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बारिश में तले-भुने खाने का मन करता है? जानिए आयुर्वेद में इससे होने वाले 5 बड़े नुकसान

Information By Dr. Keshav Chauhan

बारिश में तले-भुने खाने का मन करता है? जानिए आयुर्वेद में इससे होने वाले 5 बड़े नुकसान

भारत सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि 2009 से 2018 तक, देश में दर्ज कुल बिमारियों के लगभग 39% खाने से होने वाली फूडबोर्न बीमारियों (food poisoning और acute diarrheal diseases) से जुड़े थे । यह आंकड़ा इस बात की चेतावनी देता है कि मानसून जैसे नमी और गंदगी वाले मौसम में भोजन को लेकर सतर्क रहना कितना ज़रूरी है।

मानसून आते ही, आपको अक्सर गरमागरम पकौड़े, समोसे, चाट आदि खाने का मन करने लगता है। तेल और मसालों की ताज़गी और स्वाद भूख को लुभाती है, लेकिन यह आदत आपकी सेहत के लिए खतरा भी कुछ कम नहीं होती, खासतौर पर जब आपकी पाचन शक्ति (digestive fire) खुद मानसून में कमज़ोर हो जाती है।

आयुर्वेद के अनुसार, बारिश के दिनों में आपके वात, पित्त और कफ दोष असंतुलित होते हैं, जिससे तले‑भुने और बाहरी स्ट्रीट फूड जल्दी से शरीर में ज़हर पैदा कर सकते हैं। इसलिए यह समय आपके स्वास्थ्य के लिए बेहद संवेदनशील होता है।

बारिश के मौसम में तले-भुने खाने का मन क्यों बढ़ जाता है? (Why Do We Crave Fried Foods During the Monsoon?)

मानसून का मौसम आते ही जब आसमान में बादल घिरते हैं और चारों ओर ठंडी-ठंडी हवा चलती है, तो आपके मन में गरमागरम पकौड़े, समोसे या चाय के साथ चटपटा नाश्ता खाने की इच्छा ज़रूर उठती है। यह कोई इत्तेफाक नहीं है, बल्कि इसके पीछे शरीर और मन दोनों का एक गहरा रिश्ता होता है।

1. मौसम का असर मूड पर पड़ता है

बारिश के दिनों में दिन छोटे हो जाते हैं, धूप कम निकलती है और वातावरण में नमी बढ़ जाती है। ऐसे में शरीर में सेरोटोनिन (Serotonin) और डोपामिन (Dopamine) जैसे मूड नियंत्रक हार्मोन घटने लगते हैं। यही कारण है कि आप थोड़ा सुस्त, थका हुआ या भावुक महसूस करते हैं। ऐसे समय में तला-भुना, कुरकुरा और मसालेदार खाना आपको तुरंत "सुखद अनुभव" देता है।

2. भूख अचानक ज़्यादा लगने लगती है

नमी वाले मौसम में शरीर को लगता है कि उसे ज़्यादा ऊर्जा की ज़रूरत है। इस वजह से आपको बार-बार भूख लगती है। गरम तेल में तला हुआ खाना पेट को भरा हुआ महसूस कराता है और कुछ देर के लिए आपको संतोष देता है।

3. बचपन की यादें और घरेलू आदतें

कई बार मानसून में तले-भुने खाने की इच्छा सिर्फ स्वाद के लिए नहीं होती, बल्कि वह आपकी भावनाओं से जुड़ी होती है। जैसे दादी या मम्मी के हाथ की गरम पकौड़ी, चाय के साथ भुट्टा—ये यादें खुद-ब-खुद खाने का मन बना देती हैं।

क्या तले-भुने खाने से पाचन शक्ति पर असर पड़ता है? (Does Eating Fried Food Affect Digestion?)

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मानसून में तले-भुने खाने से सबसे पहले असर आपकी पाचन शक्ति पर पड़ता है। आयुर्वेद इसे "अग्नि" यानी डाइजेस्टिव फायर कहता है। बारिश के मौसम में यह अग्नि स्वाभाविक रूप से कमज़ोर हो जाती है।

तले-भुने खाने में तेल, मसाले और गरम तासीर होती है। ये चीज़ें पचने में वक्त लेती हैं और पेट पर ज़्यादा दबाव डालती हैं। नतीजा? खाना सही से नहीं पचता।

आपको क्या-क्या समस्याएँ हो सकती हैं:

  • गैस: जब खाना पूरी तरह नहीं पचता, तो पेट में गैस बनने लगती है।

  • अपच: तले‑भुने खाने से पेट में भारीपन और भूख न लगने जैसी शिकायत हो सकती है।

  • एसिडिटी: ज़्यादा मसालेदार और तैलीय खाना पेट की अंदरूनी परत को प्रभावित करता है, जिससे जलन और खट्टी डकारें होती हैं।

  • कब्ज़: तला‑भुना खाना फाइबर से रहित होता है, जिससे मल साफ़ नहीं होता और पेट भारी बना रहता है।

आपने शायद महसूस किया होगा कि पकौड़े खाने के कुछ घंटे बाद पेट भारी लगने लगता है या चाय के साथ चाट खाने से खट्टी डकारें आने लगती हैं—ये सब पाचन गड़बड़ी के संकेत होते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार तले-भुने खाने से कौन-कौन से दोष बढ़ते हैं? (Which Doshas Increase by Eating Fried Food?)

आयुर्वेद के अनुसार, मानसून का समय वात दोष के प्रबल होने का होता है। साथ ही बारिश की नमी और ठंडक पित्त और कफ को भी प्रभावित करती है। जब आप इस मौसम में तले-भुने, गरम और तासीर वाले खाने का अधिक सेवन करते हैं, तो शरीर में त्रिदोषों का संतुलन बिगड़ने लगता है।

1. वात दोष में बढ़ोतरी

वात का काम है शरीर की गति—जैसे जोड़ों की लचक, मानसिक संतुलन, और गैस की गतिविधि। बारिश में पहले से ही वात बढ़ा होता है और तले‑भुने खाने से यह और गड़बड़ हो जाता है।
नतीजा: जोड़ों में दर्द, गैस, चक्कर आना, थकान।

2. पित्त दोष में असंतुलन

तली हुई चीज़ें गर्म तासीर की होती हैं, जिससे पित्त बढ़ता है।
नतीजा: जलन, एसिडिटी, पसीना ज़्यादा आना, चिड़चिड़ापन।

3. कफ दोष भी बढ़ सकता है

तेल और मैदा से बनी चीज़ें कफ बढ़ाती हैं।
नतीजा: बलगम, बंद नाक, सुस्ती, वज़न बढ़ना

तीनों दोष जब संतुलन से बाहर हो जाते हैं, तो शरीर का पूरा सिस्टम अस्थिर हो जाता है। इसलिए आयुर्वेद कहता है कि मौसम के अनुसार भोजन करें। मानसून में हल्का, सुपाच्य, और घर में बना खाना ही सबसे उत्तम माना गया है।

तले-भुने खाने से बारिश में कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती हैं? (What Diseases Are Caused by Eating Fried Foods During Monsoon?)

जब मानसून में आप बार-बार तले-भुने या स्ट्रीट फूड का सेवन करते हैं, तो उसका असर सिर्फ पेट तक सीमित नहीं रहता। यह आदत आपके पूरे शरीर को प्रभावित कर सकती है, खासकर तब जब सफाई का ध्यान न रखा जाए और खाना खुली हवा या गंदे तेल में बना हो।

1. फूड पॉइज़निंग और दस्त

बारिश के मौसम में नमी और गंदगी की वजह से बैक्टीरिया और वायरस बहुत तेज़ी से पनपते हैं। खुले में रखे समोसे, पकौड़े, चाट में लगे आलू या दही जल्दी खराब हो जाते हैं। जब आप इन्हें खाते हैं, तो पेट में विषैले तत्व चले जाते हैं। इसका नतीजा—फूड पॉइज़निंग, उल्टी, दस्त या बुखार।

2. आंतों का संक्रमण (Infections)

खराब तेल में तली हुई चीज़ें या गंदे हाथों से परोसा गया खाना आपके पाचन तंत्र को कमज़ोर बना सकता है। इससे पेट में इंफेक्शन, मरोड़, और अल्सर की समस्या हो सकती है।

3. त्वचा रोग

आयुर्वेद मानता है कि पेट की गड़बड़ी का सीधा असर आपकी त्वचा पर भी होता है। जब आप बासी या दूषित खाना खाते हैं, तो शरीर में "आम" (toxins) बनने लगते हैं। इससे फोड़े, फुंसी, खुजली और स्किन एलर्जी जैसी समस्याएँ सामने आती हैं।

4. साँस और कफ की दिक्कतें

तली हुई चीज़ें कफ को बढ़ा देती हैं, जिससे बलगम, बंद नाक और भारीपन हो सकता है। मानसून में पहले ही हवा में नमी ज़्यादा होती है, ऐसे में कफ वाले लक्षण और गंभीर हो जाते हैं।

5. लंबे समय में मोटापा और थकान

अगर आप हर हफ्ते पकौड़े या समोसे जैसे भारी तले हुए स्नैक्स खाते हैं, तो यह धीरे-धीरे शरीर में फैट जमा करता है। साथ ही इससे शरीर सुस्त, थका हुआ और भारी महसूस करता है।

स्ट्रीट फूड से जुड़े कुछ सामान्य खतरे:

  • लंबे समय से इस्तेमाल हो रहा तेल

  • बिना ढके रखे फूड आइटम

  • गंदे बर्तन या बिना धोए हाथ

  • बारिश का पानी लगने से खराब हो जाना

इसलिए अगर आप अपनी सेहत का ख्याल रखना चाहते हैं, तो मानसून में तली हुई चीज़ों से दूरी बनाना ही बेहतर है, चाहे मन कितना भी ललचाए।

क्या तले-भुने खाने की जगह कुछ स्वस्थ विकल्प भी हैं जो स्वादिष्ट हों? (Healthy Alternatives to Fried Foods in Monsoon)

अगर आप सोचते हैं कि स्वस्थ खाना स्वादहीन होता है, तो यह पूरी तरह सही नहीं है। मानसून में भी ऐसे कई स्वादिष्ट विकल्प मौजूद हैं जो पेट को सुकून देते हैं और आपकी सेहत का भी ख्याल रखते हैं।

1. खिचड़ी – हल्की, गर्म और आराम देने वाली

जब मौसम उमस भरा हो और भूख लगी हो, तो खिचड़ी एक बेहतरीन विकल्प है। आप इसमें मूंग दाल, थोड़ी सी हरी सब्ज़ियाँ और देसी घी डाल सकते हैं। यह पचने में आसान होती है और पेट को ठिकाने रखती है।

2. गर्मागरम दाल या वेजिटेबल सूप

दाल या सब्ज़ियों का सूप शरीर को गर्माहट देता है और पेट हल्का रखता है। इसमें अदरक, काली मिर्च, और हल्दी डालकर आप इसका पाचन गुण और बढ़ा सकते हैं।

3. हर्बल चाय – स्वाद के साथ सेहत भी

अदरक, तुलसी और दालचीनी से बनी चाय मानसून में बेहद फ़ायदेमंद होती है। यह न केवल आपकी भूख को शांत करती है, बल्कि गले और पेट की सफाई भी करती है। शाम की चाय पकौड़े के बिना भी मज़ेदार हो सकती है।

4. उबली या भुनी हुई सब्ज़ियाँ

लौकी, तोरई, टिंडा, करेला जैसी सब्ज़ियाँ मानसून में पचने में आसान होती हैं और शरीर को हल्का महसूस कराती हैं। इन्हें स्टीम करके या थोड़ा सा देसी घी लगाकर भूख शांत की जा सकती है।

5. फल, लेकिन घर में कटे हुए

फ्रूट सलाद भी एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है, लेकिन बाहर के कटे हुए फल या जूस से बचें। हमेशा घर पर ताज़ा फल काटें और तुरंत खाएँ।

6. आयुर्वेदिक पाचन सहायक चीज़ें जो आप अपना सकते हैं:

  • तुलसी के पत्ते: रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं

  • अदरक: पेट साफ करता है, भूख बढ़ाता है

  • हल्दी: शरीर से विषैले तत्व बाहर निकालती है

  • अजवाइन-सौंफ: खाने के बाद गैस और अपच से राहत देती है

तो अब जब भी पकौड़े खाने का मन करे, इन विकल्पों को ज़रूर याद रखें। थोड़ा बदलाव आपकी सेहत को लंबे समय तक दुरुस्त रख सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

मानसून का मौसम है, बाहर बारिश हो रही हो और गरमागरम पकौड़े की खुशबू आ जाए, तो खुद को रोकना आसान नहीं होता। लेकिन हर बार स्वाद के आगे सेहत को नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं। जो खाना उस वक्त आपको अच्छा लगता है, वही आगे चलकर पेट की परेशानी, स्किन रोग या कमज़ोरी की वजह बन सकता है। अगर आप थोड़ा सोच-समझकर खाएँ, हल्का और घर का बना भोजन लें, तो ना सिर्फ बीमारियों से बच सकते हैं, बल्कि मौसम का मजा भी बिना किसी तनाव के ले सकते हैं।

आयुर्वेद यही कहता है—जो चीज़ शरीर को शांति दे, वही सही भोजन है। इसलिए अगली बार जब पकौड़े खाने का मन करे, तो पहले ये सोच लें कि आपके शरीर को उसकी ज़रूरत है या नहीं।

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FAQs

  1. आयुर्वेद के अनुसार बरसात में क्या खाना चाहिए?
    आपको हल्का, ताज़ा और घर में बना खाना खाना चाहिए। खिचड़ी, मूंग दाल, तोरी, लौकी और तुलसी-अदरक की चाय जैसे चीज़ें इस मौसम में फ़ायदेमंद मानी जाती हैं।
  2. बारिश के मौसम में कौन से खाने से बचना चाहिए?
    आपको बासी, खुले में रखे, ज़्यादा तले-भुने, पत्तेदार सब्ज़ियाँ, दूध-दही और स्ट्रीट फूड से बचना चाहिए क्योंकि ये पेट और स्किन की समस्याएँ बढ़ा सकते हैं।
  3. क्या आयुर्वेद में बारिश के मौसम में दही खा सकते हैं?
    नहीं, आयुर्वेद में सावन और भादो में दही खाने की मनाही है। यह कफ बढ़ाता है और पाचन शक्ति पर असर डाल सकता है, खासकर रात में।
  4. क्या बच्चों को भी मानसून में तले हुए खाने से दूर रखना चाहिए?
    जी हाँ, बच्चों की पाचन शक्ति कमज़ोर होती है। मानसून में तला हुआ या बाहर का खाना उन्हें जल्दी बीमार कर सकता है, इसलिए सादा और घर का खाना दें।
  5. क्या बरसात में उपवास रखना ठीक रहता है?
    अगर आपकी सेहत ठीक है, तो हल्का उपवास कभी-कभार किया जा सकता है। लेकिन मानसून में शरीर पहले ही कमज़ोर होता है, इसलिए जीवा के विशेषज्ञ से सलाह लेना बेहतर है।
  6. क्या मानसून में आयुर्वेदिक काढ़ा पीना फ़ायदेमंद है?
    हाँ, तुलसी, अदरक, दालचीनी और काली मिर्च वाला काढ़ा इस मौसम में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है और सर्दी-खाँसी से बचाने में मदद करता है।

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