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क्या तनाव या घबराहट बढ़ते ही Hives flare-up शुरू हो जाता है? मन-पित्त संबंध आयुर्वेद की नज़र से समझें

Information By Dr. Keshav Chauhan

जब Hives बार-बार तनाव या घबराहट के साथ उभरता है, तो आयुर्वेद इसे केवल एक क्षणिक प्रतिक्रिया नहीं मानता। वह इसे जीवनशैली से धीरे-धीरे बन रही एक स्थिति मानता है। बहुत से लोग यह मान लेते हैं कि बस “ज़्यादा सोचने” से दाने निकल आते हैं, लेकिन आयुर्वेद यहाँ एक गहरा सवाल उठाता है, अगर तनाव सभी को होता है, तो Hives कुछ लोगों को ही क्यों होता है? इसका उत्तर शरीर की तैयारी में छिपा होता है।

तनाव अकेला कारण नहीं, वह ट्रिगर है

आयुर्वेद के अनुसार तनाव अपने आप में बीमारी नहीं बनाता, बल्कि वह उस असंतुलन को बाहर लाता है जो पहले से शरीर में मौजूद होता है। जिस शरीर में पित्त पहले से बढ़ा हुआ हो, अग्नि कमजोर हो, रक्त में उष्णता जमा हो और मन लगातार दबाव में हो, वही शरीर तनाव को त्वचा के ज़रिये बाहर निकालता है। इसलिए Hives अचानक नहीं होता। वह पहले से बन रही ज़मीन पर उगता है।

अनियमित दिनचर्या: पित्त को भड़काने वाली सबसे बड़ी आदत

आज की जीवनशैली में दिनचर्या सबसे ज़्यादा बिगड़ी हुई है। देर रात सोना, नींद पूरी न होना, मोबाइल स्क्रीन के साथ जागना और सुबह जल्दी उठकर भागदौड़, ये सब पित्त को उत्तेजित करते हैं। जब व्यक्ति देर रात तक जागता है, तो शरीर की प्राकृतिक शीतलता टूट जाती है। पित्त का समय रात के मध्य होता है। अगर उस समय नींद नहीं मिलती, तो पित्त भीतर ही भीतर गर्मी पैदा करता है।यह गर्मी जब बार-बार जमा होती है, तो त्वचा उसे बाहर निकालने का माध्यम बन जाती है।Hives इसी अंदरूनी गर्मी का बाहरी रूप है।

नींद की कमी और त्वचा का संबंध

बहुत से लोग सोचते हैं कि नींद केवल थकान के लिए ज़रूरी है। आयुर्वेद ऐसा नहीं मानता।नींद शरीर का शीतलन तंत्र है।जब नींद पूरी नहीं होती, तो शरीर ठंडा नहीं हो पाता। रक्त में गर्मी बनी रहती है, त्वचा संवेदनशील हो जाती है और छोटी-सी मानसिक उत्तेजना भी flare-up का कारण बन जाती है।इसलिए जिन लोगों को Hives की समस्या होती है, उनमें अक्सर नींद की गड़बड़ी भी पाई जाती है, चाहे वह कम नींद हो, हल्की नींद हो या बार-बार टूटने वाली नींद।

आहार जो मन-पित्त दोनों को बिगाड़ता है

तनाव में लोग अक्सर अपने भोजन पर ध्यान नहीं देते।या तो वे बहुत कम खाते हैं, या जल्दी-जल्दी कुछ भी खा लेते हैं।आयुर्वेद के अनुसार तनाव के समय लिया गया भोजन सही तरीके से पचता नहीं। यह भोजन रस बनने के बजाय आम बनने लगता है।जब वही भोजन तीखा, तला-भुना, बहुत खट्टा या प्रोसेस्ड हो, तो वह पित्त को और भड़काता है।पित्त बढ़ता है → रक्त गरम होता है → त्वचा प्रतिक्रिया देती है।इस प्रक्रिया में Hives केवल आख़िरी कड़ी है।

ठंडा खाने के बावजूद जलन क्यों होती है

कई लोग कहते हैं, “मैं तो ठंडा खाता हूँ, फिर भी जलन और दाने हो जाते हैं।”आयुर्वेद यहाँ स्पष्ट करता है कि केवल भोजन का तापमान नहीं, उसकी पाचन-योग्यता महत्वपूर्ण है।अगर अग्नि कमजोर है, तो ठंडा भोजन और भी अधिक आम बना सकता है।यह आम रक्त में जाकर त्वचा पर असर डालता है।इसलिए केवल ठंडा या गर्म देखना पर्याप्त नहीं, बल्कि भोजन अग्नि के अनुसार होना चाहिए।

क्यों कुछ लोगों में Hives लंबे समय तक बना रहता है

जब Hives बार-बार तनाव के साथ उभरता है और महीनों या वर्षों तक बना रहता है, तब आयुर्वेद इसे chronic अवस्था मानता है।इस अवस्था में समस्या केवल पित्त तक सीमित नहीं रहती। वात भी इसमें शामिल हो जाता है।वात की वजह से flare-ups अचानक आते हैं, जगह बदलते हैं और अनिश्चित हो जाते हैं।कभी गर्दन पर, कभी चेहरे पर, कभी पेट पर, यह अनिश्चितता वात का लक्षण है।और जब वात-पित्त दोनों बिगड़ते हैं, तब रोग जल्दी ठीक नहीं होता।

मन की आदतें जो flare-ups को बुलाती हैं

कुछ लोग स्वभाव से ही ज़्यादा सोचने वाले होते हैं। हर बात को दिल पर लेने वाले, हर परिस्थिति को लेकर बेचैन रहने वाले।आयुर्वेद इसे “राजसिक मन” की स्थिति मानता है।राजसिक मन पित्त को जल्दी उत्तेजित करता है।जब ऐसा मन लंबे समय तक बिना विश्राम के चलता है, तब शरीर एक सीमा के बाद प्रतिक्रिया देता है।Hives उसी प्रतिक्रिया का एक माध्यम बन जाता है।

क्यों flare-up अक्सर शाम या रात में बढ़ता है

बहुत से लोग यह अनुभव करते हैं कि Hives दिन में कम और शाम या रात में ज़्यादा होता है।आयुर्वेद के अनुसार शाम का समय वात-पित्त दोनों का होता है।दिन भर की थकान, तनाव और अनियमित भोजन मिलकर इस समय शरीर को अधिक संवेदनशील बना देते हैं। इसलिए flare-ups का समय भी रोग की प्रकृति को दर्शाता है।

क्यों केवल बाहरी उपचार पर्याप्त नहीं होता

जब समस्या भीतर मन और दोषों से जुड़ी हो, तब केवल क्रीम या एंटी-एलर्जी दवा स्थायी समाधान नहीं दे सकती।वे केवल त्वचा की प्रतिक्रिया को दबाती हैं।आयुर्वेद मानता है कि जब तक भीतर की गर्मी, आम और मानसिक दबाव बाहर निकलने का रास्ता खोजते रहेंगे, तब तक त्वचा उनका माध्यम बनी रहेगी।

यह समझ क्यों ज़रूरी है

तनाव से होने वाले Hives को अगर केवल “एलर्जी” मान लिया जाए, तो रोग का आधा सच ही समझा जाता है।आयुर्वेद पूरा सच देखने को कहता है- मन, अग्नि, दोष और त्वचा का संयुक्त चित्र।जब यह समझ बनती है, तभी उपचार सही दिशा में जाता है।जब यह स्पष्ट हो जाता है कि Hives केवल त्वचा की बीमारी नहीं, बल्कि मन और शरीर के असंतुलन का परिणाम है, तब उपचार का दृष्टिकोण भी बदल जाता है। आयुर्वेद यहीं से आधुनिक सोच से अलग रास्ता अपनाता है। वह पूछता है- “दाने क्यों निकल रहे हैं?” न कि केवल- “दाने कैसे दबाए जाएँ?” तनाव से जुड़े Hives में यह प्रश्न सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

आयुर्वेद में उपचार की शुरुआत लक्षण से नहीं, कारण से होती है

आयुर्वेद का मूल सिद्धांत है कि शरीर कभी बिना कारण प्रतिक्रिया नहीं करता। अगर त्वचा बार-बार flare-up दिखा रही है, तो इसका अर्थ है कि भीतर कोई ऐसी प्रक्रिया चल रही है जिसे अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।तनाव, चिंता और घबराहट जब लंबे समय तक बनी रहती है, तो वे पित्त को उत्तेजित करती हैं। यह उत्तेजित पित्त रक्त में गर्मी पैदा करता है। वही गर्म रक्त त्वचा के माध्यम से बाहर निकलने की कोशिश करता है।आयुर्वेद इसी बिंदु पर हस्तक्षेप करता है-  त्वचा को नहीं, बल्कि उस अंदरूनी गर्मी और मानसिक दबाव को शांत करने की दिशा में।

मन को शांत किए बिना त्वचा शांत नहीं होती

तनाव से जुड़ा Hives यह साफ़ बताता है कि मन की भूमिका कितनी गहरी है।जब मन लगातार बेचैन रहता है, तो शरीर विश्राम की अवस्था में जा ही नहीं पाता।आयुर्वेद में इसे “मनोज व्याधि से उत्पन्न शारीरिक लक्षण” माना गया है।इसका अर्थ है कि यदि मन को लगातार उत्तेजना मिलती रही, तो कोई भी बाहरी उपचार स्थायी नहीं हो सकता।इसलिए Hives के उपचार में मन को स्थिर करना उतना ही ज़रूरी है जितना पित्त को शांत करना।

पित्त शमन: त्वचा की जलन कम होने की पहली शर्त

पित्त जब शांत होता है, तभी त्वचा की जलन और लालिमा कम होती है।लेकिन आयुर्वेद यह नहीं मानता कि पित्त केवल दवाओं से शांत किया जाए।पित्त को शांत करने के लिए जीवन की गति को धीमा करना पड़ता है।
तेज़ निर्णय, तेज़ प्रतिक्रियाएँ, तेज़ दिनचर्या, ये सभी पित्त को बढ़ाते हैं। जब व्यक्ति धीरे-धीरे जीना सीखता है, समय पर भोजन करता है, पर्याप्त विश्राम देता है, तब पित्त अपने आप संतुलन की ओर लौटने लगता है।

क्यों ठंडक देना ही पर्याप्त नहीं

अक्सर Hives में लोग ठंडी चीज़ों की ओर भागते हैं, बर्फ, ठंडे पेय, बार-बार ठंडा पानी।आयुर्वेद यहाँ सावधान करता है।अगर भीतर अग्नि कमजोर है, तो बाहरी ठंडक पित्त को अस्थायी रूप से दबा सकती है, लेकिन समस्या को जड़ से नहीं सुलझाती।वास्तविक समाधान तब आता है, जब पित्त शांत भी हो और अग्नि भी स्थिर रहे।

आहार: जो मन और पित्त दोनों को सहारा दे

तनाव से जुड़े Hives में आहार केवल पेट भरने का साधन नहीं होता।वह मन को स्थिर करने का भी माध्यम बनता है।बहुत भारी, बहुत तीखा, बहुत खट्टा या बहुत प्रोसेस्ड भोजन मन और पित्त दोनों को उत्तेजित करता है।
वहीं हल्का, सादा और समय पर लिया गया भोजन शरीर को सुरक्षा का संकेत देता है।जब शरीर को यह संकेत मिलता है कि अब कोई आपात स्थिति नहीं है, तब Hives की तीव्रता अपने आप कम होने लगती है।

दिनचर्या: शरीर को भरोसा देना

तनाव में रहने वाला शरीर हमेशा सतर्क रहता है।उसे लगता है कि खतरा अभी टला नहीं है।आयुर्वेद में नियमित दिनचर्या शरीर को यह भरोसा देती है कि अब सब सुरक्षित है।नियमित सोना, नियमित जागना, एक निश्चित समय पर भोजन और शौच, ये सभी शरीर को स्थिरता का अनुभव कराते हैं।यही स्थिरता Hives flare-ups को रोकने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है।

शरीर से अधिक, मन को विश्राम चाहिए

कई लोग सोचते हैं कि अगर शरीर थका नहीं है, तो विश्राम की ज़रूरत नहीं।लेकिन तनावजन्य Hives में मन सबसे अधिक थका हुआ होता है।मन को विश्राम देने का अर्थ है- हर विचार पर तुरंत प्रतिक्रिया न देना,
हर परिस्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश न करना।जब मन को थोड़ी ढील मिलती है, तो पित्त स्वतः शांत होने लगता है।

क्यों आयुर्वेद patience सिखाता है

Hives में बहुत से लोग जल्दी परिणाम चाहते हैं।वे चाहते हैं कि दाने तुरंत गायब हो जाएँ।आयुर्वेद यहाँ धैर्य सिखाता है।क्योंकि जो समस्या महीनों या वर्षों में बनी है, वह कुछ दिनों में पूरी तरह समाप्त नहीं होती।लेकिन जब कारण सही दिशा में सुधरने लगते हैं, तब flare-ups की आवृत्ति और तीव्रता धीरे-धीरे कम होने लगती है।

निष्कर्ष

तनाव या घबराहट के साथ Hives का flare-up होना शरीर की एक गहरी भाषा है।यह भाषा कहती है कि अब मन और पित्त दोनों संतुलन से बाहर हैं।आयुर्वेद इस भाषा को दबाने के बजाय समझने की सलाह देता है।
जब मन को शांति मिलती है, अग्नि स्थिर होती है और पित्त संतुलित होता है, तब त्वचा को चीखने की ज़रूरत नहीं पड़ती। Hives तब बीमारी नहीं रह जाता, बल्कि एक चेतावनी बनकर रह जाता है- जिसे समझ लिया जाए, तो जीवन की दिशा बदली जा सकती है।

FAQs

  1. क्या तनाव से होने वाला Hives अपने आप ठीक हो सकता है?
    अगर तनाव अस्थायी हो और शरीर का संतुलन मजबूत हो, तो Hives अपने आप शांत हो सकता है। लेकिन लंबे समय के तनाव में देखभाल ज़रूरी होती है।
  2. क्या हर बार Hives का कारण एलर्जी ही होता है?
    नहीं। आयुर्वेद मानता है कि कई मामलों में Hives का कारण मानसिक और आंतरिक असंतुलन होता है, न कि बाहरी एलर्जी।
  3. क्यों Hives बार-बार लौट आता है?
    क्योंकि मूल कारण- तनाव, पित्त असंतुलन या कमजोर अग्नि- ठीक नहीं हुआ होता।
  4. क्या केवल दवा से Hives पूरी तरह ठीक हो सकता है?
    दवा राहत दे सकती है, लेकिन स्थायी समाधान के लिए जीवनशैली और मानसिक संतुलन आवश्यक है।
  5. क्या तनाव कम होने से flare-ups भी कम होते हैं?
    हाँ। जब मन शांत होता है, तो शरीर को प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत नहीं पड़ती, और Hives की आवृत्ति घटने लगती है।



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