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सोरायसिस एक तकलीफ़देह त्वचा रोग है, जिसमें खुजली, जलन और परतदार चकत्ते हो जाते हैं। आयुर्वेद में इसका इलाज जड़ से संभव है। जीवा आयुर्वेदा में आपको पारंपरिक चिकित्सा, हर्बल दवाइयों, सही खानपान और जीवनशैली में बदलाव के ज़रिए व्यक्तिगत इलाज मिलता है।
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सोरायसिस क्या है और आयुर्वेद इस बारे में क्या कहता है? (What is Psoriasis?)
अगर आपकी त्वचा पर बार-बार खुजली वाले, लाल रंग के चकत्ते बनते हैं और उन पर सफेद या सिल्वर रंग की पपड़ी जम जाती है, तो यह सोरायसिस (Psoriasis) हो सकता है। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, यानी आपकी खुद की रोग प्रतिरोधक शक्ति आपकी त्वचा की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने लगती है। इसके कारण त्वचा पर तेज़ी से नई कोशिकाएँ बनने लगती हैं, जिससे स्किन मोटी, सूखी और परतदार हो जाती है।
सोरायसिस छूने से नहीं फैलता, लेकिन इसका असर आपकी ज़िंदगी पर गहरा पड़ सकता है। शारीरिक तकलीफ़ के साथ-साथ आत्मविश्वास में भी कमी आ सकती है। कई लोगों को यह समस्या सालों-साल रहती है और अचानक बढ़ भी जाती है, जिसे फ्लेयर-अप कहा जाता है।
अब बात करते हैं आयुर्वेद की।
आयुर्वेद में सोरायसिस को "एककुष्ठ" या "किटिभ" नाम से जाना जाता है, जो कुष्ठ रोग की एक श्रेणी में आता है। आयुर्वेद मानता है कि यह रोग मुख्य रूप से वात और कफ दोष के असंतुलन से होता है, और कई बार पित्त दोष भी इसमें जुड़ जाता है। इसके साथ-साथ शरीर में अमा (Toxins) यानी विषैले तत्व जमा हो जाते हैं, जो त्वचा की गहराई तक असर करते हैं।
अगर आप सोरायसिस से परेशान हैं, तो आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से इसका इलाज सिर्फ बाहरी त्वचा पर नहीं बल्कि आपकी पूरी शारीरिक और मानसिक स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है। आयुर्वेद का मानना है कि जब तक शरीर अंदर से शुद्ध और संतुलित नहीं होगा, तब तक कोई भी त्वचा रोग पूरी तरह ठीक नहीं हो सकता।
जीवा आयुर्वेदा में आपको आपका पूरा जीवनचर्या, आहार, तनाव का स्तर और शरीर के दोषों का विश्लेषण करके एक व्यक्तिगत इलाज प्लान मिलता है ताकि आपको सिर्फ आराम ही नहीं, बल्कि स्थायी राहत मिल सके।
अब जब आप जान चुके हैं कि सोरायसिस सिर्फ स्किन की बीमारी नहीं, तो चलिए आगे जानते हैं इसके लक्षण और कारण।
सोरायसिस के प्रकार (Types of Psoriasis)
अगर आप सोरायसिस से जूझ रहे हैं, तो यह जानना ज़रूरी है कि यह एक ही तरह की बीमारी नहीं है। इसके कई प्रकार होते हैं, और हर प्रकार के लक्षण अलग होते हैं। सही इलाज के लिए यह समझना ज़रूरी है कि आपको किस प्रकार का सोरायसिस है।
- प्लेक सोरायसिस (Plaque Psoriasis)
यह सबसे आम प्रकार है। इसमें त्वचा पर लाल रंग के उभरे हुए चकत्ते बनते हैं जिन पर सफेद या सिल्वर रंग की पपड़ी होती है। आमतौर पर ये चकत्ते कोहनी, घुटनों, खोपड़ी और पीठ पर दिखते हैं। इनमें तेज़ खुजली और जलन हो सकती है। - गुटेट सोरायसिस (Guttate Psoriasis)
यह बच्चों और युवाओं में ज़्यादा होता है। इसमें शरीर पर छोटे-छोटे लाल दाने या धब्बे दिखते हैं, खासकर छाती, पीठ, हाथ और पैर पर। यह अक्सर किसी इंफेक्शन के बाद शुरू होता है। - नाखून सोरायसिस (Nail Psoriasis)
अगर आपके नाखूनों में गड्ढे, दरारें, पीलापन या टूट-फूट दिख रही है, तो यह नाखून सोरायसिस हो सकता है। इससे नाखून कमज़ोर हो जाते हैं और कभी-कभी अलग भी हो सकते हैं। - इनवर्स सोरायसिस (Inverse Psoriasis)
यह शरीर की त्वचा की सिलवटों में होता है – जैसे बगल, जांघों के अंदर या गले के नीचे। इसमें चमकदार, लाल और चिकनी त्वचा दिखती है। पसीना और रगड़ इसे और बढ़ा सकते हैं। - पस्ट्युलर सोरायसिस (Pustular Psoriasis)
इसमें त्वचा पर सफेद रंग के मवाद से भरे छाले बनते हैं। यह ज़्यादा गंभीर और दर्दनाक हो सकता है। - एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस (Erythrodermic Psoriasis)
यह बहुत ही गंभीर प्रकार है जिसमें पूरा शरीर लाल, छिलती हुई और जलन वाली त्वचा से भर जाता है। यह मेडिकल इमरजेंसी बन सकती है।
सोरायसिस होने के सामान्य कारण (Common Causes of Psoriasis)
सोरायसिस कोई बाहरी संक्रमण नहीं है, बल्कि यह आपके शरीर के अंदर चल रही गड़बड़ी का संकेत होता है। अक्सर यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है और कुछ खास कारणों से अचानक लक्षणों का तेज़ बढ़ना भी हो सकता है। अगर आप इन कारणों को समय रहते पहचान लें, तो आप अपनी हालत को काफ़ी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं।
नीचे कुछ सामान्य कारण दिए गए हैं, जिनसे सोरायसिस की शुरुआत या बढ़ोतरी हो सकती है:
- कमज़ोर इम्यून सिस्टम (Immune System)
जब आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कमज़ोर होती है, तब शरीर अपनी ही स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने लगता है। यही प्रक्रिया सोरायसिस में देखने को मिलती है। - आनुवंशिकता (Genetics)
अगर आपके परिवार में किसी को सोरायसिस है, तो आपके लिए भी इसका खतरा थोड़ा ज़्यादा हो सकता है। - तेज़ तनाव (Stress)
लगातार चिंता या मानसिक तनाव आपकी इम्यूनिटी को बिगाड़ सकता है, जिससे सोरायसिस के लक्षण बढ़ सकते हैं। - त्वचा में चोट या घाव
अगर आपकी त्वचा पर कट, जलन या स्क्रैच होता है, तो वहाँ सोरायसिस के चकत्ते बनने की संभावना होती है। इसे 'Koebner phenomenon' कहा जाता है। - इन्फेक्शन (जैसे गले में स्टेफ इन्फेक्शन)
कुछ इन्फेक्शन, खासकर बच्चों में, गुटेट सोरायसिस को ट्रिगर कर सकते हैं। - कुछ दवाइयों का असर
कुछ दवाइयाँ जैसे कि बीटा-ब्लॉकर्स, लिथियम या स्टेरॉइड्स आपकी स्किन की प्रतिक्रिया को बिगाड़ सकती हैं। - मौसम में बदलाव
ठंडा और शुष्क मौसम आपकी त्वचा को और ज़्यादा रूखा बना देता है, जिससे सोरायसिस के लक्षण बढ़ सकते हैं। - शरीर में हार्मोनल बदलाव
गर्भावस्था, मासिक धर्म या मेनोपॉज़ जैसे समय में हार्मोन में बदलाव होने पर भी लक्षण उभर सकते हैं।
सोरायसिस के लक्षण (Signs and Symptoms of Psoriasis)
अगर आपकी त्वचा पर बार-बार बदलाव दिख रहे हैं, खुजली हो रही है, या स्किन पर मोटी परतें बन रही हैं, तो यह सिर्फ आम सूखापन नहीं हो सकता। सोरायसिस के लक्षण धीरे-धीरे शुरू होकर समय के साथ तेज़ भी हो सकते हैं। सही समय पर पहचान करना इलाज की दिशा में पहला कदम है।
यहाँ सोरायसिस के कुछ आम लक्षण बताए जा रहे हैं जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए:
- त्वचा पर लाल, सूजे हुए और परतदार चकत्ते बनना
ये चकत्ते मोटे और रूखे होते हैं और अक्सर इन पर सिल्वर या सफेद रंग की परत जम जाती है। - तेज़ खुजली और जलन
प्रभावित हिस्से में लगातार खुजली और जलन हो सकती है, जिससे नींद भी प्रभावित हो सकती है। - त्वचा का फटना और खून आना
अगर आप बार-बार खुजलाते हैं, तो स्किन की परतें फट सकती हैं और हल्का खून भी निकल सकता है। - त्वचा का अत्यधिक सूखापन और झड़ना
स्किन इतनी सूखी हो जाती है कि उससे पपड़ी गिरने लगती है। - नाखूनों में बदलाव
नाखून कमज़ोर हो सकते हैं, उनमें गड्ढे या दरारें आ सकती हैं, और रंग भी बदल सकता है। - जोड़ों में दर्द या सूजन
कुछ लोगों में सोरायसिस के साथ-साथ जोड़ों में दर्द या सूजन की समस्या भी होती है, जिसे 'सोरियाटिक अर्थराइटिस' कहा जाता है। - त्वचा की संवेदनशीलता बढ़ जाना
हल्की-सी रगड़ या चोट भी त्वचा पर लालपन और जलन पैदा कर सकती है।
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Symptoms
त्वचा पर लाल, सूजे हुए और परतदार चकत्ते बनना
ये चकत्ते मोटे और रूखे होते हैं और अक्सर इन पर सिल्वर या सफेद रंग की परत जम जाती है।
तेज़ खुजली और जलन
प्रभावित हिस्से में लगातार खुजली और जलन हो सकती है, जिससे नींद भी प्रभावित हो सकती है।
त्वचा का फटना और खून आना
अगर आप बार-बार खुजलाते हैं, तो स्किन की परतें फट सकती हैं और हल्का खून भी निकल सकता है।
त्वचा का अत्यधिक सूखापन और झड़ना
स्किन इतनी सूखी हो जाती है कि उससे पपड़ी गिरने लगती है।
नाखूनों में बदलाव
नाखून कमज़ोर हो सकते हैं, उनमें गड्ढे या दरारें आ सकती हैं, और रंग भी बदल सकता है।
जोड़ों में दर्द या सूजन
कुछ लोगों में सोरायसिस के साथ-साथ जोड़ों में दर्द या सूजन की समस्या भी होती है, जिसे 'सोरियाटिक अर्थराइटिस' कहा जाता है।
त्वचा की संवेदनशीलता बढ़ जाना
हल्की-सी रगड़ या चोट भी त्वचा पर लालपन और जलन पैदा कर सकती है।
जीवा आयुनिक™ इलाज पद्धति – सोरायसिस के लिए एक संपूर्ण आयुर्वेदिक तरीका
सोरायसिस के इलाज के लिये जीवा आयुर्वेदा सिर्फ दवाएँ नहीं देता, बल्कि आपकी पूरी जीवनशैली, शरीर की प्रकृति और रोग की जड़ को ध्यान में रखकर इलाज करता है। यहाँ इलाज का उद्देश्य सिर्फ खुजली या चकत्तों को दबाना नहीं, बल्कि शरीर को अंदर से ठीक करना, संतुलन बनाना और रोग को दोबारा लौटने से रोकना है।
जीवा आयुनिक™ इलाज पद्धति के मूल सिद्धांत
- सुरक्षित और HACCP प्रमाणित आयुर्वेदिक दवाएँ: ये हर्बल दवाएँ खास विधि से तैयार की जाती हैं, जो आपके शरीर को अंदर से साफ करने, ठीक करने और मानसिक शांति लाने में मदद करती हैं।
- योग, ध्यान और आत्मचिंतन: ये आसान लेकिन प्रभावी तरीके हैं जो आपके मन को शांत करते हैं, तनाव घटाते हैं और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं।
- पारंपरिक आयुर्वेदिक थैरेपी: पंचकर्म, तेल मालिश और शरीर शुद्धि जैसी विधियों से शरीर की गहराई तक सफाई होती है और आंतरिक संतुलन लौटता है।
- आहार और जीवनशैली की सलाह: आयुर्वेदिक विशेषज्ञ आपको बताते हैं कि क्या खाना है और कैसी दिनचर्या अपनानी है ताकि आप शरीर को मज़बूत बना सकें, स्वस्थ रह सकें और आगे चलकर बीमारियों से बचाव हो सके।
सोरायसिस के लिए आयुर्वेदिक दवाएँ – जड़ से राहत पाने का तरीका (Ayurvedic Medicines for Psoriasis)
अगर आप सोरायसिस से लंबे समय से परेशान हैं और बार-बार एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट से थक चुके हैं, तो आयुर्वेदिक इलाज आपके लिए एक सुरक्षित और प्रभावशाली विकल्प हो सकता है। आयुर्वेद न सिर्फ त्वचा पर दिखने वाले लक्षणों को ठीक करता है, बल्कि शरीर के अंदर से दोषों को संतुलित करके रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करता है।
नीचे कुछ प्रभावशाली आयुर्वेदिक औषधियाँ दिए गए हैं जो सोरायसिस के आयुर्वेदिक उपचार में बहुत उपयोगी माने जाते हैं:
- नीम का तेल (Neem Oil)
इसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-एलर्जिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह त्वचा की खुजली, सूजन और संक्रमण को कम करता है। नारियल तेल में मिलाकर इसे प्रभावित हिस्से पर लगाएँ। - एलोवेरा (Aloe Vera)
यह ठंडक देने वाला, एंटीऑक्सीडेंट और हीलिंग एजेंट है। यह त्वचा की जलन को शांत करता है और खुजली में आराम देता है। ताज़ा जेल निकालकर दिन में 3-4 बार लगाएँ। - गंधक (Gandhak)
यह एक प्राकृतिक रक्त शोधक (blood purifier) और एंटीमाइक्रोबियल औषधि है। इसका पाउडर दूध में मिलाकर पेस्ट बनाएँ और त्वचा पर लगाएँ। - तोरई के पत्ते (Taroi Leaves)
ठंडक और सूजन कम करने में मददगार। इसके रस में एलोवेरा जेल और नारियल तेल मिलाकर लगाएँ। इससे स्किन की परतें और सूखापन कम होगा। - बादाम (Badam)
यह त्वचा को पोषण देता है और खुजली में राहत दिलाता है। 10 बादाम का पाउडर बनाकर उबालें और ठंडा करके रात मे त्वचा पर लगाएँ। - हल्दी (Turmeric)
यह एक शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीबायोटिक है। इसे अंदरूनी और बाहरी दोनों रूपों में इस्तेमाल किया जा सकता है। हल्दी त्वचा को निखारती है और घावों को भरती है। - लहसुन (Garlic)
एंटीऑक्सीडेंट और डिटॉक्सिफाइंग गुणों से भरपूर, लहसुन शरीर से विषैले तत्व निकालता है और त्वचा को साफ करता है। इसे रोज़ खाने में शामिल करें। - गुडूची (Guduchi या Giloy)
यह तीनों दोषों को संतुलित करता है और त्वचा की कोशिकाओं को पोषण देता है। यह शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में भी सहायक है। - तुलसी (Basil)
एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक जो त्वचा की सूजन को कम करता है और चकत्तों को घटाता है। इसे चबाकर खाएँ या पत्तों का रस लगाएँ। - गुग्गुलु (Guggul)
रक्त को शुद्ध करता है और सूजन कम करता है। यह अंदर से त्वचा को स्वस्थ बनाने में मदद करता है। इसे टैबलेट या चूर्ण रूप में लिया जा सकता है। - त्रिफला (Triphala)
तीन फलों से बना यह फार्मूला शरीर को डिटॉक्स करता है और पाचन सुधारता है। यह त्वचा को अंदर से साफ करता है और नए सेल्स बनने में मदद करता है।
इन सभी जड़ी-बूटियों का प्रयोग तभी करें जब आपको अपने शरीर के दोषों की सही जानकारी हो। जीवा आयुर्वेदा में आपकी प्रकृति (body type), जीवनशैली और लक्षणों के अनुसार एक व्यक्तिगत योजना बनाई जाती है, जिससे आपको न सिर्फ आराम, बल्कि स्थायी लाभ मिल सके।
FAQs
आयुर्वेद में नीम, गुग्गुलु, त्रिफला, हल्दी, और गंधक जैसी जड़ी-बूटियों को सोरायसिस के लिए सबसे असरदार माना जाता है। ये शरीर को अंदर से शुद्ध करती हैं और त्वचा को पोषण देती हैं। लेकिन कौन-सी दवा आपके लिए सही है, यह आपकी प्रकृति और लक्षणों पर निर्भर करता है।
सोरायसिस का जड़ से इलाज तभी संभव है जब शरीर के अंदर जमा विष (अमा) को बाहर निकाला जाए और दोषों का संतुलन किया जाए। आयुर्वेद में इसके लिए पंचकर्म, सही आहार, जीवनशैली में बदलाव और हर्बल दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस वात, कफ और पित्त दोष के असंतुलन से होता है, खासकर जब शरीर में अमा (toxins) जमा हो जाते हैं। यह दोष त्वचा और रक्त धातु को प्रभावित करते हैं, जिससे त्वचा पर चकत्ते और खुजली होती है।
हाँ, नीम में एंटीबैक्टीरियल, एंटीइंफ्लेमेटरी और डिटॉक्स गुण होते हैं जो सोरायसिस की खुजली, सूजन और संक्रमण को कम करते हैं। नीम का तेल नारियल तेल में मिलाकर लगाना और नीम का सेवन दोनों ही फायदेमंद हो सकते हैं।
सोरायसिस शरीर में इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी, गलत खानपान, नींद की कमी, तनाव और त्वचा की सही देखभाल न करने से होता है। यह विटामिन डी और ओमेगा-3 फैटी एसिड की कमी से भी बढ़ सकता है।
बहुत मसालेदार खाना, तली हुई चीज़ें, मांस, दही, समुद्री भोजन, और शराब जैसी चीज़ें सोरायसिस को बढ़ा सकती हैं। आयुर्वेद में इन्हें 'दोष वर्धक' माना गया है। बेहतर होगा कि आप हल्का, ताज़ा और संतुलित भोजन लें।
सोरायसिस एक क्रॉनिक बीमारी है जो समय-समय पर उभर सकती है, लेकिन आयुर्वेद में इसे जड़ से नियंत्रित करने के उपाय हैं। सही इलाज और जीवनशैली अपनाकर आप इसके लक्षणों को लंबे समय तक रोक सकते हैं।
त्वचा को हमेशा मॉइश्चराइज़ रखें, हल्के साबुन और ठंडे पानी का इस्तेमाल करें, और खुजली से बचें। नारियल तेल या एलोवेरा जेल लगाना बहुत फायदेमंद होता है। स्किन को रगड़ने या जोर से पोंछने से बचें।
हाँ, ठंडा और सूखा मौसम सोरायसिस को बढ़ा सकता है क्योंकि इससे त्वचा और ज़्यादा रूखी हो जाती है। गर्म, नम वातावरण में लक्षण थोड़े कम हो सकते हैं। ऐसे समय में स्किन को हाइड्रेट रखना ज़रूरी है।
तनाव सोरायसिस को ट्रिगर करता है। इसके लिए ध्यान (मेडिटेशन), योग, गहरी साँस लेना और भरपूर नींद लेना बेहद ज़रूरी है। आयुर्वेदिक औषधियाँ जैसे ब्राह्मी और अश्वगंधा भी तनाव कम करने में सहायक होती हैं।
हाँ, गुटेट सोरायसिस नाम का एक प्रकार खासकर बच्चों और युवाओं में होता है। इसमें शरीर पर छोटे-छोटे लाल धब्बे बनते हैं। सही समय पर आयुर्वेदिक इलाज और खानपान से इसे काफ़ी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
बिलकुल, एलोवेरा की ठंडी प्रकृति सोरायसिस की जलन और खुजली में बहुत आराम देती है। ताज़े एलोवेरा जेल को सीधे चकत्तों पर लगाएँ और कुछ देर बाद धो लें। दिन में 2-3 बार लगाने से त्वचा को ठंडक और राहत मिलेगी।
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