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कैंसर क्या है? (What is Cancer)
कैंसर एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर की कुछ कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं और टिश्यू या अंगों में गाँठ (tumor) बना सकती हैं। सामान्यतः शरीर को पता होता है कि कब नई कोशिकाएँ बनानी हैं और कब पुरानी खत्म करनी हैं, लेकिन जब यह संतुलन बिगड़ जाता है, तब कैंसर विकसित होता है।
यह केवल एक बीमारी नहीं बल्कि पूरे शरीर की प्रणालीगत असंतुलन का परिणाम है, जो कई बार खून, हड्डियों, त्वचा, या आंतरिक अंगों को भी प्रभावित कर सकता है।
आयुर्वेद क्या कहता है?
आयुर्वेद में कैंसर को दो रूपों में पहचाना गया है — ग्रंथि (Granthi) और अर्बुद (Arbuda)।
- ग्रंथि: छोटे आकार की गाँठ या सूजन।
- अर्बुद: बड़ी, बढ़ती हुई गाँठ या ट्यूमर।
आयुर्वेद के अनुसार, जब शरीर में वात, पित्त और कफ दोष असंतुलित हो जाते हैं और आम (toxins) बढ़ जाता है, तो शरीर की कोशिकाएँ अपनी प्राकृतिक गति खो देती हैं। यह असंतुलन रोग-प्रतिरोधक शक्ति को कम करता है और कोशिकाओं की वृद्धि पर नियंत्रण समाप्त कर देता है — यही स्थिति कैंसर कहलाती है।
कैंसर के प्रकार (Types of Cancer)
- कार्सिनोमा (Carcinoma): त्वचा, स्तन, फेफड़े, लीवर या पेट की परतों में।
- सारकोमा (Sarcoma): हड्डियों, मांसपेशियों या वसा ऊतकों में।
- ल्यूकेमिया (Leukemia): खून और बोन मैरो में।
- लिम्फोमा (Lymphoma): लसीका ग्रंथियों और प्रतिरक्षा प्रणाली में।
- मायलोमा (Myeloma): प्लाज़्मा कोशिकाओं में।
- मस्तिष्क या स्पाइनल कैंसर: दिमाग या रीढ़ की हड्डी में।
कैंसर के कारण (Common Causes)
- अनुवांशिक बदलाव (Genetic mutations)
- धूम्रपान और तंबाकू का सेवन
- अत्यधिक शराब या रेडिएशन का संपर्क
- हानिकारक रसायनों का संपर्क (जैसे एस्बेस्टस, पेंट, धुआं)
- वायरस संक्रमण – HPV, Hepatitis B/C
- गलत खानपान, मोटापा और प्रोसेस्ड फूड
- तनाव और निष्क्रिय जीवनशैली
- परिवार में कैंसर का इतिहास
कैंसर के लक्षण (Symptoms)
- शरीर में असामान्य गाँठ या सूजन
- बिना वजह वज़न घटना या बढ़ना
- लगातार थकान और कमजोरी
- बिना कारण दर्द जो लंबे समय तक बना रहे
- त्वचा का रंग या तिल का आकार बदलना
- खाँसी या साँस लेने में कठिनाई
- अनियमित रक्तस्राव या डिस्चार्ज
- घाव जो ठीक नहीं हो रहे हों
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण (Ayurvedic Perspective)
आयुर्वेद के अनुसार, कैंसर जैसी बीमारियाँ शरीर में जमा हुए विष (आम), दोष असंतुलन, और मानसिक तनाव से जुड़ी होती हैं। इसलिए इसका उपचार केवल ट्यूमर घटाने तक सीमित नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर केंद्रित होता है।
जीवा आयुनिक™ उपचार पद्धति (Jiva Ayunique™ Approach)
- HACCP प्रमाणित औषधियाँ: अश्वगंधा, हल्दी, गुडूची, आँवला जैसी औषधियाँ जो इम्यूनिटी और शुद्धिकरण दोनों को सुधारती हैं।
- पंचकर्म एवं डिटॉक्स थेरेपी: शरीर से विषैले तत्व निकालकर नई ऊर्जा प्रदान करती हैं।
- योग, ध्यान और प्राणायाम: तनाव कम करते हैं और मानसिक शांति लाते हैं।
- आहार-दिनचर्या सलाह: रोगी की प्रकृति और रोग की अवस्था के अनुसार विशिष्ट आहार योजना।
कैंसर के लिए आयुर्वेदिक औषधियाँ (Ayurvedic Medicines for Cancer)
- अश्वगंधा: तनाव घटाती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है।
- हल्दी (Curcumin): सूजन कम करती है और कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रोकती है।
- गुडूची (Giloy): शरीर को डिटॉक्स कर प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करती है।
- आँवला: एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कोशिकाओं को सुरक्षित रखता है।
- कालमेघ: विषहर और इम्यूनिटी-बूस्टर गुणों वाला हर्ब।
- लहसुन: कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सहायक।
- तुलसी: शरीर को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाती है और ऊर्जा बढ़ाती है।
जीवनशैली और आहार सुझाव (Lifestyle & Diet Tips)
- धूम्रपान, शराब और प्रोसेस्ड फूड से दूरी रखें।
- सात्विक आहार लें — हरी सब्ज़ियाँ, फल, जौ, मूंग और हल्का खाना।
- रोज़ाना योग, ध्यान और प्राणायाम करें।
- तनाव कम करें और नींद पूरी लें।
- त्रिफला, हल्दी और गिलोय को दिनचर्या में शामिल करें।
आज ही अपने इलाज की शुरुआत करें
अगर आप या आपका कोई प्रियजन कैंसर से जूझ रहा है, तो आयुर्वेदिक चिकित्सा एक सुरक्षित और समग्र विकल्प हो सकता है। जीवा आयुर्वेद का उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा तीनों स्तरों पर स्वास्थ्य बहाल करना है — ताकि इलाज केवल रोग मिटाने का नहीं, बल्कि जीवन को पुनर्जीवित करने का हो।
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FAQs
In Ayurveda, heartburn often has a link with an aggravated Pitta dosha that could be a result of several factors, such as consumption of hot food, an irregular dietary.
Yes, Ayurvedic treatment for acid reflux aims to balance the Pitta dosha through dietary changes, herbal medicines, lifestyle modifications, and Panchakarma therapies, in particular, that are personalised according to one’s Prakriti and, so, give long-lasting relief.
Yes, lifestyle modifications such as following regular timings for meals should be maintained; light, cool foods must be consumed during meal times, while stress also has to be dealt with efficiently so as to reduce problems related to acid reflux or GERD at an early stage.
Yes, certain herbs like Amla, Liquorice Root, and Shatavari are useful in cooling and calming down the digestive tract and controlling acid reflux symptoms.
Ayurveda advises against eating hot, spicy, fried foods, which aggravate Pitta. Instead, go for cold, soothing foods like coconut water, cucumbers, melons etc.
Improvement varies depending on the individual Prakriti type and severity of the condition. Many patients experience perceptible benefits within a three-month time span of consistent intake of ayurvedic medicines and following the suggested recommendations.
Though manageable through proper care, failure to address it early can lead to more severe complications such as esophagitis and Barrett’s oesophagus.
Yes, emotional distress is thought to significantly disrupt Pitta, leading to symptoms of heartburn
Panchakarma techniques, like Virechana (purification), can be used to cleanse the body of Pitta build-up and relieve acidity.
No, these are individualised based on a person’s Prakriti and imbalances. What may be effective for one person might not be so for another.
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