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क्या वैरिकोज़ वेन्स और DVT एक-दूसरे से जुड़े हैं? आयुर्वेद बताता है असली फर्क

Information By Dr. Keshav Chauhan

कई बार हमारी रोज़मर्रा की थकान, पैरों में भारीपन या हल्का-सा दर्द हमें मामूली लगता है और हम इसे आराम या नींद की कमी मानकर नज़रअंदाज कर देते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि पैरों से जुड़ी कुछ समस्याएँ इतनी चुपके से बढ़ती हैं कि जब तक हम समझें, यह असुविधाजनक ही नहीं बल्कि गंभीर भी हो सकती हैं। वैरिकोज़ वेन्स और डीप वेन थ्रॉम्बोसिस (DVT) दो ऐसी स्थितियाँ हैं जिनके नाम अक्सर एक साथ सुनने को मिलते हैं। लोग अक्सर सोच लेते हैं कि दोनों एक ही बीमारी हैं या एक से दूसरा हो जाता है। लेकिन वास्तविकता उससे काफी अलग है। इन दोनों स्थितियों को समझना, उनके फर्क को जानना और आयुर्वेद की दृष्टि से इनका समाधान पहचानना जरूरी है ताकि आप अपने पैरों और नसों को लंबे समय तक स्वस्थ रख सकें।

वैरिकोज़ वेन्स क्या हैं?

वैरिकोज़ वेन्स दरअसल सतही नसों का एक विकार है। शरीर में नसों का काम है खून को नीचे से ऊपर, यानी पैरों से हृदय तक ले जाना। इसके लिए नसों में छोटे-छोटे वाल्व होते हैं जो रक्त को वापस नीचे बहने नहीं देते। लेकिन जब किसी वजह से ये वाल्व कमजोर हो जाते हैं, तब रक्त वापस नीचे एक जगह जमा होने लगता है। इससे नसों पर दबाव बढ़ता है और वे मुड़कर, फूलकर और उभरकर त्वचा पर दिखाई देने लगती हैं। यही है वैरिकोज़ वेन्स। यह स्थिति सामान्यतः पैरों में दिखाई देती है, खासकर ऊपरी हिस्से में, जहाँ शरीर का भार सबसे अधिक होता है। यह देखने में जितनी साधारण लगे, रोज़मर्रा के जीवन में उतनी ही असुविधाजनक भी हो सकती है।

वैरिकोज़ वेन्स क्यों होती हैं?

वैरिकोज़ वेन्स के पीछे कई कारण होते हैं। सबसे आम कारण है लंबे समय तक खड़े रहना या बैठे रहना, जिससे रक्त प्रवाह धीमा हो जाता है और नसों पर दबाव बढ़ता है। आजकल ऑफिस में लगातार बैठे रहने की वजह से यह समस्या बढ़ रही है। इसके अलावा गर्भावस्था में वजन बढ़ना और हार्मोनल बदलाव भी वैरिकोज़ वेन्स का कारण बनते हैं। आनुवांशिकता भी एक अहम भूमिका निभाती है, यदि परिवार में किसी को यह समस्या है, तो संभावना बढ़ जाती है। उम्र बढ़ने के साथ नसें प्राकृतिक रूप से कमजोर हो जाती हैं। मोटापा, व्यायाम की कमी और असंतुलित खान-पान भी इसका जोखिम बढ़ाते हैं। यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ती है और कई बार लोग इसे शुरुआती दौर में समझ नहीं पाते।

DVT (डीप वेन थ्रॉम्बोसिस) क्या है?

अब बात करते हैं DVT की, जो कि वैरिकोज़ वेन्स से बिल्कुल अलग है। DVT गहरी नसों में बनने वाले रक्त के थक्के से संबंधित समस्या है। यह थक्का आमतौर पर पिंडली या जांघ की बड़ी नसों में बनता है। यह स्थिति गंभीर इसलिए मानी जाती है क्योंकि यदि यह थक्का टूटकर खून के साथ बहते हुए फेफड़ों तक पहुंच जाए, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। इसे फेफड़े में थक्का जमने की स्थिति यानी पल्मोनरी एम्बोलिज़्म कहा जाता है। DVT के मामले में दर्द अचानक शुरू होता है, पैर सूज जाता है और त्वचा गर्म व लाल होने लगती है। यह एक मेडिकल इमरजेंसी होती है जिसके लिए तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है।

DVT किन कारणों से होता है?

DVT बनने के मुख्य कारणों में खून का गाढ़ा हो जाना, लंबे समय तक बेहरकत रहना, लंबी दूरी की यात्रा, ऑपरेशन के बाद की स्थिति, मोटापा, धूम्रपान, कुछ दवाओं का प्रभाव या शरीर में हुए किसी गहरे संक्रमण की स्थिति शामिल हैं। कई बार बड़ी दुर्घटना या फ्रैक्चर के बाद भी गहरी नसों में थक्का बन जाता है। DVT में समस्या बाहर दिखाई नहीं देती, इसलिए इसका खतरा और बढ़ जाता है क्योंकि व्यक्ति समझ ही नहीं पाता कि उसके शरीर के अंदर क्या हो रहा है।

क्या वैरिकोज़ वेन्स और DVT एक-दूसरे से जुड़े हैं?

यही वह सवाल है जो सबसे अधिक भ्रम पैदा करता है। सच तो यह है कि दोनों बीमारियों का सीधा संबंध नहीं है। वैरिकोज़ वेन्स सतही नसों की बीमारी है जबकि DVT गहरी नसों में होता है। लेकिन, कुछ परिस्थितियों में वैरिकोज़ वेन्स DVT का जोखिम बढ़ा सकती हैं, जैसे कि यदि नसें बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त हों या रक्त का प्रवाह अत्यधिक धीमा पड़ गया हो। पर इसका मतलब यह नहीं कि हर वैरिकोज़ वेन्स वाला व्यक्ति DVT से ग्रस्त हो जाएगा। दोनों की प्रकृति, गंभीरता और परिणाम अलग-अलग हैं।

दोनों के बीच अंतर समझना क्यों जरूरी है?

यह अंतर इसलिए समझना जरूरी है क्योंकि वैरिकोज़ वेन्स आमतौर पर देखभाल और जीवनशैली सुधार से संभाली जा सकती है, जबकि DVT संभावित रूप से जानलेवा स्थिति है। यदि कोई व्यक्ति वैरिकोज़ वेन्स को DVT समझ ले या DVT को सरल समझकर नजरअंदाज कर दे, तो नुकसान बढ़ सकता है। सतही और गहरी नसों की बीमारी का इलाज भी अलग होता है। इसलिए सही पहचान बहुत जरूरी है।

आयुर्वेद क्या कहता है?

आयुर्वेद शरीर को केवल अंगों के समूह के रूप में नहीं देखता, बल्कि उसे वात, पित्त और कफ नामक तीन ऊर्जा दोषों के संतुलन से समझता है। नसों से जुड़ी अधिकतर समस्याओं को आयुर्वेद में वात विकार की श्रेणी में रखा गया है। जब वात बढ़ता है, तो रक्त प्रवाह प्रभावित होता है, नसें कमजोर होती हैं और शरीर में दर्द व सूजन बढ़ जाती है। वैरिकोज़ वेन्स को आयुर्वेद में “सिरा विकार” बताया गया है, जहाँ नसें अपनी लोच खो देती हैं। वहीं DVT, भले ही आयुर्वेद में उसी नाम से नहीं बताया गया है, लेकिन इसके लक्षण, जैसे रक्त गाढ़ा होना, सूजन और पीड़ा, वात और पित्त दोनों के असंतुलन से जुड़ी स्थिति मानी जाती है।

आयुर्वेदिक उपचार का दृष्टिकोण

आयुर्वेद का दृष्टिकोण इन दोनों स्थितियों के लिए संतुलित उपचार पर आधारित होता है। इसका उद्देश्य केवल लक्षणों को कम करना नहीं, बल्कि नसों की प्राकृतिक क्षमता को पुनः मजबूत बनाना है। इसके लिए आहार, दिनचर्या, जड़ी-बूटियाँ और पंचकर्म का संयोजन उपयोगी माना गया है। आयुर्वेद रक्त को शुद्ध और प्रवाह को बेहतर बनाकर शरीर को भीतर से ठीक करता है। नीचे कुछ प्रमुख विधियाँ दी जा रही हैं—

1.अभ्यंग (तेल मालिश)

गरम तेल से पूरे पैर की मालिश नसों की ताकत को बढ़ाती है। तिल का तेल, नारियल तेल, गुग्गुल-आधारित तेल या मंशादी जैसे आयुर्वेदिक तेल रक्त प्रवाह में सुधार करते हैं। नियमित अभ्यंग से नसों का दवाब कम होता है, त्वचा मुलायम होती है और भारीपन में राहत मिलती है। यह प्रक्रिया वैरिकोज़ वेन्स में अत्यंत लाभकारी होती है, क्योंकि इससे रक्त जमा नहीं होता और वाल्व पर दबाव घटता है।

2.भोजन और जीवनशैली में सुधार

आयुर्वेद में भोजन की भूमिका महत्वपूर्ण है। नसों को स्वस्थ रखने के लिए हल्का, पचने में आसान और रक्त को साफ रखने वाला भोजन लाभदायक होता है। सब्ज़ियों में लौकी, घिया, तोरई, परवल, ककड़ी, पालक जैसे विकल्प सतही नसों के लिए अच्छे माने जाते हैं। हल्दी और अदरक सूजन को कम करते हैं।
इसके विपरीत अधिक नमक, तला-भुना भोजन, जंक फूड, अत्यधिक चाय-कॉफी और लंबे समय तक बैठे रहने की आदत नसों को कमजोर करती है।

यदि आपकी दिनचर्या में लगातार बैठना शामिल है, तो हर 45–60 मिनट बाद पैरों को थोड़ी देर चलाना जरूरी है। इससे रक्त प्रवाह सुचारू रहता है और थक्का बनने की संभावना कम होती है।

3.हल्का व्यायाम और स्ट्रेचिंग

पैरों के लिए हल्के व्यायाम जैसे टखनों को घुमाना, पैरों को ऊपर-नीचे करना, हल्की वॉक या योग शरीर को लचीला बनाता है। यह नसों को सुचारू रूप से काम करने के लिए जरूरी है। योग में वज्रासन, ताड़ासन, पवनमुक्तासन और भुजंगासन नसों की स्फूर्ति बढ़ाते हैं और रक्त संचरण को बेहतर करते हैं।

हालाँकि यदि किसी को DVT का संदेह हो तो बिना चिकित्सीय सलाह के किसी भी प्रकार की गतिविधि करना जोखिमपूर्ण हो सकता है।

4.पंचकर्म

यदि नसों की कमजोरी लंबे समय से है, तो चिकित्सक की सलाह पर पंचकर्म कराया जा सकता है।
अभ्यंग, स्वेदन, वस्ति और रक्तमोक्षण कुछ ऐसे उपचार हैं जो रक्त प्रवाह को संतुलित करते हैं।
वस्ति विशेष रूप से वात संतुलन में प्रभावी है जबकि स्वेदन सूजन और जकड़न को कम करता है।

कब तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए?

यदि आपकी नसें उभरने लगी हैं और साथ ही अचानक तीव्र दर्द, लालपन, तेज गर्माहट या सूजन हो जाए, तो इसे नजरअंदाज न करें। खासकर यदि ब-र बैठे रहने वाली लाइफस्टाइल है या हाल ही में कोई बड़ा ऑपरेशन हुआ हो, तो DVT का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे में तत्काल जांच करवाना जरूरी है।

FAQs 

  1. क्या वैरिकोज़ वेन्स और DVT एक ही हैं?
    नहीं, दोनों बिल्कुल अलग हैं। एक सतही नसों की समस्या है जबकि दूसरी गहरी नसों में थक्का बनने की।
  2. क्या वैरिकोज़ वेन्स होने पर DVT का खतरा बढ़ जाता है?
    कुछ मामलों में जोखिम बढ़ सकता है, लेकिन यह तय नहीं है कि हर व्यक्ति में ऐसा ही हो।
  3. क्या आयुर्वेद दोनों स्थितियों में मदद करता है?
    हाँ, आयुर्वेद रक्त प्रवाह, वात-पित्त संतुलन और नसों की मजबूती पर काम करके राहत देता है।
  4. क्या घरेलू उपाय पर्याप्त हैं?
    हल्की वैरिकोज़ वेन्स में हाँ, लेकिन DVT के किसी भी लक्षण में तुरंत चिकित्सा आवश्यक है।
  5. क्या व्यायाम सुरक्षित है?
    वैरिकोज़ वेन्स में हल्का व्यायाम अच्छा है, लेकिन DVT में डॉक्टर द्वारा बताए व्यायाम ही करने चाहिए।

निष्कर्ष

वैरिकोज़ वेन्स और DVT भले ही नसों से जुड़ी दो समस्याएँ हैं, लेकिन उनकी प्रकृति, गंभीरता और उपचार बिल्कुल अलग हैं। एक तरफ वैरिकोज़ वेन्स जीवनशैली और नसों की कमजोरी की समस्या है, वहीं DVT संभावित रूप से जानलेवा स्थिति है। आयुर्वेद इन दोनों स्थितियों को केवल बीमारी के रूप में नहीं बल्कि शरीर के संपूर्ण संतुलन से जोड़कर देखता है। रक्त प्रवाह, वात नियंत्रण, भोजन, दिनचर्या और जड़ी-बूटियों के माध्यम से आयुर्वेद नसों को मजबूत बनाता है और दीर्घकालिक राहत देता है।

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