भारत में जोड़ों के दर्द और विशेष रूप से घुटने के दर्द (Knee Pain) की समस्या बहुत आम होती जा रही है। हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारत में औसतन 22% से 39% लोगों में ऑस्टियोआर्थराइटिस, यानी जोड़ों के घिसने से होने वाली समस्या पाई जाती है, जिसमें खासकर घुटने के जोड़ प्रभावित होते हैं। यह समस्या उम्र बढ़ने, मोटापे और जीवन शैली जैसे कारणों से बढ़ रही है और इससे चलने-फिरने और रोज़मर्रा की गतिविधियों में कठिनाई होती है।
जब यह दर्द लगातार बना रहे और सिर्फ पेनकिलर या इंजेक्शन से अस्थायी राहत मिले, तो दर्द कम होने की बजाय और बढ़ता जाता है। यह वही स्थिति थी जिससे Sunita Malik जी (62 वर्ष) कई सालों से जूझ रही थीं। हर कुछ दिनों में उन्हें दर्द के लिए दवाइयाँ लेना पड़ता था और इंजेक्शनों से मिलने वाली राहत सिर्फ कुछ ही दिनों की थी। धीरे-धीरे उनका घुटने का कार्टिलेज भी घिसता जा रहा था और मोटापे की वजह से जोड़ पर और दबाव बढ़ रहा था।
अगर आप या आपका कोई जानने वाला भी इसी तरह की समस्या से गुज़र रहा हो, तो यह समझना ज़रूरी है कि यह केवल उम्र या बुढ़ापे की “सामान्य समस्या” नहीं है। यह एक व्यापक स्वास्थ्य मुद्दा है जो भारत में लाखों लोगों को प्रभावित कर रहा है और इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं जिसमें मोटापा, कमज़ोर मांसपेशियाँ, जीवनशैली और लंबे समय तक किए गए गलत इलाज शामिल हैं। जैसा कि Sunita जी के अनुभव से पता चलता है, अगर समस्या को समय रहते समझकर सही दिशा में इलाज शुरू किया जाए तो स्थायी राहत पाई जा सकती है, न कि सिर्फ थोड़े दिनों का आराम।
घुटनों के दर्द और मोटापे का क्या संबंध है, और Sunita Malik जी के मामले में यह कैसे असर डाल रहा था?
घुटनों का जोड़ शरीर का वह हिस्सा है जो पूरे शरीर का भार संभालता है। जब शरीर का वज़न सामान्य से अधिक हो जाता है, तो उसका सीधा असर घुटनों पर पड़ता है। हर कदम के साथ घुटनों पर अतिरिक्त दबाव बनता है, जिससे अंदर मौजूद उपास्थि धीरे-धीरे घिसने लगती है। यही घिसाव समय के साथ दर्द, सूजन और चलने में परेशानी का कारण बनता है।
उपास्थि को आप घुटनों के बीच एक नरम परत की तरह समझ सकते हैं, जो हड्डियों को आपस में रगड़ खाने से बचाती है। जब वज़न ज़्यादा होता है और जोड़ लगातार दबाव में रहते हैं, तो यह परत पतली होने लगती है। परिणामस्वरूप, दर्द बढ़ता जाता है और जोड़ पहले जैसे मज़बूत नहीं रह पाते।
Sunita Malik जी के मामले में भी मोटापे ने घुटनों के दर्द को और गंभीर बना दिया था। शरीर का बढ़ा हुआ वज़न उनके घुटनों पर अतिरिक्त दबाव डाल रहा था, जिससे उपास्थि का घिसाव तेज़ हो गया। यही वजह थी कि केवल बाहरी इलाज से उन्हें स्थायी आराम नहीं मिल पा रहा था। जब तक शरीर के अंदरूनी संतुलन और वज़न पर ध्यान नहीं दिया गया, तब तक दर्द बार-बार लौटता रहा।
अगर आप भी यह महसूस करते हैं कि वज़न बढ़ने के साथ घुटनों का दर्द बढ़ रहा है, तो यह केवल संयोग नहीं है। यह शरीर का संकेत है कि अब जड़ से समस्या को समझने और सही दिशा में कदम उठाने की ज़रूरत है।
बार-बार दर्द निवारक दवाएँ और इंजेक्शन लेने से घुटनों के दर्द मे राहत क्यों टिक नहीं पाती?
दर्द निवारक दवाएँ और इंजेक्शन अक्सर तुरंत आराम देते हैं, लेकिन यह राहत ज़्यादातर अस्थायी होती है। ये उपाय दर्द के कारण को ठीक नहीं करते, बल्कि केवल कुछ समय के लिए दर्द को दबा देते हैं। जैसे ही दवा का असर खत्म होता है, दर्द फिर से उभर आता है।
अक्सर यह देखा जाता है कि 10–15 दिनों के लिए आराम मिलता है और फिर वही चक्र दोहराया जाता है। बार-बार दवाएँ लेने से शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगता है। पाचन पर असर पड़ता है, थकान बढ़ती है और कभी-कभी अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ भी सामने आने लगती हैं।
सुनीता मलिक जी का अनुभव भी यही रहा। उन्हें हर कुछ दिनों में दवाएँ और इंजेक्शन लेने पड़ते थे। शुरुआत में उन्हें लगता था कि यही एकमात्र रास्ता है, लेकिन समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि यह राहत टिकाऊ नहीं है। उल्टा, उनका पाचन भी बिगड़ने लगा और शरीर पहले से ज़्यादा थका हुआ रहने लगा।
अगर आप भी इसी स्थिति से गुज़र रहे हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि लगातार दवाओं पर निर्भर रहना समाधान नहीं है। जब तक दर्द की जड़ तक पहुँचकर पूरे शरीर को संतुलित नहीं किया जाता, तब तक स्थायी आराम मिलना मुश्किल हो जाता है। यही वह मोड़ होता है, जहाँ सही समय पर लिया गया निर्णय आपकी आगे की ज़िंदगी को आसान बना सकता है।
जब घुटनों की उपास्थि (cartilage) घिसने लगे, तब शरीर क्या संकेत देता है?
घुटनों की उपास्थि (cartilage) जब धीरे-धीरे घिसने लगती है, तो शरीर पहले ही कई संकेत देने लगता है। शुरुआत में ये संकेत हल्के होते हैं और अक्सर लोग इन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं। सुबह उठते समय घुटनों में जकड़न, थोड़ी देर चलने पर दर्द या बैठकर उठते समय असहजता—ये सब शुरुआती लक्षण होते हैं। कई लोग सोचते हैं कि यह उम्र बढ़ने के कारण हो रहा है और कुछ समय में अपने आप ठीक हो जाएगा।
समय के साथ जब घिसाव बढ़ता है, तो लक्षण भी साफ़ और परेशान करने वाले हो जाते हैं। घुटनों में सूजन रहने लगती है, चलने के दौरान डर बना रहता है कि कहीं पैर साथ न छोड़ दे। सीढ़ियाँ चढ़ना-उतरना मुश्किल लगने लगता है और ज़मीन पर बैठने का तो सवाल ही नहीं उठता। कई बार दर्द इतना बढ़ जाता है कि आप चलने से पहले ही मन में डर महसूस करने लगते हैं।
Sunita Malik जी के साथ भी यही स्थिति थी। उनके घुटनों की उपास्थि घिस चुकी थी, जिसकी वजह से उन्हें हर कुछ दिनों में तेज़ दर्द का सामना करना पड़ता था। चिकित्सकीय जाँच में यह साफ़ हो गया था कि समस्या केवल सतही नहीं है, बल्कि जोड़ के अंदर तक असर डाल चुकी है। यही कारण था कि उन्हें मिलने वाली राहत टिक नहीं पा रही थी।
अगर आप भी यह महसूस कर रहे हैं कि दर्द के साथ-साथ डर और असहजता बढ़ती जा रही है, तो यह शरीर का स्पष्ट संकेत है कि अब केवल दर्द दबाने से काम नहीं चलेगा। सही समय पर इन संकेतों को समझना आगे की परेशानी को बढ़ने से रोक सकता है।
जीवा आयुर्वेद में सुनीता मलिक जी का उपचार कैसे शुरू हुआ?
जब सुनीता मलिक जी जीवा आयुर्वेद पहुँचीं, तब उनका मुख्य उद्देश्य केवल दर्द से राहत पाना नहीं था, बल्कि एक ऐसा समाधान ढूँढना था जो लंबे समय तक काम करे। यहाँ उनका परामर्श डॉक्टर आदर्श श्रीवास्तव से हुआ, जहाँ उनकी पूरी स्थिति को ध्यान से समझा गया।
परामर्श के दौरान केवल घुटनों के दर्द पर नहीं, बल्कि उनके बढ़े हुए वज़न, पाचन की स्थिति और दिनचर्या पर भी चर्चा की गई। यह समझा गया कि जब तक वज़न और अंदरूनी असंतुलन पर काम नहीं किया जाएगा, तब तक घुटनों को स्थायी राहत मिलना मुश्किल है।
इस व्यक्तिगत मूल्यांकन ने Sunita जी में भरोसा जगाया। उन्हें यह एहसास हुआ कि यहाँ इलाज केवल लक्षणों को दबाने के लिए नहीं, बल्कि जड़ से समस्या को समझकर किया जा रहा है। इसी भरोसे के साथ उनका उपचार शुरू हुआ, जिसमें शरीर और मन—दोनों को संतुलित करने पर ध्यान दिया गया।
अगर आप भी ऐसे इलाज की तलाश में हैं जहाँ आपकी पूरी स्थिति को समझा जाए, न कि सिर्फ़ दर्द को, तो यह तरीका आपके लिए भी एक नई दिशा खोल सकता है।
पंचकर्म उपचारों ने घुटनों के दर्द में कैसे काम किया?
घुटनों के दर्द में जब केवल दवाओं से राहत नहीं मिलती, तब शरीर को गहराई से आराम और पोषण देने की ज़रूरत होती है। पंचकर्म उपचार इसी सोच पर आधारित होते हैं। इनका उद्देश्य केवल दर्द कम करना नहीं, बल्कि जोड़ों को मज़बूती देना और शरीर के अंदर जमे असंतुलन को धीरे-धीरे बाहर निकालना होता है।
सुनीता मलिक जी के उपचार में पंचकर्म की कुछ विशेष प्रक्रियाएँ अपनाई गईं।
- जानु पिचु: घुटनों पर औषधीय तेल रखा गया, जिससे जोड़ को सीधी गर्माहट और पोषण मिला। इससे जकड़न कम हुई और चलने में धीरे-धीरे सहजता आने लगी।
- जानु बस्ति: घुटनों के चारों ओर औषधीय तेल से घेरा बनाकर उसे कुछ समय तक रखा गया। इससे घिस चुकी उपास्थि को पोषण मिला और अंदरूनी सूजन शांत हुई।
- अभ्यंग: पूरे शरीर पर तेल से मालिश की गई, जिससे जकड़न में कमी आई। रक्त संचार बेहतर हुआ और लंबे समय से बनी अकड़न धीरे-धीरे ढीली पड़ने लगी।
- शिरोधारा: माथे पर लगातार औषधीय द्रव डाला गया, जिससे मन शांत हुआ। मानसिक तनाव कम होने के साथ नींद और ऊर्जा स्तर में भी सुधार महसूस हुआ।
अगर आप भी लंबे समय से दर्द से जूझ रहे हैं, तो ऐसे उपचार शरीर को धीरे-धीरे ठीक होने का मौका देते हैं, बिना उसे थकाए या कमज़ोर किए।
घुटनों के दर्द के मरीज़ों के लिए सर्जरी से पहले आयुर्वेद क्यों एक विकल्प हो सकता है?
जब घुटनों का दर्द बढ़ जाता है, तो अक्सर सर्जरी की सलाह दी जाती है। लेकिन हर स्थिति में सर्जरी ही एकमात्र रास्ता नहीं होती। आयुर्वेद का दृष्टिकोण यह है कि पहले शरीर को प्राकृतिक तरीकों से संतुलन में लाने की कोशिश की जानी चाहिए।
सुनीता मलिक जी भी सर्जरी की सलाह से चिंतित थीं। लेकिन जीवा आयुर्वेद में मिले उपचार ने उन्हें यह भरोसा दिया कि बिना चीरे-कटाव के भी राहत संभव है। पंचकर्म, सही आहार और व्यक्तिगत देखभाल ने उन्हें वह आराम दिया जो उन्हें लंबे समय से नहीं मिला था।
आयुर्वेदिक उपचार का एक बड़ा लाभ यह है कि यह शरीर को धीरे-धीरे मज़बूत करता है और राहत लंबे समय तक बनी रहती है। केवल दर्द कम होना ही लक्ष्य नहीं होता, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी को फिर से सहज बनाना भी उतना ही ज़रूरी होता है।
अगर आप भी घुटनों के दर्द से परेशान हैं और सर्जरी को लेकर असमंजस में हैं, तो Sunita जी का अनुभव आपको सोचने पर मजबूर कर सकता है। सही समय पर लिया गया निर्णय आपको दर्द के साथ जीने से राहत दिला सकता है।
निष्कर्ष
घुटनों का दर्द जब सालों तक साथ बना रहे, तो अक्सर लोग इसे अपनी किस्मत मान लेते हैं। लेकिन सुनीता मलिक जी की यात्रा यह दिखाती है कि सही दिशा में लिया गया इलाज सोच से कहीं ज़्यादा बदलाव ला सकता है। पेनकिलर और इंजेक्शन से मिलने वाला थोड़े दिनों का आराम उनकी समस्या का समाधान नहीं था। जब शरीर को भीतर से समझा गया, घुटनों के साथ पाचन और वज़न पर भी ध्यान दिया गया, तब जाकर दर्द में वास्तविक कमी महसूस हुई।
उनका अनुभव यह बताता है कि घुटनों का दर्द केवल उम्र या कमज़ोरी का नाम नहीं है। यह शरीर का संकेत होता है कि कहीं संतुलन बिगड़ चुका है। जब इस संकेत को समय रहते समझा जाए, तो चलना-फिरना फिर से सहज हो सकता है और ज़िंदगी की रफ्तार वापस आ सकती है।
अगर आप भी घुटनों के दर्द या इससे जुड़ी किसी अन्य समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज ही जीवा के प्रमाणित डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श के लिए संपर्क करें। डायल करें: 0129-4264323
FAQs
- क्या घुटनों का पुराना दर्द बिना सर्जरी के ठीक हो सकता है?
हाँ, अगर समस्या शुरुआती या मध्यम स्तर की है, तो आयुर्वेदिक उपचार, पंचकर्म और सही आहार से आपको बिना सर्जरी के आराम मिल सकता है।
- क्या बार-बार पेनकिलर लेना घुटनों के लिए नुकसानदायक होता है?
लगातार पेनकिलर लेने से दर्द दबता है, कारण नहीं मिटता। इससे पाचन कमज़ोर हो सकता है और शरीर में और समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
- मोटापा घुटनों के दर्द को कैसे बढ़ाता है?
जब वज़न ज़्यादा होता है, तो घुटनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इससे उपास्थि जल्दी घिसती है और दर्द, सूजन बढ़ने लगती है।
- पंचकर्म उपचार से घुटनों के दर्द में कितना समय लगता है?
यह आपकी समस्या की गंभीरता पर निर्भर करता है। कई लोगों को कुछ ही सिटिंग्स में फर्क महसूस होने लगता है और सुधार धीरे-धीरे बढ़ता है।
- क्या आहार बदलने से सच में घुटनों के दर्द में फर्क पड़ता है?
हाँ, जब आप हल्का और पचने में आसान भोजन लेते हैं, तो पाचन सुधरता है और उसका सीधा असर जोड़ों की सूजन और दर्द पर पड़ता है।
- क्या आयुर्वेदिक इलाज सभी उम्र के लोगों के लिए सुरक्षित है?
आमतौर पर हाँ। आयुर्वेद में उपचार व्यक्ति की उम्र, शरीर और समस्या के अनुसार तय किया जाता है, जिससे यह सुरक्षित और प्रभावी रहता है।
- कब आपको घुटनों के दर्द के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर से मिलना चाहिए?
अगर दर्द लंबे समय से बना है, चलने में डर लगता है या दवाओं से आराम नहीं मिल रहा, तो आपको समय पर आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
- क्या घुटनों के दर्द में चलना या हल्की गतिविधि नुकसान पहुँचाती है?
नहीं, बिल्कुल नहीं। सही मार्गदर्शन में हल्की गतिविधि और सीमित चलना घुटनों को जकड़ने से बचाता है और धीरे-धीरे मजबूती देने में मदद करता है।

























































































