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विवाह के अन्तर्गत स्त्री-पुरूष का मिलन मात्र शारीरिक स्तर पर ही नहीं बल्कि भावनात्मक व आत्मिक स्तर पर भी होना चाहिए जिसका मुख्य आधार परस्पर विश्वास, प्रेम व समर्पण होता है जो इस सम्बन्ध को निरन्तर मजबूती प्रदान करता है।
अच्छे शैक्षणिक माहौल के आधार पर सभी अपने सपनों को पूरा करने के लिए आर्थिक उन्नति, केरियर, जॉब व बिज़नेस की ओर आकर्षित हैं। इसी प्रभाव के अन्तर्गत आजकल पति-पत्नी दोनों ही नौकरीपेशा हो गए हैं।
शास्त्रों के अनुसार जीवन के लिए आवश्यक व महत्त्वपूर्ण बताए गए सोलह संस्कारों में से एक है विवाह संस्कार जो विशेष धार्मिक मान्यताओं व रीति-रिवाजों के आधार पर स्त्री-पुरूष को मर्यादित व संस्कारित गृहस्थ जीवन यापन करने का अवसर प्रदान करता है।
आधुनिक समय में समाज कई बदलावों के दौर से गुजर रहा है। हर कार्य या परिस्थिति के गुण-दोष स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं। अगर इस दौरान आपसी समझ व सन्तुलन बना रहे तो आने वाली समस्याओं का प्रभाव वैवाहिक सम्बन्धों पर नहीं पड़ता है अन्यथा कुछ समय पहले तक श्रेष्ठ लगने वाली जीवनसाथी की खूबियाँ, अब कमियाँ लगने लगती है जो धीरे-धीरे सम्बन्धों में तनाव उत्पन्न कर देती है।
आईये जानते हैं उन कारणों के बारे में जो इस सम्बन्ध में तनाव का कारण हो सकते हैं-
आर्थिक समस्या -दैनिक उपयोग व अन्य आवश्यक खर्चों के लिए (व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक) सही योजना का न होना या आय कम-व्यय अधिक होना।
बच्चों की जिम्मेदारी -परिवार की वृद्धि के लिए सही समय का निर्धारण नहीं कर पाना या बच्चों के लालन-पालन में किसी एक का उचित समय नहीं दे पाना।
रिश्तेदारों का दखल -विशेषतः एक दूसरे के ससुराल पक्ष का जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप होना।
बातचीत का अभाव -एक दूसरे के साथ नियमित रूप से सकारात्मक, शान्त व संतुलित माहौल में बातचीत न होना।
कामकाज का तनाव -घर से ज्यादा समय आजकल ऑफिस में व्यतीत होता है जिससे वहाँ के तनाव का असर व्यक्तिगत जीवन में भी देखने को मिलता है।
थकान -दिन भर के व्यस्त कार्यक्रम व भागदौड़ के बाद एक दूसरे के शारीरिक व मानसिक संतोष के लिए आवश्यक ऊर्जा नहीं बचे रहना।
बुरी आदतें व व्यवहार -किसी प्रकार का व्यसन, चुगली करना, दोषारोपण करना, अव्यवस्थित बने रहना।
कमजोर स्वास्थ्य -किसी भी प्रकार की लम्बी बीमारी, आपसमें आदर व आत्म सम्मान का अभाव, गलत या अधूरी जानकारी पर विश्वास करना।
जीवन हमेशा परिवर्तनशील है। परिस्थितियाँ सदा एक जैसी नहीं रह सकती। कई पहलू व्यक्तित्व को बाह्य व आन्तरिक रूप से प्रभावित करते हैं जिनसे वैवाहिक जीवन भी अछूता नहीं है। कुछ वक्त पहले की अच्छी चीजें आज अनुपयोगी या कम महत्त्व की लग सकती है या भविष्य में इसका उल्टा भी हो सकता है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है वर्तमान में जीवन की सत्यता को स्वीकार कर आपसी सामंजस्य के साथ उसका सामना करना।
अपनी भावनाओं व अनुभूतियों के बारे में खुलकर बात करना।
आपसी सहयोग से आमदनी के अनुसार खर्च व बचत करने की प्लानिंग करना।
कठिन परिस्थितियों में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं करना।
स्पष्ट, ईमानदार व सम्मानपूर्वक बात करना व कहने के साथ-साथ शान्ति से एक दूसरे की पूरी बात सुनना।
पसन्द नापसन्द के अनुसार एक-दूसरे का पूरा ध्यान रखना।
व्यस्त दिनचर्या से छुट्टियों के लिए समय निकालकर एकान्त में समय बिताना।
आपसी कामकाज को प्रोत्साहित करने के लिए प्यार, सहयोग व उदारता का भाव रखना।
विश्वास, प्रेम व समर्पण भाव के साथ रहना न कि प्रतियोगी, प्रतिद्वन्दी व मजबूरी मानकर।
विवाह के समय लिए गए वचनों का प्रायोगिक महत्त्व समझना।
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