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डायबिटीज़ क्या है और आयुर्वेद इसके बारे में क्या कहता है? (What is Diabetes?)
अगर आपको बार-बार प्यास लगती है, बार-बार पेशाब आता है, थकान जल्दी लगती है या वज़न अचानक घट रहा है, तो ये डायबिटीज़ (मधुमेह) के लक्षण हो सकते हैं। डायबिटीज़ एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपके शरीर में शुगर का स्तर सामान्य से ज़्यादा हो जाता है। ऐसा तब होता है जब आपका शरीर इंसुलिन नाम का हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बना पाता या शरीर उसमें ठीक से प्रतिक्रिया नहीं करता।
इंसुलिन एक तरह की चाबी की तरह काम करता है जो आपके खाने से मिली शुगर को कोशिकाओं (cells) के अंदर पहुँचाने में मदद करता है, ताकि शरीर को ऊर्जा मिल सके। लेकिन जब ये प्रक्रिया ठीक से न हो, तो शुगर खून में ही जमा होने लगती है और इससे कई स्वास्थ्य समस्याएँ होने लगती हैं जैसे दिल की बीमारी, आँखों की रोशनी कम होना, नसों को नुकसान, किडनी पर असर, आदि।
अब बात करते हैं आयुर्वेद की। आयुर्वेद में डायबिटीज़ को मधुमेह कहा जाता है। यह "प्रमेह" नाम के रोगों के समूह में आता है। आयुर्वेद के अनुसार, यह बीमारी तब होती है जब शरीर में तीनों दोषों – विशेषकर वात और कफ का असंतुलन हो जाता है और शरीर की पाचन शक्ति (अग्नि) कमज़ोर हो जाती है। इससे मल-मूत्र के रास्ते अतिरिक्त शर्करा (glucose) बाहर निकलने लगती है और शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जाता है।
आयुर्वेद डायबिटीज़ को सिर्फ एक शुगर की बीमारी नहीं मानता, बल्कि यह शरीर के अंदर गहराई से फैली हुई समस्या है जिसे जड़ से ठीक करने की ज़रूरत होती है। इसलिए यहाँ इलाज सिर्फ लक्षणों पर नहीं, बल्कि उसकी जड़ (root cause) पर किया जाता है।
डायबिटीज़ कितने प्रकार की होती है? (Types of Diabetes)
अगर आपको या आपके परिवार में किसी को डायबिटीज़ है, तो ये जानना ज़रूरी है कि डायबिटीज़ एक नहीं, कई प्रकार की होती है। हर प्रकार की डायबिटीज़ की वजह, लक्षण और इलाज थोड़ा अलग होता है। जब आप इसके प्रकार समझेंगे, तभी आप सही दिशा में इलाज शुरू कर पाएँगे।
1. टाइप 1 डायबिटीज़
इसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (immune system) खुद ही पैंक्रियाज़ की उन कोशिकाओं को नष्ट कर देती है जो इंसुलिन बनाती हैं। इस वजह से शरीर को बाहर से इंसुलिन देना पड़ता है। यह ज़्यादातर बच्चों या किशोरों में पाई जाती है, लेकिन कभी-कभी बड़ों में भी हो सकती है।
2. टाइप 2 डायबिटीज़
यह सबसे आम प्रकार है। इसमें आपका शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता, या शरीर की कोशिकाएँ उस पर प्रतिक्रिया नहीं करतीं। यह ज़्यादातर बड़ों में होती है, लेकिन आजकल लाइफस्टाइल के कारण युवाओं और बच्चों में भी देखने को मिल रही है। मोटापा, तनाव, गलत खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी इसके मुख्य कारण हैं।
3. प्रिडायबिटीज़ (Prediabetes)
यह डायबिटीज़ से पहले की स्थिति होती है। इसमें ब्लड शुगर सामान्य से ज़्यादा होता है, लेकिन इतनी ज़्यादा नहीं कि डायबिटीज़ मानी जाए। अगर आप अभी सावधानी नहीं बरतते, तो ये टाइप 2 डायबिटीज़ में बदल सकती है।
4. जेस्टेशनल डायबिटीज़ (Gestational Diabetes)
यह डायबिटीज़ गर्भावस्था के दौरान होती है। अगर आपको यह हो जाए, तो बच्चे के जन्म के बाद यह आमतौर पर ठीक हो जाती है, लेकिन आगे चलकर टाइप 2 डायबिटीज़ का खतरा बढ़ जाता है।
डायबिटीज़ होने के आम कारण (Common Causes of Diabetes)
आजकल डायबिटीज़ बहुत ही आम बीमारी बन चुकी है, लेकिन इसके पीछे सिर्फ एक कारण नहीं होता। आपके खानपान, दिनचर्या और शरीर की कार्यप्रणाली, ये सभी मिलकर इस बीमारी को जन्म देते हैं। अगर आप इन कारणों को समझ लेंगे, तो समय रहते बचाव भी कर सकेंगे।
डायबिटीज़ होने के प्रमुख कारण:
- गलत खानपान: जब आप बहुत ज़्यादा मीठा, तला-भुना, प्रोसेस्ड फूड (जैसे बिस्किट, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक) खाते हैं और हरी सब्ज़ियाँ, फल, और अनाज कम खाते हैं, तो यह आपकी शुगर को बढ़ा सकता है।
- शारीरिक गतिविधियों की कमी: अगर आप दिनभर बैठकर काम करते हैं और व्यायाम या टहलना नहीं करते, तो शरीर की कैलोरी जलने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है।
- मोटापा: मोटापे से शरीर में फैट (वसा) बढ़ता है, जो इंसुलिन के असर को कम कर देता है और डायबिटीज़ का खतरा बढ़ाता है।
- तनाव और नींद की कमी: लगातार मानसिक तनाव, चिंता और ठीक से नींद न लेने की आदत भी शरीर के हार्मोन संतुलन को बिगाड़ती है, जिससे ब्लड शुगर बढ़ने लगता है।
- पारिवारिक इतिहास (अनुवांशिक कारण): अगर आपके माता-पिता या परिवार में किसी को डायबिटीज़ है, तो आपको भी इसका खतरा ज़्यादा हो सकता है।
- हार्मोनल बदलाव: महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान या हार्मोन से जुड़ी बीमारियों में भी डायबिटीज़ होने की संभावना रहती है।
- कुछ खास दवाइयों का सेवन: लंबे समय तक कुछ दवाइयाँ जैसे स्टेरॉइड्स या एंटी-डिप्रेसेंट्स लेने से भी शुगर का स्तर बढ़ सकता है।
- पैंक्रियाज़ को नुकसान: अगर पैंक्रियाज़ में कोई चोट या बीमारी हो जाए, तो शरीर में इंसुलिन बनना रुक सकता है, जिससे डायबिटीज़ हो सकती है।
डायबिटीज़ के संभावित नुकसान (Complications)
अगर समय पर इलाज न हो तो डायबिटीज़ कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है, जैसे:
- दिल की बीमारियाँ: हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है
- नसों को नुकसान: हाथ-पैर में झनझनाहट या सुन्नपन
- किडनी फेल होना: ब्लड प्रेशर और डायबिटीज़ मिलकर किडनी पर असर डालते हैं
- आँखों की रोशनी कम होना: रेटिना को नुकसान पहुँच सकता है
- पैरों की समस्याएँ: घाव जल्दी नहीं भरते और इन्फेक्शन का खतरा बढ़ता है
- त्वचा और दांतों की समस्याएँ: साथ ही पुरुषों और महिलाओं में यौन समस्याएँ भी हो सकती हैं
डायबिटीज़ के लक्षण (Signs and Symptoms of Diabetes)
डायबिटीज़ अचानक नहीं होती, यह धीरे-धीरे शरीर में असर दिखाना शुरू करती है। अगर आप अपने शरीर के संकेतों को ध्यान से समझें, तो समय रहते इसका पता लगाकर इलाज शुरू किया जा सकता है। कई बार ये लक्षण हल्के होते हैं, लेकिन इन्हें नज़रअंदाज़ करना भारी पड़ सकता है।
डायबिटीज़ के सामान्य लक्षण:
- बार-बार पेशाब आना: जब आपके खून में शुगर की मात्रा ज़्यादा होती है, तो शरीर उसे पेशाब के रास्ते बाहर निकालने की कोशिश करता है।
- बहुत ज़्यादा प्यास लगना: शरीर से बार-बार पानी बाहर निकलने के कारण आपको बार-बार पानी पीने की इच्छा होती है।
- अत्यधिक थकान महसूस होना: जब शुगर कोशिकाओं तक नहीं पहुँचती, तो शरीर को ऊर्जा नहीं मिलती और आप हर समय थका-थका महसूस करते हैं।
- वज़न का अचानक घटना: बिना किसी कोशिश के वज़न कम होना एक गंभीर संकेत हो सकता है, खासकर टाइप 1 डायबिटीज़ में।
- धुंधली नज़र आना: खून में शुगर की मात्रा बढ़ने से आँखों की रेटिना पर असर पड़ सकता है, जिससे देखने में परेशानी होती है।
- घाव या चोट का धीरे-धीरे भरना: डायबिटीज़ में शरीर की उपचारात्मक क्षमता कम हो जाती है, जिससे मामूली घाव भी जल्दी नहीं भरते।
- हाथ-पैरों में झनझनाहट या सुन्नपन: डायबिटीज़ नसों को नुकसान पहुँचाती है, जिससे आपको पैरों या हाथों में सुन्नपन या जलन महसूस हो सकती है।
- त्वचा में संक्रमण या खुजली: शरीर की इम्युनिटी कमज़ोर होने पर त्वचा में बार-बार फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण हो सकते हैं।
- मुँह और गुप्तांगों में संक्रमण: डायबिटीज़ के कारण शरीर में बैक्टीरिया और फंगस आसानी से पनप सकते हैं, जिससे बार-बार इंफेक्शन हो सकता है।
Symptoms
बार-बार पेशाब आना:
जब आपके खून में शुगर की मात्रा ज़्यादा होती है, तो शरीर उसे पेशाब के रास्ते बाहर निकालने की कोशिश करता है।
बहुत ज़्यादा प्यास लगना
शरीर से बार-बार पानी बाहर निकलने के कारण आपको बार-बार पानी पीने की इच्छा होती है।
अत्यधिक थकान महसूस होना
जब शुगर कोशिकाओं तक नहीं पहुँचती, तो शरीर को ऊर्जा नहीं मिलती और आप हर समय थका-थका महसूस करते हैं।
वज़न का अचानक घटना
बिना किसी कोशिश के वज़न कम होना एक गंभीर संकेत हो सकता है, खासकर टाइप 1 डायबिटीज़ में।
धुंधली नज़र आना
खून में शुगर की मात्रा बढ़ने से आँखों की रेटिना पर असर पड़ सकता है, जिससे देखने में परेशानी होती है।
घाव या चोट का धीरे-धीरे भरना:
डायबिटीज़ में शरीर की उपचारात्मक क्षमता कम हो जाती है, जिससे मामूली घाव भी जल्दी नहीं भरते।
हाथ-पैरों में झनझनाहट या सुन्नपन:
डायबिटीज़ नसों को नुकसान पहुँचाती है, जिससे आपको पैरों या हाथों में सुन्नपन या जलन महसूस हो सकती है।
त्वचा में संक्रमण या खुजली
शरीर की इम्यूनिटी कमज़ोर होने पर त्वचा में बार-बार फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण हो सकते हैं।
मुँह और गुप्तांगों में संक्रमण
डायबिटीज़ के कारण शरीर में बैक्टीरिया और फंगस आसानी से पनप सकते हैं, जिससे बार-बार इंफेक्शन हो सकता है।
जीवा आयुनिक™ उपचार पद्धति – डायबिटीज़ के लिए एक सम्पूर्ण और प्राकृतिक समाधान
जीवा आयुर्वेद डायबिटीज़ के इलाज में केवल लक्षणों को दबाने की बजाय उसकी जड़ पर काम करता है। यहाँ हर मरीज़ की शारीरिक प्रकृति, जीवनशैली और बीमारी की स्थिति के अनुसार व्यक्तिगत इलाज योजना बनाई जाती है। इस पद्धति का मकसद है शरीर को अंदर से संतुलित करना, पाचन शक्ति को सुधारना और शुगर को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करना ताकि आप लंबे समय तक स्वस्थ रह सकें।
जीवा आयुनिक™ उपचार पद्धति की मूल बातें – आसान और असरदार
- वैज्ञानिक रूप से HACCP प्रमाणित आयुर्वेदिक दवाएँ: जीवा में इस्तेमाल की जाने वाली आयुर्वेदिक दवाएँ HACCP प्रमाणित होती हैं। ये जड़ी-बूटियों से बनी होती हैं जो आपके शरीर को अंदर से शुद्ध करती हैं, बीमारियों से लड़ने की ताकत देती हैं और मन को भी शांत रखती हैं।
- योग, ध्यान और मानसिक संतुलन: डायबिटीज़ जैसे रोगों में मन का शांति में रहना बहुत ज़रूरी होता है। योग और ध्यान के माध्यम से आप तनाव से राहत पा सकते हैं और शरीर की ऊर्जा को संतुलित कर सकते हैं।
- पारंपरिक आयुर्वेदिक उपचार: पंचकर्म, तेल मालिश और शरीर की सफाई (डिटॉक्स) जैसे आयुर्वेदिक इलाज शरीर में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं और तीनों दोषों को संतुलित करते हैं।
- आहार और जीवनशैली की सही सलाह: आपके शरीर की प्रकृति के अनुसार क्या खाना चाहिए, क्या परहेज़ करना चाहिए और दिनचर्या कैसी होनी चाहिए – इन सभी बातों की व्यक्तिगत सलाह हमारे विशेषज्ञ आपको देते हैं ताकि आप स्वस्थ रहें और आगे चलकर बीमारियाँ न हों।
डायबिटीज़ के लिए आयुर्वेदिक दवाएँ (Ayurvedic Medicines for Diabetes)
अगर आप डायबिटीज़ से जूझ रहे हैं और लगातार दवाइयों पर निर्भर हैं, तो अब वक्त है कि आप आयुर्वेद की ओर ध्यान दें। आयुर्वेदिक दवाएँ न केवल आपके ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मदद करती हैं, बल्कि शरीर को अंदर से भी मज़बूत बनाती हैं। ये जड़ी-बूटियाँ शुद्ध, प्राकृतिक और शरीर के लिए सुरक्षित होती हैं, और इनके कोई साइड इफेक्ट नहीं होते जब इन्हें सही तरह से इस्तेमाल किया जाए।
प्रमुख आयुर्वेदिक औषधियाँ:
- नीम (Neem): यह शरीर में इंसुलिन की संवेदनशीलता को बढ़ाता है और कोशिकाओं को ग्लूकोज़ अवशोषित करने में मदद करता है।
- दालचीनी (Dalchini): यह खाली पेट ब्लड शुगर को कम करने में मदद करती है और इंसुलिन के असर को बेहतर बनाती है।
- हल्दी (Haridra): इसमें मौजूद करक्यूमिन (Curcumin) शरीर में सूजन को कम करता है और ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है।
- मेथी (Methi): यह पाचन में सहायक होती है और शुगर को नियंत्रित करने वाले हार्मोन्स की क्रिया को बेहतर बनाती है।
- आंवला (Amla): यह एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है जो पैंक्रियाज़ के कार्य को बेहतर बनाता है और शुगर के स्तर को संतुलित करता है।
- करेला (Bitter gourd): इसमें प्राकृतिक रूप से शुगर को कम करने वाले तत्व पाए जाते हैं जो डायबिटीज़ में काफ़ी लाभदायक माने जाते हैं।
- गिलोय (Guduchi): यह जड़ी-बूटी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और शुगर को संतुलन में रखने में मदद करती है।
- अदरक (Ginger): यह ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने के लिए एक बेहतरीन घरेलू उपाय है और पाचन को भी ठीक करता है।
- सौंफ (Fennel): यह मीठा खाने की लालसा को कम करती है और भोजन को जल्दी पचाने में मदद करती है।
- जैतून का तेल (Olive Oil): यह न केवल कोलेस्ट्रॉल को कम करता बल्कि ब्लड शुगर के स्तर को भी संतुलित करता है।
- गुड़मार (Gudmar): इस औषधि को "शुगर नाशक" भी कहा जाता है क्योंकि यह मीठे की इच्छा को कम करती है और पैंक्रियाज़ की कोशिकाओं को फिर से सक्रिय करने में मदद करती है।
इन आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन यदि जीवा के योग्य आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह से किया जाए, तो आप डायबिटीज़ को प्राकृतिक रूप से कंट्रोल कर सकते हैं। सिर्फ शुगर को कम करना ही लक्ष्य न रखें, बल्कि शरीर को अंदर से ठीक करना और जीवनशैली को सुधारना भी ज़रूरी है। यह पेज केवल जानकारी के उद्देश्य से है। चिकित्सकीय सलाह के लिए कृपया प्रमाणित आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श लें।
FAQs
आयुर्वेद में डायबिटीज़ की कोई एक सर्वश्रेष्ठ दवा नहीं है, बल्कि व्यक्ति की प्रकृति और लक्षणों के आधार पर औषधियाँ तय की जाती हैं। फिर भी नीम, गुड़मार, करेला, गिलोय और मेथी जैसी जड़ी-बूटियाँ बहुत असरदार मानी जाती हैं। ये शरीर को संतुलित करके जड़ से असर करती हैं।
आंवला, जामुन, अमरूद और पपीता जैसे फल शरीर में प्राकृतिक रूप से इंसुलिन की क्रिया को बेहतर बनाते हैं। ये फाइबर से भरपूर होते हैं और जल्दी ब्लड शुगर नहीं बढ़ाते। लेकिन इन्हें भी सीमित मात्रा में ही खाएँ और मीठे फल जैसे आम, अंगूर, केला आदि से बचें।
आप ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए संतुलित आहार लें, रोजाना व्यायाम करें, तनाव कम करें और नीम, सौंफ, गिलोय जैसी जड़ी-बूटियों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। आयुर्वेद के अनुसार यह संयम और अनुशासन का रोग है, जिसे जीवनशैली सुधारकर काफ़ी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
आयुर्वेद में किसी भी रोग का इलाज शरीर की जड़ से किया जाता है। डायबिटीज़ का स्थायी इलाज तभी संभव है जब आप अपनी जीवनशैली में बदलाव करें, नियमित रूप से योग और ध्यान करें, और आयुर्वेदिक औषधियों का संयम से सेवन करें। इससे शरीर की प्राकृतिक क्रियाएँ दोबारा संतुलित होती हैं।
आप नीम के पत्ते, करेला, मेथी, आंवला, गिलोय और दालचीनी जैसी चीज़ें अपने खाने में शामिल कर सकते हैं। इसके अलावा साबुत अनाज, हरी सब्ज़ियाँ और फाइबर युक्त फल भी बेहद फ़ायदेमंद होते हैं। पर यह ध्यान रखें कि संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है – बहुत कम खाना भी नुकसानदायक हो सकता है।
50 साल की उम्र में स्वस्थ व्यक्ति के लिए खाली पेट ब्लड शुगर 70–99 mg/dL और खाने के बाद 140 mg/dL से कम होना चाहिए। अगर आपका शुगर इससे ज़्यादा है, तो यह प्री-डायबिटिक या डायबिटिक स्थिति हो सकती है। ऐसे में समय रहते इलाज और परामर्श लेना ज़रूरी है।
आप दिन की शुरुआत नीम-पानी, करेला जूस, मेथी दाने का पानी या आंवला रस से कर सकते हैं। इसके बाद हल्का और फाइबर युक्त नाश्ता लें जैसे मूंग दाल चीला, ओट्स, या सब्ज़ियों से बना उपमा। फलों में पपीता, अमरूद या जामुन जैसे विकल्प सही होते हैं।
तुरंत राहत के लिए आप मेथी दाना का पानी खाली पेट पी सकते हैं या करेले का रस ले सकते हैं। इसके साथ गिलोय का सेवन भी मदद कर सकता है। लेकिन याद रखें कि यह एक प्रक्रिया है और स्थायी संतुलन के लिए आपको जीवनशैली और आहार में बदलाव लाना होगा।
अगर आपकी डायबिटीज़ टाइप 2 है और उसका मुख्य कारण मोटापा है, तो वज़न कम करने से शुगर कंट्रोल में आ सकती है। आयुर्वेद में भी व्रुक्क दोष और कफ को कम करने पर जोर दिया जाता है। लेकिन वज़न के साथ-साथ आपको आहार, नींद और मानसिक स्थिति पर भी काम करना होगा।
डायबिटीज़ में उपवास बिना विशेषज्ञ की सलाह के न करें। कई बार लंबे समय तक भूखे रहने से ब्लड शुगर अचानक बहुत कम हो सकता है, जो खतरनाक है। आयुर्वेद में उपवास का तरीका व्यक्ति की प्रकृति और स्थिति देखकर बताया जाता है जैसे फलाहार, लघु आहार, या निर्जल उपवास।
जी हाँ, योग डायबिटीज़ के लिए बहुत फ़ायदेमंद है। विशेष रूप से मंडूकासन, पवनमुक्तासन, प्राणायाम और सूर्य नमस्कार जैसे योग आसन ब्लड शुगर को संतुलित करते हैं और पाचन तंत्र को सुधारते हैं। अगर आप रोज़ 30 मिनट भी योग करें, तो इसके असर आपको जल्द दिखने लगेंगे।
डायबिटीज़ सीधे मानसिक रोग नहीं है, लेकिन लगातार शुगर लेवल का उतार-चढ़ाव, दवाओं का असर, और भविष्य की चिंता आपको मानसिक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। आयुर्वेद में मन और शरीर को एक साथ ठीक करने पर जोर दिया जाता है इसलिए योग, ध्यान और सकारात्मक सोच को अपनाएँ।
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