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मूत्र विकारों का आयुर्वेदिक इलाज

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मूत्र विकारों का आयुर्वेदिक इलाज

मूत्र विकार क्या होते हैं? (What are Urinary Disorders?)

मूत्र विकार (Urinary Disorders) का अर्थ है मूत्र प्रणाली में कोई असंतुलन या समस्या होना। इसमें किडनी, ब्लैडर, मूत्र मार्ग (Urinary Tract), मूत्रनली और प्रोस्टेट शामिल होते हैं। इन अंगों में संक्रमण, सूजन या रुकावट आने से पेशाब करने की प्रक्रिया प्रभावित होती है और किडनी की सेहत पर सीधा असर पड़ता है।

अगर आपको बार-बार पेशाब लगना, पेशाब में जलन, रुकावट, बदबू या रंग बदलना जैसी समस्याएँ हैं, तो यह मूत्र विकार का संकेत हो सकता है। पुरुषों में प्रोस्टेट, महिलाओं में बार-बार UTI, और बुज़ुर्गों में मूत्र नियंत्रण की कमी आज आम समस्याएँ बन चुकी हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, मूत्र विकार तब होते हैं जब अपान वायु (Vata sub-type) असंतुलित हो जाती है। इससे मूत्र प्रवाह रुक जाता है और शरीर में विषैले तत्व (आम) जमा होने लगते हैं। जीवा आयुर्वेद में इन समस्याओं का इलाज लक्षणों को दबाकर नहीं, बल्कि दोषों के संतुलन से किया जाता है ताकि आपको लंबे समय तक राहत मिले।

जीवा में किन-किन मूत्र विकारों का इलाज किया जाता है (Types of Urinary Disorders Treated at Jiva)

  • 1. मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI): पित्त दोष और आम के कारण मूत्र मार्ग में जलन, सूजन और संक्रमण। इलाज — चंदन, गुडूची, पुनर्नवा जैसी औषधियाँ और ठंडक देने वाली थेरेपी।
  • 2. किडनी स्टोन (Kidney Stone): जल की कमी या मूत्र रोकने की आदत से पत्थरी बनना। इलाज — मूत्रविरेचक औषधियाँ और पथ्य आहार से प्राकृतिक रूप से पत्थरी निकालना।
  • 3. मूत्राशय की सूजन (Cystitis): मूत्राशय में दर्द, जलन और बार-बार पेशाब लगना। इलाज — चंदन, गुडूची और पुनर्नवा आधारित औषधियाँ।
  • 4. प्रोस्टेट की समस्या (Prostate): पेशाब की धार कमजोर या रुकावट होना। इलाज — वात दोष संतुलन, बस्ति और उरु क्षेत्र अभ्यंग।
  • 5. गुर्दा फेल होना (Renal Failure): कफ-वात असंतुलन से किडनी का कार्य बाधित होना। इलाज — पंचकर्म, आहार और जीवनशैली सुधार के साथ किडनी कार्य पुनर्स्थापन।
  • 6. मूत्रमार्ग में संक्रमण (Urethritis): पेशाब में दर्द, जलन, बदबू। इलाज — नीम, दारुहल्दी और त्रिफला जैसी सूजनरोधी औषधियाँ।
  • 7. वेरिकोसील (Varicocele): शुक्रवाहिनी नसों में सूजन या गांठ। इलाज — वात शमन, अभ्यंग और बस्ति चिकित्सा।
  • 8. हाइड्रोसील (Hydrocele): अंडकोष के पास तरल जमा होना। इलाज — शोधन, रक्तमोक्षण और सूजनरोधी जड़ी-बूटियाँ।
  • 9. बार-बार पेशाब आना (Frequent Urination): डायबिटीज़ या प्रोस्टेट से जुड़ी समस्या। इलाज — अपान वायु संतुलन और पथ्य योग।
  • 10. क्रिएटिनिन बढ़ना (High Creatinine): किडनी की कमज़ोरी का संकेत। इलाज — पंचकर्म और किडनी डिटॉक्स हर्बल थेरेपी।

आयुर्वेद क्या कहता है? (Ayurvedic Understanding of Urinary Disorders)

आयुर्वेद मानता है कि जब वात, पित्त और कफ दोष संतुलन में होते हैं, तब शरीर स्वस्थ रहता है। मूत्र विकार का मुख्य कारण है वात दोष का असंतुलन, विशेषकर अपान वायु, जो मूत्र और मल के प्रवाह को नियंत्रित करती है। जब यह बिगड़ती है, तो पेशाब रुक-रुक कर आना या पूरी तरह बाहर न निकलना जैसी समस्याएँ शुरू हो जाती हैं।

साथ ही, शरीर में जमा आम (toxins) मूत्रवाह स्रोतों को ब्लॉक कर देता है, जिससे संक्रमण, सूजन और पथरी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। आयुर्वेद में इलाज का उद्देश्य इन दोषों को संतुलित करना और शरीर को अंदर से शुद्ध करना होता है।

आयुर्वेदिक इलाज के फ़ायदे (Benefits of Ayurvedic Treatment)

  • 1. जड़ से इलाज: लक्षण नहीं, बल्कि रोग के मूल कारण को दूर करता है।
  • 2. प्राकृतिक और सुरक्षित: 100% हर्बल औषधियाँ, बिना साइड इफेक्ट।
  • 3. रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार: शरीर की स्वयं उपचार शक्ति बढ़ती है।
  • 4. पाचन और चयापचय में सुधार: आम और विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं।
  • 5. जीवन की गुणवत्ता में सुधार: जलन, दर्द और बेचैनी से राहत।

मुख्य जड़ी-बूटियाँ (Key Herbs Used)

  • गोक्शुर: मूत्रवर्धक, सूजनरोधी और किडनी को डिटॉक्स करने वाला।
  • पुनर्नवा: सूजन कम करता है और पेशाब के प्रवाह को सहज बनाता है।
  • चंदन: पेशाब में जलन और पित्त को शांत करता है।
  • वरुण: पत्थरी निकालने में सहायक और मूत्र रुकावट दूर करता है।
  • गुडूची: संक्रमण और इम्युनिटी दोनों में लाभदायक।
  • दारुहल्दी: संक्रमणरोधी और सूजन कम करने वाली जड़ी-बूटी।

प्रमुख आयुर्वेदिक थेरेपी (Therapies Used in Urinary Disorders)

  • बस्ति (Basti): वात दोष संतुलन और मूत्र प्रवाह सुधार के लिए एनिमा थेरेपी।
  • उत्तरबस्ति (Uttaravasti): मूत्रमार्ग की रुकावट या संक्रमण में औषधीय घोल डालने की प्रक्रिया।
  • विरेचन (Virechana): पित्त दोष शुद्धि और विषैले तत्वों की सफाई।
  • अभ्यंग और स्वेदन: हर्बल तेल मालिश और भाप चिकित्सा से रक्त प्रवाह और विश्राम में सुधार।

जीवा आयुनिक™ – हमारा इलाज दर्शन (Jiva Ayunique™ Approach)

  • 1. HACCP प्रमाणित औषधियाँ: सुरक्षित, शुद्ध और वैज्ञानिक रूप से तैयार।
  • 2. योग, ध्यान और माइंडफुलनेस: तनाव कम कर मानसिक शांति लाते हैं।
  • 3. पंचकर्म और थेरेपी: शरीर से दोषों और विषाक्त तत्वों की सफाई।
  • 4. व्यक्तिगत आहार और जीवनशैली गाइडेंस: आपकी प्रकृति के अनुसार डाइट और दिनचर्या।

इलाज शुरू करने के आसान चरण (3 Easy Steps to Start Treatment)

  1. 1. परामर्श बुक करें: वेबसाइट, कॉल या क्लिनिक विज़िट से शुरू करें।
  2. 2. जड़ कारण की पहचान करें: डॉक्टर आपकी प्रकृति और लक्षणों के आधार पर डायग्नोसिस करेंगे।
  3. 3. व्यक्तिगत इलाज शुरू करें: दवाएँ, आहार, योग और थेरेपी के साथ संपूर्ण उपचार।

अब राहत सिर्फ एक कॉल दूर है

मूत्र विकारों को नज़रअंदाज़ करना आगे चलकर गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है। अगर आप बार-बार पेशाब आना, जलन, या किडनी की कमज़ोरी जैसी समस्या से परेशान हैं, तो अब पहला कदम उठाएँ।

अभी अपनी निःशुल्क परामर्श बुक करें: 0129-4264323 पर कॉल करें और जानें जीवा आयुर्वेद के साथ मूत्र विकारों का प्राकृतिक समाधान।

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