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ब्रोंकाइटिस का आयुर्वेदिक इलाज

अगर आप बार-बार खाँसी, सीने में जकड़न और साँस लेने में दिक्कत जैसी समस्याओं से परेशान हैं, तो आयुर्वेद में इसका गहराई से समाधान मौजूद है। जीवा आयुर्वेद में ब्रोंकाइटिस का इलाज जड़ी-बूटियों, पंचकर्म, खानपान और जीवनशैली में सुधार के माध्यम से किया जाता है, ताकि आपको जड़ से राहत मिल सके। आज ही जीवा के प्रमाणित विशेषज्ञों से अपना निःशुल्क परामर्श बुक करें।

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ब्रोंकाइटिस क्या है और आयुर्वेद इसके बारे में क्या कहता है? (What is Bronchitis?)

अगर आपको बार-बार खाँसी आती है, बलगम बनता है, सीने में भारीपन महसूस होता है या साँस लेने में तकलीफ़ होती है, तो हो सकता है कि आप ब्रोंकाइटिस से जूझ रहे हों। ब्रोंकाइटिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपकी साँस की नली (trachea or bronchi) में सूजन आ जाती है। इस सूजन की वजह से बलगम बनता है और खाँसी लगातार बनी रहती है। यह खाँसी कुछ दिनों से लेकर कई हफ्तों तक रह सकती है।

आयुर्वेद के अनुसार, ब्रोंकाइटिस प्राणवह स्रोतो का विकार है, जो मुख्य रूप से कफ और वायु दोष के असंतुलन से होता है। जब कफ बढ़ता है, तो वह श्वसन नली में जमने लगता है और साँस लेने में रुकावट पैदा करता है। वहीं वायु दोष के कारण सूखापन और सूजन आ जाती है, जिससे खाँसी और सीने में जलन होती है।

आयुर्वेद ब्रोंकाइटिस को सिर्फ लक्षणों से नहीं, बल्कि उसकी जड़ से ठीक करने पर जोर देता है। जड़ी-बूटियाँ, विशेष आयुर्वेदिक चूर्ण, पंचकर्म थेरेपी, खानपान में बदलाव और जीवनशैली सुधार के ज़रिये आयुर्वेद इस समस्या को अंदर से ठीक करता है।

ब्रोंकाइटिस के प्रकार (Types of Bronchitis)

जब भी खाँसी लंबे समय तक बनी रहती है और बलगम के साथ आती है, तो अक्सर लोग उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन अगर आपको बार-बार ऐसा हो रहा है, तो यह जानना ज़रूरी है कि ब्रोंकाइटिस के दो मुख्य प्रकार होते हैं – एक्यूट ब्रोंकाइटिस और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस।

1. एक्यूट ब्रोंकाइटिस (Acute Bronchitis)

यह ब्रोंकाइटिस का सामान्य और कम समय तक रहने वाला रूप होता है। आमतौर पर यह किसी वायरल संक्रमण (जैसे सर्दी या फ्लू) के कारण होता है। इसमें खाँसी अचानक शुरू होती है और 1 से 3 हफ्तों में ठीक भी हो जाती है। आपको इसमें बलगम वाली खाँसी, हल्का बुखार, गले में खराश और सीने में भारीपन जैसा महसूस हो सकता है।

2. क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस (Chronic Bronchitis)

अगर आपको हर साल कम से कम तीन महीने तक लगातार खाँसी रहती है और यह सिलसिला दो साल या उससे ज़्यादा समय तक चलता है, तो यह क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस हो सकता है। यह आमतौर पर धूम्रपान, प्रदूषण, या किसी लंबे समय तक चले एलर्जी के कारण होता है। 

इसमें खाँसी के साथ हमेशा बलगम बनता है और साँस फूलने जैसी दिक्कत भी बनी रहती है।
अगर आपको इस तरह की समस्या है, तो लापरवाही न करें। यह धीरे-धीरे आपके फेफड़ों को कमज़ोर कर सकती है और आगे चलकर COPD जैसी बीमारी का रूप ले सकती है।

ब्रोंकाइटिस के सामान्य कारण (Common Causes of Bronchitis)

  • वायरल संक्रमण: सर्दी-जुकाम, फ्लू, कोरोना वायरस आदि।
  • बैक्टीरियल संक्रमण: जैसे Mycoplasma pneumoniae या Bordetella pertussis।
  • धूम्रपान: सिगरेट या बीड़ी का सेवन या उसके संपर्क में रहना।
  • प्रदूषित हवा का संपर्क: धूल, धुआं, फैक्ट्री या वाहनों से निकला धुआं।
  • ठंडी और नम हवा: सर्द मौसम में नमी वाली हवा।
  • तेज़ गंध या केमिकल्स: पेंट, कीटनाशक, गैस आदि।
  • जमी हुई बलगम या एलर्जी: लगातार जुकाम या एलर्जी।
  • पेट की एसिडिटी (GERD): खट्टी डकार या एसिड रिफ्लक्स।

ब्रोंकाइटिस के जोखिम बढ़ाने वाले कारक (Risk Factors)

  • बच्चे और बुज़ुर्ग
  • कमज़ोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता
  • धूम्रपान करने वाले या उनके पास रहने वाले लोग
  • प्रदूषित जगहों पर रहना या काम करना
  • अत्यधिक सर्दी में रहना

ब्रोंकाइटिस की संभावित जटिलताएँ (Complications)

  • निमोनिया (Pneumonia)
  • क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD)
  • फेफड़ों की क्षमता में कमी

ब्रोंकाइटिस के लक्षण (Signs and Symptoms of Bronchitis)

कई बार आम खाँसी को हम हल्के में ले लेते हैं, लेकिन अगर यह खाँसी लंबे समय तक बनी रहे और कुछ और लक्षणों के साथ आए, तो यह ब्रोंकाइटिस हो सकता है। अगर आप समय रहते लक्षणों को पहचान लें, तो इलाज भी जल्दी और असरदार हो सकता है।

  • लगातार खाँसी होना
  • बलगम आना
  • साँस फूलना
  • सीने में जकड़न या भारीपन
  • घरघराहट की आवाज़ (Wheezing)
  • गला खराब या खराश
  • हल्का बुखार और ठंड लगना
  • नाक बहना या बंद होना
  • थकान महसूस होना

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Symptoms

लगातार खाँसी होना

 यह ब्रोंकाइटिस का सबसे आम और पहला लक्षण होता है। खाँसी 1 से 3 हफ्तों तक बनी रह सकती है।

बलगम आना

खाँसी के साथ गाढ़ा सफेद, पीला या हल्का हरा रंग का बलगम (कफ) निकल सकता है।

साँस फूलना

थोड़ी सी मेहनत करने या सीढ़ियाँ चढ़ने पर साँस चढ़ने लगती है।

सीने में जकड़न या भारीपन

आपको सीने में दवाब या भारीपन महसूस हो सकता है, खासकर खाँसी के समय।

घरघराहट की आवाज़ (Wheezing):

साँस लेते समय सीटी जैसी आवाज़ सुनाई दे सकती है, जो साँस की नली में सूजन की वजह से होती है।

गला खराब या खराश

लगातार खाँसी से गले में जलन या खराश बनी रह सकती है।

हल्का बुखार और ठंड लगना

नाक बहना या बंद होना

कई बार नाक से पानी बहता है या बंद हो जाती है, जो संक्रमण का संकेत हो सकता है।

थकान महसूस होना

खाँसी और साँस लेने की तकलीफ़ की वजह से शरीर में कमज़ोरी और थकान बनी रहती है।

क्या आप इनमें से किसी लक्षण से जूझ रहे हैं?

लगातार खाँसी होना
बलगम आना
साँस फूलना
सीने में जकड़न या भारीपन
घरघराहट की आवाज़ (Wheezing):
गला खराब या खराश
हल्का बुखार और ठंड लगना
नाक बहना या बंद होना
थकान महसूस होना
 

जीवा आयुनिक™ इलाज पद्धति– ब्रोंकाइटिस के लिए एक संपूर्ण आयुर्वेदिक तरीका

ब्रोंकाइटिस के इलाज में जीवा आयुर्वेद सिर्फ खाँसी या बलगम जैसे लक्षणों को दबाने पर ध्यान नहीं देता बल्कि बीमारी की जड़ तक पहुँचता है। यहाँ हर व्यक्ति की स्थिति को समझकर व्यक्तिगत इलाज तैयार किया जाता है, जिसमें आयुर्वेदिक दवाइयों, खानपान, जीवनशैली और थेरेपी का ऐसा संतुलन होता है जो आपको अंदर से पूरी तरह से ठीक करने में मदद करता है।

जीवा आयुनिक™ इलाज पद्धति की मूल बातें – आपकी सेहत का संपूर्ण समाधान

  • सुरक्षित और HACCP प्रमाणित आयुर्वेदिक दवाइयाँ:  जीवा में इस्तेमाल होने वाली सभी दवाइयाँ हर्बल होती हैं और वैज्ञानिक तरीके से बनाई जाती हैं। ये दवाएँ आपके शरीर की सफाई करती हैं, जल्दी ठीक होने में मदद करती हैं और मानसिक संतुलन को भी सुधारती हैं।
    योग, ध्यान और मानसिक शांति के उपाय: तनाव को कम करने और शरीर को भीतर से मज़बूत बनाने के लिए जीवा में योग, ध्यान और शांति देने वाली तकनीकों को अपनाया जाता है। ये आसान होते हैं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शामिल किए जा सकते हैं।
    पारंपरिक आयुर्वेदिक थेरेपी: जैसे पंचकर्म, तेल मालिश और शरीर की सफाई करने वाली प्रक्रियाएँ आपके शरीर को अंदर से शुद्ध करती हैं और दोषों को संतुलन में लाती हैं।
    खानपान और जीवनशैली पर सलाह: जीवा के आयुर्वेदाचार्य आपको आपकी प्रकृति और बीमारी के अनुसार सही आहार और दिनचर्या बताते हैं, जिससे आपकी ताकत बढ़ती है और भविष्य में बीमारियों से बचाव होता है।

ब्रोंकाइटिस में उपयोगी आयुर्वेदिक औषधियाँ – जड़ से राहत पाने के लिए

अगर आप बार-बार खाँसी, सीने में जकड़न, या बलगम की परेशानी से जूझ रहे हैं, तो केवल लक्षणों को दबाने से काम नहीं चलेगा। आयुर्वेद में ऐसी कई प्राकृतिक औषधियाँ और जड़ी-बूटियाँ हैं जो आपकी साँस की नली को साफ करने, सूजन को कम करने और फेफड़ों को मज़बूत बनाने में मदद करती हैं। इन औषधियों का नियमित और सही उपयोग आपको ब्रोंकाइटिस की समस्या से गहराई से राहत दिला सकता है।
यहाँ कुछ प्रभावशाली आयुर्वेदिक औषधियाँ और घरेलू उपाय दिए गए हैं जो ब्रोंकाइटिस में बेहद फ़ायदेमंद माने जाते हैं:

    • शहद (Honey): यह कफ को बाहर निकालने में मदद करता है और गले की सूजन को भी कम करता है। हल्के गुनगुने पानी के साथ लेने से लाभ होता है।

    • आंवला (Amla): यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और फेफड़ों के संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। आंवले के रस में थोड़ा दालचीनी मिलाकर लिया जा सकता है।

    • सरसों का तेल (Mustard Oil): सरसों के तेल में कपूर मिलाकर सीने पर मालिश करने से जमा हुआ बलगम ढीला होता है और साँस लेना आसान हो जाता है।

    • लहसुन (Garlic): यह प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी है जो फेफड़ों की सूजन को कम करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पीने से फ़ायदा होता है।

    • तुलसी (Tulsi): तुलसी की पत्तियाँ खाँसी को शांत करने और फेफड़ों की सफाई में मदद करती हैं। तुलसी का काढ़ा बनाकर नियमित पी सकते हैं।

    • थाइम (Thyme): यह जड़ी-बूटी बलगम को ढीला करने और साँस की नली को साफ करने में सहायक है। इसे चाय के रूप में या भाप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    • अदरक (Ginger): अदरक सूजन को कम करता है और जमा हुए कफ को बाहर निकालने में मदद करता है। इसे शहद और काली मिर्च के साथ लिया जा सकता है।

    • नीलगिरी (Eucalyptus): इसकी भाप लेने से साँस की नली खुलती है और बंद नाक व सीने की जकड़न से राहत मिलती है।

    • सितोपलादि चूर्ण (Sitopaladi Churna): यह एक पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधि है जो खाँसी, साँस फूलना और फेफड़ों की कमज़ोरी जैसी समस्याओं में उपयोगी है।

    • हल्दी (Turmeric): हल्दी प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और सूजन को कम करने वाली औषधि है। इसे दूध में उबालकर पीने से राहत मिलती है।

    • काली मिर्च (Black Pepper): यह बलगम को साफ करने में मदद करती है और अदरक व शहद के साथ मिलकर और भी असरदार बन जाती है।

    • तिल के बीज (Sesame Seeds): तिल के बीज सीने की जकड़न को दूर करते हैं और ब्रोंकाइटिस के दौरान राहत देते हैं। इनका चूर्ण पानी के साथ लेना लाभकारी होता है।

    इन सभी औषधियों का सही तरीके से सेवन और आयुर्वेदिक परामर्श के अनुसार इस्तेमाल करने से आपको ब्रोंकाइटिस से लंबी राहत मिल सकती है। याद रखें, आयुर्वेद लक्षणों को दबाने की बजाय समस्या की जड़ को खत्म करने में विश्वास रखता है। अगर आप बार-बार इस परेशानी से जूझ रहे हैं, तो अब वक्त है जड़ से इलाज का रास्ता अपनाने का।

FAQs

अगर आप ब्रोंकाइटिस से जल्दी राहत चाहते हैं, तो गर्म पानी पीना, भाप लेना, तुलसी या अदरक का काढ़ा पीना और तली-भुनी चीज़ों से दूर रहना ज़रूरी है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और घरेलू उपायों से भी यह जल्दी ठीक हो सकता है, खासकर अगर शुरुआत में ही इलाज शुरू कर दें।

सितोपलादि चूर्ण, शहद, अदरक, काली मिर्च और हल्दी जैसी आयुर्वेदिक चीज़ें बलगम को बाहर निकालने में मदद करती हैं। सरसों के तेल की मालिश और नीलगिरी की भाप लेना भी कफ को ढीला करने में कारगर होता है।

ब्रोंकाइटिस में केला खाने से परहेज़ करना चाहिए, खासकर ठंड के मौसम में या रात में। केला ठंडी तासीर का होता है और इससे बलगम बढ़ सकता है। अगर खाना ही है तो दिन में और पका हुआ केला खाएँ।

प्राणायाम, भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम और कपालभाति जैसे योगासन ब्रोंकाइटिस में बहुत फ़ायदेमंद हैं। ये फेफड़ों की क्षमता बढ़ाते हैं और साँस की नली को खोलने में मदद करते हैं। ध्यान और योग से तनाव भी कम होता है, जो आपके शरीर की उपचार प्रक्रिया को बेहतर बनाती है।

आयुर्वेद में ब्रोंकाइटिस का इलाज जड़ी-बूटियों, पंचकर्म, काढ़ों, खास डाइट और जीवनशैली में बदलाव के ज़रिये किया जाता है। तुलसी, अदरक, आंवला, शहद जैसी औषधियाँ और नियमित योग-प्राणायाम से राहत मिलती है।

आप आंवला, पपीता, अनार, सेब, मौसमी और कीवी जैसे फल खा सकते हैं। ये फल शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और गले को भी राहत देते हैं। खट्टे फल सीमित मात्रा में खाएँ, खासकर अगर गला खराब हो।

वायरल ब्रोंकाइटिस में आमतौर पर सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण होते हैं और यह कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है। अगर बुखार तेज़ हो, बलगम पीला या हरा हो और लंबे समय तक ठीक न हो, तो यह बैक्टीरियल हो सकता है। जाँच करवाना ज़रूरी है।

हाँ, अगर आपकी इम्युनिटी कमज़ोर है, आप धूम्रपान करते हैं या बार-बार एलर्जी होती है, तो ब्रोंकाइटिस बार-बार हो सकता है। इससे फेफड़े कमज़ोर हो सकते हैं, इसलिए बार-बार होने की स्थिति में आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जड़ से इलाज करवाएँ।

ब्रोंकाइटिस में मुख्य लक्षण खाँसी और बलगम होता है, जबकि अस्थमा में साँस लेने में तकलीफ़ और सीने में जकड़न ज़्यादा होती है। अस्थमा लंबे समय तक चलने वाली समस्या है, जबकि एक्यूट ब्रोंकाइटिस आमतौर पर कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है।

अगर दूध पीने से कफ बढ़ता है तो उससे परहेज़ करना चाहिए। लेकिन गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पीना फ़ायदेमंद होता है। यह गले की सूजन को कम करता है और फेफड़ों को भी राहत देता है।

एक्यूट ब्रोंकाइटिस पूरी तरह ठीक हो सकता है अगर समय पर इलाज लिया जाए। क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस को भी सही देखभाल और आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से नियंत्रण में लाया जा सकता है। नियमित परहेज़ और जीवनशैली सुधार ज़रूरी है।

धूम्रपान से दूर रहें, प्रदूषण से बचाव करें, ठंडी चीज़ों का सेवन सीमित करें और इम्युनिटी बढ़ाने वाली चीज़ें खाएँ। रोज़ तुलसी या अदरक का काढ़ा पीना, भाप लेना और योग करना भी अच्छी आदतें हैं जो ब्रोंकाइटिस से बचाव करती हैं।

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