अगर आपकी त्वचा रोज़ मॉइस्चराइज़र लगाने के बाद भी सूखती रहती है, फटती है या पपड़ी छोड़ती है, तो यह सिर्फ “सूखापन” नहीं होता। कई लोग सालों तक इसे ठंड, पानी बदलने या साबुन की गलती समझते रहते हैं, जबकि असली वजह अंदर ही छिपी रहती है।
सोरायसिस उन समस्याओं में से है, जो शुरू में हल्की लगती है, पर धीरे-धीरे आपकी त्वचा, आराम और आत्मविश्वास—तीनों को प्रभावित करती जाती है। कभी अचानक जलन, कभी रात में बढ़ती खुजली, कभी मोटे पैच… और फिर वही सवाल कि आखिर आपकी त्वचा मानती क्यों नहीं?
इस लेख में आप समझेंगे कि क्यों मॉइस्चराइज़र बार-बार लगाने पर भी राहत नहीं मिलती, सोरायसिस असल में क्या होता है, और आयुर्वेद इसकी जड़ को कैसे समझकर आपको बेहतर महसूस कराता है।
क्या आपकी त्वचा का लगातार फटना और पपड़ी बनना Psoriasis की वजह से है?
अगर आपकी त्वचा बार-बार फट रही है, लाल हो रही है या लगातार पपड़ी की तरह छिल रही है, तो यह सामान्य “सूखी त्वचा” नहीं होती। कई बार इसके पीछे सोरायसिस नाम की एक त्वचा बीमारी होती है। सरल शब्दों में समझें, तो आपके शरीर में त्वचा की कोशिकाएँ एक तय गति से बनती और झड़ती हैं। लेकिन सोरायसिस में यही प्रक्रिया बिगड़ जाती है।
सामान्य स्थिति में त्वचा की एक कोशिका को ऊपर की सतह तक आने और फिर झड़ने में कई दिन लगते हैं। पर सोरायसिस में यह समय बहुत कम हो जाता है और कोशिकाएँ तेज़ी से बनने लगती हैं। जब ये जल्दी-जल्दी बनती हैं, तो आपकी त्वचा उन्हें उतनी जल्दी नहीं झाड़ पाती। नतीजा यह होता है कि ऊपर की सतह पर परतें जमा होने लगती हैं और आपको मोटे, सूखे और पपड़ीदार पैच दिखाई देने लगते हैं।
जब त्वचा की यह परत मोटी हो जाती है, तो वहाँ खिंचाव, फटना, जलन और खुजली महसूस होती है। कई बार पैच लाल हो जाते हैं, हल्का-सा छूने पर भी दर्द जैसा लगता है, और अगर आप अनजाने में इन्हें खरोंच देते हैं, तो खून भी निकल सकता है।
इस तरह, सोरायसिस सिर्फ “सूखापन” नहीं है। यह आपके प्रतिरक्षा-तंत्र से जुड़ी एक ऐसी स्थिति है, जहाँ शरीर खुद-ही त्वचा की परतें ज़रूरत से ज़्यादा तेज़ी से बनाता है। इसलिए साधारण क्रीम या बार-बार मॉइस्चराइज़ करने से राहत कम मिलती है। असली समस्या अंदर की होती है, और त्वचा पर दिख रहा सूखापन उसी का परिणाम होता है।
क्या सूखापन से आगे भी कुछ संकेत हैं जिनसे आप सोरायसिस पहचान सकते हैं?
सोरायसिस के लक्षण हर व्यक्ति में एक जैसे नहीं होते, पर कुछ संकेत अक्सर दिखते हैं। अगर आप अपनी त्वचा पर लगातार ये बदलाव देख रहे हैं, तो इस बीमारी को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं:
- त्वचा पर मोटे, सूखे और उभरे हुए पैच बनना
- सफ़ेद, चाँदी जैसी पपड़ी बनना
- त्वचा का फटना और कभी-कभी हल्का खून आना
- जलन, चुभन और लगातार खुजली
- रात में खुजली बढ़ जाना
- लालिमा और छोटे-छोटे दाने जैसे उभार
- त्वचा का सख्त और कड़ा महसूस होना
यह केवल शरीर की एक जगह तक सीमित नहीं रहता। आप इसे कई हिस्सों में देख सकते हैं:
- स्कैल्प में रूसी जैसी पपड़ी, पर सामान्य रूसी से ज़्यादा मोटी और खुजली वाली
- कोहनी और घुटने, जहाँ दबाव ज़्यादा पड़ता है, वहाँ मोटे पैच बनना
- नाखून मोटे होना, गड्ढे-जैसे निशान, या टूटने लगना
- कमर, पीठ, और कभी-कभी हथेलियों और पैरों में भी पैच दिखना
कभी-कभी यह स्थिति ज़्यादा गंभीर भी हो सकती है। यदि पैच बहुत तेजी से फैलने लगें, त्वचा में लगातार जलन बनी रहे, या नाखून पूरी तरह खराब होने लगें, तो यह गंभीर रूप है और डॉक्टर से तुरंत सलाह लेनी चाहिए।
आपको सोरायसिस होने के असली कारण क्या हैं और flare-up बार-बार क्यों होता है?
आप अक्सर सोचते होंगे कि आपने नया साबुन बदल लिया, नया तेल लगा लिया या मौसम बदल गया — इसलिए आपकी त्वचा बिगड़ रही है। लेकिन सोरायसिस में वजहें इतनी सरल नहीं होतीं। इसके कारण शरीर के अंदर गहरी प्रक्रियाओं से जुड़ते हैं।
सबसे आम कारण ये हैं:
- आनुवंशिक कारण: अगर परिवार में किसी को यह समस्या है, तो आपको भी होने की संभावना बढ़ जाती है।
- प्रतिरक्षा-तंत्र की गड़बड़ी: शरीर का बचाव-तंत्र गलती से त्वचा को “खतरा” समझकर कोशिकाओं को बहुत तेज़ी से बनाने लगता है।
- तनाव: मानसिक तनाव शरीर में रासायनिक बदलाव ला सकता है, जिससे लक्षण अचानक बढ़ जाते हैं।
- संक्रमण: गले का संक्रमण, वायरल बीमारी या किसी चोट के तुरंत बाद भी स्थिति बिगड़ सकती है।
- दवाएँ: कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट से flare-up बढ़ सकता है।
- मौसम: ठंड, शुष्क हवा, धूल या बार-बार नहाना — ये सब सोरायसिस को ज़्यादा परेशान कर सकते हैं।
आपकी हालत बार-बार क्यों बिगड़ती है?
क्योंकि इस बीमारी में “ट्रिगर” होते हैं। यानी कुछ छोटी-छोटी चीज़ें भी आपकी त्वचा को अचानक खराब कर सकती हैं। जैसे:
- बहुत तनाव लेना
- नींद पूरी न होना
- शरीर पर किसी भी तरह की चोट, खरोंच या जलन
- त्वचा का बार-बार सूख जाना
- मौसम में अचानक बदलाव
- शरीर में संक्रमण
- बहुत मसालेदार या असंतुलित भोजन
जब ये कारण बार-बार सक्रिय होते हैं, तो सोरायसिस शांत होने की जगह फिर से भड़क उठता है। यही वजह है कि कई लोग कहते हैं कि उनकी हालत “कभी ठीक होती है, कभी अचानक खराब।”
आयुर्वेद सोरायसिस को कैसे देखता है और इसमें कौन-से दोष सबसे ज़्यादा बिगड़ते हैं?
आयुर्वेद में सोरायसिस को कुष्ठ या कितिभ जैसे नामों से समझाया गया है। यहाँ त्वचा पर दिखने वाली समस्या को केवल “ऊपरी” परेशानी नहीं माना जाता, बल्कि शरीर के भीतर चल रहे असंतुलन का संकेत समझा जाता है।
जब आप लंबे समय तक सूखापन, जलन और मोटी पपड़ी जैसे लक्षण महसूस करते हैं, तो आयुर्वेद इसे त्रिदोष असंतुलन से जोड़कर देखता है। यानी पित्त, वात और कफ — तीनों में से एक या अधिक दोष बिगड़े होते हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में वात और पित्त का असंतुलन प्रमुख होता है।
वात के बिगड़ने से आपकी त्वचा में सूखापन, खिंचाव, फटना और पपड़ी जैसे बदलाव आते हैं। पित्त के बढ़ने से लालिमा, जलन, जलन वाली खुजली और त्वचा की परतों में तेजी से बदलाव होने लगते हैं। कई बार कफ भी शामिल होता है, जिससे त्वचा मोटी और सफ़ेद पपड़ीदार दिखाई देने लगती है।
आयुर्वेद यह भी मानता है कि जब शरीर की अग्नि यानी पाचन-शक्ति कमज़ोर होती है, तो खाना ठीक से नहीं पचता। इससे शरीर में आम यानी अवांछित पदार्थ बनने लगते हैं, जो रक्त में मिलकर रक्तदोष पैदा करते हैं। जब रक्त असंतुलित या दूषित हो जाता है, तो उसका असर सीधे त्वचा पर दिखता है।
यही कारण है कि आप जितना भी मॉइस्चराइज़र लगा लें, आपकी स्थिति में स्थायी फायदा नहीं होता। क्योंकि समस्या त्वचा की सतह पर नहीं, बल्कि अंदर के दोषों और रक्तदोष में होती है। मॉइस्चराइज़र थोड़ी देर के लिए सूखापन कम कर सकता है, पर जड़ समस्या वही रहती है। इसलिए आयुर्वेद में उपचार शुरुआत अंदरूनी असंतुलन को शांत करने से होता है।
आयुर्वेद में सोरायसिस का इलाज कैसे किया जाता है और यह आपकी जड़ समस्या पर कैसे असर करता है?
आयुर्वेद का उपचार इस सोच पर आधारित है कि अगर समस्या भीतर पैदा हुई है, तो समाधान भी भीतर से ही शुरू होना चाहिए। सोरायसिस के लिए आयुर्वेद कोई एक दवा या एक मलहम देकर खत्म नहीं करता, बल्कि आपके शरीर, मन, आहार और जीवनशैली — सबको मिलाकर एक संपूर्ण उपचार दिया जाता है।
सबसे पहला कदम दोषों को शांत करना होता है।
- अगर वात ज़्यादा बढ़ा है, तो तैलीय आहार, गर्म भोजन और शरीर को स्नेह देने वाली विधियाँ अपनाई जाती हैं।
- अगर पित्त प्रधान लक्षण हैं, तो ठंडी प्रकृति के आहार, शांत करने वाले लेप और शरीर की गर्मी को कम करने वाले उपाय दिए जाते हैं।
- अगर कफ बढ़ा है, तो हल्का भोजन, शरीर की सफ़ाई और रक्त को शुद्ध करने वाले कदम ज़रूरी होते हैं।
आयुर्वेद में कई बार पंचकर्म का उपयोग भी किया जाता है ताकि शरीर अंदर से साफ़ हो सके। जब अंदर जमा अवांछित पदार्थ निकलता है, तो त्वचा की हालत में स्वाभाविक सुधार आता है।
इसके साथ आयुर्वेद आपके रोज़मर्रा के खाने पर भी ज़ोर देता है। बहुत मसालेदार, खटाई वाला, तला हुआ या दोहराया हुआ खाना पित्त को बढ़ाकर स्थिति खराब कर सकता है। वहीं हल्का, ताज़ा और संतुलित भोजन अग्नि को सुधारता है और त्वचा को सहज बनाता है।
जीवनशैली भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। तनाव सोरायसिस को तुरंत भड़का सकता है, इसलिए रोज़ थोड़ी देर गहरी साँस लेना, हल्की चाल चलना और पर्याप्त नींद लेना उपचार का हिस्सा माना जाता है।
आयुर्वेद का तरीका बहु-आयामी इसलिए है क्योंकि त्वचा सिर्फ शरीर का एक अंग नहीं, बल्कि शरीर की स्थिति का आईना है। जब शरीर और मन दोनों संतुलित होते हैं, तभी त्वचा शांत और स्वस्थ हो पाती है।
कौन सी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ सोरायसिस में सूखापन, लालिमा और जलन को शांत करती हैं?
आयुर्वेद में कई जड़ी-बूटियाँ हैं जो त्वचा को शांत करती हैं, रक्त को संतुलित करती हैं और अंदरूनी दोषों को सुधारने में मदद करती हैं। इनका उपयोग लंबे समय से किया जा रहा है और सोरायसिस जैसे लक्षणों में इनसे आराम मिलता है।
कुछ मुख्य जड़ी-बूटियाँ इस प्रकार हैं:
- हल्दी: हल्दी अपनी सूजन-रोधी और रक्तशोधक प्रकृति के लिए जानी जाती है। यह त्वचा की लालिमा, जलन और पपड़ी बनने की प्रक्रिया को कम करने में मदद करती है।
- गिलोय: गिलोय शरीर की प्रतिरक्षा-शक्ति को संतुलित करती है और रक्त को शुद्ध करती है। यह त्वचा में हो रही सूजन को भी शांत करने में सहायक होती है।
- एलोवेरा: एलोवेरा ठंडी और शांत प्रकृति की होती है, इसलिए यह त्वचा की जलन और लालिमा को तुरंत आराम देती है। इसकी नमी देने की क्षमता सूखे पैच को भी सहज बनाती है।
- तुलसी: तुलसी प्राकृतिक रूप से सूजन कम करने और संक्रमण को रोकने में मदद करती है। यह त्वचा की सफ़ाई और संतुलन के लिए बेहद लाभकारी है।
- लहसुन: लहसुन रक्त को शुद्ध करता है और अंदरूनी सूजन को कम करता है। इसके लगातार सेवन से त्वचा की परतें शांत होने लगती हैं और पपड़ी कम होने लगती है।
सोरायसिस में आपको रोज़मर्रा की कौन सी आहार और जीवनशैली आदतें अपनानी चाहिए?
सोरायसिस में आप जो खाते हैं और जैसे अपना दिन बिताते हैं, उसका असर सीधे आपकी त्वचा पर पड़ता है। अगर आप रोज़मर्रा में कुछ सरल आदतें अपनाएँ, तो आपकी त्वचा काफी हद तक शांत रह सकती है और flare-up कम हो सकता है।
सबसे पहले बात आहार की करें। आपका भोजन हल्का, ताज़ा और पचने में आसान होना चाहिए। आपके लिए मददगार चीज़ें:
- ताज़ी सब्ज़ियाँ, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ और हल्के मसालों वाला भोजन
- मूंग की दाल, खिचड़ी और सुपाच्य अनाज
- मौसमी फल, खासकर वे जो पित्त शांत करते हैं
- पर्याप्त मात्रा में सादा पानी
वहीं कुछ चीज़ें आपकी त्वचा की स्थिति बिगाड़ सकती हैं, इसलिए इन्हें कम करना ही ठीक है:
- बहुत मसालेदार, तला हुआ और गरम प्रकृति का भोजन
- खटाई वाली चीज़ें जैसे अचार
- अत्यधिक मीठा
- बहुत गाढ़ी दालें और भारी भोजन
- बार-बार चाय-कॉफी लेना
जीवनशैली भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। अगर आप पूरे दिन तनाव में रहते हैं, कम नींद लेते हैं या शरीर को आराम नहीं देते, तो सोरायसिस तुरंत भड़क सकता है। इसलिए कोशिश करें कि आपकी दिनचर्या शांत और संतुलित हो।
- रोज़ एक निश्चित समय पर सोना और उठना
- दिन में कुछ समय खुद के लिए निकालना
- हल्की चाल या हल्का व्यायाम
- गहरी साँसें लेना और तनाव कम करने वाली आदतें अपनाना
मौसम का भी सोरायसिस पर बड़ा असर पड़ता है। ठंड और शुष्क हवा त्वचा को और ज़्यादा सुखा देती है, इसलिए सर्दियों में अपनी त्वचा को ढककर रखें और नहाते समय गुनगुने पानी का ही उपयोग करें। वहीं गर्मी में पसीना बढ़ने से जलन हो सकती है, इसलिए हल्के और ढीले कपड़े पहनें और शरीर को ठंडक देने वाले पेय लें।
क्या घरेलू देखभाल और सही स्किनकेयर से आपकी सोरायसिस की परेशानी कम हो सकती है?
हाँ, बिल्कुल। सोरायसिस में घरेलू देखभाल बहुत मदद करती है, बस तरीका सही होना चाहिए।
सबसे पहले बात करें सफ़ाई की। नहाते समय बहुत गरम पानी न लें, इससे आपकी त्वचा और सुख सकती है। गुनगुना पानी लें और नहाने का समय कम रखें। नहाने के बाद अपनी त्वचा को हल्के हाथों से पोंछें, जोर से रगड़ने से त्वचा फट सकती है।
त्वचा को नमी देना बेहद ज़रूरी है। आप दिन में दो से तीन बार हल्का, साधारण और बिना तेज़ सुगंध वाला मॉइस्चराइज़र लगा सकते हैं। नारियल तेल भी सोरायसिस में बहुत फायदेमंद होता है। यह त्वचा में नमी बनाए रखता है और जलन को कम करता है। आप रात में नारियल तेल हल्के हाथों से लगा सकते हैं ताकि त्वचा को लंबी देर तक आराम मिले।
कपड़ों का चुनाव भी फर्क डालता है। कोशिश करें कि आप सूती और ढीले कपड़े पहनें। तंग कपड़े त्वचा को रगड़ते हैं और पैच और भी खराब हो सकते हैं।
धूप भी थोड़ी मात्रा में फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि इससे त्वचा शांत होती है। लेकिन बहुत देर धूप में रहने से जलन बढ़ सकती है, इसलिए केवल थोड़ी देर सुबह की हल्की धूप ही ठीक रहती है।
कई बार घरेलू देखभाल से ही काफी आराम मिल जाता है, क्योंकि यह त्वचा को खिंचाव से बचाती है, नमी बनाए रखती है और जलन कम करती है। अगर आप रोज़मर्रा में ये सरल कदम अपनाएँगे, तो आपकी त्वचा धीरे-धीरे सहज होने लगेगी और flare-up की संभावना भी कम होगी।
निष्कर्ष
अगर आपकी त्वचा बार-बार फट रही है, छिल रही है, जलन हो रही है या मॉइस्चराइज़र लगाने के बावजूद सूखापन खत्म नहीं हो रहा, तो यह आपके शरीर का एक संकेत है जिसे नजरअंदाज़ नहीं करना चाहिए। सोरायसिस ऐसी समस्या है जो बाहर से दिखती ज़रूर है, लेकिन शुरुआत अंदर से होती है—दोषों के असंतुलन, पाचन की कमज़ोरी, तनाव और रोज़मर्रा की आदतों से।
जब आप अपने आहार, दिनचर्या, और त्वचा की देखभाल में छोटे-छोटे बदलाव करते हैं, तो धीरे-धीरे आपकी त्वचा भी बेहतर प्रतिक्रिया देने लगती है। आयुर्वेद की खासियत यही है कि यह आपको दवा के साथ-साथ वजह भी समझाता है, ताकि सुधार गहरा और टिकाऊ हो सके।
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FAQs
- किस विटामिन की कमी से सोरायसिस बढ़ सकता है?
विटामिन डी की कमी से आपकी त्वचा और ज़्यादा संवेदनशील हो सकती है और सोरायसिस के लक्षण बढ़ सकते हैं। धूप में थोड़ी देर रहना और संतुलित आहार मदद करता है।
- कौन से खाद्य पदार्थ सोरायसिस को कम करने में मदद करते हैं?
हल्की सब्ज़ियाँ, मूंग दाल, खिचड़ी, नारियल पानी, ताज़े फल और हल्दी जैसे प्राकृतिक तत्व आपकी त्वचा को शांत करते हैं और लक्षणों को धीरे-धीरे कम करते हैं।
- सोरायसिस के लिए कौन सा तेल सबसे अच्छा माना जाता है?
नारियल तेल सबसे फायदेमंद माना जाता है। यह त्वचा में नमी बनाए रखता है, जलन कम करता है और फटी त्वचा को धीरे-धीरे सहज बनाता है।
- आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस क्यों होता है?
आयुर्वेद में सोरायसिस को मुख्य रूप से दोष असंतुलन, कमज़ोर पाचन और रक्तदोष से जुड़ा माना जाता है। शरीर में जमा अवांछित पदार्थ त्वचा पर लक्षण पैदा करते हैं।
- क्या आयुर्वेद त्वचा की समस्याओं के लिए अच्छा माना जाता है?
हाँ, आयुर्वेद त्वचा को भीतर से संतुलित करने पर काम करता है। जड़ी-बूटियाँ, आहार और जीवनशैली मिलकर धीरे-धीरे त्वचा को प्राकृतिक तरीके से शांत करती हैं।



























































































