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Disk Bulge की वजह से चलना बंद हो गया था—Ayurveda ने कैसे दोबारा खड़ा होने की ताकत दी

Information By Dr. Arun Gupta

कमला सिंह, 58 वर्ष, बिहार से हैं, जिनके लिए डिस्क बल्ज की वजह से दोनों पैरों का दर्द इतना बढ़ गया था कि उनका चलना लगभग रुक सा गया था। वे कुछ ही मिनट खड़े नहीं रह पाती थीं और सीढ़ियाँ चढ़ना तो असंभव था। एल4–एल5 और एल5–एस1 पर डिस्क में दबाव की वजह से नसों में समस्या थी। जीवा आयुर्वेद के उपचार के बाद कमला सिंह जी ने फिर से खड़े होने और चलने की ताकत हासिल की। उनका अनुभव यह दिखाता है कि सही इलाज और समर्पित देखभाल से जीवन फिर से सामान्य किया जा सकता है।

भारत में कमर और पीठ का दर्द एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। 2025 में एक व्यवस्थित अध्ययन के अनुसार भारत में लगभग 48 प्रतिशत लोग कमर या पीठ के दर्द से कभी न कभी पीड़ित रहते हैं, जो धीरे-धीरे चलने-फिरने और रोज़मर्रा की गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है। यह सिर्फ मामूली दर्द नहीं है, बल्कि कई बार डिस्क से जुड़ी गंभीर स्थिति जैसे डिस्क बल्ज या डिस्क हर्निएशन तक बदल सकती है, जो नसों पर दबाव डालकर पैरों में तेज़ दर्द, सुन्नपन और कमज़ोरी जैसी समस्याएँ पैदा कर देती है।

कमला सिंह जी की कहानी इसी समस्या की एक ज़िंदा मिसाल है। 58 वर्ष की उम्र में उन्हें कमर से लेकर पैरों तक दर्द, खड़े रहने में कठिनाई और सीढ़ियाँ चढ़ने में असमर्थता जैसी समस्याएँ थीं, जिससे उनका रोज़मर्रा का जीवन बाधित हो गया था। डॉक्टरों की जांच में पता चला कि उनके एल4–एल5 और एल5–एस1 डिस्क में बल्ज होने के कारण नसों पर दबाव था, जो पैरों में दर्द और कमज़ोरी का मुख्य कारण बन रहा था। यह समस्या केवल कमला जी तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में लाखों लोग इसी तरह की स्थिति से जूझते हैं, खासकर 40 से ऊपर की उम्र में यह समस्या और भी आम हो जाती है।

बहुत से लोग इस दर्द को सामान्य उम्र बढ़ने का हिस्सा मान लेते हैं या दर्द निवारक दवाओं के सहारे जीने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब यह समस्या गंभीर रूप ले लेती है तो रोज़ के कामकाज में तकलीफ और जीवन की गुणवत्ता पर बड़ा असर पड़ता है। कमला जी जैसे मरीज़ों के अनुभव से यह स्पष्ट होता है कि समय पर सही दिशा में इलाज और देखभाल मिलने पर फिर से स्वतंत्रता और सहूलियत पाना संभव है—यह दर्द से परेशान हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणादायक संदेश है।

डिस्क बल्ज क्या होता है और यह चलने-फिरने की क्षमता को कैसे प्रभावित करता है?

रीढ़ की हड्डी को अगर शरीर की मुख्य डंडी समझें, तो इसके बीच-बीच में मौजूद नरम गद्दियों जैसी संरचनाएँ शरीर को सहारा देने का काम करती हैं। जब इनमें से कोई गद्दी अपनी जगह से बाहर की ओर उभर जाती है, तो उसे ही आम भाषा में डिस्क बल्ज कहा जाता है। यह उभरी हुई डिस्क पास से गुजरने वाली नसों पर दबाव डालने लगती है। यही दबाव धीरे-धीरे दर्द, जलन, सुन्नता और कमज़ोरी की वजह बनता है।

जब नसों पर लगातार दबाव बना रहता है, तो शरीर का संदेश तंत्र ठीक से काम नहीं कर पाता। इसका सीधा असर पैरों पर पड़ता है। चलने में लड़खड़ाहट, पैरों में खिंचाव, भारीपन या अचानक तेज़ दर्द होने लगता है। शुरुआत में यह दर्द हल्का लग सकता है, लेकिन समय के साथ यह इतना बढ़ सकता है कि कुछ कदम चलना भी चुनौती बन जाए।

कमला सिंह जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। शुरू में उन्हें लगा कि यह सामान्य कमर दर्द है, लेकिन जब खड़े रहना मुश्किल होने लगा और पैरों में लगातार दर्द बना रहा, तब समझ आया कि समस्या गहरी है। डिस्क बल्ज केवल दर्द की समस्या नहीं होती, बल्कि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता को धीरे-धीरे सीमित कर देती है। आप चाहकर भी सामान्य काम नहीं कर पाते, क्योंकि शरीर साथ नहीं देता।

इस स्थिति में सबसे अधिक असर आत्मविश्वास पर पड़ता है। जब चलना-फिरना ही कठिन हो जाए, तो मन में डर बैठने लगता है कि कहीं स्थिति और खराब न हो जाए। यही वजह है कि डिस्क बल्ज को केवल पीठ की समस्या मानकर नज़रअंदाज़ करना सही नहीं होता।

जब दोनों पैरों में दर्द हो और खड़ा रहना मुश्किल हो जाए, तब जीवन कैसा हो जाता है?

कल्पना कीजिए कि आप सुबह उठें और बिस्तर से उठते ही पैरों में ऐसा दर्द हो कि खड़े होने से पहले कई बार सोचना पड़े। कुछ मिनट खड़े रहने पर ही पैरों में जान निकल जाए और बैठने की मजबूरी बन जाए। यही स्थिति कमला सिंह जी के जीवन का हिस्सा बन चुकी थी।

घर के छोटे-छोटे काम, जो पहले बिना सोचे किए जाते थे, अब पहाड़ जैसे लगने लगे थे। रसोई में खड़े होकर काम करना, बाहर निकलना, या किसी से मिलने जाना—सब कुछ दर्द और थकान से जुड़ गया था। सीढ़ियाँ उनके लिए सबसे बड़ा डर बन चुकी थीं। हर सीढ़ी पर ऐसा लगता था जैसे पैर जवाब दे देंगे।

ऐसी स्थिति में सिर्फ शरीर ही नहीं थकता, मन भी बोझिल हो जाता है। बार-बार दूसरों पर निर्भर रहना अच्छा नहीं लगता। आप चाहकर भी अपने काम खुद नहीं कर पाते। कमला जी के लिए भी यह समय मानसिक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण था। दर्द के साथ-साथ यह चिंता भी रहती थी कि आगे चलकर कहीं चलना पूरी तरह बंद न हो जाए।

यह अनुभव बहुत से लोगों के लिए जाना-पहचाना है। जब दोनों पैरों में दर्द हो और संतुलन बिगड़ने लगे, तो बाहर निकलने से डर लगने लगता है। गिर जाने का डर, दर्द बढ़ जाने का डर और भविष्य को लेकर असमंजस—ये सब धीरे-धीरे जीवन की खुशी को कम कर देते हैं। यही कारण है कि डिस्क बल्ज केवल शारीरिक समस्या नहीं रह जाती, बल्कि पूरे जीवन को प्रभावित करने लगती है।

जब एलोपैथिक इलाज से स्थायी राहत न मिले, तब आगे क्या रास्ता बचता है?

दर्द शुरू होते ही अक्सर सबसे पहला सहारा दवाएँ बनती हैं। शुरुआत में इनसे कुछ समय के लिए आराम भी मिल जाता है, लेकिन कई लोगों के लिए यह आराम टिकाऊ नहीं होता। जैसे ही दवा का असर कम होता है, दर्द फिर लौट आता है। धीरे-धीरे दवाओं पर निर्भरता बढ़ने लगती है और मन में यह सवाल उठता है कि क्या पूरी ज़िंदगी इसी तरह चलेगी।

कमला सिंह जी के साथ भी यही हुआ। दर्द को कम करने वाली दवाओं से कुछ समय के लिए राहत मिली, लेकिन चलने-फिरने की परेशानी जस की तस बनी रही। खड़े रहने की क्षमता वापस नहीं आ रही थी और पैरों की कमज़ोरी भी कम नहीं हो रही थी। ऐसे में यह साफ हो गया कि केवल दर्द दबाना ही पर्याप्त नहीं है।

जब स्थायी आराम नहीं मिलता, तब व्यक्ति विकल्पों के बारे में सोचने लगता है। आप भी यही सोचते हैं कि ऐसा क्या किया जाए जिससे समस्या की जड़ पर काम हो, न कि केवल ऊपर से दर्द को दबाया जाए। यही वह मोड़ होता है जहाँ बहुत से लोग आयुर्वेद की ओर देखते हैं—एक ऐसे इलाज के रूप में जो शरीर को समग्र रूप से समझने की बात करता है।

यहाँ उम्मीद इसलिए भी जागती है क्योंकि आयुर्वेद सिर्फ लक्षणों पर नहीं, बल्कि यह देखने की कोशिश करता है कि शरीर के अंदर असंतुलन कहाँ हुआ है। कमला जी के लिए भी यह तलाश एक नए रास्ते की शुरुआत बनी, जहाँ इलाज का उद्देश्य केवल दर्द कम करना नहीं, बल्कि दोबारा सामान्य जीवन की ओर लौटना था।

आयुर्वेद डिस्क बल्ज को शरीर के अंदर कैसे समझता है?

आयुर्वेद के अनुसार शरीर के भीतर सब कुछ संतुलन पर टिका होता है। जब यह संतुलन बिगड़ता है, तब समस्याएँ पैदा होती हैं। डिस्क बल्ज जैसी स्थिति को आयुर्वेद मुख्य रूप से वात दोष के असंतुलन से जोड़कर देखता है। वात दोष शरीर में गति, नसों और संवेदनाओं से जुड़ा होता है।

जब वात असंतुलित हो जाता है, तो नसों में कमज़ोरी आने लगती है। शरीर का पोषण सही तरीके से नहीं पहुँच पाता और जोड़ों तथा रीढ़ के आसपास सूखापन बढ़ने लगता है। यही सूखापन और कमज़ोरी धीरे-धीरे दर्द, जकड़न और चलने में परेशानी का कारण बनती है।

आयुर्वेद यह भी मानता है कि समस्या केवल कमर तक सीमित नहीं होती। पूरे शरीर की स्थिति, पाचन, दिनचर्या और मानसिक तनाव—सब कुछ इसमें भूमिका निभाता है। इसलिए इलाज भी केवल एक हिस्से तक सीमित नहीं रहता। आप जब आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से देखते हैं, तो यह समझ आता है कि क्यों नसों पर दबाव पड़ रहा है और उसे कैसे धीरे-धीरे कम किया जा सकता है।

कमला सिंह जी के मामले में भी शरीर के भीतर असंतुलन को समझना पहला कदम था। केवल दर्द की जगह पर ध्यान देने के बजाय यह देखा गया कि शरीर की ताकत कहाँ कम हो रही है और उसे कैसे वापस लाया जाए। यही आयुर्वेद की खासियत है—समस्या को जड़ से समझना और पूरे शरीर को साथ लेकर चलना।

जीवा आयुर्वेद में कमला सिंह जी का उपचार कैसे शुरू हुआ?

जीवा आयुर्वेद में कमला सिंह जी का उपचार केवल जाँच रिपोर्ट तक सीमित नहीं रहा। यहाँ सबसे पहले उनकी पूरी स्थिति को समझने पर ज़ोर दिया गया। यह देखा गया कि दर्द कब बढ़ता है, चलने में कहाँ सबसे ज़्यादा दिक्कत आती है और रोज़मर्रा की ज़िंदगी किस तरह प्रभावित हो रही है।

शुरुआती बातचीत और जाँच में इन बातों पर विशेष ध्यान दिया गया:

  • उनकी दैनिक दिनचर्या और शारीरिक गतिविधियाँ

  • कमर और पैरों के दर्द की तीव्रता और समय

  • खड़े रहने और चलने में आने वाली वास्तविक कठिनाइयाँ

इसके बाद समस्या को व्यक्ति-विशेष के अनुसार देखा गया। आयुर्वेद यह मानता है कि हर शरीर अलग प्रतिक्रिया देता है, इसलिए एक जैसा उपचार सभी के लिए उपयुक्त नहीं होता। कमला सिंह जी के मामले में उनकी उम्र, शरीर की वर्तमान ताकत और लंबे समय से बनी समस्या—इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया।

उपचार की दिशा स्पष्ट थी:

  • नसों पर पड़ रहे दबाव को धीरे-धीरे कम करना

  • शरीर की अंदरूनी ताकत को बढ़ाना

  • चलने-फिरने की क्षमता को सुरक्षित तरीके से लौटाना

यह प्रक्रिया तुरंत परिणाम देने वाली नहीं थी, लेकिन नियमित देखभाल और सही मार्गदर्शन से बदलाव महसूस होने लगा। कमला सिंह जी के लिए जीवा आयुर्वेद केवल इलाज का स्थान नहीं था, बल्कि एक ऐसा सहारा बना जहाँ उनकी परेशानी को गंभीरता से समझा गया और उसी के अनुसार कदम उठाए गए। इसी भरोसे ने उनके उपचार के सफर को आगे बढ़ाया।

डिस्क बल्ज में आयुर्वेदिक उपचार किन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है?

डिस्क बल्ज हर व्यक्ति को अलग तरीके से प्रभावित करता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में आयुर्वेदिक उपचार विशेष रूप से सहायक साबित हो सकता है। खासतौर पर उन लोगों के लिए, जो लंबे समय से दर्द झेल रहे हैं और जिनके जीवन की गति धीमी पड़ चुकी है।

यह उपचार उनके लिए उपयोगी हो सकता है:

  • जिनके कमर और पैरों का दर्द लंबे समय से बना हुआ हो

  • जिन्हें खड़े रहने या चलने में लगातार कठिनाई महसूस होती हो

  • जो बार-बार दवाएँ लेने के बावजूद स्थायी राहत नहीं पा रहे हों

जब दर्द रोज़मर्रा के कामों को सीमित करने लगे, तब समस्या केवल शरीर तक सीमित नहीं रहती। आत्मविश्वास कम होने लगता है और व्यक्ति खुद को असहाय महसूस करने लगता है। ऐसे समय में शरीर को समग्र रूप से समझने वाला दृष्टिकोण ज़रूरी हो जाता है।

कमला सिंह जी की कहानी इसी बात को दर्शाती है। उनका अनुभव यह बताता है कि अगर शरीर के संकेतों को समय रहते समझ लिया जाए और उन्हें नज़रअंदाज़ न किया जाए, तो सुधार की संभावना बनी रहती है।

निष्कर्ष

कमला सिंह जी की कहानी यह दिखाती है कि जब दर्द जीवन को रोकने लगे, तब हार मानना ज़रूरी नहीं होता। डिस्क बल्ज ने उनके चलने-फिरने की क्षमता छीन ली थी, लेकिन सही दिशा में उपचार और धैर्य ने उन्हें फिर से आत्मविश्वास दिया। यह सफर आसान नहीं था, पर हर छोटे सुधार ने यह भरोसा जगाया कि शरीर में ठीक होने की ताकत होती है, बस उसे सही सहारा चाहिए।

दर्द से राहत मिलने के साथ-साथ उनका डर भी कम हुआ। यह बदलाव केवल शरीर में नहीं, मन में भी दिखा। उनका अनुभव यह याद दिलाता है कि समस्या कितनी भी पुरानी क्यों न हो, सही देखभाल से जीवन की गति दोबारा लौट सकती है।

अगर आप भी डिस्क बल्ज से जूझ रहे हैं, तो आज ही जीवा आयुर्वेद के प्रमाणित डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श के लिए संपर्क करें। कॉल करें: 0129-4264323

FAQs

  1. क्या उम्र बढ़ने पर डिस्क बल्ज का इलाज मुश्किल हो जाता है?

उम्र के साथ समस्या बढ़ सकती है, लेकिन सही देखभाल और उपचार से आप किसी भी उम्र में राहत और संतुलन महसूस कर सकते हैं।

  1. क्या डिस्क बल्ज में केवल दवाओं से पूरी राहत मिल सकती है?

दवाएँ कुछ समय के लिए दर्द कम कर सकती हैं, लेकिन समस्या की जड़ पर काम नहीं करतीं। इसलिए आपको बार-बार दर्द लौटता हुआ महसूस हो सकता है।

  1. आयुर्वेद डिस्क बल्ज में कैसे मदद करता है?

आयुर्वेद शरीर के अंदर असंतुलन को समझकर नसों की कमज़ोरी और जकड़न पर काम करता है, जिससे आपको धीरे-धीरे स्थायी सुधार महसूस होता है।

  1. क्या डिस्क बल्ज में बिना ऑपरेशन सुधार संभव है?

कई मामलों में सही समय पर आयुर्वेदिक उपचार से आपको बिना ऑपरेशन चलने-फिरने में आराम और जीवन की गुणवत्ता में सुधार मिल सकता है।

  1. उपचार के दौरान आपको कब तक फर्क महसूस होने लगता है?

हर शरीर अलग होता है, लेकिन नियमित उपचार और परामर्श से आपको कुछ हफ्तों में दर्द और चलने की परेशानी में बदलाव दिखने लग सकता है।

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