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ऑस्टियोपोरोसिस क्या है और आयुर्वेद इसमें क्या कहता है?
अगर आपकी हड्डियाँ आसानी से टूट रही हैं, पीठ में दर्द रहता है, या उम्र के साथ आपकी ऊंचाई कम हो रही है, तो ये संकेत हो सकते हैं कि आपको ऑस्टियोपोरोसिस हो रहा है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियाँ धीरे-धीरे पतली, कमज़ोर और खोखली (porous) हो जाती हैं। इसका सबसे बड़ा खतरा यही है कि आपको इसका पता तब चलता है जब कोई हड्डी टूटती है।
हमारे शरीर की हड्डियाँ लगातार टूटती और बनती रहती हैं। लेकिन जब आप उम्रदराज़ हो जाते हैं, या शरीर में कुछ ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, तो नई हड्डियाँ उतनी जल्दी नहीं बनती जितनी पुरानी टूटती हैं। इससे आपकी हड्डियाँ कमज़ोर हो जाती हैं। महिलाओं में यह परेशानी अधिक पाई जाती है, खासकर मेनोपॉज़ के बाद।
आयुर्वेद के अनुसार, यह समस्या अस्थि क्षय कहलाती है यानी हड्डियों का धीरे-धीरे क्षय (degeneration) होना। आयुर्वेद मानता है कि जब आपके शरीर में वात दोष बढ़ जाता है, तो वह हड्डियों और मांसपेशियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। वात का स्वभाव सूखा, हल्का और चलायमान होता है, और यही हड्डियों को खोखला करने में बड़ी भूमिका निभाता है।
आयुर्वेद यह भी मानता है कि जब अस्थि धातु (bone tissue) की पोषण शक्ति कम हो जाती है यानि शरीर सही ढंग से भोजन को हड्डियों तक पोषण पहुँचाने में असमर्थ हो जाता है तब हड्डियाँ कमज़ोर होने लगती हैं।
अगर आप समय रहते इस समस्या को पहचान लें और सही इलाज करें, तो ऑस्टियोपोरोसिस को रोका भी जा सकता है और धीरे-धीरे ठीक भी किया जा सकता है। और इसमें आयुर्वेद आपकी बहुत मदद कर सकता है, वो भी बिना किसी साइड इफेक्ट के।
ऑस्टियोपोरोसिस के अलग-अलग चरण
ऑस्टियोपोरोसिस धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है। इसका असर अचानक नहीं होता, बल्कि समय के साथ हड्डियाँ कमज़ोर होती जाती हैं।
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1. सामान्य (Normal Stage)
इस चरण में आपकी हड्डियाँ पूरी तरह स्वस्थ होती हैं। बोन डेंसिटी (bone density) सामान्य होती है और कोई कमज़ोरी महसूस नहीं होती। लेकिन अगर आप कैल्शियम और विटामिन D की कमी वाला खाना खाते हैं या व्यायाम नहीं करते, तो हड्डियों की ताकत धीरे-धीरे घटने लगती है।
2. ऑस्टियोपेनिया (Osteopenia)
यह पहला संकेत होता है कि आपकी हड्डियाँ कमज़ोर हो रही हैं। इस चरण में बोन डेंसिटी थोड़ी कम हो जाती है, लेकिन इतनी नहीं कि हड्डियाँ आसानी से टूटें। यह वह समय होता है जब आप सतर्क हो जाएँ और जीवनशैली में बदलाव करें। अगर अभी ध्यान दें, तो ऑस्टियोपोरोसिस से बचा जा सकता है।
3. ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)
अब हड्डियाँ काफ़ी कमज़ोर हो चुकी होती हैं। छोटी सी चोट, गिरना या अचानक झटका लगने से हड्डियाँ टूट सकती हैं। पीठ में दर्द, कमर झुकना और कद कम होना जैसे लक्षण नज़र आने लगते हैं।
4. गंभीर ऑस्टियोपोरोसिस (Severe Osteoporosis)
इस चरण में हड्डियाँ बहुत ज़्यादा खोखली हो जाती हैं और फ्रैक्चर बार-बार हो सकता है, खासकर कूल्हे, रीढ़ और कलाई में। सामान्य कामकाज भी मुश्किल हो जाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस के सामान्य कारण
अगर आप सोच रहे हैं कि आपकी हड्डियाँ कमज़ोर क्यों हो रही हैं, तो इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं। कुछ कारण आपकी आदतों से जुड़े होते हैं, जबकि कुछ आपके शरीर या उम्र से। अगर आप इन कारणों को समय रहते समझ लें, तो आप हड्डियों की सेहत को बेहतर बना सकते हैं और ऑस्टियोपोरोसिस से बच सकते हैं।
आइए जानते हैं ऑस्टियोपोरोसिस के कुछ आम कारण:
- कैल्शियम और विटामिन D की कमी: हड्डियों को मज़बूत रखने के लिए कैल्शियम और विटामिन D बहुत ज़रूरी हैं। जब आप लंबे समय तक इन पोषक तत्वों की कमी वाला खाना खाते हैं, तो हड्डियों में कमज़ोरी आने लगती है।
- बढ़ती उम्र: जैसे-जैसे आप उम्रदराज़ होते जाते हैं, आपके शरीर की हड्डियाँ धीरे-धीरे अपनी मज़बूती खोने लगती हैं। 30 साल के बाद हड्डियों की घनता (density) कम होने लगती है।
- महिलाओं में मेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति): महिलाओं में मेनोपॉज़ के बाद एस्ट्रोजन (estrogen) हार्मोन की कमी हो जाती है, जो हड्डियों को कमज़ोर करने का बड़ा कारण बनती है।
- शारीरिक गतिविधि की कमी: अगर आप बहुत ज़्यादा बैठते हैं और व्यायाम नहीं करते, तो आपकी हड्डियों पर दबाव नहीं पड़ता, जिससे वे कमज़ोर होने लगती हैं।
- लंबे समय तक स्टेरॉइड या कुछ दवाओं का सेवन: कुछ दवाएँ जैसे स्टेरॉइड, कैंसर की दवाएँ या थायरॉइड की दवाएँ हड्डियों की ताकत को प्रभावित कर सकती हैं।
- ज़्यादा शराब पीना और धूम्रपान करना: ये आदतें हड्डियों के स्वास्थ्य को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचाती हैं।
- कम वज़न या बहुत पतला शरीर: जिन लोगों का शरीर बहुत पतला होता है या जिनका वज़न कम है, उनके पास हड्डियों के लिए "बफर" नहीं होता, जिससे हड्डियाँ जल्दी कमज़ोर हो सकती हैं।
- पाचन तंत्र की समस्या: अगर आपके शरीर में खाने से पोषक तत्व ठीक से नहीं मिल पाते, जैसे कि सीलिएक (Celiac) या आंतों की सूजन की बीमारी में, तो हड्डियों को ज़रूरी पोषण नहीं मिल पाता।
ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम
कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन पर आपका ज़्यादा नियंत्रण नहीं होता, लेकिन वे आपके ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम बढ़ा सकती हैं। इन पर नज़र रखना ज़रूरी है:
- लिंग (Sex): महिलाएँ, खासकर 50 की उम्र के बाद, इस बीमारी की सबसे ज़्यादा शिकार होती हैं।
- उम्र: जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, आपकी हड्डियों की मज़बूती कम होती जाती है।
- परिवार में इतिहास: अगर आपकी माँ, पिता या किसी करीबी रिश्तेदार को ऑस्टियोपोरोसिस रहा है, तो आपको भी इसका खतरा ज़्यादा हो सकता है।
शरीर की बनावट: अगर आपका शरीर छोटा या दुबला-पतला है, तो हड्डियों में कम घनता होती है, जिससे वे जल्दी कमज़ोर हो सकती हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण और संकेत
ऑस्टियोपोरोसिस को अक्सर “साइलेंट रोग” कहा जाता है, क्योंकि इसकी शुरुआत में कोई खास लक्षण नज़र नहीं आते। लेकिन जब हड्डियों की कमज़ोरी बढ़ने लगती है, तो शरीर छोटे-छोटे संकेत देने लगता है। अगर आप इन संकेतों को समय रहते पहचान लें, तो हड्डियों को और कमज़ोर होने से बचाया जा सकता है।
नीचे दिए गए लक्षणों पर अगर आप ध्यान दें, तो यह ऑस्टियोपोरोसिस का इशारा हो सकता है:
- अचानक हड्डी टूट जाना: मामूली गिरावट या हल्के झटके से भी हड्डी टूट जाए, तो यह हड्डियों की कमज़ोरी का साफ संकेत है।
- कद में कमी आना: अगर आप महसूस करें कि आपकी ऊंचाई पहले से कम हो गई है, तो यह रीढ़ की हड्डियों के दबने या टूटने की वजह से हो सकता है।
- पीठ या कमर में लगातार दर्द: खासकर अगर यह दर्द बिना किसी चोट या कारण के हो रहा हो, तो रीढ़ की हड्डियों में कमज़ोरी हो सकती है।
- झुक कर चलना या मुद्रा बदलना: अगर आपकी पीठ गोल होने लगे या शरीर का संतुलन पहले जैसा न रहे, तो यह हड्डियों की स्थिति खराब होने का संकेत है।
- साँस लेने में हल्की तकलीफ़: अगर रीढ़ की हड्डियाँ सिकुड़ जाएँ, तो छाती का स्थान कम हो जाता है, जिससे फेफड़े पूरी तरह फैल नहीं पाते और साँस लेने में परेशानी हो सकती है।
- जोड़ों में अकड़न या कमज़ोरी: अगर आपके जोड़ों में कमज़ोरी या अकड़न बार-बार महसूस होती है, तो यह भी हड्डियों की कमज़ोर हालत को दर्शा सकता है।
Symptoms
अचानक हड्डी टूट जाना
मामूली गिरावट या हल्के झटके से भी हड्डी टूट जाए, तो यह हड्डियों की कमज़ोरी का साफ संकेत है।
कद में कमी आना
अगर आप महसूस करें कि आपकी ऊंचाई पहले से कम हो गई है, तो यह रीढ़ की हड्डियों के दबने या टूटने की वजह से हो सकता है।
पीठ या कमर में लगातार दर्द
खासकर अगर यह दर्द बिना किसी चोट या कारण के हो रहा हो, तो रीढ़ की हड्डियों में कमज़ोरी हो सकती है।
झुक कर चलना या मुद्रा बदलना
अगर आपकी पीठ गोल होने लगे या शरीर का संतुलन पहले जैसा न रहे, तो यह हड्डियों की स्थिति खराब होने का संकेत है।
साँस लेने में हल्की तकलीफ़
अगर रीढ़ की हड्डियाँ सिकुड़ जाएँ, तो छाती का स्थान कम हो जाता है, जिससे फेफड़े पूरी तरह फैल नहीं पाते और साँस लेने में परेशानी हो सकती है।
जोड़ों में अकड़न या कमज़ोरी
अगर आपके जोड़ों में कमज़ोरी या अकड़न बार-बार महसूस होती है, तो यह भी हड्डियों की कमज़ोर हालत को दर्शा सकता है।
जीवा आयुनिक™ इलाज पद्धति – ऑस्टियोपोरोसिस के लिए एक सम्पूर्ण समाधान
जीवा आयुर्वेद में ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज सिर्फ लक्षणों को दबाने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि इसकी जड़ वजह को समझकर इलाज किया जाता है। यहाँ हर व्यक्ति की प्रकृति, जीवनशैली और बीमारी की अवस्था को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत इलाज योजना बनाई जाती है। जड़ी-बूटियों, आयुर्वेदिक थैरेपी, आहार और दिनचर्या के माध्यम से शरीर को भीतर से मज़बूत किया जाता है ताकि हड्डियाँ फिर से ताकतवर बनें और भविष्य में भी सुरक्षित रहें।
जीवा आयुनिक™ इलाज पद्धति के मुख्य सिद्धांत
- आयुर्वेदिक दवाएँ (HACCP प्रमाणित): जीवा में दी जाने वाली दवाएँ खास जड़ी-बूटियों से वैज्ञानिक तरीकों से तैयार की जाती हैं। ये दवाएँ शरीर को शुद्ध करने, रोग ठीक करने और मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं।
- योग, ध्यान और मन की शांति: तनाव से राहत पाने और शरीर को भीतर से स्वस्थ रखने के लिए योग, ध्यान और साँसों से जुड़ी तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये आसान लेकिन असरदार तरीके हैं।
- पारंपरिक आयुर्वेदिक इलाज: पंचकर्म, तेल मालिश और शरीर की सफाई करने वाली प्राकृतिक थैरेपीज़ से शरीर के भीतर जमा गंदगी और दोषों को बाहर निकाला जाता है, जिससे शरीर का संतुलन वापस आता है।
- आहार और जीवनशैली पर मार्गदर्शन: आपके शरीर और बीमारी को समझकर वैद्य आपको क्या खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और रोज़मर्रा की आदतों में क्या बदलाव करना चाहिए, इस पर पूरा मार्गदर्शन देते हैं ताकि आप जल्दी स्वस्थ हों और दोबारा बीमार न पड़ें।
ऑस्टियोपोरोसिस में आयुर्वेदिक दवाएँ
अगर आप हड्डियों की कमज़ोरी से परेशान हैं और बार-बार फ्रैक्चर या दर्द का सामना कर रहे हैं, तो आयुर्वेद में कई ऐसी दवाएँ और जड़ी-बूटियाँ हैं जो आपकी हड्डियों को फिर से ताकतवर बना सकती हैं। इन जड़ी-बूटियों का असर न सिर्फ हड्डियों को पोषण देने में होता है, बल्कि सूजन कम करने, दर्द से राहत दिलाने और हड्डी के ऊतकों (tissues) को फिर से बनाने में भी मदद करता है।
आइए जानते हैं ऐसी कुछ प्रभावशाली आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के बारे में जो ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में उपयोगी हैं:
- अश्वगंधा (Ashwagandha/Withania somnifera): यह एक शक्तिशाली रसायन (Rasayana) है जो हड्डियों को मज़बूती देता है, कैल्शियम की कमी को संतुलित करता है और शरीर की थकावट को भी दूर करता है।
- शतावरी (Shatavari/Asparagus racemosus): यह हड्डियों की मोटाई बढ़ाने, हार्मोन संतुलन बनाने और विशेषकर महिलाओं की बोन स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है।
- गुग्गुल (Guggulu/Commiphora mukul): जोड़ों की सूजन को कम करने और हड्डियों की मरम्मत में मददगार एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है।
- आंवला (Amalaki/Emblica officinalis): विटामिन C से भरपूर यह फल हड्डियों में कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ाता है और कोलेजन बनाने में मदद करता है।
- त्रिफला (Triphala): यह तीन फलों (आंवला, हरड़ और बहेड़ा) का मिश्रण है जो पाचन सुधारने के साथ-साथ हड्डियों को मज़बूत करने में भी सहायक है।
- शल्लाकि (Boswellia/Boswellia serrata): यह जोड़ों की सूजन और दर्द में राहत देने के लिए पारंपरिक रूप से इस्तेमाल की जाती रही है।
- हल्दी (Haridra/Curcuma longa): इसमें करक्यूमिन होता है, जो एक शक्तिशाली सूजनरोधी गुण है और हड्डियों में आई सूजन को कम करता है।
- अदरक (Ginger/Zingiber officinale): दर्द और सूजन को कम करने वाली एक प्राकृतिक औषधि, जोड़ों की अकड़न में भी फायदेमंद होती है।
- निर्गुण्डी (Nirgundi/Vitex negundo): यह सूजन कम करने और दर्द से राहत देने में मदद करता है, विशेषकर जोड़ों के मामलों में।
- पुनर्नवा (Punarnava/Boerhavia diffusa): यह शरीर से विषैले तत्वों को निकालता है और सूजन को कम करता है।
- शिलाजीत (Shilajit): यह एक प्राकृतिक खनिज है जो हड्डियों की घनता बढ़ाता है और कमज़ोरी को दूर करता है।
- तिल (Tila/Sesame Seeds): कैल्शियम, मैग्नीशियम और जिंक से भरपूर तिल रोज़मर्रा की हड्डियों की ज़रूरतों को पूरा करता है।
- हड़जोड़ (Asthishrunkhala/Cissus quadrangularis): हड्डी टूटने के बाद उसे जल्दी जोड़ने में यह औषधि बहुत उपयोगी मानी जाती है।
- अर्जुन (Arjuna/Terminalia arjuna): यह कैल्शियम और अन्य खनिजों से भरपूर है, और हड्डियों की मज़बूती के साथ दिल की सेहत के लिए भी फायदेमंद है।
- गुडूची (Guduchi/Tinospora cordifolia): यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और सूजन से होने वाले हड्डियों के नुकसान को रोकता है।
- सहजन (Shigru/Moringa/Moringa oleifera): यह बोन डेंसिटी बढ़ाने और हड्डी बनाने वाले कोशिकाओं (osteoblasts) को सक्रिय करने के लिए जाना जाता है।
इन सभी आयुर्वेदिक औषधियों को यदि जीवा के योग्य वैद्य की देखरेख में सही तरीके से लिया जाए, तो ऑस्टियोपोरोसिस में शानदार लाभ मिल सकता है। इससे न सिर्फ हड्डियाँ मज़बूत होती हैं बल्कि जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाती है।
FAQs
आयुर्वेद में इसका इलाज जड़ी-बूटियों, खानपान में बदलाव और वात दोष को संतुलित करने वाली थैरेपी से होता है। अश्वगंधा, शतावरी, गुग्गुल जैसी औषधियाँ हड्डियों को फिर से मज़बूत बनाती हैं। साथ ही, पंचकर्म और जीवनशैली सुधार से लंबी राहत मिलती है।
अस्थिश्रृंखला (हड़जोड़), अश्वगंधा, तिल, आंवला और शतावरी जैसी औषधियाँ हड्डियों को ताकत देती हैं। इनका नियमित सेवन योग्य वैद्य की सलाह से करने पर हड्डियाँ मज़बूत होती हैं और टूटने का खतरा कम होता है।
तिल, आंवला, शिलाजीत, अर्जुन और मोरिंगा (सहजन) जैसी जड़ी-बूटियों में प्राकृतिक कैल्शियम होता है जो शरीर में आसानी से अवशोषित होता है। ये हड्डियों की मज़बूती के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती हैं।
ताज़ा गाय के दूध में अश्वगंधा या शतावरी चूर्ण मिलाकर पीना फायदेमंद होता है। साथ ही तिल या आंवले का जूस भी हड्डियों को पोषण देता है और कैल्शियम की कमी पूरी करता है।
बहुत ज़्यादा नमक, कैफीन, सॉफ्ट ड्रिंक्स, फास्ट फूड और पैकेज्ड चीज़ें हड्डियों से कैल्शियम छीनती हैं। बहुत ज़्यादा प्रोटीन भी नुकसान कर सकता है। ठंडी, रूखी चीज़ें और वात-वर्धक आहार से बचना चाहिए।
जी हाँ, आयुर्वेद में ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए वात को शांत करने वाली औषधियाँ, अभ्यंग, स्वेदन और बस्ती जैसी थैरेपी दी जाती हैं। यह सूजन और दर्द को कम करके जोड़ो की गति और मज़बूती को बेहतर करती हैं।
नहीं, यह पुरुषों में भी हो सकता है, खासकर 60 साल के बाद। लेकिन महिलाओं में मेनोपॉज़ के कारण हार्मोन में गिरावट जल्दी आती है, जिससे उनका जोखिम ज़्यादा होता है।
हाँ, पंचकर्म में विशेषकर बस्ती और अभ्यंग थैरेपी वात दोष को शांत करती हैं। इससे जोड़ों का दर्द, अकड़न और हड्डियों की कमज़ोरी में राहत मिलती है।
जी हाँ, शुरूआती अवस्था में आप आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों, संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से इसे कंट्रोल में रख सकते हैं। लेकिन लंबे समय के लिए जीवा के आयुर्वेदाचार्य से मार्गदर्शन लेना ज़रूरी है।
बिलकुल। रोज़ाना हल्का ट्रेनिंग, वॉकिंग, सूर्य नमस्कार और योगासन जैसे आसन हड्डियों पर दबाव डालते हैं जिससे उनका घनत्व (density) बढ़ता है। यह ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में मदद करता है।
विटामिन D कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है। सूरज की रोशनी, तिल का तेल और कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ जैसे शिलाजीत इसमें लाभकारी होती हैं। इसकी कमी हड्डियों को कमज़ोर बना सकती है।
हाँ, आंवला में विटामिन C होता है जो कैल्शियम को हड्डियों तक पहुँचाने में मदद करता है। रोज़ आंवला चूर्ण, जूस या कच्चा आंवला खाने से हड्डियों की मज़बूती में सुधार हो सकता है।
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