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क्या मल त्याग के दौरान हल्का खून आना हमेशा Piles नहीं—Fissure भी हो सकता है?

Information By Dr. Keshav Chauhan

अक्सर जब कोई व्यक्ति शौच के दौरान हल्का-सा खून देखता है, तो मन में सबसे पहला विचार यही आता है कि उसे बवासीर हो गई है। डर, झिझक और गलत जानकारी के कारण लोग बिना पूरी समझ के खुद ही निष्कर्ष निकाल लेते हैं। कई बार यह डर इतना बढ़ जाता है कि व्यक्ति किसी से बात करने से भी कतराने लगता है। लेकिन सच्चाई यह है कि मल त्याग के दौरान खून आना हर बार Piles का संकेत नहीं होता। कई मामलों में यह Anal fissure की शुरुआती अवस्था भी हो सकती है, जिसे सही समय पर समझ लिया जाए तो बड़ी परेशानी से बचा जा सकता है।

आयुर्वेद मानता है कि शरीर कभी भी अचानक गंभीर बीमारी नहीं बनाता। हर रोग पहले सूक्ष्म संकेत देता है। खून की कुछ बूँदें, हल्की जलन या शौच के समय चुभन—ये सब उसी चेतावनी का हिस्सा होते हैं। समस्या तब शुरू होती है जब हम इन संकेतों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं या गलत नाम देकर टाल देते हैं।

हल्का खून दिखना: डर का नहीं, समझ का विषय

बहुत से लोग बताते हैं कि उन्हें शौच के समय दर्द नहीं होता, बस टॉयलेट पेपर पर या मल के ऊपर हल्का-सा ताज़ा लाल खून दिख जाता है। ऐसे में भ्रम और बढ़ जाता है। लोग सोचते हैं कि अगर दर्द नहीं है, तो शायद यह गंभीर बात नहीं है। लेकिन आयुर्वेदिक दृष्टि से देखा जाए, तो दर्द का न होना बीमारी के न होने की गारंटी नहीं देता। Fissure की शुरुआती अवस्था में खून आ सकता है, लेकिन दर्द हल्का या कभी-कभी बिल्कुल नहीं भी होता। यही कारण है कि लोग इसे सामान्य समझ लेते हैं। जबकि Piles और fissure दोनों में खून आने का कारण अलग-अलग होता है, और पहचान न होने पर उपचार भी गलत दिशा में चला जाता है।

Piles और Fissure: दिखता एक-सा, लेकिन होता अलग

Piles यानी बवासीर और Anal fissure अक्सर एक-दूसरे से भ्रमित कर दिए जाते हैं, क्योंकि दोनों में ही मल त्याग के दौरान खून आ सकता है। लेकिन इनके पीछे की प्रक्रिया और शरीर की प्रतिक्रिया अलग होती है। Piles में गुदा मार्ग के भीतर या बाहर नसों में सूजन आ जाती है। यह सूजन धीरे-धीरे बढ़ती है और मल त्याग के समय खून निकल सकता है। कई बार दर्द नहीं होता, सिर्फ खून दिखाई देता है। वहीं fissure में गुदा मार्ग की त्वचा में कट या दरार बनती है। यह कट शुरुआत में बहुत छोटा होता है, लेकिन वहीं से जलन और खून की शुरुआत हो जाती है। आयुर्वेद मानता है कि fissure एक “घाव” की तरह होता है, जबकि piles एक “सूजन” की अवस्था है। यही मूल अंतर आगे चलकर उपचार की दिशा तय करता है।

Anal fissure की शुरुआत कैसे होती है?

Anal fissure कभी भी अचानक पूरी तरह विकसित होकर सामने नहीं आता। इसकी शुरुआत बहुत साधारण होती है। शुरुआत में गुदा के पास हल्की-सी दरार, त्वचा का खिंचाव या मामूली कट जैसा एहसास होता है। शौच के समय हल्की जलन महसूस होती है, जिसे लोग अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

इस अवस्था में दर्द इतना तीव्र नहीं होता कि व्यक्ति तुरंत डॉक्टर के पास जाए। कुछ लोग सोचते हैं कि शायद पानी कम पी लिया, या खाना ठीक से नहीं पचा। यही सोच आगे चलकर fissure को गहरा बना देती है। आयुर्वेद इसे “पूर्वरूप” अवस्था मानता है, यानी बीमारी आने से पहले का संकेत। अगर इस समय ध्यान दिया जाए, तो fissure बनने से रोका जा सकता है।

कब्ज़: fissure का सबसे बड़ा आधार

कब्ज़ को अक्सर लोग एक सामान्य पाचन समस्या मानते हैं, लेकिन आयुर्वेद इसे कई रोगों की जड़ मानता है। जब मल लंबे समय तक आंतों में रुका रहता है, तो वह सूखने लगता है। सूखा मल कठोर हो जाता है और शौच के समय गुदा मार्ग पर अधिक दबाव डालता है। बार-बार कठोर मल निकलने से गुदा की त्वचा अपनी लचक खो देती है। इसी अवस्था में त्वचा में हल्की दरार बनती है। यदि कब्ज़ बनी रहती है, तो यही दरार धीरे-धीरे गहरी होती जाती है और fissure का रूप ले लेती है। इसलिए आयुर्वेद में fissure के उपचार की शुरुआत हमेशा कब्ज़ सुधारने से होती है, न कि केवल बाहर की दवा से।

आयुर्वेदिक दृष्टि से खून क्यों आता है?

आयुर्वेद के अनुसार जब वात दोष बढ़ता है, तो शरीर में शुष्कता बढ़ने लगती है। यह शुष्कता आंतों और त्वचा दोनों को प्रभावित करती है। गुदा मार्ग की त्वचा स्वभाव से ही संवेदनशील होती है। वात बढ़ने पर यह और अधिक रूखी हो जाती है। जब रूखी त्वचा पर बार-बार दबाव पड़ता है, तो उसमें दरार बनना स्वाभाविक है। यही दरार खून का कारण बनती है। यह खून आमतौर पर ताज़ा और चमकीला लाल होता है, क्योंकि यह सतही घाव से आता है। अगर इस अवस्था में पित्त दोष भी बढ़ जाए, तो जलन और दर्द अधिक महसूस होने लगता है।

रोज़मर्रा की आदतें कैसे fissure को जन्म देती हैं?

आज की जीवनशैली fissure जैसी समस्याओं को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभा रही है। लंबे समय तक बैठकर काम करना, पानी कम पीना, देर रात खाना, फाइबर की कमी और शौच की इच्छा को दबाना, ये सभी आदतें कब्ज़ को जन्म देती हैं। आयुर्वेद मानता है कि जब व्यक्ति प्राकृतिक वेगों को रोकता है, तो वात दोष असंतुलित हो जाता है। यही असंतुलन fissure जैसी समस्याओं का आधार बनता है। गुदा के पास बनने वाली हल्की दरार शरीर का वही संकेत है, जो बताता है कि अब दिनचर्या सुधारने की ज़रूरत है।

कब यह समझें कि यह Piles नहीं, Fissure हो सकता है?

अगर मल त्याग के दौरान:

  • खून ताज़ा लाल हो
  •  शौच के समय या बाद में हल्की जलन हो
  •  गुदा के पास खिंचाव या कट जैसा एहसास हो
  • कब्ज़ बार-बार रहती हो

तो यह केवल piles मान लेना सही नहीं है। यह fissure की ओर इशारा कर सकता है, खासकर शुरुआती अवस्था में।

आयुर्वेदिक दृष्टि से गहराई से समझें

जब मल त्याग के दौरान खून दिखाई देता है, तो सबसे बड़ी समस्या खून नहीं होती, बल्कि उसकी गलत पहचान होती है। अधिकतर लोग बिना किसी जाँच या समझ के यह मान लेते हैं कि उन्हें piles है। कुछ लोग इंटरनेट पर पढ़े अधूरे लक्षणों के आधार पर खुद ही दवाइयाँ शुरू कर देते हैं। लेकिन आयुर्वेदिक दृष्टि से देखा जाए, तो piles और fissure दो अलग-अलग अवस्थाएँ हैं, जिनका कारण, प्रकृति और उपचार तीनों अलग होते हैं। यदि इनका अंतर समय रहते न समझा जाए, तो समस्या लंबी और जटिल बन सकती है।

खून का रंग और मात्रा क्या संकेत देती है?

खून का रंग और मात्रा दोनों ही बीमारी की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। fissure में खून आमतौर पर चमकीला लाल होता है और मात्रा कम होती है। यह खून मल के ऊपर या टॉयलेट पेपर पर दिखाई देता है। कारण यह है कि fissure सतही घाव होता है और खून सीधे त्वचा की दरार से आता है। Piles में भी खून लाल हो सकता है, लेकिन कई बार उसकी मात्रा अधिक होती है। कुछ मामलों में खून बिना दर्द के निकलता है और व्यक्ति को केवल खून दिखाई देता है, कोई जलन या कट जैसा एहसास नहीं होता। यही कारण है कि लोग fissure को piles समझ लेते हैं और गलत उपचार शुरू कर देते हैं। आयुर्वेद मानता है कि खून के साथ अगर जलन, चुभन और खिंचाव का एहसास हो, तो fissure की संभावना अधिक होती है।

दर्द का पैटर्न: सबसे अहम अंतर

दर्द का तरीका और समय दोनों ही piles और fissure में अलग होते हैं। fissure में दर्द आमतौर पर शौच के समय शुरू होता है और शौच के बाद भी कुछ समय तक बना रह सकता है। कई लोग बताते हैं कि शौच के बाद बैठना या चलना तक मुश्किल हो जाता है। यह दर्द तेज़ न भी हो, तो भी जलन या कसाव के रूप में लगातार महसूस हो सकता है। इसके विपरीत piles में दर्द हमेशा ज़रूरी नहीं होता। कई लोगों को piles होने पर कोई दर्द नहीं होता, सिर्फ खून दिखाई देता है। दर्द तब होता है जब piles में सूजन अधिक बढ़ जाए या बाहर की ओर आ जाए। आयुर्वेदिक दृष्टि से fissure में वात दोष की प्रधानता होती है, इसलिए दर्द का अनुभव अधिक होता है। जबकि piles में कफ और पित्त की भूमिका अधिक होती है, इसलिए दर्द हर बार नहीं होता।

गुदा के पास महसूस होने वाला बदलाव क्या बताता है?

fissure में अक्सर व्यक्ति को गुदा के पास त्वचा खिंचती हुई, कट जैसी या जलती हुई महसूस होती है। कभी-कभी शौच के बाद ऐसा लगता है जैसे वहाँ कोई घाव खुला हुआ है। यह एहसास बार-बार होता है और व्यक्ति को मानसिक रूप से भी परेशान करने लगता है। Piles में यह अनुभूति अलग होती है। कई बार गुदा के पास भारीपन, सूजन या बाहर की ओर कोई उभार महसूस हो सकता है। कुछ लोगों को बैठते समय असहजता होती है, लेकिन कट या जलन जैसी अनुभूति नहीं होती। यह सूक्ष्म अंतर अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, जबकि यही अंतर सही पहचान की कुंजी होता है।

क्यों fissure को अक्सर piles समझ लिया जाता है?

इसका सबसे बड़ा कारण जागरूकता की कमी है। समाज में piles के बारे में अधिक चर्चा होती है, जबकि fissure को लोग कम जानते हैं। दूसरा कारण यह है कि दोनों में खून आने का लक्षण समान दिखता है। तीसरा कारण शर्म और झिझक है। लोग गुदा से जुड़ी समस्या पर खुलकर बात नहीं करना चाहते। वे किसी डॉक्टर से बिना ठीक से बताए बस “खून आ रहा है” कह देते हैं, और सामने वाला भी अक्सर piles मान लेता है। आयुर्वेद मानता है कि जब तक रोग को सही नाम नहीं दिया जाएगा, तब तक सही दिशा में उपचार संभव नहीं है।

समय पर पहचान क्यों जीवन बदल सकती है?

अगर fissure को शुरुआती अवस्था में पहचान लिया जाए, तो इसका उपचार अपेक्षाकृत सरल होता है। सही आहार, पानी की मात्रा, दिनचर्या और आयुर्वेदिक मार्गदर्शन से इसे बिना किसी invasive प्रक्रिया के ठीक किया जा सकता है।

इसके विपरीत, गलत पहचान और लापरवाही fissure को इतना दर्दनाक बना सकती है कि व्यक्ति शौच से डरने लगे। यह डर कब्ज़ को और बढ़ाता है और समस्या एक दुष्चक्र में फँस जाती है।

आयुर्वेद में Fissure को कैसे देखा जाता है?

आयुर्वेदिक ग्रंथों में Anal fissure को “परिकर्तिका” के नाम से जाना जाता है। यह शब्द अपने आप में बहुत कुछ बताता है। “परिकर्तिका” का अर्थ है—काटने जैसा दर्द या चीरने की अनुभूति। यह नाम इस रोग के अनुभव को स्पष्ट करता है। लेकिन आयुर्वेद यहीं नहीं रुकता। वह यह भी समझाता है कि यह काटने जैसा दर्द क्यों पैदा हो रहा है।

  • वात दोष: वात दोष का स्वभाव रूखा, हल्का और गतिशील होता है। जब वात संतुलित होता है, तो शरीर में गति और लचीलापन बना रहता है। लेकिन जब वात बढ़ जाता है, तो शरीर में शुष्कता बढ़ने लगती है। इसका सबसे पहला असर पाचन तंत्र और मल की प्रकृति पर पड़ता है। वात बढ़ने पर मल सूखा और कठोर हो जाता है। यह कठोर मल शौच के समय गुदा मार्ग पर अत्यधिक दबाव डालता है। गुदा की त्वचा पहले से ही संवेदनशील होती है। जब उस पर बार-बार कठोर मल का दबाव पड़ता है, तो उसकी प्राकृतिक लचक समाप्त होने लगती है। यही अवस्था हल्की दरार को जन्म देती है, जो आगे चलकर fissure बन जाती है। 
  • पित्त दोष: कई लोगों को fissure के साथ तीव्र जलन, जलता हुआ दर्द और कभी-कभी खून भी आता है। यह संकेत देता है कि पित्त दोष भी इस प्रक्रिया में सक्रिय हो गया है। पित्त का स्वभाव उष्ण और तीक्ष्ण होता है। जब पित्त बढ़ता है, तो शरीर में गर्मी और सूजन बढ़ जाती है।आयुर्वेद मानता है कि वात fissure को बनाता है और पित्त उसे दर्दनाक और जलनयुक्त बनाता है।
  • कफ दोष: कफ दोष को अक्सर fissure से सीधे नहीं जोड़ा जाता, लेकिन इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण होता है। कफ का स्वभाव भारी, स्थिर और मंद होता है। जब कफ बढ़ता है, तो शरीर में सुस्ती, आलस्य और पाचन की मंदता आ जाती है।
  • आम: आयुर्वेद में “आम” की अवधारणा बहुत महत्वपूर्ण है। आम का अर्थ है—अधपचा, विषैला पदार्थ जो कमजोर पाचन के कारण शरीर में जमा हो जाता है। जब पाचन अग्नि कमजोर होती है, तो भोजन ठीक से नहीं पचता और आम बनता है। इसलिए आयुर्वेद fissure के उपचार में केवल स्थानीय मलहम पर नहीं, बल्कि पाचन सुधारने और आम निकालने पर भी ज़ोर देता है।

निष्कर्ष 

Anal fissure शरीर की एक गहरी चेतावनी है। यह बताता है कि पाचन, दोष-संतुलन और जीवनशैली तीनों में कहीं न कहीं गड़बड़ी हो चुकी है। इसे केवल स्थानीय समस्या मानकर नजरअंदाज़ करना या गलत पहचान करना आगे चलकर गंभीर पीड़ा का कारण बन सकता है।

आयुर्वेद हमें यह सिखाता है कि शरीर के संकेतों को समय रहते समझा जाए। हल्की दरार, जलन या खून—ये डरने के नहीं, बल्कि समझने के संकेत हैं। जब सही समय पर वात शांत किया जाए, पाचन सुधारा जाए और जीवनशैली संतुलित की जाए, तो fissure जैसी समस्या को जड़ से शांत किया जा सकता है।

FAQs

  1. क्या केवल कब्ज़ की वजह से ही fissure बार-बार हो सकता है?
    अधिकांश मामलों में हाँ। आयुर्वेद के अनुसार लगातार बनी रहने वाली कब्ज़ fissure की सबसे मज़बूत जड़ होती है। कठोर और सूखा मल हर बार गुदा मार्ग की त्वचा पर दबाव डालता है, जिससे पुराना fissure दोबारा खुल जाता है।
  2. अगर fissure भर गया हो, फिर भी कब्ज़ रहे तो क्या समस्या लौट सकती है?
    हाँ। fissure का घाव भर जाना स्थायी समाधान नहीं है। अगर कब्ज़ बनी रहती है, तो वही जगह दोबारा फट सकती है। इसलिए आयुर्वेद में घाव भरने से ज़्यादा ज़रूरी कब्ज़ को जड़ से सुधारना माना जाता है।
  3. आयुर्वेद में कब्ज़ को केवल पेट की समस्या क्यों नहीं माना जाता?
    आयुर्वेद के अनुसार कब्ज़ वात दोष के असंतुलन का संकेत है। यह केवल मल रुकने की समस्या नहीं, बल्कि पाचन अग्नि, दिनचर्या, मानसिक स्थिति और शरीर की शुष्कता से जुड़ी हुई अवस्था है।
  4. क्या रोज़ शौच जाना फिर भी कब्ज़ कहलाता है?
    हाँ। अगर रोज़ शौच के बावजूद मल कठोर हो, ज़ोर लगाना पड़े या पूरी तरह साफ़ होने का अनुभव न हो, तो आयुर्वेद इसे भी कब्ज़ की श्रेणी में मानता है। ऐसी स्थिति fissure को दोहराने में भूमिका निभा सकती है।
  5. क्या बार-बार fissure होना शरीर की कमज़ोरी का संकेत है?
    यह शरीर की कमज़ोरी से ज़्यादा जीवनशैली के असंतुलन का संकेत है। गलत आहार, अनियमित दिनचर्या और लंबे समय का तनाव शरीर की प्राकृतिक क्रियाओं को प्रभावित करता है, जिससे fissure दोहराता है।



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