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खड़े रहना मुश्किल, हाथ सुन्न, लगातार दर्द—Ayurveda ने कैसे बदली Arthritis की कहानी

Information By Dr. Arun Gupta

Ranjana, 53 वर्षीया की ज़िंदगी में Arthritis ने 2016 से रोज़मर्रा के काम मुश्किल बना दिए थे। रात को हाथ सुन्न होना, लंबे समय तक खड़े न रह पाना और लगातार दर्द उनके लिए रोज़ का संघर्ष बन गया था। उन्होंने जीवा आयुर्वेद में पंचकर्म इलाज लिया जिसमें Shirodhara, Kati Basti और Potli Massage शामिल थे। इन इलाजों के बाद उनके हाथों की सुन्नता और कंधों का दर्द बहुत कम हो गया और एलोपैथिक दवाइयों की ज़रूरत भी घट गई। रंजना का अनुभव यह सिखाता है कि समय रहते सही इलाज कराना कितना ज़रूरी है।

भारत में जोड़ों के दर्द और गठिया (Arthritis) अब बहुत आम स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है, और यह सिर्फ उम्रदराज़ लोगों तक सीमित नहीं रह गई है। हाल के एक अध्ययन के अनुसार भारत में करीब 19.5 करोड़ लोग गठिया-संबंधित दर्द से प्रभावित हैं, जिसमें लगभग दो-तिहाई मामले महिलाओं के हैं।

गठिया सिर्फ एक बीमारी नहीं है, बल्कि यह रोज़मर्रा के कामों को भी कठिन बना देता है। खड़े रहना, चलना, सोते समय करवट बदलना — ये छोटी-छोटी गतिविधियाँ भी दर्द और अकड़न के कारण मुश्किल हो सकती हैं। Ranjana जैसे कई लोगों के लिए यह समस्या सिर्फ एक जांच-रिपोर्ट नहीं रही, बल्कि जीवन की गुणवत्ता पर सीधा असर डालती है। जब 2016 में उन्हें रात को हाथ सुन्न होना, कंधों में दर्द और चाल में कठिनाई शुरू हुई, तो हर साधारण काम भी बोझ लगने लगा।

बहुत से लोग दर्द को सामान्य समझ लेते हैं और देर तक इंतज़ार कर देते हैं, लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता है, दर्द जकड़न और असुविधा में बदल जाता है। रंजना की कहानी इसी बात की गवाही देती है कि दर्द को अनदेखा करना कितना भारी पड़ सकता है। उनकी यात्रा यह बताती है कि गठिया से निपटना समय रहते शुरू किया जाए तो जीवन बहुत बदल सकता है।

आइए समझते हैं कि Arthritic दर्द क्या है, यह कैसे बढ़ता है, और आयुर्वेद से इसे कैसे संभाला जा सकता है, खासकर जब इसे शुरुआत में ही पकड़ा जाए।

हाथ सुन्न होना और खड़े रहने में दिक्कत—रंजना जी की समस्या कैसे शुरू हुई?

रंजना जी की गठिया की समस्या अचानक नहीं आई थी। यह धीरे-धीरे उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जगह बनाती चली गई। शुरुआत में उन्हें लगता था कि यह सामान्य थकान या उम्र का असर है, लेकिन समय के साथ हालात बदलते चले गए। रात को सोते समय हाथों का सुन्न हो जाना उनकी नींद तोड़ देता था। करवट बदलना मुश्किल हो जाता और कई बार दर्द के कारण नींद पूरी ही नहीं हो पाती।

दिन के समय भी स्थिति आसान नहीं थी। कुछ देर खड़े रहने पर हाथों और कंधों में भारीपन आ जाता। रसोई में काम करना, पूजा में खड़ा रहना या बाहर कहीं लाइन में लगना—ये सब छोटे-छोटे काम भी थकाने लगते थे। कई बार ऐसा महसूस होता जैसे शरीर साथ ही नहीं दे रहा हो। दर्द सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं रहता, वह मन पर भी असर डालने लगता है।

रंजना जी के लिए सबसे परेशान करने वाली बात यह थी कि यह समस्या लगातार बढ़ रही थी। पहले जो दर्द कभी-कभी होता था, वह अब रोज़ का साथी बन चुका था। हाथों की सुन्नता इतनी बढ़ जाती कि पकड़ कमजोर लगने लगती। आप सोच सकते हैं कि जब हाथ ठीक से साथ न दें, तो आत्मविश्वास पर कितना असर पड़ता है।

यही वह समय था जब रंजना जी को समझ आया कि यह कोई साधारण दर्द नहीं है। शरीर लगातार संकेत दे रहा था कि अंदर कुछ गड़बड़ है। लेकिन बहुत से लोगों की तरह उन्होंने भी शुरुआत में इसे नज़रअंदाज़ किया। यही गलती अक्सर समस्या को और गहरा बना देती है।

गठिया क्या है और यह हाथों, कंधों और नींद को कैसे प्रभावित करता है?

गठिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें जोड़ों में सूजन, दर्द और जकड़न आ जाती है। जब जोड़ ठीक से काम नहीं करते, तो पूरा शरीर उसका असर महसूस करता है। यह सिर्फ घुटनों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि हाथों, कंधों, गर्दन और कमर तक फैल सकता है।

जब गठिया हाथों को प्रभावित करता है, तो सबसे पहले सुबह के समय जकड़न महसूस होती है। उंगलियाँ ठीक से मुड़ती नहीं हैं, पकड़ कमजोर लगती है और छोटे काम भी मुश्किल हो जाते हैं। कंधों में दर्द होने पर हाथ ऊपर उठाना या पीछे ले जाना कठिन हो जाता है। कपड़े पहनना, बाल बनाना या कोई चीज़ उठाना भी परेशानी भरा हो सकता है।

नींद पर इसका असर बहुत गहरा होता है। रात में दर्द बढ़ जाना आम बात है। करवट बदलते समय दर्द चुभने लगता है, जिससे नींद बार-बार टूटती है। पूरी नींद न मिलने से अगला दिन और ज़्यादा थकान भरा हो जाता है। धीरे-धीरे यह एक चक्र बन जाता है—दर्द के कारण नींद खराब, और नींद खराब होने से दर्द और बढ़ जाना।

सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि दर्द आपकी आज़ादी छीनने लगता है। जो काम पहले बिना सोचे हो जाते थे, अब उनके लिए योजना बनानी पड़ती है। कहीं बाहर जाना हो, किसी से मिलना हो या घर के छोटे काम करने हों—हर जगह दर्द साथ चलता है।

Ranjana जी के साथ भी यही हो रहा था। उन्हें लगने लगा था कि शरीर जैसे आराम करना ही भूल गया है। जब दर्द लंबे समय तक बना रहता है, तो मन में चिड़चिड़ापन, बेचैनी और निराशा भी आने लगती है। आप भी अगर ऐसे दर्द से जूझ रहे हैं, तो यह महसूस करना बिल्कुल स्वाभाविक है। रंजना जी को भी यही महसूस होने लगा था कि उनका शरीर उनके नियंत्रण में नहीं रहा।

जब एलोपैथिक दवाइयों के बाद भी आराम अधूरा लगे, तो आयुर्वेद कैसे मदद कर सकता है?

दर्द बढ़ने पर ज़्यादातर लोग दवाइयों का सहारा लेते हैं। शुरुआत में इससे कुछ राहत मिलती है, लेकिन कई बार यह राहत अस्थायी होती है। रंजना जी ने भी यही अनुभव किया। दवाइयों से दर्द कुछ समय के लिए दब जाता था, लेकिन जकड़न और सुन्नता पूरी तरह खत्म नहीं होती थी।

जब दर्द बार-बार लौटता है, तो मन में सवाल उठने लगते हैं। क्या यही इलाज है? क्या पूरी ज़िंदगी दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ेगा? आप भी अगर इस स्थिति में हैं, तो यह उलझन बिल्कुल स्वाभाविक है। लंबे समय तक दवाइयों पर निर्भर रहना कई लोगों को असहज लगने लगता है।

यहीं से एक नया विचार जन्म लेता है—ऐसा इलाज, जो सिर्फ दर्द को दबाए नहीं, बल्कि उसकी जड़ को समझे। रंजना जी भी यही चाहती थीं कि उनके शरीर को अंदर से समझा जाए। उन्हें ऐसा रास्ता चाहिए था, जहाँ इलाज सिर्फ लक्षणों पर नहीं, बल्कि पूरे शरीर के संतुलन पर आधारित हो।

इसी सोच ने उन्हें आयुर्वेद की ओर मोड़ा। यह फैसला अचानक नहीं था, बल्कि अनुभवों और निराशाओं के बाद लिया गया एक समझदारी भरा कदम था।

जीवा आयुर्वेद में रंजना जी का इलाज कैसे शुरू हुआ?

जीवा आयुर्वेद में रंजना जी का इलाज सुनने से शुरू हुआ। यहाँ सबसे पहले उनकी पूरी समस्या को ध्यान से समझा गया। कब दर्द शुरू हुआ, किन हालात में बढ़ता है, नींद कैसी रहती है, दिनचर्या कैसी है—इन सब बातों पर विस्तार से चर्चा की गई।

इलाज की शुरुआत किसी एक जोड़ पर नहीं, बल्कि पूरे शरीर को समझने से हुई। यह देखा गया कि शरीर में कहाँ असंतुलन बढ़ गया है और कौन-सी आदतें दर्द को बढ़ा रही हैं। रंजना जी को भी यह महसूस हुआ कि यहाँ उन्हें सिर्फ मरीज की तरह नहीं, बल्कि एक व्यक्ति की तरह देखा जा रहा है।

धीरे-धीरे उनके लिए एक ऐसा इलाज तय किया गया, जो उनके शरीर और उम्र के अनुसार हो। इसमें सिर्फ बाहरी उपचार ही नहीं, बल्कि शरीर को आराम देने और अंदरूनी संतुलन सुधारने पर भी ध्यान दिया गया।

इस पूरी प्रक्रिया ने रंजना जी को भरोसा दिया कि वे सही जगह पर हैं। उन्हें लगा कि अब इलाज सिर्फ दर्द कम करने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उनकी ज़िंदगी को फिर से सहज बनाने की कोशिश करेगा। यही वह मोड़ था, जहाँ से उनकी गठिया की कहानी ने नया रास्ता लेना शुरू किया।

गठिया के इलाज में पंचकर्म की क्या भूमिका होती है?

गठिया के दर्द में सिर्फ ऊपर से तेल लगाना या अस्थायी राहत देना अक्सर काफ़ी नहीं होता। जब दर्द लंबे समय से बना हो, तो शरीर को अंदर से आराम और संतुलन की ज़रूरत होती है। पंचकर्म उपचार इसी सोच पर आधारित होते हैं। इनका उद्देश्य सिर्फ दर्द को कम करना नहीं, बल्कि शरीर में जमा असंतुलन को धीरे-धीरे बाहर निकालना और जोड़ों को मज़बूती देना होता है।

रंजना जी के इलाज में पंचकर्म की कुछ विशेष प्रक्रियाएँ अपनाई गईं, जिन्हें उनके लक्षणों के अनुसार चुना गया था।

शिरोधारा

शिरोधारा के दौरान माथे पर लगातार औषधीय द्रव डाला जाता है। इसका असर सिर्फ सिर तक सीमित नहीं रहता। जब मन शांत होता है, तो शरीर की जकड़न भी धीरे-धीरे ढीली पड़ने लगती है। रंजना जी के लिए यह उपचार खास इसलिए था क्योंकि उनकी नींद लगातार टूटती रहती थी। शिरोधारा से उन्हें मानसिक शांति मिली, जिससे रात में शरीर को बेहतर आराम मिलने लगा।

कटि बस्ति

कटि बस्ति में पीठ के निचले हिस्से पर गुनगुना औषधीय तेल एक विशेष विधि से रखा जाता है। इससे उस हिस्से को सीधी गर्माहट और पोषण मिलता है। जब रीढ़ और आसपास के जोड़ आराम में आते हैं, तो शरीर का संतुलन बेहतर होता है। रंजना जी ने महसूस किया कि इससे खड़े रहने में होने वाली परेशानी धीरे-धीरे कम होने लगी।

पोटली मसाज 

पोटली मसाज में औषधीय जड़ी-बूटियों से भरी पोटली से शरीर की मालिश की जाती है। इससे जकड़े हुए हिस्सों में गर्माहट पहुँचती है और सूजन कम होने लगती है। हाथों और कंधों में जो भारीपन और सुन्नता बनी रहती थी, उसमें धीरे-धीरे राहत आने लगी। यह मसाज शरीर को ढीला करने के साथ-साथ उसे मज़बूती भी देती है।

इन तीनों उपचारों का असर रंजना जी के शरीर पर मिलकर पड़ा। दर्द सिर्फ दबा नहीं, बल्कि शरीर ने धीरे-धीरे खुद को संभालना शुरू किया।

किन लोगों के लिए यह आयुर्वेदिक तरीका खास तौर पर फायदेमंद हो सकता है?

यह तरीका उन लोगों के लिए खास हो सकता है जो लंबे समय से जोड़ों के दर्द, जकड़न या हाथ-पैर सुन्न होने जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। अगर आपको लगता है कि दर्द आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को सीमित करने लगा है, तो ऐसे उपचार मददगार साबित हो सकते हैं।

जो लोग दवाइयों से अस्थायी राहत तो पा रहे हैं, लेकिन स्थायी आराम नहीं मिल पा रहा, उनके लिए यह तरीका एक नया रास्ता खोल सकता है। इसके अलावा, वे लोग भी इससे लाभ महसूस कर सकते हैं जो अपने शरीर को अंदर से संतुलित करना चाहते हैं, न कि सिर्फ दर्द को दबाना।

रंजना जी का अनुभव यही बताता है कि जब इलाज शरीर की ज़रूरतों के अनुसार किया जाए, तो बदलाव संभव है। अगर आप भी अपने शरीर के संकेतों को समय रहते समझें और सही दिशा में कदम बढ़ाएँ, तो गठिया जैसी समस्या के साथ जीना आसान हो सकता है।

निष्कर्ष

रंजना जी की कहानी यह दिखाती है कि गठिया सिर्फ शरीर का दर्द नहीं होता, बल्कि यह आपकी पूरी ज़िंदगी की गति को धीमा कर सकता है। जब हाथ सुन्न होने लगें, खड़े रहना मुश्किल हो जाए और नींद हर रात टूटे, तो यह साफ़ संकेत होता है कि शरीर मदद माँग रहा है। उन्होंने समय रहते इस संकेत को समझा और ऐसा इलाज चुना, जिसमें सिर्फ दर्द ही नहीं, बल्कि शरीर के संतुलन पर भी ध्यान दिया गया।

उनके अनुभव से यह साफ़ होता है कि सही दिशा में उठाया गया कदम राहत और भरोसे—दोनों ला सकता है। दर्द का पुराना हो जाना ज़रूरी नहीं है, अगर उसे समय रहते समझ लिया जाए। आप भी अगर अपने शरीर की बात सुनते हैं और उसे अनदेखा नहीं करते, तो बदलाव संभव है।

अगर आप भी रंजना जी की तरह गठिया, जोड़ों के दर्द, हाथों की सुन्नता या इससे जुड़ी किसी भी समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज ही जीवा के प्रमाणित वैद्यों से व्यक्तिगत परामर्श लें। डायल करें: 0129-4264323

FAQs

  1. क्या गठिया सिर्फ उम्र बढ़ने पर ही होता है?

नहीं। गलत दिनचर्या, कम चलना-फिरना, ज़्यादा वजन और लंबे समय तक दर्द को नज़रअंदाज़ करना—ये सब कारण किसी भी उम्र में गठिया को बढ़ा सकते हैं।

  1. हाथों का सुन्न हो जाना क्या गठिया का संकेत हो सकता है?

हाँ। अगर हाथों में बार-बार सुन्नता, झनझनाहट या पकड़ कमजोर लगे, तो यह जोड़ों और नसों में बढ़ते दबाव का संकेत हो सकता है।

  1. क्या गठिया में दर्द हमेशा बढ़ता ही जाता है?

ज़रूरी नहीं। अगर समय रहते सही इलाज और देखभाल शुरू हो जाए, तो दर्द, जकड़न और सूजन को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

  1. क्या पंचकर्म इलाज में दर्द होता है?

नहीं। पंचकर्म उपचार शरीर को आराम देने के लिए होते हैं। सही तरीके से किए जाने पर ये जकड़न कम करते हैं और हल्कापन महसूस कराते हैं।

  1. क्या आयुर्वेदिक इलाज के साथ दवाइयाँ बंद करनी पड़ती हैं?

नहीं। इलाज वैद्य की सलाह से धीरे-धीरे तय किया जाता है। जरूरत के अनुसार बदलाव किया जाता है, ताकि शरीर सुरक्षित तरीके से संतुलन में आए।

  1. गठिया में कितने समय में राहत महसूस होती है?

यह समस्या की गंभीरता और शरीर की स्थिति पर निर्भर करता है। कई लोगों को कुछ ही हफ्तों में आराम महसूस होने लगता है।

  1. क्या गठिया में दिनचर्या और खान-पान का असर पड़ता है?

हाँ। हल्का भोजन, सही दिनचर्या और नियमित देखभाल से इलाज का असर बेहतर होता है और दर्द दोबारा बढ़ने की संभावना कम होती है।



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