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सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज – जड़ी-बूटियों से स्किन को बनाएं हेल्दी

Information By Dr. Keshav Chauhan

सोरायसिस एक ऐसी त्वचा समस्या है जो एक बार शुरू होने के बाद लंबे समय तक साथ रहती है और कई बार मौसम, तनाव या पाचन कमजोरी के साथ बढ़ती हुई दिखाई देती है। कई लोग इसे सिर्फ सूखी स्किन या एलर्जी समझ लेते हैं, पर असल में यह त्वचा की गहराई में होने वाला विकार है जो धीरे-धीरे मोटी परतें बनाता है और स्किन को खुरदुरा कर देता है। यह हालत कभी अचानक शांत हो जाती है तो कभी अचानक भड़क भी जाती है, जिससे व्यक्ति मानसिक रूप से भी परेशान हो सकता है।

आधुनिक चिकित्सा इसे एक क्रॉनिक और ऑटोइम्यून प्रवृत्ति वाला रोग मानती है जिसमें शरीर की रक्षा प्रणाली स्किन पर गलत ढंग से प्रतिक्रिया देती है। लेकिन आयुर्वेद इसे केवल त्वचा का रोग नहीं मानता। आयुर्वेद इसकी जड़ को शरीर के भीतर चल रहे दोष असंतुलन, पाचन कमजोरी और रक्त के अशुद्ध होने से जोड़ता है। यही कारण है कि सोरायसिस में सिर्फ क्रीम लगाने से पर्याप्त सुधार बहुत कम लोगों में आता है।

जब आप सोरायसिस से जूझते हैं तो स्किन के अलावा आपकी दिनचर्या, मन, पाचन और आपकी सोच तक प्रभावित होने लगती है। यह रोग कई बार उस समय उभरता है जब आप मानसिक रूप से थके हुए हों, नींद बिगड़ चुकी हो या पाचन ठीक से काम न कर रहा हो। इसलिए आयुर्वेद इसे सम्पूर्ण शरीर का विकार मानकर उपचार करता है और शरीर को भीतर से संतुलित करने की दिशा में काम करता है।

सोरायसिस क्या है?

सोरायसिस में त्वचा की ऊपरी कोशिकाएँ सामान्य से कई गुना तेजी से बनती हैं। जब शरीर इन कोशिकाओं को उतनी ही तेजी से निकाल नहीं पाता तब स्किन पर सफेद परतें, लाल धब्बे और खुजली बनने लगती है। यह किसी एक जगह तक सीमित नहीं रहता। सिर, कोहनी, घुटने, पीठ और कभी-कभी पूरे शरीर पर फैल सकता है।

सोरायसिस की कुछ आम पहचान

  • स्किन पर मोटी परतें
  • लाल, खुरदुरे धब्बे
  • खुजली
  • जलन
  • त्वचा का फटना
  • स्किन का सूख जाना
  • मौसम के साथ लक्षणों का बढ़ना
  • तनाव में flare-up

आयुर्वेद के अनुसार ये सभी लक्षण बताते हैं कि रक्त और त्वचा से जुड़े दोष संतुलन में नहीं हैं।

आयुर्वेद सोरायसिस को कैसे समझता है?

आयुर्वेद में सोरायसिस की तुलना कदाचित ककुभ, एककुष्ठ, किटिभ, और त्वक-दोष विकारों से की जाती है। यह रोग शरीर के भीतर जमा हुए दोषों की अधिकता का परिणाम होता है। इसमें वायु, पित्त और कफ तीनों ही किसी न किसी स्तर पर असंतुलित रहते हैं पर मुख्यतः पित्त और कफ की वृद्धि अधिक देखी जाती है।

जब पित्त बढ़ता है तब त्वचा में जलन, लालपन और गर्माहट होती है। जब कफ बढ़ता है तब परतें मोटी होती जाती हैं। और वायु की वृद्धि से सूखापन और खुजली बढ़ती है।

इसलिये आयुर्वेदिक उपचार एक समय में सिर्फ एक लक्षण नहीं देखता बल्कि पूरा शरीर, जीवनशैली और पाचन अग्नि की स्थिति समझकर चलाया जाता है।

सोरायसिस क्यों होता है?

आधुनिक विज्ञान इसे प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ी मानता है और कहता है कि शरीर की रक्षा प्रणाली त्वचा की कोशिकाओं पर अत्यधिक प्रतिक्रिया देती है।

आयुर्वेद कहता है कि यह विकार तब शुरू होता है जब पाचन अग्नि कमजोर पड़ती है और शरीर में अधपका भोजन (आम) जमा होने लगता है। यही आम रक्त और त्वचा में जाकर विकार उत्पन्न करता है।

सोरायसिस को बढ़ाने वाले कारण

  • पित्त बढ़ाने वाला भोजन
  • तैलीय और भारी भोजन
  • लगातार तनाव
  • नींद की कमी
  • देर रात तक जागना
  • मौसम परिवर्तन
  • बार-बार एंटीबायोटिक्स का उपयोग
  • अनियमित आहार

ये कारण शरीर की अग्नि को कमजोर कर देते हैं जिससे दोष असंतुलन बढ़ता जाता है।

सोरायसिस के मुख्य लक्षण

सोरायसिस के लक्षण हर व्यक्ति में अलग हो सकते हैं। कुछ लोगों को केवल हल्की खुजली होती है जबकि कुछ के शरीर पर बड़े-बड़े धब्बे बन जाते हैं। यह बीमारी शारीरिक ही नहीं मानसिक बोझ भी बढ़ा देती है।

सामान्य लक्षण

  • लाल धब्बे
  • सफेद परतें
  • लगातार खुजली
  • स्किन फटना
  • जलन
  • बालों में स्केल
  • जोड़ों में खिंचाव
  • तनाव बढ़ना

जब ये लक्षण बार-बार आते हैं तब शरीर साफ संकेत दे रहा होता है कि भीतर कुछ संतुलन में नहीं है।

सोरायसिस में त्वचा को भीतर से शांत करने वाली औषधियाँ

सोरायसिस में सबसे ज़रूरी चीज़ है शरीर को भीतर से शांत करना और रक्त को शुद्ध करना। सिर्फ ऊपर से कोई क्रीम लगाने से थोड़ी देर राहत मिल सकती है लेकिन असल सुधार तब होता है जब आप रक्त, पाचन और त्वचा तीनों स्तरों पर काम करते हैं। यही काम जड़ी-बूटियाँ स्वाभाविक ढंग से करती हैं।

सोरायसिस में उपयोगी प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ

1. नीम

नीम को रक्त शुद्ध करने वाली सबसे प्रभावी औषधियों में गिना जाता है। यह स्किन की गर्मी, जलन और लालपन को शांत करता है। सोरायसिस में लगातार खुजली कम करने में भी नीम काफी सहायक होता है।

2. हरिद्रा

हल्दी में प्राकृतिक शोधन शक्ति होती है और यह पित्त का संतुलन करती है। सोरायसिस में त्वचा की सूजन कम करने में हरिद्रा बहुत उपयोगी है। कई रोगियों में इसका सेवन धीरे-धीरे परतों को पतला करने में मदद करता है।

3. खदिर

खदिर को त्वचा रोगों की औषधि कहा गया है। यह रक्त को हल्का और स्वच्छ बनाता है। खुजली, जलन और भारीपन कम करता है।

4. गुग्गुलु

सोरायसिस में बाधक दोष इकट्ठा होता है। गुग्गुलु इन्हें हटाने, रक्त प्रवाह सुधारने और सूजन कम करने में मदद करता है। यह लंबे समय तक लिया जाने वाला एक उत्कृष्ट औषधीय घटक है।

5. मंजिष्ठा

मंजिष्ठा रक्त को गर्मी और अशुद्धियों से मुक्त करती है। यह त्वचा को भीतर से पोषण देती है जिससे आप flare-up से धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं।

6. तुलसी

तुलसी मन, शरीर और पाचन तीनों को स्थिर करती है। तनाव कम होने से सोरायसिस का flare-up भी कम होता है।

7. आवला

आवला ओजस बढ़ाने वाला और पित्त शांत करने वाला फल है। यह त्वचा की चमक वापस लाने और फटने से रोकने में सहायक है।

सोरायसिस में आयुर्वेदिक योग

आयुर्वेद केवल जड़ी-बूटियों पर नहीं रुकता, बल्कि कुछ विशेष योगों का उपयोग करके रोग की जड़ को संभालता है। इन योगों का उद्देश्य आम साफ करना, रक्त की गर्मी कम करना और त्वचा के ऊतकों को स्थिर करना है।

उपयोगी योग

  • नीम-खदिर योग
  • गुग्गुलु आधारित योग
  • पंचतिक्त घृत
  • त्रिफला चूर्ण
  • रक्त शोधन काढ़े
  • हरिद्रा खंड

इनका प्रभाव धीरे-धीरे होता है पर यह गहराई तक काम करते हैं। इन योगों का चयन आयुर्वेदिक चिकित्सक आपकी प्रकृति और लक्षण देखकर तय करते हैं।

सोरायसिस में क्या खाएँ ताकि स्किन साफ और शांत रहे?

सोरायसिस में आहार का पालन उपचार जितना ही महत्वपूर्ण है। आप जो खाते हैं वह सीधे आपकी त्वचा की स्थिति पर असर डालता है।

सोरायसिस में लाभदायक भोजन

  • खिचड़ी
  • मूंग दाल
  • जौ
  • दही रहित कढ़ी
  • घी की थोड़ी मात्रा
  • भाप में पकी सब्ज़ियाँ
  • लौकी
  • तोरई
  • कच्चा नारियल
  • आवला
  • नारियल पानी

ये भोजन अग्नि को हल्का और शांत रखते हैं जिससे आम बनने की प्रवृत्ति कम होती है और त्वचा साफ होने लगती है।

सोरायसिस में किन खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए?

कुछ खाद्य पदार्थ सोरायसिस को बहुत तेजी से बढ़ाते हैं क्योंकि वे पित्त, कफ और वायु तीनों को असंतुलित करते हैं।

बचें

  • तला हुआ भोजन
  • बहुत मसालेदार भोजन
  • खट्टे फल
  • दही
  • आइसक्रीम
  • लाल मिर्च
  • बैंगन
  • कचौरी
  • बहुत गरम भोजन
  • बहुत ठंडा भोजन

ये सभी खाद्य पदार्थ शरीर की गर्मी बढ़ाते हैं, त्वचा विकार को भड़काते हैं और flare-up को तेज़ करते हैं।

सोरायसिस में दिनचर्या

सोरायसिस में शरीर की आंतरिक व्यवस्था बहुत जल्दी प्रभावित होती है। मन, पाचन, नींद, तनाव—इन सभी का सीधा असर स्किन पर पड़ता है। इसलिए दिनचर्या को संतुलित रखना अनिवार्य है।

दिनचर्या सुझाव

  • हर दिन एक ही समय पर उठें
  • सूरज की हल्की रोशनी लें
  • बहुत ठंडा पानी न पिएँ
  • नियमित ध्यान
  • हल्का योग
  • पसीना बहाने वाली भारी गतिविधियाँ कम करें
  • त्वचा पर रसायनों वाले सौंदर्य उत्पाद कम करें
  • दोपहर का भोजन भरपेट और रात का हल्का रखें
  • पर्याप्त नींद लें

इन आदतों से शरीर का स्वाभाविक संतुलन लौटता है और flare-up कम होते हैं।

सोरायसिस में उपयोगी पंचकर्म – शरीर की गहराई से शुद्धि

सोरायसिस में कब और कौन-सा पंचकर्म करना है यह व्यक्ति की प्रकृति, रोग की अवधि और वर्तमान स्थिति को देखकर ही तय किया जाता है। परंतु कुछ पंचकर्म ऐसे हैं जो सोरायसिस में काफी प्रभावी माने जाते हैं।

उपयोगी पंचकर्म

1. विरेचन

यह पित्त की अधिकता कम करता है और रक्त की गर्मी शांत करता है।

2. रक्तमोक्षण (चयनित रोगियों में)

रक्त की अशुद्धियों को कम करके त्वचा के विकारों को शांत करने में सहायक होता है।
हर व्यक्ति इस प्रक्रिया के लिये उपयुक्त नहीं होता।

3. अभ्यंग + स्वेदन

यह शरीर में संचित कफ और वायु को शांत करता है और त्वचा की गहराई में पोषण बढ़ाता है।

4. शिरोधारा

तनाव सोरायसिस का बड़ा कारण है। शिरोधारा तनाव और मानसिक अशांति कम करता है जिससे flare-up नियंत्रित होते हैं।

5. तिक्त घृत पान

यह लिवर और रक्त की गर्मी कम करके त्वचा को शांत करता है। विशेषज्ञ की निगरानी में ही दिया जाता है।

सोरायसिस के घरेलू उपाय

सोरायसिस में घरेलू देखभाल बहुत मदद करती है क्योंकि यह रोग केवल बाहरी परत नहीं बल्कि शरीर की गहराई से जुड़ा होता है। ये उपाय flare-up को शांत करते हैं और त्वचा को धीरे-धीरे पोषण देते हैं। यह सुधार धीमा होता है पर टिकाऊ होता है।

उपयोगी घरेलू उपाय

  • एलोवेरा का ताजा गूदा
  • नारियल तेल
  • नीम का काढ़ा
  • आवला का रस
  • ओट्स बाथ
  • हल्दी वाला हल्का गर्म दूध
  • कच्चा नारियल

ये उपाय त्वचा की गर्मी कम करते हैं, परतों की मोटाई घटाते हैं और आपकी त्वचा को शांत करते हैं। एलोवेरा और नारियल तेल दोनों ही स्किन पर सुकून देते हैं और खुजली को कम करते हैं।

किन आदतों से सोरायसिस बढ़ता है?

सोरायसिस में कुछ आदतें ऐसी होती हैं जो बीमारी को अचानक तेज कर देती हैं। कई रोगी खुद नहीं समझ पाते कि कौन सी चीज़ उन्हें नुकसान पहुँचा रही है।

बचें

  • बहुत तनाव
  • देर रात सोना
  • बहुत गर्म पानी से नहाना
  • सीधा धूप में घंटों रहना
  • धूम्रपान
  • शराब
  • रसायनों वाली क्रीम
  • बहुत तला हुआ भोजन
  • मांसाहार
  • अचानक भारी व्यायाम

ये आदतें पित्त और कफ दोनों को बढ़ाती हैं जिससे त्वचा परतें तेजी से बनने लगती हैं।

मन और त्वचा का संबंध – क्यों तनाव सोरायसिस को भड़काता है

सोरायसिस मन और शरीर दोनों का रोग है। आप जब तनाव में होते हैं तो आपके भीतर की ऊर्जा असंतुलित हो जाती है और शरीर में वायु बढ़ने लगती है। यही वायु त्वचा को सुखाती है और परतों का निर्माण तेज कर देती है। कई रोगी बताते हैं कि जब वे बहुत परेशान होते हैं तभी flare-up अचानक बढ़ता है।

आयुर्वेद मन को एक स्वतंत्र संचालक मानता है। यदि मन अस्थिर रहेगा तो उपचार भी धीमा होगा। इसलिए सोरायसिस के उपचार में ध्यान, प्राणायाम और शांत दिनचर्या उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी जड़ी-बूटियाँ या पंचकर्म।

सोरायसिस में नींद क्यों इतनी महत्वपूर्ण है?

सोरायसिस रात में अधिक भड़कता है क्योंकि रात का समय शरीर के पुनर्निर्माण के लिये होता है। जब आप देर रात सोते हैं या बीच-बीच में जागते रहते हैं तब आपकी त्वचा के ऊतक ठीक से नहीं बन पाते। परिणाम:

  • सुबह flare-up
  • त्वचा ज्यादा खुरदुरी
  • अधिक खुजली

जब आप समय पर सोते हैं और शरीर को पर्याप्त नींद देते हैं तब त्वचा के भीतर पुनर्गठन की प्रक्रिया तेज होती है और परतें धीरे-धीरे कम बनने लगती हैं।

निष्कर्ष

सोरायसिस एक साधारण त्वचा रोग नहीं बल्कि शरीर का एक गहरा असंतुलन है जिसमें पित्त, कफ, वायु और पाचन तीनों शामिल होते हैं। आधुनिक चिकित्सा इसे क्रॉनिक और ऑटोइम्यून प्रकृति का विकार मानती है जबकि आयुर्वेद इसे दोषों की अव्यवस्था, रक्त की अशुद्धि और अग्नि की कमजोरी से जुड़ा विकार मानता है। इसका उपचार केवल बाहरी क्रीम या दवा से पूरा नहीं होता बल्कि शरीर की भीतर की प्रणाली को संतुलित करने से ही सुधार आता है। जब आप आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ, संतुलित भोजन, शांत दिनचर्या और पंचकर्म जैसी प्रक्रियाएँ अपनाते हैं तब त्वचा धीरे-धीरे शांत होती है और flare-up कम हो जाते हैं। सोरायसिस में सुधार समय लेता है पर जब शरीर और मन दोनों संतुलित होते हैं तभी वास्तविक आराम मिलता है और आप अपनी स्किन को स्वस्थ महसूस करने लगते हैं।

अगर आप भी सोरायसिस या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज ही हमारे प्रमाणित जीवा डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श लें। कॉल करें — 0129-4264323

 

FAQs

1. क्या सोरायसिस पूरी तरह ठीक हो सकता है?

सुधार संभव है और flare-up को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिये निरंतर देखभाल और संतुलित दिनचर्या की आवश्यकता होती है।

2. क्या सोरायसिस संक्रामक है?

नहीं। यह किसी को छूने या साथ रहने से नहीं फैलता।

3. क्या सोरायसिस में दही हानिकारक है?

हाँ। दही कफ बढ़ाता है और स्किन परतों को मोटा करता है।

4. क्या नीम रोज़ लेना सही है?

नीम रक्त की गर्मी कम करता है और सोरायसिस में बहुत उपयोगी है, पर यह प्रकृति के अनुसार लिया जाना चाहिए।

5. क्या सोरायसिस में धूप लाभदायक है?

हल्की सुबह की धूप ठीक है लेकिन तेज धूप flare-up बढ़ा सकती है।

 

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