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सर्दियों में बॉडी ओडर क्यों बदल जाता है? जानिए आयुर्वेदिक डिटॉक्स टिप्स जो काम आते हैं

Information By Dr. Keshav Chauhan

सर्दियों में कई लोगों को अचानक महसूस होता है कि शरीर की गंध बदल रही है। आप शायद खुद भी सोचते हों कि गर्मियों में तो पसीना ज्यादा आता है, फिर बदबू की समस्या तो वहीं होनी चाहिए। पर एक अजीब-सा सच यह है कि ठंड के दिनों में बॉडी ओडर कई बार और भी तीखा लगता है। आप सुबह नहाए हों, साफ कपड़े पहने हों, फिर भी शाम तक एक अजीब-सी गंध परेशान करती है जो खुद को भी असहज कर देती है।

मैंने खुद लोगों को कहते सुना है कि “ठंड में तो मैं पसीना ही नहीं करता, फिर बदबू क्यों आती है।” यह सवाल बिल्कुल स्वाभाविक है। सर्दियों में हमारी जीवनशैली बदल जाती है। आप कम पानी पीते हैं, मोटे कपड़े पहनते हैं, धूप में कम जाते हैं और शरीर पर जमा मृत कोशिकाएँ जल्दी नहीं निकल पातीं। धीरे-धीरे ये छोटी आदतें शरीर की गंध को बदल देती हैं।

आयुर्वेद कहता है कि शरीर सिर्फ बाहर से नहीं बदलता, बल्कि अंदर की अग्नि, दोषों और आहार की गुणवत्ता भी इसकी गंध को प्रभावित करती है। इसलिए सर्दियों में बॉडी ओडर एक चेतावनी भी हो सकती है कि आपके शरीर को हल्के डिटॉक्स और थोड़ी देखभाल की जरूरत है।

सर्दियों में बॉडी ओडर क्यों बढ़ता है: असली वजहें क्या हैं

सर्दी अपने साथ एक तरह की सुस्ती लाती है। आप कम नहाते हैं या कई बार देर से नहाते हैं। मोटे स्वेटर और जैकेट लगातार पहने रहते हैं। हवा सूखी होती है। और शरीर पसीना निकालने से भी बचता है। यही कारण है कि शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया संतुलित नहीं रह पाती।

कुछ मुख्य कारण जो सर्दियों में गंध बढ़ाते हैं:

  • पानी कम पीना और शरीर का अंदरूनी सूखापन
  • मोटे कपड़ों में पसीने का फंस जाना
  • गर्म पानी से नहाने के बाद त्वचा के प्राकृतिक तेल का हट जाना
  • कम धूप मिलना
  • वसायुक्त और भारी आहार का ज्यादा सेवन
  • शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर न निकल पाना

यह सब एक साथ मिलकर त्वचा पर ऐसे बैक्टीरिया का संतुलन बिगाड़ते हैं जो सामान्य दिनों में गंध नहीं पैदा करते। लेकिन सर्दियों में यह सूक्ष्म परिवर्तन बड़ा असर छोड़ता है।

आयुर्वेद कहता है कि शरीर की गंध केवल बाहरी नहीं होती

आयुर्वेद में शरीर की गंध को देह गंध कहा जाता है। यह केवल पसीने या कपड़ों की वजह से नहीं बनती, बल्कि आपकी अग्नि, आहार, मानसिक स्थिति और यहां तक कि नींद की गुणवत्ता भी इसमें भूमिका निभाती है।

सर्दियों में वात और कफ दोनों सक्रिय रहते हैं। वात शरीर में सूखापन बढ़ाता है, जबकि कफ स्थिरता और भारीपन लाता है। जब यह दोनों थोड़ा असंतुलित हो जाते हैं, तो शरीर की अग्नि धीमी होने लगती है। अग्नि धीमी हो जाए तो भोजन पूरी तरह नहीं पचता और शरीर में आम जमा होने लगता है। यही आम धीरे-धीरे त्वचा तक पहुंचकर बदबू को बढ़ाता है।

इसलिए आयुर्वेद में कहा गया है कि अगर शरीर की गंध बदल रही है, तो सबसे पहले पाचन अग्नि को देखो। यह लाइन कितनी सरल है लेकिन सच में बहुत गहरा संकेत देती है।

क्या सिर्फ नहाना काफी है या गंध अंदर से भी आती है

कई लोग सोचते हैं कि नहा लेने से सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं होता। सर्दियों में गंध अक्सर गहरी परतों से उठती है। अगर शरीर में जमा विषाक्त पदार्थ बाहर नहीं निकल रहे या दिनभर का भोजन पूरी तरह नहीं पच रहा, तो यह समस्या बार-बार लौट आती है।

यही कारण है कि आप चाहे कितनी भी बार डियोड्रेंट लगा लें, कितनी भी महंगी बॉडी वॉश इस्तेमाल कर लें, फिर भी गंध वापस आ जाती है। आयुर्वेद इसे शरीर का संकेत मानता है कि आपको बाहरी और अंदरूनी दोनों तरह के डिटॉक्स की जरूरत है।

सर्दियों में पसीना क्यों अलग तरह से व्यवहार करता है

गर्मियों में पसीना खुलकर आता है जिससे शरीर अपने तापमान को संतुलित रखता है और बैक्टीरिया भी बाहर निकलते रहते हैं। पर सर्दियों में पसीना सतह तक नहीं पहुंचता। आप महसूस नहीं करते, पर शरीर हल्का पसीना लगातार बनाता रहता है जो मोटे कपड़ों, लाइनिंग और शरीर की सिलवटों में फंस जाता है।

जब पसीना बाहर नहीं निकलता, तो वह त्वचा पर मौजूद प्राकृतिक बैक्टीरिया के साथ मिलकर अलग तरह की गंध पैदा करता है। यह गंध गर्मियों वाली तेज नहीं होती, लेकिन एक अलग, कभी-कभी नम-सी गंध पैदा करती है। कई लोग इस गंध को “कच्ची” या “बासी” गंध कहते हैं, और यह बिल्कुल सामान्य है, बस यह संकेत दे रही होती है कि आपका शरीर थोड़ा भारी महसूस कर रहा है।

त्वचा का सूखापन और मृत कोशिकाओं का जमा होना

ठंड में त्वचा सूखी हो जाती है और मृत कोशिकाएं जल्दी नहीं निकलतीं। यह परत धीरे-धीरे मोटी होने लगती है और इन परतों के नीचे पसीना और ऑयल फंसने लगते हैं। जब यह मिश्रण घंटों तक त्वचा पर रहा रहता है, तो स्वाभाविक रूप से उसमें गंध पैदा होने लगती है।

अगर आप दिनभर गर्म कमरे में रहते हैं और फिर बाहर अचानक ठंडी हवा में जाते हैं, तो यह तापमान का उतार चढ़ाव भी त्वचा की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। कई बार सिर्फ यह उतार चढ़ाव भी गंध को और तेज कर देता है।

सर्दी और बैक्टीरिया का बदलता रिश्ता

एक दिलचस्प बात यह है कि सर्दियों में बैक्टीरिया की संख्या नहीं बढ़ती, पर उनका व्यवहार बदल जाता है। त्वचा के ऊपर जो नमी जमा होती है, वह बैक्टीरिया को एक तरह का स्थिर वातावरण देती है जहां वे अधिक सक्रिय रहते हैं। यही वजह है कि कई लोग गंध का कारण बैक्टीरिया को मानते हैं, जबकि असली कारण बैक्टीरिया का “जमा हुआ” वातावरण होता है।

आयुर्वेद में इसे कफ की वृद्धि से जोड़ा गया है, क्योंकि कफ वह दोष है जो नमी, स्थिरता और भार को नियंत्रित करता है। जब कफ थोड़ा बढ़ जाता है, तो शरीर भीतर से भारी लगता है और यही भारीपन पसीने को बाहर न निकलने देकर गंध बढ़ाने लगता है।

अग्नि, वात और कफ का खेल

सर्दियों में अग्नि भी दिलचस्प तरीके से व्यवहार करती है। अग्नि ऊंची होती है, लेकिन दिनचर्या और आहार उसे अस्थिर कर देते हैं। भारी भोजन, देर रात सोना और कम धूप अग्नि के काम को धीमा कर देते हैं। जब अग्नि भोजन को पूरी तरह नहीं पचाती, तो आम बनता है। यह आम जब रक्त और त्वचा में पहुंचता है, तो उसमें एक अप्राकृतिक गंध आने लगती है।

वात भी इस प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इसका सूखापन त्वचा को और रूखा बनाता है जिससे मृत कोशिकाएं जल्दी नहीं निकलतीं। कफ नमी को स्थिर कर देता है। इन दोनों के मिश्रण से शरीर के सतह पर एक ऐसा वातावरण बनता है जिसमें गंध बनना आसान हो जाता है।

क्या आपकी सर्दियों वाली आदतें भी आपको नुकसान पहुंचा रही हैं

कुछ आदतें अनजाने में गंध को और बढ़ाती हैं. जैसे

  • लगातार एक ही जैकेट या स्वेटर पहनना
  • गरम कमरे में पसीना आना और तुरंत बाहर ठंड में जाना
  • कम पानी पीना
  • देर रात भारी भोजन करना
  • रोज न नहाना या देर से नहाना
  • धूप में बिल्कुल न बैठना

इन आदतों से शरीर में आम जमा होता है और सतह पर बैक्टीरिया के लिए उपयुक्त वातावरण बनता है।

बाहरी डिटॉक्स: त्वचा को गहराई से शुद्ध करने वाले आयुर्वेदिक उपाय

सर्दियों में बॉडी ओडर अक्सर केवल पसीने की वजह से नहीं होता, बल्कि त्वचा पर जमा मृत कोशिकाओं, गहरे तक फंसी नमी और कपड़ों में अटके पसीने की वजह से बढ़ जाता है। इसलिए आयुर्वेद बाहरी सफाई को केवल स्नान तक सीमित नहीं रखता, बल्कि इसे एक गहरी शोधन प्रक्रिया मानता है जिसमें शरीर की सतह, रोमछिद्र और त्वचा की ऊपरी परतों को पूरी तरह मुक्त किया जाता है।

अभ्यंग: गर्म तेल की मालिश जो वात को शांत कर त्वचा को संतुलित करती है

सर्दियों में वात स्वभाविक रूप से बढ़ता है और त्वचा को अधिक रूखा बनाता है। जब आप सुबह हल्का गुनगुना तिल या सरसों का तेल लेकर पूरे शरीर पर अभ्यंग करते हैं, तो त्वचा का सूखापन कम होता है और सतह पर जमा मृत कोशिकाएं आसानी से ढीली होने लगती हैं। अभ्यंग रक्त संचार को बेहतर बनाता है, जिससे त्वचा पर जमा विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं और गंध पैदा करने वाले तत्वों को टिकने का मौका नहीं मिलता। स्नान से पहले किया गया अभ्यंग रोमछिद्रों में फंसे तेल और पसीने को बाहर निकालकर त्वचा को हल्का, पोषित और साफ करता है। यह प्रक्रिया सर्दियों में बेहद आवश्यक होती है क्योंकि यह गंध के मूल कारण को शांत करती है, न कि केवल उसे ढंकती है।

उबटन: त्वचा की सतह को प्राकृतिक रूप से साफ करने का पारंपरिक तरीका

साधारण साबुन त्वचा की गहराई तक जमा पुरानी परतों को नहीं हटा पाता, जबकि उबटन स्वाभाविक रूप से त्वचा को साफ करते हुए उसकी बनावट को भी सुधारता है। आप एक सरल उबटन घर पर बना सकते हैं जिसमें बेसन, हल्दी, थोड़ा चंदन और एक चुटकी कपूर मिलाया जा सकता है। इसे दूध या गुलाब जल के साथ मिलाकर उपयोग करने पर यह त्वचा पर जम चुकी परतों को धीरे-धीरे हटाता है, पसीने की बदबू को कम करता है और त्वचा को एक तरह की ताजगी देता है जो सर्दियों में अक्सर गायब हो जाती है। उबटन बगल, गर्दन और पीठ जैसी सतहों पर अधिक प्रभावी होता है जहां पसीना आसानी से जमा रहता है।

हर्बल स्नान: स्नान जल में औषधीय तत्व जोड़ने की आयुर्वेदिक परंपरा

अगर आपको लगता है कि रोजाना स्नान काफी है, तो यह आधा सच है। सर्दियों में स्नान जल में औषधीय तत्व मिलाने से त्वचा का प्राकृतिक शोधन और गंध नियंत्रण दोनों बेहतर होते हैं। आप पानी में नीम की पत्तियां, त्रिफला का अर्क, लौंग या कपूर के छोटे टुकड़े डाल सकते हैं। ऐसे स्नान से त्वचा पर मौजूद बैक्टीरिया संतुलित रहते हैं, त्वचा हल्की महसूस होती है और गंध पैदा करने वाले तत्वों का प्रभाव कम हो जाता है। यह तरीका उन लोगों के लिए खास उपयोगी है जिन्हें सर्दियों में कपड़ों के भीतर बंद वातावरण के कारण अधिक पसीना और गंध की शिकायत रहती है।

कपड़ों की स्वच्छता भी उतनी ही ज़रूरी

कई बार समस्या हमारे कपड़ों में छिपी रहती है। स्वेटर, मफलर और जैकेट लगातार पहनने की वजह से उनमें पसीना और त्वचा के कण जमा हो जाते हैं। धूप की कमी यह गंध और बढ़ा देती है। आप यह सुनिश्चित करें कि सर्दियों में पहने जाने वाले कपड़ों को कुछ समय धूप में रखा जाए ताकि वे स्वाभाविक रूप से शुद्ध हों। यह एक छोटा कदम है, पर शरीर की गंध पर इसका असर काफी नजर आता है।

धूप का शरीर पर सकारात्मक प्रभाव

धूप न केवल शरीर को गर्म करती है बल्कि त्वचा की सतह पर जमा नमी को भी संतुलित करती है। कुछ मिनट धूप में बैठने से त्वचा की शोधन प्रक्रिया सक्रिय होती है और गंध बनाने वाले तत्वों पर स्वाभाविक नियंत्रण आता है। यही वजह है कि आयुर्वेद धूप को प्राकृतिक डिटॉक्स मानता है और सर्दियों में इसके नियमित सेवन की सलाह देता है।

आंतरिक डिटॉक्स: शरीर को भीतर से हल्का करने के तरीके

सर्दियों में बॉडी ओडर सिर्फ बाहरी सफाई से पूरी तरह नियंत्रित नहीं होता क्योंकि असली समस्या कई बार शरीर के भीतर की गर्मी, धीमी अग्नि और जमा हुए आम से शुरू होती है। अगर भोजन पूरी तरह नहीं पच रहा या शरीर को पर्याप्त तरल नहीं मिल रहा, तो गंध स्वाभाविक रूप से अधिक महसूस होने लगती है। इसलिए आयुर्वेद आंतरिक शोधन को सर्दियों में विशेष महत्व देता है।

नीचे कुछ तरीके हैं जो आपके शरीर को भीतर से संतुलित कर सकते हैं

  • सुबह गुनगुने जल में थोड़ा नींबू मिलाकर पीना
  • सप्ताह में एक या दो बार हल्का सूप आधारित भोजन लेना
  • पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल और आसानी से पचने वाली दालें शामिल करना
  • भारी, तली चीजें और देर रात का भोजन कम करना

इन बदलावों से शरीर पर बोझ नहीं पड़ता और पाचन क्रिया अपनी स्वाभाविक लय में लौटने लगती है।

अग्नि को संतुलित करना: पाचन सुधार का मूल आधार

आयुर्वेद में कहा गया है कि अगर अग्नि सही है, तो शरीर की गंध भी संतुलित रहती है। सर्दियों में अग्नि अक्सर अनियमित हो जाती है क्योंकि हम ज्यादा गरम, ज्यादा तला या ज्यादा मीठा भोजन लेने लगते हैं। इससे आम बनने की संभावना बढ़ती है और यह आम त्वचा पर गंध पैदा करता है।

आप अग्नि को मजबूत करने के लिए यह छोटे कदम शामिल कर सकते हैं

  • भोजन के बाद थोड़ी सौंफ चबाना
  • दिन में एक बार अदरक और गुड़ की छोटी मात्रा लेना
  • खाना हमेशा गुनगुने जल के साथ करना
  • खाने और सोने के बीच पर्याप्त अंतर रखना

इन तरीकों से अग्नि स्थिर होती है और शरीर धीरे-धीरे हल्का महसूस होने लगता है, जो गंध पर भी असर डालता है।

दिनचर्या: छोटी आदतें जो गंध को स्वाभाविक रूप से नियंत्रित करती हैं

सर्दियों में बॉडी ओडर अक्सर दिनचर्या की अव्यवस्था से बढ़ता है। थोड़ी सी सावधानी और नियमितता गंध को काफी हद तक कम कर सकती है। आप यह आदतें अपनाकर अपने शरीर को बेहतर संतुलन में रख सकते हैं

  • रोज सुबह कम से कम दस मिनट धूप में बैठना
  • मोटे ऊनी कपड़ों को बार बार हवा लगवाना
  • हर दो या तीन दिन में उबटन या हल्का स्क्रब करना
  • बगल और गर्दन की सतह को नियमित रूप से साफ करना
  • दिनभर में गुनगुना जल पीना ताकि शरीर में सूखापन न बढ़े

ये छोटे बदलाव गंध के मूल कारण पर काम करते हैं, इसलिए इनका असर स्थायी रहता है।

निष्कर्ष

सर्दियों में बढ़ी हुई बॉडी ओडर केवल पसीने की समस्या नहीं होती, बल्कि यह कई कारकों का मिश्रण होता है जो शरीर के भीतर और बाहर दोनों पर असर डालते हैं। जब त्वचा सूखी हो, रोमछिद्र बंद हों और अग्नि असंतुलित हो, तो गंध स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। आयुर्वेद हमें यह समझाता है कि अगर आप अपने शरीर को उचित पोषण दें, सही डिटॉक्स उपाय अपनाएं और दिनचर्या में थोड़ी स्थिरता रखें, तो गंध की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है। एक संतुलित संयोजन जिसमें अभ्यंग, उबटन, हर्बल स्नान, सादा भोजन और पर्याप्त धूप शामिल हो, न केवल बाहरी गंध को कम करता है बल्कि भीतर से भी शरीर को स्वच्छ रखता है। अगर गंध लंबे समय तक बनी रहे या किसी अन्य समस्या के साथ दिखाई दे, तो आयुर्वेदिक चिकित्सक से व्यक्तिगत सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है।

FAQs

  1. क्या सर्दियों में ज्यादा नहाने से बॉडी ओडर कम होता है?
    नहाना ज़रूरी है पर गंध का कारण भीतर का असंतुलन भी होता है। सही डिटॉक्स उपाय जोड़ना अधिक प्रभावी होता है।
  2. क्या नीम स्नान से गंध कम हो सकती है?
    हाँ, नीम त्वचा को शुद्ध करता है और बैक्टीरिया को संतुलित करता है जिससे गंध कम होती है।
  3. क्या कपड़ों की सफाई गंध को प्रभावित करती है?
    स्वेटर और जैकेट में पसीना फंसा रहता है, इसलिए धूप और हवा ज़रूरी है।
  4. क्या डियोड्रेंट समाधान है?
    डियोड्रेंट गंध को ढंकता है पर कारण नहीं हटाता। आयुर्वेदिक उपाय ज्यादा स्थायी होते हैं।
  5. क्या कम पानी पीने से भी सर्दियों में बदबू बढ़ सकती है?

हाँ, पानी की कमी से शरीर में सूखापन बढ़ता है और पसीने के भीतर जमा हुए विषाक्त पदार्थ बाहर नहीं निकलते। इससे गंध अधिक महसूस होने लगती है और त्वचा भी भारी लग सकती है।

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