, भुजंगासन, बालासन और सेतुबंधासन गर्भधारण के लिए उपयोगी हैं।

जब आप इन प्राकृतिक तरीकों को अपनाती हैं, तो शरीर स्वयं-संतुलित होकर गर्भधारण के लिए तैयार होता है।

फर्टिलिटी बढ़ाने के लिए कौन-कौन सी जड़ी-बूटियाँ असरदार हैं?

आयुर्वेद में कई ऐसी जड़ी-बूटियाँ बताई गई हैं जो पुरुष और महिला—दोनों की फर्टिलिटी बढ़ाने में मदद करती हैं। ये शरीर को भीतर से पोषण देती हैं, हार्मोन को संतुलित करती हैं और मानसिक शांति भी प्रदान करती हैं।

1. पुत्रजीवक

इस जड़ी-बूटी को आयुर्वेद में “संतानोत्पत्ति बढ़ाने वाली” कहा गया है। यह ओव्यूलेशन को नियमित करती है, गर्भाशय को मजबूत बनाती है और महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन को ठीक करती है।

2. सफेद मूसली

यह एक शक्तिवर्धक और पुनर्योजक औषधि है। यह पुरुषों में शुक्राणु-संख्या बढ़ाती है और महिलाओं में ओवरी-कार्य को संतुलित करती है। सफेद मूसली शरीर की थकान और कमज़ोरी भी दूर करती है।

3. अश्वगंधा

तनाव घटाने में सबसे प्रसिद्ध जड़ी-बूटी है। यह मानसिक शांति के साथ शरीर की शक्ति और हार्मोनल संतुलन को भी बढ़ाती है। पुरुषों में वीर्य-गुणवत्ता और महिलाओं में प्रजनन-ऊर्जा सुधारती है।

4. कौंच बीज

कौंच (Mucuna pruriens) प्राकृतिक रूप से टेस्टोस्टेरोन को बढ़ाता है और शुक्राणु की गुणवत्ता सुधारता है। यह पुरुषों में कामेच्छा बढ़ाने में भी सहायक है।

5. शतावरी

महिलाओं के लिए सबसे उत्तम जड़ी-बूटी मानी जाती है। यह गर्भाशय को पोषण देती है, सूजन कम करती है, मासिक-धर्म को नियमित करती है और गर्भधारण की संभावना बढ़ाती है।

क्या पंचकर्म संतान प्राप्ति में मदद कर सकता है?

अगर आप यह सोच रहे हैं कि आयुर्वेदिक पंचकर्म का संतान प्राप्ति से क्या संबंध है, तो इसका जवाब है—बहुत गहरा। पंचकर्म केवल शरीर को शुद्ध करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह पूरे शरीर को फिर से संतुलित करने और गर्भधारण के लिए तैयार करने का प्राकृतिक तरीका है।

पंचकर्म से शरीर की शुद्धि और संतुलन

आयुर्वेद मानता है कि हमारे शरीर में जब वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ता है, तो कई तरह की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं — इनमें निसंतानता भी शामिल है। पंचकर्म का मुख्य उद्देश्य है —

  1. डिटॉक्स (शुद्धि): शरीर में जमा आम या विषैले तत्वों को बाहर निकालना।

  2. संतुलन: त्रिदोषों को उनकी प्राकृतिक स्थिति में लाना।

  3. पुनरुत्थान (रिजुवनेशन): ऊतकों (धातुओं) को मजबूत बनाना और प्रजनन-धातु (शुक्र धातु) को सशक्त करना।

जब आपका शरीर इन तीनों चरणों से गुजरता है, तो न केवल आपका पाचन और ऊर्जा सुधरती है बल्कि प्रजनन क्षमता भी बढ़ती है।

फर्टिलिटी के लिए प्रमुख पंचकर्म उपाय

आयुर्वेद में फर्टिलिटी बढ़ाने के लिए कुछ विशिष्ट पंचकर्म उपचार बताए गए हैं, जो पुरुषों और महिलाओं — दोनों के लिए प्रभावी माने गए हैं।

  • बस्ती: यह औषधीय एनीमा (Enema Therapy) होती है जो शरीर से वात दोष को दूर करती है। पुरुषों में यह वीर्य की गुणवत्ता सुधारती है और महिलाओं में गर्भाशय की शुद्धि करती है।

  • उत्तर बस्ती: यह विशेष रूप से महिलाओं के लिए उपयोगी है। इस प्रक्रिया में औषधीय तेल गर्भाशय या मूत्रमार्ग के माध्यम से दिया जाता है जिससे गर्भाशय की नलिकाएँ साफ होती हैं और गर्भधारण की संभावना बढ़ती है।

  • विरेचन: यह पित्त दोष को नियंत्रित करने की प्रक्रिया है, जिसमें औषधीय द्रव्यों के माध्यम से शरीर से विषैले तत्व बाहर निकाले जाते हैं। यह हार्मोनल संतुलन को बेहतर बनाता है।

पुरुषों और महिलाओं के लिए लाभ

  • पुरुषों में पंचकर्म वीर्य की गुणवत्ता, संख्या और गति सुधारता है।

  • महिलाओं में यह ओव्यूलेशन को नियमित करता है, गर्भाशय की दीवारों को मजबूत बनाता है और फैलोपियन ट्यूब की सफाई करता है।

  • मानसिक रूप से यह तनाव घटाता है, जो गर्भधारण में एक बड़ा अवरोध होता है।

जब आप पंचकर्म करवाते हैं, तो आपका शरीर अंदर से हल्का, शुद्ध और ऊर्जावान महसूस करता है। यही प्राकृतिक संतुलन संतान प्राप्ति की दिशा में पहला कदम बनता है।

निष्कर्ष

हर दंपति का सपना होता है कि उनके जीवन में संतान की किलकारियाँ गूँजें। लेकिन अगर यह सफर मुश्किल लग रहा है, तो घबराने की ज़रूरत नहीं है। आयुर्वेद आपके शरीर को भीतर से समझकर, दोषों को संतुलित कर, और प्राकृतिक रूप से आपको गर्भधारण के लिए तैयार करता है।

आपके लिए बस इतना करना है कि जल्दबाज़ी छोड़कर अपने स्वास्थ्य को सही दिशा दें—सही आहार, संतुलित नींद, और योग्य आयुर्वेदिक परामर्श के साथ यह सफर आसान और सुखद बन सकता है।

अगर आप संतान प्राप्ति में कठिनाई महसूस कर रहे हैं, तो आज ही हमारे प्रमाणित जीवा डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श लें। कॉल करें: 0129-4264323

FAQs

  1. गर्भ ठहरने की देसी दवा कौन सी है?
    आयुर्वेद में शतावरी, पुत्रजीवक, अश्वगंधा और सफेद मूसली जैसी जड़ी-बूटियाँ गर्भ ठहरने में मदद करती हैं। इनका सेवन हमेशा जीवा के डॉक्टर की सलाह से करें।
  2. पुत्रजीवक औषधि कौन सी है?
    पुत्रजीवक एक आयुर्वेदिक औषधि है जो ओवरी की कार्यक्षमता बढ़ाती है और गर्भाशय को मज़बूत बनाती है। यह गर्भधारण में प्राकृतिक रूप से मदद करती है।
  3. क्या तनाव भी गर्भधारण में रुकावट बन सकता है?
    हाँ, लगातार तनाव हार्मोनल असंतुलन पैदा करता है जिससे गर्भधारण कठिन हो जाता है। योग, ध्यान और संतुलित नींद से आप इसे नियंत्रित कर सकते हैं।
  4. क्या आयुर्वेदिक इलाज IVF के साथ लिया जा सकता है?
    हाँ, परामर्श के बाद दोनों को साथ लिया जा सकता है। आयुर्वेद शरीर को भीतर से मज़बूत बनाकर IVF की सफलता बढ़ाने में मदद करता है।
  5. पुरुषों में वीर्य की कमी कैसे दूर हो सकती है?
    संतुलित आहार, पर्याप्त नींद, धूम्रपान-शराब से दूरी और अश्वगंधा, कौंच जैसी औषधियाँ वीर्य की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक हैं।
  6. क्या आयुर्वेदिक इलाज से भविष्य में दोबारा गर्भधारण आसान हो जाता है?

हाँ, क्योंकि आयुर्वेद शरीर को भीतर से मज़बूत बनाता है और हार्मोनल संतुलन सुधारता है। इससे आगे चलकर गर्भधारण की संभावना स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है।

  1. फर्टिलिटी बढ़ाने के लिए कौन से योगासन करें?
    आप पद्मासन, भुजंगासन, सर्वांगासन और सेतुबंधासन कर सकते हैं। ये आसन रक्त-संचार बढ़ाते हैं और प्रजनन अंगों को सक्रिय रखते हैं।
  2. क्या आयुर्वेदिक दवाओं के कोई साइड इफेक्ट होते हैं?
    नहीं, अगर आप जीवा के डॉक्टर की सलाह से सही मात्रा में लें तो ये दवाएँ सुरक्षित होती हैं। हर व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार मात्रा तय होती है।

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