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ठंड में बार-बार गला खराब होना सिर्फ मौसम का असर नहीं है – जानिए आयुर्वेद के अनुसार 3 छिपी वजहें

Information By Dr. Keshav Chauhan

सर्दियों के आते ही कई लोग एक ही शिकायत बार बार करते हैं कि गला ठीक नहीं रह रहा। कभी खराश, कभी सूखापन, कभी भारीपन और कभी हल्की खाँसी जो दिनभर पीछा नहीं छोड़ती। शुरुआत में लगता है कि यह सब मौसम की वजह से है, पर जब हफ्तों तक राहत नहीं मिलती और आवाज़ बैठने लगती है, तब यह चिंता बढ़ा देता है। शायद आपने भी महसूस किया होगा कि आप गरम पानी पी लेते हैं, भाप भी ले लेते हैं और कुछ घरेलू नुस्खे भी आज़मा लेते हैं, फिर भी गला अगले ही दिन फिर से खराब हो जाता है।

मैंने कई बार लोगों को कहते सुना है कि “सर्दी है, इसलिए गला खराब होना तो सामान्य है।” पर सच यह है कि हर बार गला खराब होना सिर्फ बाहरी ठंड की वजह से नहीं होता। आयुर्वेद के अनुसार इसके पीछे कुछ गहरी आंतरिक वजहें भी होती हैं जिन्हें लोग अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। गला आपके शरीर की एक संवेदनशील मार्ग है जो मौसम, आहार, अग्नि, और श्वसन की स्थिति से सीधे प्रभावित होता है। इसीलिए इसकी समस्या बार बार लौट आती है।

अगर आपका गला हर दो तीन दिनों में खराब हो जाता है, आवाज़ हल्की बैठ जाती है या ठंडी हवा लगते ही खाँसी शुरू हो जाती है, तो यह ब्लॉग आपके लिए है। यहाँ आप जानेंगे कि आयुर्वेद किन छिपी वजहों को ज़िम्मेदार मानता है और इन्हें रोकने के सरल तरीके क्या हो सकते हैं।

ठंड में गला बार बार खराब क्यों होता है: मौसम से आगे की कहानी

सर्दियों में वातावरण में नमी कम होती है और हवा बेहद ठंडी और सूखी हो जाती है। यह हवा सीधे गले की नलियों तक पहुंचती है और उनकी मुलायम झिल्ली को सुखाने लगती है। यही सूखापन खराश का पहला कारण बन जाता है। लेकिन यह पूरी कहानी नहीं है।

गले पर मौसम के असर के साथ कुछ और कारण मिलकर समस्या को ज़िद्दी बना देते हैं। इनमें शामिल हैं

  • शरीर की अग्नि का कमज़ोर होना
  • कफ दोष का जमा होना
  • बार बार ठंडा गरम का संपर्क
  • आहार में गलतियां
  • पानी कम पीना
  • बंद कमरों में लंबे समय तक रहना

ये सारी बातें मिलकर गले के ऊतकों को संवेदनशील बना देती हैं। इसलिए हल्की हवा भी जल्दी परेशान करती है।

छिपी वजह 1: अंदर जमा हुआ कफ जो गले की नसों को चिपचिपा बना देता है

पहली वजह मौसम से ज़्यादा भीतर की है। आयुर्वेद कहता है कि गले की ज़्यादातर समस्याएँ कफ दोष के असंतुलन से शुरू होती हैं। जब कफ बढ़ जाता है, तो वह गले में चिपचिपाहट पैदा करता है। यह चिपचिपाहट बैक्टीरिया और बाहरी धूल कणों को और आसानी से चिपका लेती है जिससे इंफेक्शन के मौके बढ़ जाते हैं।

अगर आपको अक्सर

  • सुबह उठते ही गले में भारीपन
  • बार बार साफ गला करना
  • हल्का गाढ़ा कफ
  • आवाज़ बैठना

आयुर्वेद इसे कफ की प्रकुपित अवस्था कहता है। यह अवस्था सर्दियों में तेजी से बढ़ जाती है क्योंकि ठंडा वातावरण कफ को जमा करने का स्वभाव रखता है। यही कारण है कि ठंड के शुरुआती दिनों में ही कई लोगों का गला खराब होने लगता है और जल्दी ठीक नहीं होता।

छिपी वजह 2: पाचन अग्नि का कमज़ोर होना जिससे गला भी प्रभावित होता है

यह बात कई लोगों को अजीब लग सकती है कि पाचन का गले से क्या संबंध, पर आयुर्वेद में दोनों का गहरा नाता है। अग्नि कमज़ोर होने पर शरीर में आम बनने लगता है। यह आम सिर्फ पेट में नहीं रुकता, बल्कि रक्त के साथ शरीर के अलग अलग हिस्सों में पहुंच जाता है।

जब आम गले के क्षेत्र में जमा होता है, तो यह सूजन, सूखापन, और कभी कभी हल्की जलन पैदा करता है। खास बात यह है कि यह समस्या बाहर से देखने पर मौसम का असर लगती है, जबकि असल समस्या भीतर होती है।

कमज़ोर अग्नि के संकेत

  • खाना खाने के बाद भारीपन
  • गैस
  • मुँह में अप्रिय स्वाद
  • सुबह उठकर हल्की खाँसी
  • भूख का अनियमित होना

अगर आप यह संकेत महसूस करते हैं, तो गले का बार बार खराब होना इसी वजह से हो सकता है।

छिपी वजह 3: थ्रोट माइक्रोबायोम का असंतुलन

यह शब्द थोड़ा आधुनिक है, लेकिन आयुर्वेद इसे प्राण और ऊर्जस्वलता से जोड़ता है। हमारे गले में भी सूक्ष्म जीवों का एक संतुलित समूह होता है जो गले की सुरक्षा करता है। सर्दियों में

  • कम धूप
  • ठंडी हवा
  • बार बार गरम और ठंडा खाना
  • अनियमित नींद
  • कम पानी

इन सब के कारण यह संतुलन बिगड़ जाता है। जैसे ही माइक्रोबायोम असंतुलित होता है, वायरल और बैक्टीरियल हमले के लिए रास्ता आसान हो जाता है। इसलिए आप महसूस करते हैं कि “हल्की हवा लगी और गला बैठ गया।”

कफ, अग्नि और माइक्रोबायोम के असंतुलन का गले पर असर

जब ये तीनों कारण एक साथ काम करते हैं, तो गला जल्दी खराब होता है और देर से ठीक होता है। शरीर के अंदर अगर कफ जमा है, अग्नि कमज़ोर है और गले का प्राकृतिक माइक्रोबियल संतुलन बिगड़ा है, तो यह समस्या मौसम के खत्म होने तक बार बार लौट सकती है। गले का क्षेत्र फेफड़ों और पाचन तंत्र के बीच की एक संवेदनशील कड़ी है। इसलिए यहां कोई भी असंतुलन जल्दी प्रकट होता है।

कफ बढ़ने पर गले में चिपचिपी परत बन जाती है। यह परत सर्द हवा के संपर्क में आते ही सिकुड़ती है और आपको खराश, गुदगुदी या हल्की खाँसी महसूस होती है। दूसरी ओर, कमज़ोर अग्नि शरीर में ठंडक बढ़ाती है और कोशिकाओं की गर्मी को कम कर देती है, जिससे गला ठंड से और तेजी से प्रभावित होता है। माइक्रोबायोम के असंतुलन से यह स्थिति और भी जिद्दी हो जाती है क्योंकि गले की प्रतिरक्षा कमज़ोर हो जाती है।

कफ असंतुलन की पहचान: आपका शरीर आपको संकेत देता है

अगर गले में बार बार कफ जमा होता है, तो शरीर कुछ संकेत देता है जिन्हें लोग हल्के में ले लेते हैं। आप खुद भी इन संकेतों को महसूस करते होंगे, लेकिन अक्सर इन्हें मौसम की सामान्य प्रतिक्रिया समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

आप यह संकेत देखें

  • सुबह उठते ही गले का भारी रहना
  • हल्की सी खाँसी जो साफ गला करने से कम होती है
  • नाक और गले के बीच तरल का बहना
  • आवाज़ थोड़ी बैठी हुई
  • थोड़ी देर बात करने पर गला थक जाना

ये संकेत बताते हैं कि कफ बढ़ रहा है। अगर इस समय आप दूध, दही, ठंडी चीजें, भारी मिठाइँ या देर रात का भोजन लेते हैं, तो यह स्थिति और खराब हो सकती है क्योंकि यह सब कफ को और बढ़ाते हैं।

कमज़ोर अग्नि की पहचान: पाचन और गला एक ही धुरी पर चलते हैं

अग्नि कमज़ोर होने पर शरीर की ऊर्जा धीमी हो जाती है और प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित होती है। इस स्थिति में गला जल्दी प्रभावित होता है क्योंकि शरीर आंतरिक गर्मी बनाए नहीं रख पाता।

कमज़ोर अग्नि के संकेत

  • हर भोजन के बाद भारीपन


  • भूख का अचानक गायब होना


  • गैस या डकारें


  • सुबह हल्की कफ वाली खाँसी


  • गले में गर्म पानी पीने से तुरंत राहत मिलना


अगर आपका गला गर्म पानी से तुरंत शांत हो जाता है और थोड़ी देर बात करने के बाद फिर से खराब होने लगता है, तो यह अग्नि की कमज़ोरी का संकेत है।

थ्रोट माइक्रोबायोम असंतुलन की पहचान

गले की प्राकृतिक सुरक्षा तभी मजबूत रहती है जब उसका माइक्रोबायोम स्थिर हो। सर्दियों में अनियमित दिनचर्या, ठंडा पानी, कम धूप और लगातार बदलते तापमान इसे असंतुलित कर देते हैं।

आप ये संकेत देखें

  • बार बार हल्का वायरल जैसा महसूस होना
  • मौसम बदलते ही गला बैठ जाना
  • बहुत हल्की हवा भी तुरंत असर करना
  • गले में जलन का एहसास
  • बार बार एंटीसेप्टिक गार्गल की ज़रूरत

अगर गला बार बार खराब हो रहा है, तो इसका मतलब है कि गले की सूक्ष्म प्रतिरक्षा कमज़ोर हो रही है और शरीर को लगातार समर्थन चाहिए।

आयुर्वेदिक उपाय जो तीनों कारणों पर साथ काम करते हैं

सर्दियों में गला बार बार खराब होने पर एक ही घरेलू उपाय काफी नहीं होता क्योंकि समस्या एक वजह से नहीं आती। इन तीनों कारणों को एक साथ शांत करना जरूरी होता है। आयुर्वेद इसी संतुलन की बात करता है।

1. कफ कम करने वाले उपाय

गले में जमा कफ को हटाने के लिए हल्के, गरम और सूक्‍ष्म गुण वाले पदार्थ सबसे प्रभावी होते हैं। आप अपने दिन में कुछ आसान आदतें जोड़ सकते हैं

  • सुबह गुनगुना पानी पिएँ
  • दिन में एक बार अदरक और गुड़ का छोटा टुकड़ा लें
  • रात में हल्दी और काली मिर्च वाला दूध लें
  • ताज़ा बना गरम सूप लें
  • खाँसी में शहद के साथ तुलसी का रस मदद करता है

इन उपायों से गला हल्का होता है, कफ ढीला पड़ता है और सांस लेने में आराम मिलता है।

2. अग्नि सुधारने के उपाय

अग्नि संतुलित होने पर गले की गर्मी लौट आती है और गला ठंड के असर से जल्दी प्रभावित नहीं होता। आप यह साधारण कदम शामिल कर सकते हैं

  • खाने से पहले अदरक नींबू नमक चाट लें
  • भोजन हमेशा गरम और ताज़ा लें
  • दिन में ज़्यादा बार ठंडा गरम का मिश्रण न करें
  • रात का भोजन हल्का रखें
  • भोजन के बाद थोड़ी देर टहलें

इनसे अग्नि स्थिर रहती है और गला भीतर से गर्म रहता है।

3. माइक्रोबायोम संतुलन के उपाय

गले का माइक्रोबायोम प्राकृतिक रूप से तभी स्वस्थ रहता है जब गला सूखा न रहे, आप अत्यधिक गरम पानी न पिएँ और शरीर में पोषण संतुलित रहे।

आप यह आदतें अपनाएँ

  • सुबह खाली पेट 4 से 5 तुलसी पत्ते चबाएँ
  • दिन में एक बार गुनगुना नमक पानी से गरारे करें
  • भाप सिर्फ ज़रूरत होने पर ही लें
  • रात को च्यवनप्राश की छोटी मात्रा लें
  • दिनभर थोड़ा थोड़ा पानी पिएँ, सर्दियों में भी जल की कमी न रखें

ये उपाय गले की मुलायम झिल्ली की रक्षा करते हैं और गले की प्राकृतिक प्रतिरक्षा बढ़ाते हैं।

गले की सुरक्षा के लिए आयुर्वेदिक दिनचर्या: छोटे कदम जो बड़ा असर देते हैं

सर्दियों में गला सबसे पहले प्रभावित होता है क्योंकि यह ठंडी हवा, गलत आहार और कफ वृद्धि का सीधा मार्ग है। अगर आपकी दिनचर्या थोड़ी असंतुलित है, तो यह परेशानी बार बार लौट सकती है। आयुर्वेद इस स्थिति में शरीर, मन और पर्यावरण तीनों के संतुलन पर जोर देता है। गले की देखभाल सिर्फ औषधि से नहीं होती, बल्कि रोजमर्रा की आदतों से होती है।

आप कुछ सरल आदतें अपनी दिनचर्या में जोड़ सकते हैं जो गले को स्थिर तापमान, उचित नमी और पर्याप्त पोषण देती हैं। इन आदतों से कफ नियंत्रण, अग्नि सुधार और गले की प्रतिरक्षा तीनों मजबूत होते हैं।

आप ये दिनचर्यागत कदम शामिल कर सकते हैं

  • सुबह गुनगुने जल के साथ दिन की शुरुआत करें ताकि गले की झिल्ली नम रहे
  • जागने के बाद 5 से 7 मिनट भस्त्रिका या गहरी सांसें लें
  • ठंडी हवा में निकलने से पहले हल्का स्कार्फ या कपड़ा गले पर रखें
  • हल्की धूप में कुछ समय बिताएँ
  • दिनभर थोड़ी थोड़ी मात्रा में गरम जल पिएँ
  • देर रात तक जागना कम करें क्योंकि नींद की कमी अग्नि को कमज़ोर करती है

इन छोटे बदलावों से गले को स्थिरता मिलती है और बार बार सूजन या खराश की परेशानी कम होती है।

इन आहार परिवर्तनों से गला सुरक्षित रहता है

आहार का गले पर सीधा असर होता है। सर्दियों में अगर आप कफ बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ लेते हैं, तो गला जल्दी खराब होगा। वहीं अगर भोजन अग्नि बढ़ाने वाला, हल्का और गर्म प्रकृति का है, तो गला मौसम के बदलने में भी सुरक्षित रहता है।

आपको ठंड में खाने पीने में थोड़े सजग बदलाव करने चाहिए ताकि शरीर का तापमान स्थिर रहे और गले पर बोझ न बढ़े।

गले को सुरक्षित रखने वाले खाद्य पदार्थ

  • गरम सूप और शोरबा
  • अदरक, काली मिर्च, लहसुन
  • घी की थोड़ी मात्रा
  • मिलेट्स या आटे की हल्की रोटियाँ
  • गुड़ की छोटी मात्रा

गले के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थ

  • दही और ठंडी छाछ
  • बेकरी उत्पाद
  • बहुत मीठी मिठाइयाँ
  • फ्रिज का पानी
  • रात में भारी तले हुए व्यंजन

इन आहार आदतों से गले की प्रतिरक्षा बढ़ती है और कफ जमा होने की समस्या कम हो जाती है।

गले को आराम देने वाली आयुर्वेदिक हर्बल चाय

हर्बल चाय गले की गरमी, नमी और सुरक्षा तीनों में मदद करती है। ये चाय कफ को ढीला करती हैं, अग्नि को सक्रिय करती हैं और गले के ऊतकों को सूक्‍ष्म पोषण देती हैं।

आप यह हर्बल चायें दिन में एक या दो बार ले सकते हैं

  • तुलसी, अदरक और मुलेठी
  • दालचीनी और काली मिर्च
  • गिलोय तुलसी मिश्रण
  • अजवाइन और गुड़ का हल्का काढ़ा

सर्दियों में गरम चाय का असर गले पर तुरंत महसूस होता है, लेकिन आपको ये ध्यान रखना चाहिए कि बहुत अधिक गरम जल या बहुत तीखी चाय गले की झिल्ली को नुकसान भी पहुंचा सकती है। चाय हमेशा हल्की गरम अवस्था में ही लें।

लौंग, मुलेठी और शहद: गले की तीन मुख्य सहायिकाएँ

ये तीनों पदार्थ गले की गर्माहट, शोधन और नमी को संतुलित रखते हैं।

आप इनका उपयोग इस तरह कर सकते हैं

  • लौंग को दिन में एक बार हल्का सा मुंह में रखें
  • मुलेठी की छोटी स्टिक को चूसें, इससे गला मुलायम रहता है
  • शहद को सीधे न गरम करें, गरम पानी के साथ लें


ये तीनों उपाय गले की खराश, सूखापन और हल्की सूजन में काफी राहत देते हैं।

गले की भाप कब लें और कब नहीं लें

लोग अक्सर हर समस्या में भाप ले लेते हैं, लेकिन आयुर्वेद में भाप को सावधानी के साथ सुझाया गया है। अगर गले में बहुत सूखापन है, तो ज़्यादा भाप गले को और सुखा सकती है।

आप यह ध्यान रखें

  • भाप तभी लें जब नाक बंद हो या भारीपन हो
  • भाप सीधे गले पर न लें, सिर थोड़ा दूर रखें
  • बहुत लंबी अवधि तक भाप न लें
  • दिन में दो बार से अधिक भाप न लें

अगर भाप से तुरंत राहत तो मिलती है, लेकिन सूखापन वापस लौट आता है, तो यह संकेत है कि गले को भाप से अधिक नमी चाहिए, न कि अधिक गर्मी।

निष्कर्ष

सर्दियों में गला खराब होना सामान्य लगता है, लेकिन अगर यह बार बार हो रहा है, तो यह सिर्फ ठंडी हवा का असर नहीं है। आपके गले में कफ जमा हो रहा हो सकता है, आपकी पाचन अग्नि कमज़ोर हो चुकी हो या आपके गले का प्राकृतिक माइक्रोबायोम संतुलन खो चुका हो। जब ये तीनों असंतुलन साथ दिखाई देते हैं, तो गले की समस्या हफ्तों तक ठीक नहीं होती।

गले की रक्षा के लिए आपको सिर्फ गर्म पानी या भाप पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं है। थोड़ी सुधरी हुई दिनचर्या, संतुलित भोजन, हर्बल चाय और नियमित गले की देखभाल इन समस्याओं को जड़ से शांत कर सकते हैं। शरीर जब भीतर से संतुलित होता है, तो मौसम का असर भी सीमित रह जाता है और गला अधिक स्थिर और मजबूत महसूस होता है। यदि गले की समस्या बार बार लौटती है या साथ में बुखार, कमज़ोरी या सांस लेने में कठिनाई होती है, तो किसी योग्य आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श लेना हमेशा बेहतर होता है।

FAQs

  1. क्या ठंडी हवा सीधे गले को प्रभावित करती है?
    हाँ, ठंडी हवा गले की झिल्ली को तुरंत सुखा देती है जिससे खराश और खाँसी शुरू होती है।
  2. क्या सर्दियों में दही खाने से गला खराब होता है?
    दही कफ बढ़ाता है और सर्दियों में गला भारी कर सकता है, इसलिए इसे रात में न लें।
  3. क्या गरम पानी बार बार पीना सही है?
    बहुत गरम पानी गले को और सुखा सकता है, हमेशा हल्का गरम पानी ही लें।
  4. क्या गले को ठीक रखने के लिए रोज भाप लेना चाहिए?
    नहीं, भाप सिर्फ ज़रूरत होने पर ही लें क्योंकि ज़्यादा भाप गले को सुखा सकती है।
  5. क्या हर्बल काढ़ा रोज लेना सुरक्षित है?
    हल्का काढ़ा दिन में एक बार लिया जा सकता है, लेकिन बहुत तीखा काढ़ा रोज न पिएँ।

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