जब अचानक शरीर अपने ही नियम बदलने लगे, तब सबसे पहले सवाल मन में यही आता है कि गलती कहाँ हो रही है। National Family Health Survey (NFHS-5) के अनुसार लगभग 24% भारतीय महिलाएँ और 23% पुरुष मोटापे या अधिक वज़न से ग्रस्त हैं, जो कि एक गंभीर संकेत है कि शरीर की मेटाबोलिक स्वास्थ्य बिगड़ रही है।
वज़न का बढ़ना सिर्फ एक आँकड़ा नहीं है—यह अक्सर शरीर में कई गहराई से जुड़ी समस्याओं की शुरुआत करता है जैसे थायरॉइड असंतुलन, फैटी लिवर और अन्य मेटाबोलिक जटिलताएँ। फैटी लिवर की समस्या भारत में तेज़ी से बढ़ रही है और अनुमान है कि लगभग 9% से लेकर 38.6% तक वयस्क लोगों में नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर रोग पाया जाता है।
यह समस्या केवल शरीर की अतिरिक्त चर्बी का परिणाम नहीं है, बल्कि जीवनशैली, तनाव, कमज़ोर नींद और अनियमित दिनचर्या का मिश्रण है—जो आज की युवा और मध्यम आयु वर्ग की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन गया है। इसी तरह की जटिल परिस्थितियों का सामना सुनील सिंह (39 वर्ष, फ़रीदाबाद) को भी करना पड़ा, जिनका वज़न कुछ ही समय में 85 किलो से बढ़कर 115 किलो तक पहुँच गया था।
सुनील की कहानी सिर्फ वज़न बढ़ने की नहीं है, बल्कि यह उस अप्रत्याशित स्वास्थ्य संकट की है जिसका सामना हर कोई कर सकता है—जब थायरॉइड, बढ़ता वज़न और अंत में फैटी लिवर और किडनी जैसी गंभीर समस्याएँ एक साथ सामने आ जाएँ। उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि सही समय पर सही इलाज और जीवनशैली में बदलाव कितना बड़ा फर्क ला सकता है।
सुनील सिंह जी का वज़न 85 से 115 किलो तक अचानक कैसे बढ़ गया और यह खतरे की घंटी क्यों था?
जब किसी व्यक्ति का वज़न धीरे-धीरे बढ़ता है, तब अक्सर उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता। लेकिन जब वज़न कुछ ही समय में 85 किलो से बढ़कर 115 किलो तक पहुँच जाए, तो यह शरीर के भीतर चल रही गड़बड़ी का साफ संकेत होता है। सुनील सिंह के साथ भी यही हुआ। शुरुआत में उन्हें लगा कि काम का तनाव, कम शारीरिक गतिविधि और अनियमित दिनचर्या की वजह से वज़न बढ़ रहा है। लेकिन समय के साथ यह बढ़ता वज़न उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर भारी पड़ने लगा।
चलना-फिरना मुश्किल होने लगा, जल्दी थकान महसूस होने लगी और शरीर हमेशा भारी-भारी सा रहने लगा। जो कपड़े पहले आराम से आ जाते थे, वे अचानक तंग महसूस होने लगे। सबसे बड़ी बात यह थी कि वज़न बढ़ने के साथ-साथ आत्मविश्वास भी गिरने लगा। जब शरीर आपका साथ नहीं देता, तो मन भी धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ने लगता है।
ऐसी स्थिति में अक्सर लोग यही सोचते हैं कि “थोड़ा ध्यान रख लेंगे तो ठीक हो जाएगा।” लेकिन अगर आप भी यह महसूस कर रहे हैं कि बिना ज़्यादा खाए-पीए आपका वज़न लगातार बढ़ रहा है, तो यह सामान्य बात नहीं होती। यह संकेत हो सकता है कि शरीर का अंदरूनी संतुलन बिगड़ चुका है। सुनील सिंह के मामले में यह बढ़ता वज़न आगे चलकर एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या का कारण बना, जिसकी शुरुआत उन्हें उस समय समझ में नहीं आई।
थायरॉइड की समस्या शरीर में क्या बदलाव लाती है और सुनील सिंह के केस में यह कैसे सामने आई?
जब सुनील सिंह ने वज़न बढ़ने को लेकर जाँच करवाई, तब पता चला कि उन्हें थायरॉइड की समस्या है। थायरॉइड एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें शरीर का संतुलन बनाए रखने वाली ग्रंथि सही तरीके से काम नहीं करती। इसका असर सीधे तौर पर शरीर की ऊर्जा, वज़न और मानसिक स्थिति पर पड़ता है।
थायरॉइड की समस्या में शरीर का मेटाबोलिज़्म धीमा हो जाता है। इसका मतलब यह है कि
- शरीर भोजन को सही तरह से ऊर्जा में नहीं बदल पाता
- चर्बी धीरे-धीरे जमा होने लगती है
- थकान और सुस्ती बनी रहती है
सुनील सिंह के साथ भी यही हो रहा था। उन्हें ज़्यादा भूख नहीं लगती थी, फिर भी वज़न लगातार बढ़ रहा था। दिनभर काम करने के बाद भी शरीर में ऊर्जा नहीं बचती थी। यह स्थिति सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं रहती, बल्कि मन पर भी असर डालती है। धीरे-धीरे चिंता बढ़ने लगती है और व्यक्ति अपने ही शरीर को लेकर असहज महसूस करने लगता है।
अगर आप भी ऐसे किसी दौर से गुज़र रहे हैं, जहाँ बिना किसी साफ वजह के वज़न बढ़ रहा है और शरीर हमेशा थका-सा लगता है, तो इसे नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं होता। सुनील सिंह के लिए थायरॉइड की पहचान एक जवाब तो लेकर आई, लेकिन आगे की राह आसान नहीं थी।
एलोपैथिक थायरॉइड दवाओं से राहत क्यों नहीं मिली और बेचैनी क्यों बढ़ती चली गई?
जाँच के बाद सुनील सिंह को थायरॉइड के लिए 75 मिलीग्राम की दवा दी गई। शुरुआत में उम्मीद थी कि दवा लेने से वज़न रुक जाएगा और शरीर में सुधार दिखेगा। लेकिन कुछ समय बाद जो अनुभव सामने आए, वे चिंताजनक थे।
दवा लेने के बाद
- सीने में दर्द महसूस होने लगा
- दिल की धड़कन तेज़ रहने लगी
- मन में बेचैनी बढ़ने लगी
- रात को नींद आना मुश्किल हो गया
सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि इन सबके बावजूद वज़न में कोई खास बदलाव नहीं आया। शरीर पर साइड इफेक्ट बढ़ते जा रहे थे, लेकिन जिस समस्या के लिए दवा ली जा रही थी, वह जस की तस बनी हुई थी। इस स्थिति ने सुनील सिंह को मानसिक रूप से और कमज़ोर कर दिया। रात-रात भर जागते हुए यही सोच चलता रहता कि आगे क्या होगा।
जब इलाज से राहत मिलने के बजाय डर और चिंता बढ़ने लगे, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इलाज सही दिशा में जा रहा है। सुनील सिंह के लिए यह दौर सबसे कठिन था। शरीर थका हुआ था, मन बेचैन था और भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ती जा रही थी।
अगर आप भी ऐसे किसी अनुभव से गुज़र चुके हैं, जहाँ दवाओं के बावजूद समस्या कम होने के बजाय बढ़ती चली गई हो, तो यह समझना ज़रूरी है कि सिर्फ लक्षणों को दबाना हमेशा समाधान नहीं होता। यहीं से सुनील सिंह की ज़िंदगी में एक नया मोड़ आया, जिसने आगे चलकर उनके स्वास्थ्य को संभालने में अहम भूमिका निभाई।
अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में फैटी लिवर ग्रेड 3 और किडनी स्टोन का सामने आना कितना गंभीर संकेत था?
जब सुनील सिंह की अल्ट्रासाउंड जाँच हुई, तब जो रिपोर्ट सामने आई, उसने चिंता को और गहरा कर दिया। रिपोर्ट में फैटी लिवर ग्रेड 3 और किडनी स्टोन दोनों पाए गए। यह सिर्फ दो शब्द नहीं थे, बल्कि यह संकेत थे कि शरीर के भीतर समस्याएँ अब गंभीर स्तर पर पहुँच चुकी थीं।
फैटी लिवर का मतलब होता है कि लिवर में ज़रूरत से ज़्यादा चर्बी जमा हो चुकी है। जब यह स्थिति शुरुआती स्तर पर होती है, तब अक्सर लक्षण साफ नज़र नहीं आते। लेकिन ग्रेड 3 का अर्थ होता है कि लिवर पर चर्बी का दबाव काफ़ी बढ़ चुका है और उसका सामान्य कामकाज प्रभावित होने लगा है। ऐसे में
- शरीर में थकान बनी रहती है
- पाचन कमज़ोर पड़ने लगता है
- भविष्य में और जटिलताएँ बढ़ने का खतरा रहता है
इसी के साथ किडनी स्टोन का पाया जाना यह बताता है कि शरीर से विषैले तत्व सही तरीके से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। किडनी स्टोन अक्सर पानी की कमी, गलत खानपान और लंबे समय से चल रहे अंदरूनी असंतुलन का नतीजा होता है। सुनील सिंह के लिए यह रिपोर्ट एक बड़ा झटका थी, क्योंकि अब यह साफ हो चुका था कि समस्या सिर्फ वज़न या थायरॉइड तक सीमित नहीं रही।
अगर आप भी कभी ऐसी रिपोर्ट देखते हैं जिसमें एक से ज़्यादा समस्याएँ एक साथ सामने आती हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि शरीर लंबे समय से संकेत दे रहा होता है, बस हम उन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं। सुनील सिंह के मामले में भी यही हुआ—समस्या धीरे-धीरे बढ़ती गई और अब कई रूपों में सामने आ चुकी थी।
आयुर्वेद में थायरॉइड, फैटी लिवर और मोटापे को कैसे देखा जाता है?
आयुर्वेद शरीर को अलग-अलग बीमारियों के रूप में नहीं देखता, बल्कि उसे एक संपूर्ण व्यवस्था मानता है। जब शरीर का अंदरूनी संतुलन बिगड़ता है, तो उसकी अभिव्यक्ति अलग-अलग समस्याओं के रूप में होती है—कहीं वज़न बढ़ता है, कहीं थायरॉइड असंतुलन दिखता है और कहीं लिवर में चर्बी जमा होने लगती है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीन दोषों का संतुलन बहुत ज़रूरी होता है। जब लंबे समय तक अनियमित दिनचर्या, तनाव, गलत खानपान और नींद की कमी बनी रहती है, तो यह संतुलन बिगड़ने लगता है। इसका असर सबसे पहले शरीर की ऊर्जा बनाने और उसे सही तरह से इस्तेमाल करने की क्षमता पर पड़ता है।
सुनील सिंह के मामले में भी यही देखा गया। शरीर भोजन को सही तरह से पचा नहीं पा रहा था, विषैले तत्व जमा हो रहे थे और धीरे-धीरे चर्बी के रूप में शरीर में रुकने लगे। यही कारण था कि
- वज़न लगातार बढ़ता गया
- लिवर पर दबाव बढ़ा और फैटी लिवर बना
- थायरॉइड की समस्या ने पूरे संतुलन को और बिगाड़ दिया
अगर आप भी यह महसूस करते हैं कि एक समस्या के साथ दूसरी समस्या जुड़ती जा रही है, तो यह समझना ज़रूरी है कि शरीर किसी एक अंग से नहीं चलता। आयुर्वेद इसी जुड़ाव को समझकर इलाज की दिशा तय करता है। सुनील सिंह के लिए यह दृष्टिकोण बेहद अहम साबित हुआ, क्योंकि यहाँ इलाज सिर्फ एक रिपोर्ट को ठीक करने तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरे शरीर के संतुलन को सुधारने पर केंद्रित था।
आयुर्वेदिक उपचार से फैटी लिवर पूरी तरह ठीक होना कैसे संभव हुआ?
जब सुनील सिंह ने आयुर्वेदिक उपचार शुरू किया, तब सबसे पहले उनके शरीर को पूरी तरह समझा गया। उनका वज़न, लंबाई, काम करने का तरीका, दिनचर्या और मानसिक स्थिति—हर पहलू पर ध्यान दिया गया। इसका उद्देश्य सिर्फ बीमारी दबाना नहीं, बल्कि शरीर को दोबारा संतुलन की स्थिति में लाना था।
आयुर्वेदिक उपचार का असर धीरे-धीरे लेकिन गहराई से दिखने लगता है। सुनील सिंह के शरीर में भी यही हुआ। लिवर पर जमा अतिरिक्त चर्बी कम होने लगी, पाचन सुधरने लगा और शरीर की कार्यप्रणाली धीरे-धीरे सामान्य दिशा में आने लगी।
इस बदलाव का असर सिर्फ रिपोर्ट्स तक सीमित नहीं रहा।
- शरीर हल्का महसूस होने लगा
- थकान पहले जैसी नहीं रही
- मन में भरोसा लौटने लगा
जब अगली जाँच में यह सामने आया कि फैटी लिवर पूरी तरह ठीक हो चुका है, तो यह सिर्फ एक मेडिकल रिपोर्ट नहीं थी। यह उस भरोसे की पुष्टि थी कि शरीर को अगर सही दिशा दी जाए, तो वह खुद को संभाल सकता है।
अगर आप भी यह सोचते हैं कि क्या बिना भारी दवाओं के शरीर में सुधार आ सकता है, तो सुनील सिंह की यात्रा यही दिखाती है कि सही समय पर सही तरीके से किया गया इलाज लंबे समय तक असर दिखाता है। यहाँ सुधार अचानक नहीं, बल्कि स्थायी रूप से हुआ, जो सबसे अहम बात है।
निष्कर्ष
जब शरीर लगातार संकेत दे रहा हो और मन भीतर ही भीतर टूटता जा रहा हो, तब सबसे ज़रूरी होता है सही समय पर सही दिशा चुनना। सुनील सिंह की यात्रा यही दिखाती है कि बढ़ता वज़न, थायरॉइड, फैटी लिवर और किडनी की पथरी जैसी समस्याएँ अलग-अलग नहीं होतीं, बल्कि एक ही असंतुलन की अलग-अलग तस्वीरें होती हैं। सही समझ और सही इलाज मिलने पर शरीर खुद को संभालने की क्षमता रखता है।
यह कहानी केवल रिपोर्ट ठीक होने की नहीं है, बल्कि उस भरोसे के लौटने की है जो बीमारी के दौरान खो जाता है। जब इलाज व्यक्ति को ध्यान में रखकर किया जाता है, तब बदलाव सिर्फ शरीर में नहीं, सोच में भी दिखाई देता है। अगर आप भी यह महसूस कर रहे हैं कि दवाओं के बावजूद राहत नहीं मिल रही या समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं, तो रुककर सोचने का यही सही समय है।
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FAQs
- क्या थायरॉइड की समस्या मे वज़न तेज़ी से बढ़ता है?
हाँ, थायरॉइड असंतुलन होने पर शरीर की ऊर्जा बनाने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिससे बिना ज़्यादा खाए भी वज़न बढ़ने लगता है और थकान बनी रहती है।
- फैटी लिवर ग्रेड 3 होना कितना गंभीर माना जाता है?
फैटी लिवर ग्रेड 3 का मतलब है कि लिवर पर चर्बी काफ़ी बढ़ चुकी है और उसका काम प्रभावित हो रहा है, इसलिए समय पर इलाज बहुत ज़रूरी हो जाता है।
- क्या थायरॉइड और फैटी लिवर का आपस में संबंध होता है?
हाँ, थायरॉइड असंतुलन से शरीर में चर्बी जमा होने लगती है, जिसका सीधा असर लिवर पर पड़ता है और फैटी लिवर की समस्या बढ़ सकती है।
- क्या आयुर्वेद में फैटी लिवर पूरी तरह ठीक हो सकता है?
आयुर्वेद में शरीर के संतुलन पर काम किया जाता है, जिससे लिवर पर जमा चर्बी धीरे-धीरे कम होती है और फैटी लिवर में स्थायी सुधार संभव होता है।
- किन लोगों को आयुर्वेदिक परामर्श लेने पर विचार करना चाहिए?
जिन लोगों का वज़न तेज़ी से बढ़ रहा हो, थायरॉइड या फैटी लिवर की समस्या हो, या दवाओं से राहत न मिल रही हो, उन्हें आयुर्वेद पर ज़रूर विचार करना चाहिए।

