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यह तो सब जानते हैं कि पौष्टिक भोजन करना स्वस्थ रहने के लिए बेहद जरूरी है। पर लोगों को यह नहीं पता है कि कितना, कब और कैसे खाया जाना चाहिए। आयुर्वेद इस दिशा में ऐसे 9 सुझाव देता है, जो आपको तंदरुस्त रखने में सहायक हैं:
जब पिछली बार खाये गए भोजन का रस पच जाता है और उससे मिली हुई ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है, तब शरीर को भूख का एहसास होता है।
खाना हमेशा ताज़ा और गरम होना चाहिए। इससे शरीर में स्वस्थ पाचन तंत्र और वात संतुलन बना रहता है। एक स्वस्थ पाचन तंत्र हमारे शरीर को पूरी तरह से संतुलित रखता है।
आपको खाना खाने के आस-पास की जगह का ध्यान रखना भी जरूरी है। यह साफ, सुंदर और शांत होनी चाहिए। अगर मुमकिन हो, तो एकांत में भोजन करें। आयुर्वेद में खड़े होकर खाना खाने को वर्जित बताया गया है, तो आराम से बैठकर और शांत दिमाग से खाने का आनंद लें।
ऐसा करने से गर्मी की उत्पत्ति होती है, इसीलिए आयुर्वेद के अनुसार पैरों को धोकर, आलथी-पालथी मारकर व बैठकर खाना खाना चाहिए।
खाते समय कुछ ऐसा न करें, जिससे ध्यान भटके। बातचीत, फ़ोन का इस्तेमाल, टीवी देखना, या कोई और बिजली से चलने वाला यंत्र इस्तेमाल न करें।
आयुर्वेद ठीक से चबाकर खाना खाने पर जोर देता है। ऐसा करने पर खाने का जूस पूरी तरह से अवशोषित हो जाता है। साथ ही, जरूरत से ज्यादा खाने को भी आयुर्वेद में निषेध बताया गया है। कम खाएँ, पर ठीक से चबाकर खाएँ। ऐसा करने से पेट भी जल्दी भरता है।
एक छोटा कौर अच्छे से चबाया जा सकता है। यह खाने का सही तरीका है। इसे मुँह की लार से ठीक से मिलने दें। ऐसा करने से ही पाचन प्रक्रिया पूरी होगी।
रंग, खुशबू, स्वाद आदि सभी आपको भोजन करने के लिए प्रलोभन देने का कार्य करते हैं। सतर्क रहकर ध्यानपूर्वक खाने से पाचन रस ठीक से बनते हैं और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बर्तन भी साफ़ और सुन्दर होने चाहिए।
समय से खाना खाने से आपकी पूरी सेहत ठीक रहती है। अगर आपके खाने का एक निश्चित समय है, तो उस समय से थोड़ी देर पहले शरीर में पाचन रस पर्याप्त मात्रा में बनना चाहिए। खाना खाने के दौरान पेट का एक तिहाई भाग खाली छोड़ देना चाहिए, ताकि ये पेट में जाकर अच्छे से पच जाये और वात दोष को संतुलित रखा जा सके।
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