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क्या हीट थेरेपी या मसाज सायटिका में ठीक है? आयुर्वेद बताता है कब करना है और कब नहीं

Information By Dr. Keshav Chauhan

अक्सर हम भारत के घरों में यह देखते हैं कि कोई भी तक्लीफ़ होते ही, लोग सबसे पहले इलाज के तौर पे सिकाई करते हैं। लेकिन क्या यह चीज़ हर मर्ज़ के लिए सटीक है? इस ब्लॉग में हम जानेंगे यदि ये इलाज सायटिका के लिए ठीक है या नहीं। और अगर हाँ, तो कब-कब यह इलाज करना ठीक है।

सायटिका क्या है? 

इलाज के बारे में समझने के लिए सबसे पहले हमें यह समझना आवश्यक है कि सायटिका क्या है। हमारी पीठ के निचले हिस्से में एक तंत्रिका (nerve) होती है जिसे सायटिका नर्व कहा जाता है। यह तंत्रिका शरीर की सबसे मोटी तंत्रिका होती है और यह कूल्हे से होती हुई पैर तक जाती है। जब इस पर दबाव पढ़ता है, तो उसके कारण रूप लेने दर्द वाले दर्द की हालत को ही सायटिका या सायटिका का दर्द (साइंतिका पेन) बोला जाता है। ज़्यादातर यह दर्द कूल्हे से लेकर घुटने तक जाता है लेकिन ऐसा भी मुमकिन है की सायटिका का दर्द आपके पैर तक चला जाये।

सायटिका के सामान्य कारण (Causes Of Sciatica)

सायटिका का मूल कारण सायटिका तंत्रिका का दबना होता है। इस दबाव के कई कारण हो सकते हैं। आइए जानते हैं सायटिका दर्द के कुछ सामान्य कारण:

  • हरर्नियेटिड या स्लिप्ड डिस्क: 

यह इस दर्द का सबसे आम कारण है। इसमें रीढ़ कि हड्डी की डिस्क खिसक जाती है जिससे सायटिका तंत्रिका पर दबाव डलता है।

  • स्पाइनल स्टेनोसिस

इस स्थिति में रीढ़ की हड्डी के संकुचित हो जाने के कारण तांत्रिकाओं पर दबाव पढ़ना शुरू होजाता है।

  • स्पोंडिलोलिस्थीसिस

यह स्थिति तब होती है जब कोई करुका (vertebrae) अपनी जगह से हिल कर दूसरी जगह आ जाती है। इसके कारण तांत्रिकाओं का मार्ग पतला हो जाता है, जिससे उनपे दबाव पढ़ता है, और उनसे जुड़े शरीर के अंगों में दर्द या सुन्नता महसूस होती है।

  • डिजनरेटिव डिस्क रोग

यह रोग उम्र में बढ़ोतरी की एक आम जटिलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उम्र के साथ, शरीर कि हड्डि कमज़ोर होने और घिसने लगती हैं। उम्र के कारण डिस्क का घिसना भी तंत्रिका पर दबाव डाल सकता है।

  • अस्थि स्फुरण और गठिया (bone spurs and arthritis)

यह भी बढ़ती उम्र का नतीजा होता है जिसमें हड्डियों का बढ़ना या जोड़ों में सूजन आने के कारण तांत्रिकाओं पर दवाव पढ़ता है।

  • पीठ की चोट या आघात

रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से भी सायटिका तंत्रिका पर दबाव पढ़ सकता है।

  • गर्भावस्था (pregnancy)

गर्भ में बढ़ता शिशु आस पास की मांसपेशयों, हड्डियों, और तांत्रिकाओं पर दबाव डाल सकता है जिसमें से सायटिका तंत्रिका भी एक है।

  • पिरिफोर्मिस सिंड्रोम 

इस स्थिति में कूल्हे में मौजूद पिरिफोर्मिस मांसपेशी (जो कूल्हे को घुमाने में मदद करती है) में अकड़न या ऐंठन आ जाती है, जिससे सायटिका तंत्रिका पर दबाव पढ़ना शुरू हो जाता है।

  • ट्यूमर, सिस्ट या संक्रमण (infection) 

रीढ़ की हड्डी में कोई असामान्य वृद्धि, जैसे ट्यूमर या सिस्ट होने पर भी साइटिका हो सकता है।

  • मोटापा

मोटापा बढ़ने से कमर के निचले हिस्से पर बोझ पढ़ता है, जिससे सायटिका तंत्रिका पर दबाव पढ़ने के अवसर बढ़ जाते हैं।

  • ग़लत पोसचर

लम्बे समय तक ग़लत तारीके से बैठना या लेटना तांत्रिकाओं पर ग़लत दबाव डाल सकता है।

  • गतिहीन जीवनशैली

लम्बे समय तक शरीर को गतिहीन रखने से कमर और तांत्रिकाओं पर ज़्यादा दबाव डलता है।

  • भारी सामान उठाना 

भारी सामान ग़लत तरीके से उठाने से पीठ के निचले हिस्से में और सायटिका तंत्रिका पर ग़लत दिशा से दबाव पढ़ सकता है जिससे दर्द हो सकता है।

  • डायबिटीज़

लम्बे समय तक रक्त में मधु का स्तर बढ़े रहने से तांत्रिकाओं को, ख़ासकर पैरों में, नुकसान पहुँच सकता है, जिसको डायबिटिक न्यूरोपैथी कहा जाता है, और इसके लक्षण सायटिका सामान होते हैं। इसके आलावा, डायबिटीज़ रक्त प्रवाह (blood circulation) में बाधा पैदा करदेता है, जिससे सायटिका तंत्रिका को नवसान पहुँच सकता है।

आयुर्वेदा सायटिका के बारे में क्या कहता है?

आयुर्वेदा में सायटिका कि स्थिति को ग्रिध्रसी कहा जाता है। ये मुख्य रूप से वात दोष के असंतुलन से होता है, जो कि शरीर में गति, परिषचरण, तंरीका आवेग (नर्व impulse), और विचारों की गति के लिए ज़िम्मेदार होता है। यह शरीर में संचार बनाये रखने के लिए काम करता है।

आयुर्वेद के अनुसार, गृध्रसी वात-वर्धक आहार (जैसे ठंडे और सूखे खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन) और खराब जीवनशैली की आदतों के कारण होती है। इससे शरीर के चैनलों में विषाक्त पदार्थों (जिसे 'आम' कहा जाता है) का संचय होता है, जिससे तंत्रिका मार्गों में रुकावट आती है और दर्द होता है।

सायटिका के लिए आयुर्वेदिक इलाज सिर्फ उसके लक्षणों को राहत देने में विश्वास नहीं रखता। आयुर्वेदिक इलाज का उद्देश्य सायटिका की जड़ तक पहुँचना और उसे मूल रूप से ख़त्म करना होता है।

सिकाई (heating) और शरीर पर उसके सामान्य पराभव (common effects of heating on the body)

गर्म सिकाई शरीर के बहुत से दर्द के इलाज में उपयोग करी जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इससे आने वाली गर्माहट से रक्त संचार अच्छा होता है, और मांसपेशियों में ऐंठन और अकड़न कम होती है, जिससे दर्द में राहत मिलती है। यह पुरानी छोटों को आराम देने में अधिक कामयाब रहती है, लेकिन इसका उपयोग ताज़ी छोटों के लिए उपयुक्त नहीं है।

हीटिंग के प्रभाव 

  • मांसपेशियों को आराम होना

मांसपेशन के लचीलेपन को बढ़ाकर यह उनकी जकड़न को कम करता है।

  • रक्त प्रवाह बढ़ना

हीटिंग की गरमाई से रक्त वाहिकाएं खुलती हैं जिससे रक्त प्रवाह अच्छा होता है और मांसपेशियों में पर्याप्त ऑक्सीजन पोहुँचती है।

  • ऊतकों (tissues) में सूजन का कम होना

हीटिंग सूजे हुए ऊतकों को आराम देकर उनकी सूजन को कम करने में मदद करता है।

क्या गर्म सिकाई सायटिका के लिए फायदेमंद है? 

गर्म सिकाई सायटिका कि स्थिति के लिए सामान्य तौर पर कोई गंभीर समस्या नहीं पैदा करती, ना ही हानिकारक होती है। लेकिन, इसको करने का सही तरीका और कुछ बातें ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है जिससे शरीर अनजाने में नुकसान ना पहुँचे।

आप यह सिकाई हॉट पैक, गर्म पानी की बोतल, या हीटिंग पैड से आराम से कर सकते हैं। सिकाई करने का समय आमतौर पर 15-20 मिनट का होता है। साथ ही साथ आपको यह ध्यान रखना है कि तापमान इतना अधिक भी ना हो कि आपकी त्वचा को नुकसान पहुँचे। इसके लिए आप हैटिंग पैड और अपनी त्वचा के बीच में कपड़े का उपयोग कर सकते हैं। 

काई बार सूजन कम करने के लिए गर्म सिकाई के साथ ठंडी सिकाई भी करी जाती है, जिसे कांट्रास्त थेरेपी बोलते हैं। यदि आप रक्त परिसंचरण सम्बंधित परेशानी से गुज़र रहे हैं, तो सिकाई करने से पहले किसी विशेषज्ञ चिकित्सक से समापर्ष करें। 

मसाज का सायटिका पर क्या प्रभाव पढ़ता है? 

आमतौर पर सायटिका के लिए मसाज सहायक ही मानी जाती है। यदि यह किसी अनुभवी विशेषज्ञ थेरेपिस्ट के द्वारा करवाई जाये, तो इसके यह सायटिका के लक्षणों को आराम देने में काफ़ी हद तक प्रभावशाली रहती है। 

मालिश के प्रभाव 

  • मांसपेशन में तनाव कम होना 

मसाज करने से मांसपेशन में तनाव कम होता है। जब पीरिफोर्मिस मांसपेशी तनावग्रस्त होती है, तो उसका दबाव सायटिका नस पर पढ़ता है। मसाज द्वारा इसके ढीले होने पर इस नस के दर्द से राहत प्राप्त होती है।

  • रक्त परिसंचरण का सुधरना

प्रभावित क्षेत्र में मसाज करने पर रक्त का प्रवाह बढ़ने में मदद मिलती है जिससे सूजन और दर्द भी कम होता है। यह उपचार को और ज़्यादा और जल्दी प्रभाव दिखाने में मदद करता है।

  • एंडोर्फिन्स जारी करना 

मसाज शरीर के प्राकृतिक दर्द निवारक एंडोर्फिन को जारी करके दर्द और परेशानी के एहसास को कम करती है।

क्या सायटिका में सिकाई और मसाज को लेके कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए?

जी हाँ। हालाँकि यह दोनों ही सायटिका के मरीज़ों को बहुत राहत दे सकते हैं, ऐसा आवश्यक है कि इनको सही तकनीक से किआ जाये, वरना इनका प्रभाव विपरीत दिशा में होके शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

सिकाई में ध्यान रखने वाली बातें

सिकाई करते वक्त आपको ध्यान रखना आवश्यक है कि आप समय की सीमा को पार न करें। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिक गर्मी से त्वचा के जलने, सूजन के और ज़्यादा बढ़ने, अंदरूनी ऊतकों का डैमेज होने, और त्वचा का रंग बदलने की भी सम्भावना हो सकती है। 

ठंडी सिकाई को ज़्यादा देर करने से भी काई नुकसान हो सकते हैं जैसे की त्वचा और उसके नीचे के टिश्यूज का खराब होना जिससे फ्रॉस्टबाइट हो सकता है। साथ ही, ज़्यादा ठंडक से नसें सुन हो सकती है डैमेज हो सकती हैं। इसके अलावा रक्त संचार अत्यधिक कम हो सकता है क्योंकि ठंडा तापमान रक्त वाहिकाओं को सिकुड़ने पर मजबूर करदेता है, जिससे उपचार की प्रक्रिया में अर्चन आ जाती है।

मसाज में ध्यान रखने वाली बातें

यदि आपको sciatica है, तो किसी पेशेवर और अनुभवी मसाज थेरेपिस्ट से ही मसाज करवाएं, जिसे sciatica और इससे जुड़ी जटिलताओं का ज्ञान हो। गलत तकनीक स्थिति को खराब कर सकती है।

गंभीर या तीव्र मामलों में, या यदि दर्द बहुत तेज़ है, तो मसाज से पहले डॉक्टर से सलाह लेना महत्वपूर्ण है। कुछ मामलों में (जैसे कि डिस्क हर्नियेशन), कुछ प्रकार के मसाज की सलाह नहीं दी जाती है।

जीवनशैली में बदलाव

आप अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी कुछ बदलाव ला कर सायटिका के दर्द से राहत पा सकते हैं। कुछ बदलाव जो आयुर्वेदा सुझाव देता है वो हैं :

  • वात-संतुलित आहार: आयुर्वेद वात दोष को संतुलित करने पर जोर देता है। इसके लिए गर्म, ताज़ा पका हुआ भोजन, घी, और अदरक व हल्दी जैसे मसालों का सेवन फायदेमंद होता है। ठंडे, बासी और तले हुए भोजन से बचें।
  • व्यायाम और योग: नियमित लेकिन हल्के व्यायाम जैसे चलना, तैरना या कुछ विशेष योगासन (जैसे भुजंगासन, पवनमुक्तासन) नसों पर दबाव कम करके लचीलापन बढ़ाते हैं।
  • आराम: शरीर को पर्याप्त आराम देना भी उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

अन्य आयुर्वेदिक तरीके 

इन सारी चीज़ों के साथ, आयुर्वेदा ये सुझाव भी देता है कि सायटिका के दर्द के लिए जड़ी-बूटियाँ, जैसे अश्वगंधा, गुग्गुल, निर्गुडी, और हल्दी का उपयोग किआ जाये। इन जड़ी-बूटियों के सूजनरोधी, जोड़ों को लचीला करने, और मांसपेशन को आराम देने वाले तत्व सायटिका के दर्द को बहुत आराम पहुंचाते हैं।

इसके साथ कुछ आयुर्वेदिक थेरेपीज़ जो मदद करती हैं, वो हैं:

  • कटि बस्ती (Kati Basti): इस प्रक्रिया में, कमर के निचले हिस्से में आटे की एक रिंग बनाकर उसमें औषधीय गुणों से युक्त गर्म तेल थोड़ी देर तक भरा रहने दिया जाता है। यह निचले हिस्से की मांसपेशियों और नसों को गहराई से आराम देता है।
  • अभ्यंगम (Abhyanga): यह हर्बल तेलों (जैसे महानारायण तेल, धनवंतराम तेल) से की जाने वाली एक विशेष मालिश है, जो रक्त परिसंचरण में सुधार करती है और अकड़न कम करती है।
  • स्वेदन (Swedana): यह एक प्रकार की सिकाई या भाप थेरेपी है जिसमें औषधीय भाप का उपयोग किया जाता है। यह अकड़न दूर करती है और दर्द कम करती है।

निष्कर्ष

सायटिका के दर्द में हीट थेरेपी और मसाज दोनों ही राहत देने वाले प्रभावी उपाय हो सकते हैं, लेकिन इनका उपयोग सोच-समझकर और सही तरीके से करना आवश्यक है। गर्म सिकाई मांसपेशियों को ढीला कर रक्त संचार बढ़ाती है, जिससे दर्द व अकड़न में राहत मिलती है, जबकि मसाज तंत्रिका पर बने दबाव को कम कर आराम प्रदान करती है। फिर भी, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि अत्यधिक गर्मी, लंबे समय तक ठंडी सिकाई, या गलत तकनीक से हुई मसाज स्थिति को सुधारने के बजाय बिगाड़ भी सकती है। इसलिए विशेषकर तेज़ दर्द, स्लिप्ड डिस्क या गंभीर लक्षणों के मामलों में विशेषज्ञ की सलाह अनिवार्य है। आयुर्वेद इस समस्या के मूल कारण—वात दोष के असंतुलन—को संतुलित करके दीर्घकालिक राहत देने पर ज़ोर देता है। 

सिकाई के साथ साथ, जीवनशैली में बदलाव, जैसे उचित आहार, हल्के योग, और आराम भी अधिक अनिवार्य है।जड़ी-बूटियाँ और कटि बस्ती, अभ्यंगम तथा स्वेदन जैसी थेरेपी इन सब के साथ मिलकर सायटिका से संपूर्ण और सुरक्षित सुधार का मार्ग प्रदान करती हैं।

FAQS:-

साइटिका क्या है?

साइटिका एक प्रकार का दर्द है जो साइटिक नर्व (शरीर की सबसे लंबी नस) के मार्ग पर होता है। यह दर्द कमर के निचले हिस्से से शुरू होकर, कूल्हे से होते हुए एक पैर के पीछे तक जाता है, और कभी-कभी पैर के निचले हिस्से तक पहुँच सकता है।

साइटिका के सामान्य लक्षण क्या हैं?

मुख्य लक्षणों में शामिल हैं: कमर के निचले हिस्से या कूल्हे में हल्का या तेज़ दर्द; पैर में सुन्नता (numbness) या झुनझुनी (tingling sensation); और मांसपेशियों की कमज़ोरी। दर्द अक्सर एक ही तरफ के पैर को प्रभावित करता है।

साइटिका का मुख्य कारण क्या होता है?

साइटिका आमतौर पर तब होता है जब साइटिक नर्व पर दबाव पड़ता है। इसके सामान्य कारणों में स्लिप डिस्क (herniated disc), स्पाइनल स्टेनोसिस (spinal stenosis - रीढ़ की हड्डी के भीतर की जगह का सिकुड़ना), और पिरिफॉर्मिस सिंड्रोम (piriformis syndrome) शामिल हैं।

आयुर्वेद के अनुसार साइटिका का मुख्य कारण क्या है?

आयुर्वेद मानता है कि साइटिका का मुख्य कारण शरीर में 'वात दोष' (Vata Dosha) का असंतुलन या बिगड़ना है। यह वात दोष जब कमर के निचले हिस्से में जमा हो जाता है, तो नसों में रुकावट और दर्द पैदा करता है।

क्या साइटिका के दर्द के लिए हीट थेरेपी (गर्म सिकाई) सुरक्षित है?

हाँ, आमतौर पर मांसपेशियों के तनाव और पुराने (chronic) दर्द से राहत पाने के लिए हीट थेरेपी सुरक्षित और प्रभावी हो सकती है। गर्मी रक्त प्रवाह को बढ़ाती है, तनावग्रस्त मांसपेशियों को ढीला करती है, और अकड़न कम करती है।

लेकिन, कुछ सावधानियाँ ज़रूरी हैं:

  • चोट लगने के तुरंत बाद न करें: यदि चोट ताज़ा है (पहले 48 घंटे) और सूजन है, तो गर्म सिकाई से बचें। उस समय ठंडी सिकाई (आइस पैक) बेहतर होती है।
  • सीधे त्वचा पर न लगाएं: हीट पैक या गर्म पानी की बोतल को हमेशा एक तौलिये या कपड़े में लपेटकर इस्तेमाल करें ताकि त्वचा जलने से बचा जा सके।
  • समय सीमा: एक बार में 15 से 20 मिनट से अधिक समय तक सिकाई न करें।
  • डॉक्टर से पूछें: यदि आपको मधुमेह या रक्त परिसंचरण की समस्या है, तो हीट थेरेपी का उपयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें।

क्या साइटिका के दर्द के दौरान मालिश (मसाज) करना सुरक्षित है?

हल्के हाथों से औषधीय तेलों (जैसे महानारायण तेल) से मालिश करना सुरक्षित और फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यह किसी प्रशिक्षित थेरेपिस्ट द्वारा ही किया जाना चाहिए। तीव्र दर्द या गंभीर मामलों में, मालिश से बचना चाहिए या डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

क्या साइटिका का दर्द अपने आप ठीक हो सकता है?

कई हल्के मामले उचित आराम, देखभाल और घरेलू उपचारों (जैसे ठंडी/गर्म सिकाई) के साथ कुछ हफ़्तों में अपने आप ठीक हो जाते हैं। हालांकि, गंभीर या लगातार बने रहने वाले मामलों में डॉक्टर की सलाह लेना ज़रूरी है।

साइटिका के दर्द के लिए डॉक्टर से कब मिलना चाहिए?

यदि दर्द बहुत तेज़ है, घरेलू उपचार से ठीक नहीं हो रहा है, दोनों पैरों में कमज़ोरी या सुन्नता महसूस हो रही है, या यदि आपको मूत्राशय (bladder) या आंत्र (bowel) नियंत्रण में समस्या हो रही है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

क्या व्यायाम साइटिका के लिए अच्छा है या बुरा?

हल्के और सही व्यायाम, जैसे चलना या स्ट्रेचिंग, आमतौर पर अच्छे होते हैं क्योंकि वे मांसपेशियों को मजबूत करते हैं और लचीलापन बढ़ाते हैं। हालांकि, भारी व्यायाम या ऐसे पोज़ जिनसे दर्द बढ़ता है, उनसे बचना चाहिए। फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह सबसे अच्छी रहती है।

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