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फंगल इन्फेक्शन का आयुर्वेदिक इलाज

अगर आपको बार-बार फंगल इन्फेक्शन हो रहा है और आप इससे परेशान हैं, तो आयुर्वेद में इसका गहराई से समाधान मौजूद है। जीवा आयुर्वेद में अनुभवी वैद्य पहले आपकी शरीर प्रकृति और रोग के मूल कारण को समझते हैं, फिर उसके अनुसार जड़ी-बूटियों, आयुर्वेदिक दवाओं, सही आहार और जीवनशैली में बदलाव के ज़रिए उपचार करते हैं। आज ही प्रमाणित जीवा विशेषज्ञों से निःशुल्क परामर्श बुक करें।

फंगल इन्फेक्शन क्या होता है और आयुर्वेद इसमें क्या कहता है? (What are Fungal Infections?)

अगर आपकी त्वचा पर बार-बार लाल दाने, खुजली, छाले, या स्किन पर रैशेज़ जैसे लक्षण दिखते हैं, तो हो सकता है कि आपको फंगल इन्फेक्शन हो गया हो। फंगल इन्फेक्शन (कवक संक्रमण) तब होता है जब शरीर में मौजूद या बाहर से आए फंगस यानी कवक (fungus) हद से ज़्यादा बढ़ जाता है और त्वचा, नाखून, मुँह या अन्य अंगों पर असर डालने लगता है।

फंगस एक तरह का सूक्ष्म जीव होता है जो नम, गीली और गर्म जगहों पर तेज़ी से पनपता है। इसीलिए पसीना, गंदगी, ढीली त्वचा की सफाई न रखना या टाइट कपड़े पहनना फंगल इन्फेक्शन को बढ़ावा दे सकता है। ये संक्रमण ज़्यादातर उन हिस्सों पर होता है जहाँ त्वचा आपस में रगड़ खाती है जैसे कि जांघ, बगल, गला, या पैरों के बीच।

आयुर्वेद में फंगल इन्फेक्शन को "दद्रु" (Dadru) रोग कहा गया है, जो कि कुष्ठ रोगों (Kushta Rogas) के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद मानता है कि यह रोग तब होता है जब आपके शरीर में तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) में असंतुलन हो जाए, खासकर कफ और पित्त दोष की अधिकता के कारण। साथ ही, शरीर में अगर आम (Ama यानी विषैले अवशेष) जमा हो जाएँ, तो वो त्वचा की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर कर देते हैं और संक्रमण जल्दी फैलने लगता है।

आपके लिए अच्छी बात ये है कि आयुर्वेद इस रोग का इलाज केवल लक्षणों को दबाकर नहीं करता, बल्कि उसकी जड़ तक जाकर इलाज करता है। यानी सिर्फ दवा नहीं, बल्कि आपके शरीर की सफाई, खानपान में बदलाव, औषधीय जड़ी-बूटियाँ और सही जीवनशैली अपनाने की सलाह भी देता है।

इसलिए अगर आप लंबे समय से फंगल इन्फेक्शन से परेशान हैं, तो आयुर्वेदिक इलाज आपके लिए एक सुरक्षित और स्थायी समाधान हो सकता है।

फंगल इन्फेक्शन के प्रकार (Types of Fungal Infections)

फंगल इन्फेक्शन कई तरह के होते हैं और ये शरीर के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित कर सकते हैं। अगर आप जानना चाहते हैं कि कौन-से फंगल इन्फेक्शन आपको हो सकते हैं, तो नीचे दिए गए प्रकार आपकी मदद करेंगे:

  • रिंगवर्म (Ringworm / दद्रु): यह त्वचा पर गोल घेरा बनाकर फैलता है और किनारों पर लाल व खुजलीदार होता है। ये अक्सर हाथ, पैर, पीठ या जांघों पर होता है और एक व्यक्ति से दूसरे में फैल सकता है।
  • एथलीट्स फुट (Athlete’s Foot / तिनिया पैडिस): यह पैरों की उंगलियों के बीच होता है। अगर आप ज़्यादा पसीना करते हैं या गीले मौजे लंबे समय तक पहनते हैं, तो आपको ये इन्फेक्शन हो सकता है। इसमें त्वचा फटती है, खुजली होती है और बदबू भी आ सकती है।
  • जॉक इच (Jock Itch / तिनिया क्रूरिस): यह कमर, जांघ और नितंबों (buttocks) के आसपास होता है। यह गर्मी और पसीने की वजह से जल्दी फैलता है और इसमें रैश, जलन और खुजली होती है।
  • कैंडिडा इन्फेक्शन (Candida Infection): यह एक प्रकार का यीस्ट इन्फेक्शन होता है जो आमतौर पर मुँह, गले, त्वचा की तहों और महिलाओं में योनि में हो सकता है। ये शरीर में मौजूद नेचुरल यीस्ट के अधिक बढ़ जाने से होता है।
  • नेल फंगस (Onychomycosis): अगर आपके नाखून पीले, मोटे और टूटने लगें तो ये फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। यह धीरे-धीरे नाखूनों को नुकसान पहुँचाता है।

फंगल इन्फेक्शन के आम कारण (Common Causes of Fungal Infections)

अगर आपको बार-बार खुजली, लाल चकत्ते या त्वचा पर जलन जैसी दिक्कत होती है, तो ये सिर्फ बाहर की गंदगी या गर्मी की वजह से नहीं होता। इसके पीछे कई ऐसे कारण हो सकते हैं जो आप रोज़ाना अनजाने में करते हैं। फंगल इन्फेक्शन अक्सर आपकी दिनचर्या, आदतों और शरीर की अंदरूनी स्थिति पर भी निर्भर करता है।

यहाँ हम आपको सरल भाषा में बता रहे हैं कि किन वजहों से आपको फंगल इन्फेक्शन हो सकता है:

  • नमी और पसीना ज़्यादा होना: अगर आपकी त्वचा बार-बार गीली रहती है जैसे जांघों के बीच, बगल या पैरों में तो वहाँ फंगस जल्दी पनपता है।
  • गंदे या टाइट कपड़े पहनना: टाइट कपड़े हवा को त्वचा तक नहीं पहुँचने देते, जिससे वहाँ पसीना जमा रहता है और इन्फेक्शन हो सकता है।
  • साफ-सफाई की कमी: नहाने के बाद ठीक से खुद को न सुखाना, गीले तौलिए या कपड़े बार-बार इस्तेमाल करना फंगल इन्फेक्शन की बड़ी वजह बन सकती है।
  • कमज़ोर रोग प्रतिरोधक क्षमता: अगर आपकी इम्युनिटी कमज़ोर है, जैसे कि डायबिटीज़, एचआईवी या कैंसर जैसी बीमारियों में, तो फंगल इन्फेक्शन जल्दी हो सकता है।
  • लंबे समय तक एंटीबायोटिक दवाएँ लेना: ये दवाएँ शरीर के अच्छे बैक्टीरिया को खत्म कर देती हैं, जिससे फंगस को बढ़ने का मौका मिल जाता है।
  • दूसरे संक्रमित व्यक्ति या चीज़ से संपर्क: संक्रमित तौलिया, कपड़े या जूते इस्तेमाल करने से फंगस फैल सकता है।
  • नंगे पैर गीली या सार्वजनिक जगहों पर चलना: जैसे स्वीमिंग पूल, जिम, बाथरूम या लॉकर रूम में नंगे पैर चलना भी संक्रमण का खतरा बढ़ाता है।

फंगल इन्फेक्शन के लक्षण (Signs and Symptoms of Fungal Infections)

कई बार आपको लग सकता है कि ये बस मामूली खुजली या पसीने की वजह से हुई जलन है, लेकिन असल में वो एक फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। अगर समय रहते आप इसके लक्षणों को नहीं पहचानते, तो यह संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ सकता है और शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल सकता है।

नीचे दिए गए सामान्य लक्षणों को ध्यान से पढ़ें। अगर आपको इनमें से कोई भी महसूस होता है, तो हो सकता है कि आप फंगल इन्फेक्शन से पीड़ित हों:

  • लगातार खुजली: अगर किसी एक जगह बार-बार और बहुत ज़्यादा खुजली होती है, तो यह फंगल संक्रमण का पहला संकेत हो सकता है।
  • लाल चकत्ते या रैशेज़: त्वचा पर लाल, घेरेदार या उठे हुए चकत्ते बनना जो फैलते जाएँ।
  • त्वचा का छिलना या फटना: खासकर पैरों की उंगलियों के बीच या जांघों में त्वचा फटना या सूखी होकर उतरना।
  • त्वचा में जलन या जलन के साथ दर्द: खुजली के साथ-साथ अगर आपको हल्की जलन या चुभन महसूस हो रही है तो इसे नज़रअंदाज़ न करें।
  • त्वचा पर छाले या दाने: पानी वाले छोटे-छोटे फुंसियों की तरह दाने निकल आना।
  • नाखूनों का रंग बदलना: पीले, भूरे या सफेद रंग के नाखून, जो मोटे हो जाएँ या टूटने लगें।
  • मुँह या गले में सफेद परत: अगर मुँह के अंदर सफेद धब्बे या परतें बनती हैं और खाना खाते वक्त दर्द होता है, तो ये कैंडिडा संक्रमण का संकेत हो सकता है।
  • बदबू या त्वचा से अजीब गंध आना: संक्रमित हिस्से से दुर्गंध आना भी एक लक्षण है।

Symptoms

लगातार खुजली

अगर किसी एक जगह बार-बार और बहुत ज़्यादा खुजली होती है, तो यह फंगल संक्रमण का पहला संकेत हो सकता है।

लाल चकत्ते या रैशेज़

त्वचा पर लाल, घेरेदार या उठे हुए चकत्ते बनना जो फैलते जाएँ।

त्वचा का छिलना

 खासकर पैरों की उंगलियों के बीच या जांघों में त्वचा फटना या सूखी होकर उतरना।

त्वचा में जलन

खुजली के साथ-साथ अगर आपको हल्की जलन या चुभन महसूस हो रही है तो इसे नज़रअंदाज़ न करें।

त्वचा पर छाले या दाने

पानी वाले छोटे-छोटे फुंसियों की तरह दाने निकल आना।

मुँह या गले में सफेद परत

अगर मुँह के अंदर सफेद धब्बे या परतें बनती हैं और खाना खाते वक्त दर्द होता है, तो ये कैंडिडा संक्रमण का संकेत हो सकता है।

क्या आप इनमें से किसी लक्षण से जूझ रहे हैं?

लगातार खुजली
लाल चकत्ते या रैशेज़
त्वचा का छिलना
त्वचा में जलन
त्वचा पर छाले या दाने
मुँह या गले में सफेद परत
 

जीवा Ayunique™ इलाज पद्धति – फंगल इन्फेक्शन के लिए एक सम्पूर्ण समाधान

जीवा आयुर्वेद फंगल इन्फेक्शन के इलाज के लिए एक प्राकृतिक और गहराई से असर करने वाला तरीका अपनाता है। यहाँ इलाज सिर्फ खुजली या चकत्तों को दबाने तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसकी जड़ में जाकर कारणों को समझा जाता है। हर व्यक्ति के शरीर और स्थिति के अनुसार इलाज को खास तौर पर तैयार किया जाता है। इसके ज़रिए आपका शरीर अंदर से साफ होता है, इम्युनिटी मज़बूत होती है और फंगल इन्फेक्शन दोबारा न हो इसका भी ध्यान रखा जाता है।

जीवा Ayunique™ इलाज पद्धति के मुख्य सिद्धांत

  • सुरक्षित और HACCP प्रमाणित आयुर्वेदिक दवाएँ: जीवा में इस्तेमाल होने वाली सभी आयुर्वेदिक दवाएँ वैज्ञानिक तरीकों से बनी होती हैं और HACCP प्रमाणित होती हैं। ये जड़ी-बूटियाँ आपके शरीर को अंदर से साफ करती हैं, बीमारी से लड़ने की ताकत बढ़ाती हैं और मन को भी शांत रखती हैं।
  • योग, ध्यान और मानसिक संतुलन: योग और मेडिटेशन जैसे आसान अभ्यास आपके तनाव को कम करते हैं और शरीर के साथ-साथ मन को भी स्वस्थ बनाते हैं। ये तरीके पूरी सेहत को संतुलित रखने में मदद करते हैं।
  • पारंपरिक आयुर्वेदिक इलाज: आयुर्वेद में पंचकर्म, तेल मालिश और शरीर को साफ करने वाले उपायों से अंदरूनी गंदगी दूर की जाती है। इससे शरीर का संतुलन दोबारा स्थापित होता है और इन्फेक्शन जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।
  • खानपान और दिनचर्या की सलाह: जीवा के वैद्य आपको आपकी प्रकृति और रोग के अनुसार क्या खाना चाहिए, कैसी दिनचर्या रखनी चाहिए इसकी पूरी गाइड देते हैं ताकि आप पहले से भी ज़्यादा मज़बूत और सेहतमंद बन सकें और आगे किसी बीमारी से बचाव हो सके।

फंगल इन्फेक्शन के लिए आयुर्वेदिक दवाएँ (Ayurvedic Medicines for Fungal Infections)

अगर आप बार-बार हो रही खुजली, लाल चकत्तों या स्किन इन्फेक्शन से परेशान हैं, तो अब समय है कि आप आयुर्वेद की मदद लें। आयुर्वेदिक दवाएँ न सिर्फ लक्षणों को कम करती हैं, बल्कि शरीर के अंदर से सफाई कर फंगल इन्फेक्शन की जड़ को खत्म करती हैं। ये दवाएँ पूरी तरह से प्राकृतिक होती हैं और आपके शरीर के संतुलन को ठीक करने में मदद करती हैं।

यहाँ हम आपको बताते हैं कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उपायों के बारे में, जो फंगल इन्फेक्शन में असरदार माने गए हैं:

  • हल्दी (Turmeric): इसमें करक्यूमिन होता है जो एक शक्तिशाली एंटी-फंगल, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट है। यह शरीर को अंदर से साफ करता है और स्किन की जलन को कम करता है।
  • लहसुन (Garlic): यह प्राकृतिक एंटीबायोटिक है और फंगस को बढ़ने से रोकता है। साथ ही इम्यूनिटी को भी मज़बूत बनाता है।
  • शहद (Honey): इसमें एंटीफंगल और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। यह त्वचा को शांत करता है और घाव भरने में मदद करता है।
  • सेब का सिरका (Apple Cider Vinegar): यह शरीर को डिटॉक्स करता है और फंगल विकास को रोकता है।
  • नीम (Neem): इसमें निम्बिडोल और गेडुनिन जैसे यौगिक होते हैं जो फंगस को नष्ट करने में कारगर हैं।
  • एलोवेरा (Aloe Vera): यह त्वचा को ठंडक देता है और फंगल संक्रमण को शांत करता है। इसमें सल्फर, सैलिसिलिक एसिड और लुपियोल जैसे तत्व होते हैं।
  • मुलैठी पाउडर (Licorice Powder): इसमें एंटी-फंगल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह रिंगवर्म जैसे इन्फेक्शन में फायदेमंद होता है।
  • नारियल तेल (Coconut Oil): इसमें मौजूद फैटी एसिड्स त्वचा पर फंगल ग्रोथ को रोकते हैं और उसे सुरक्षित बनाए रखते हैं।
  • टी ट्री ऑयल (Tea Tree Oil): यह शक्तिशाली एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल तेल है। इसे किसी कैरियर ऑयल के साथ मिलाकर ही इस्तेमाल करना चाहिए।
  • लेमनग्रास ऑयल (Lemongrass Oil): इसमें मौजूद क्वेरसेटिन और अन्य एंटीऑक्सीडेंट्स स्किन की जलन को कम करते हैं और फंगस से लड़ते हैं।
  • पुदीना (Peppermint): यह सूजन और जलन को कम करता है। इसकी चाय या भाप लेने से राहत मिल सकती है।
  • बिच्छू बूटी (Stinging Nettle): यह एक प्राकृतिक एंटीहिस्टामिन है और फंगल इन्फेक्शन से जुड़ी खुजली से राहत देता है।
  • पीपल के पत्ते (Pipal Leaves): पीपल के पत्ते घाव भरने और फंगस को रोकने में मददगार हैं। इनसे बने पानी से त्वचा धोना लाभदायक होता है।
  • भाप चिकित्सा (Steam Therapy with Essential Oils): नीलगिरी, टी ट्री, पुदीना और रोज़मेरी जैसे तेलों से भाप लेने से नाक की जलन और त्वचा की खुजली में आराम मिलता है।
  • नमक वाला पानी (Salt Water Nasal Rinse): नाक की सफाई के लिए उपयोगी होता है, खासकर जब फंगल संक्रमण से एलर्जी जैसी दिक्कत हो रही हो।
  • नींबू (Lemon): यह शरीर को डिटॉक्स करता है और इम्युनिटी को बढ़ाता है। सुबह-सुबह नींबू पानी पीना पूरे शरीर के लिए फायदेमंद होता है।

इन सभी आयुर्वेदिक उपायों को अपनाने से आप न केवल लक्षणों से राहत पा सकते हैं, बल्कि इन्फेक्शन की जड़ तक जाकर उसका समाधान कर सकते हैं। अगर आपकी समस्या पुरानी हो चुकी है या बार-बार लौट आती है, तो जीवा के योग्य आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श ज़रूर लें।

FAQs

आयुर्वेद में हल्दी, लहसुन, नीम, एलोवेरा, मुलैठी, नारियल तेल, और शहद जैसे उपाय फंगल इन्फेक्शन में बहुत असरदार माने जाते हैं। ये शरीर को अंदर से साफ करते हैं और त्वचा की सूजन, जलन और खुजली को धीरे-धीरे खत्म करते हैं।

फंगल इन्फेक्शन को जड़ से खत्म करने के लिए आपको आयुर्वेदिक दवाएँ, सही खानपान, शरीर की सफाई और जीवनशैली में बदलाव की ज़रूरत होती है। साथ ही, इम्युनिटी बढ़ाने वाले उपाय अपनाना भी ज़रूरी है ताकि फंगस दोबारा न हो।

विटामिन C और विटामिन D फंगल इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। ये शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और त्वचा को ठीक करने में भी मदद करते हैं। नींबू, आंवला, धूप और हल्दी इन विटामिन्स के अच्छे स्रोत हैं।

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