Diseases Search
Close Button
 
 

कब्ज़ का आयुर्वेदिक इलाज – पेट साफ रखने के घरेलू और हर्बल उपाय

Information By Dr. Arun Gupta

कब्ज़ एक ऐसी समस्या है जो धीरे-धीरे व्यक्ति की दिनचर्या को प्रभावित करती है। शुरुआत में लोग इसे सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, पर जब रोज़ सुबह पेट साफ नहीं होता, पेट में भारीपन बना रहता है या मल त्याग में ज़्यादा ज़ोर लगाना पड़ता है, तब परेशानी बढ़ने लगती है। यह समस्या केवल पेट तक सीमित नहीं रहती बल्कि आपके मूड, आपकी ऊर्जा और पूरे दिन की कार्यक्षमता पर असर डालती है। कई लोग बताते हैं कि कब्ज़ के कारण शरीर भारी हो जाता है और मन भी चिड़चिड़ा हो जाता है, जैसे भीतर कहीं रुकावट बन गयी हो।

आयुर्वेद कहता है कि कब्ज़ केवल मल का रुकना नहीं है। यह वात के बढ़ने, अग्नि के कमजोर होने और शरीर में सूखापन बढ़ने का संकेत है। जब शरीर अपनी प्राकृतिक गति नहीं बना पाता तब मल कठोर होकर रुक जाता है। इसलिए इसका उपचार केवल पेट साफ करने तक सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि शरीर को संतुलित करके स्वाभाविक प्रवाह को पुनः स्थापित करना चाहिए। इस लेख में आप जानेंगे कि कब्ज़ क्यों होती है, किन आदतों से बढ़ती है और आयुर्वेदिक तरीके से इसे गहराई से कैसे सुधारा जा सकता है।

कब्ज़ क्या है?

कब्ज़ का अर्थ है मल त्याग में कठिनाई। कभी-कभी मल कठोर हो जाता है, कभी पेट खाली नहीं होने की भावना बनी रहती है। कई लोगों को दो या तीन दिन तक भी मल त्याग नहीं होता। सामान्य स्थिति में शरीर रोज़ सुबह मल त्याग करता है, लेकिन जब यह प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित हो जाती है तब शरीर भीतर से असंतुलित हो जाता है।

आयुर्वेद में इसे वातज विकार कहा जाता है क्योंकि वात की गति रुकने से मल भी रुक जाता है। जब पेट में शुष्कता बढ़ती है और आंतें अपनी लय खो देती हैं तब मल बाहर नहीं निकल पाता। यह समस्या हल्की असहजता से शुरू होकर गंभीर पेट दर्द में बदल सकती है।

कब्ज़ क्यों होती है — आधुनिक कारण जो पेट की गति रोक देते हैं

कब्ज़ केवल खाने की गलती से नहीं होती। कई आधुनिक आदतें आंतों की प्राकृतिक गति को रोक देती हैं।

1. पानी का कम सेवन

पानी कम पीने से शरीर सूखने लगता है। यह सूखापन आंतों में शुष्कता पैदा करता है जिससे मल कठोर हो जाता है।

2. फाइबर की कमी

अगर भोजन में दालें, सब्जियाँ और फल कम हैं तो मल ढंग से नहीं बनता। ऐसे में आंतों को गति कम मिलती है।

3. लंबे समय तक बैठकर काम करना

कम शारीरिक गतिविधि से चयापचय (metabolism) धीमा होता है और मल निष्कासित करने में दुविधा हो जाती है|

4. रात का भारी भोजन

रात को ज़्यादा या भारी खाना अग्नि को कमजोर करता है और पाचन धीमा हो जाता है  जिसके कारण मल सुबह आसानी से नहीं निकल पाता।

5. तनाव और चिंता

तनाव अग्नि को अनियमित बनाता है और वात को उग्र करता है। इससे मल त्याग पर असर पड़ता है।

6. भूख न लगने पर भी खाना

जब शरीर तैयार नहीं है तब भोजन करना आम बढ़ाता है। यह आम मल को कड़ा और चिपचिपा बना देता है।

आयुर्वेद की दृष्टि — कब्ज़ क्यों बढ़ती है

आयुर्वेद में पाचन को जीवन का केंद्र माना गया है। जब अग्नि अपनी शक्ति खो देती है या वात अपनी लय से बाहर हो जाता है, तब शरीर में रुकावट पैदा होती है।

1. वात का बढ़ना

वात हल्का, शुष्क और कठोर प्रकृति का होता है। जब यह बढ़ता है तब शरीर में शुष्कता बढ़ती है और आंतें कठोर हो जाती हैं।

2. अग्नि का मंद होना

अग्नि कमजोर हो जाए तो भोजन पूरी तरह पचता नहीं। अपचित अंश आंतों की गति को धीमा कर देते हैं।

3. मल में स्नेह की कमी

शरीर में पर्याप्त स्नेहन न हो तो मल आंतों में फँसने लगता है।

4. मानसिक अस्थिरता

मन अस्थिर हो तो वात बढ़ता है। इसी कारण तनाव, चिंता और अनियमित नींद कब्ज़ को और बढ़ा देते हैं।

आयुर्वेद कहता है कि जब वात, अग्नि और स्नेहक का संतुलन बिगड़ता है तभी शरीर अपनी प्राकृतिक गति खो देता है।

कब्ज़ के लक्षण

कब्ज़ की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह धीरे-धीरे बढ़ती है और व्यक्ति को इसका एहसास भी देर से होता है। कभी ऐसा लगता है कि पेट साफ हुआ है पर भीतर कहीं भारीपन जैसा रहता है। कभी सुबह टॉयलेट जाने का मन ही नहीं होता। कई बार मल निकलता तो है पर चिकनाई न होने के कारण दर्द और रुकावट महसूस होती है। यह सब शरीर की आवाज़ है जिसे अक्सर लोग अनदेखा कर देते हैं।

कुछ लोगों को लगता है कि पेट में जैसे हवा भर गयी हो। कुछ को ऐसा लगता है कि कितना भी पानी पी लें पर पेट हल्का ही नहीं होता। कभी-कभी तो सिर भारी होने लगता है और मूड भी irritate हो जाता है। यही संकेत बताते हैं कि आपकी आंतें अपनी प्राकृतिक गति से काम नहीं कर रही हैं।

कब्ज़ के प्रमुख लक्षण

  • मल त्याग में कठिनाई
  • मल का कठोर होना
  • पेट में भारीपन
  • गैस और पेट फूलना
  • पेट साफ होने पर भी पूर्ण हल्कापन न महसूस होना
  • भूख का कम लगना
  • मन चिड़चिड़ा होना

ये सभी लक्षण आपके पाचन मार्ग की रुकावट की ओर इशारा करते हैं।

कब्ज़ के प्रकार — कब्ज़ हर व्यक्ति में अलग रूप से दिखाई देती है

कब्ज़ केवल एक समस्या का नाम नहीं बल्कि कई अलग रूपों का समूह है। आयुर्वेद इन रूपों को पहचानकर ही उपचार तय करता है। इससे उपचार अधिक प्रभावी होता है और परिणाम स्थायी आते हैं।

1. वातज कब्ज़

यह सबसे सामान्य प्रकार है। इसमें मल सूखा और कठोर हो जाता है। मल त्याग में काफी प्रयास करना पड़ता है। ठंडी चीज़ें, तनाव, कम पानी, अनियमित नींद और अधिक देर बैठना इसे बढ़ाते हैं।

2. पित्तज कब्ज़

इसमें पेट के अंदर गर्मी अधिक महसूस होती है। कभी-कभी जलन, प्यास और चुभन भी लग सकती है। तीखा, खट्टा और तला भोजन इसे और बढ़ाता है।

3. कफज कब्ज़

इसमें मल भारी, चिपचिपा और धीमी गति से बाहर आता है। पेट में आलस्य सा लगता है। सुबह के समय कठिनाई सबसे अधिक होती है।

4. आमज कब्ज़

यह तब होती है जब शरीर में अपचित भोजन जमा होकर चिपचिपापन और भारीपन बढ़ा देता है। ऐसे में व्यक्ति को थकावट, जी मिचलाना और पेट में भारीपन महसूस होता है।

कई बार एक से अधिक प्रकार एक साथ मौजूद होते हैं जिससे समस्या और जटिल हो जाती है।

कब्ज़ में उपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ

कब्ज़ केवल मल को बाहर निकालने की नहीं बल्कि आंतों की लय दोबारा स्थापित करने की प्रक्रिया है। आयुर्वेद में कई ऐसी जड़ी-बूटियाँ हैं जो आंतों को नर्म बनाती हैं, अंदर जमा रुकावट को ढीला करती हैं और अग्नि को संतुलित करती हैं।

1. त्रिफला

त्रिफला तीन फल का मिश्रण है जो आंतों के लिये अत्यंत पोषक है। यह मल को नर्म बनाती है और आंतों की गति को स्वाभाविक रूप से सक्रिय करती है।

2. इसबगोल

इसबगोल आंतों में नमी बढ़ाता है जिससे मल सहजता से बाहर निकल पाता है। यह आंतों को किसी प्रकार की जलन दिये बिना राहत देता है।

3. हरड़

हरड़ वात को शांत करने में महत्वपूर्ण है। यह पुराने कब्ज़ में भी असर दिखाती है क्योंकि यह आंतों की गति को अंदर से बल देती है।

4. सौफ

सौफ पाचन को शांत करती है और गैस कम करती है। यह उन लोगों के लिये उपयोगी है जिन्हें कब्ज़ के साथ पेट फूलने की समस्या भी होती है।

5. द्राक्षा

द्राक्षा शरीर में कोमलता और नमी बढ़ाती है। इससे मल आसानी से बाहर निकलता है।

6. गंधर्व हरीतकी

यह एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक संयोजन है जो मल की रुकावट को दूर करता है और पेट को हल्का बनाता है। इसे चिकित्सक की सलाह के बाद ही लेना चाहिए।

कब्ज़ के लिये सही आहार

कब्ज़ में आहार सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। गलत भोजन आंतों को धीमा कर देता है जबकि सही भोजन उन्हें प्राकृतिक गति देता है।

कब्ज़ में क्या खाएँ

  • पपीता
    पेट को स्वाभाविक रूप से साफ करता है।


  • अंजीर
    आंतों में कोमलता लाता है।


  • हरी सब्जियाँ
    पाचन को हल्का और सक्रिय बनाती हैं।


  • गर्म पानी
    रुकावट ढीली करता है और शरीर को गति देता है।


  • देसी घी
    आंतों में आवश्यक स्नेहक प्रदान करता है।


  • मूंग दाल
    हल्की होने के कारण अग्नि को कमजोर नहीं करती।


  • दलिया या खिचड़ी
    पाचन पर बोझ नहीं डालती।

कब्ज़ में क्या न खाएँ

  • तला हुआ भोजन
  • ठंडा पानी
  • दही
  • बहुत तीखा भोजन
  • फास्ट फूड
  • मैदा
  • मिठाइयाँ

ये सभी चीज़ें आम बढ़ाती हैं और आंतों की गति को और धीमा कर देती हैं।

कब्ज़ दूर करने के त्वरित, सरल और असरदार उपाय

ये उपाय किसी दवा की तरह तुरंत राहत नहीं देते पर शरीर को प्राकृतिक रूप से चलने में मदद करते हैं। इन्हें रोज़ की दिनचर्या का हिस्सा बनाया जाए तो पेट धीरे-धीरे स्वाभाविक होने लगता है।

1. सुबह खाली पेट गुनगुना पानी

यह आंतों की सुबह की गति शुरू करता है और मल को नर्म बनाता है।

2. रात में एक चम्मच घी

घी शरीर में कोमलता बढ़ाता है, विशेषकर आंतों में। पुराने कब्ज़ में यह बहुत मदद करता है।

3. इसबगोल

गर्म दूध या गर्म पानी के साथ लेने से मल सहजता से निकलता है।

4. पेट की हल्की मालिश

घड़ी की दिशा में धीरे-धीरे मालिश आंतों की गति को प्राकृतिक बनाती है।

5. सुबह नींबू का सेवन

नींबू अग्नि को सक्रिय करता है और पाचन को बल देता है।

कब्ज़ का आयुर्वेदिक उपचार — शरीर की प्राकृतिक गति को दोबारा जगाने वाली चिकित्सा

कब्ज़ का उपचार केवल मल निकालने का विषय नहीं है। यह शरीर की उस लय को वापस लाने का प्रयास है जिसे वात, अनियमित भोजन और कमजोर अग्नि ने धीमा कर दिया है। आयुर्वेद मानता है कि कब्ज़ तब पैदा होती है जब आंतों में सूखापन बढ़ जाता है और उनकी चाल रुकने लगती है। इसलिए आयुर्वेदिक उपचार गहराई में जाकर वात को शांत करता है, अग्नि को स्थिर करता है और आंतों में आवश्यक स्नेह लौटाता है।

1. अभ्यंग

तिल तेल या अश्वगंधा तेल से पूरे शरीर की हल्की मालिश वात को शांत करती है। पेट, कमर और नाभि के आसपास की मालिश आंतों को संकेत देती है कि उन्हें अपनी गति दोबारा शुरू करनी है। अभ्यंग के बाद अक्सर लोग बताते हैं कि भीतर से हल्कापन महसूस होता है और रुकावट धीरे-धीरे कम होती है।

2. स्वेदन

अभ्यंग के बाद किया जाने वाला स्वेदन पेट के अंदर जमा रुकावट को ढीला करता है। गर्माहट शरीर की कठोरता कम करती है और आंतों की चाल में कोमलता लाती है। यह लाभ उन लोगों के लिये अच्छा है जिनको कब्ज़ के साथ हल्का दर्द भी रहता है।

3. विरेचन (चिकित्सकीय सलाह से)

यदि शरीर में आम जमा हो गया हो और लंबे समय से मल त्याग में कठिनाई बनी हुई हो तो चिकित्सक विरेचन की सलाह देते हैं। यह शोधन प्रक्रिया दोषों को बाहर निकालकर अग्नि को संतुलित करती है। यह पुरानी कब्ज़ में विशेष रूप से प्रभावी है।

4. दशमूल आधारित औषधियाँ

दशमूल वात को शांत करने का महत्वपूर्ण माध्यम है। यह आंतों की गति को भीतर से बल देता है। सूखापन कम होता है और पाचन मार्ग अपनी लय पकड़ने लगता है।

कब्ज़ दूर करने के सरल, सुरक्षित और प्रभावी घरेलू उपाय

घर में किये जाने वाले छोटे उपाय अक्सर बहुत गहरा लाभ देते हैं। यदि इन्हें नियमित दिनचर्या का हिस्सा बना लिया जाए तो आंतें धीरे-धीरे अपनी प्राकृतिक शक्ति दोबारा पा लेती हैं।

1. सुबह गुनगुना पानी पीना

सुबह उठते ही गुनगुना पानी पीना आंतों की चाल को जगाता है और पेट को हल्का करता है। यह आदत कई लोगों में कब्ज़ को बहुत कम कर देती है।

2. रात में एक चम्मच घी

घी आंतों में स्नेह बढ़ाता है। यह सूखापन कम करता है और पुराने कब्ज़ में भी राहत देता है।

3. भिगोई हुई अंजीर या मनुक्का

रात में भिगोकर खाने से यह पेट में कोमलता बढ़ाते हैं और मल आसानी से निकलने में मदद करते हैं।

4. पेट पर हल्की मालिश

घड़ी की दिशा में पेट की धीमी मालिश आंतों को गति प्रदान करती है। यह उन लोगों के लिये अच्छा है जिन्हें सुबह टॉयलेट जाने की इच्छा ही नहीं होती।

5. सौफ और अजवाइन का हल्का काढ़ा

यह काढ़ा पेट की गैस, भारीपन और रुकावट को शांत करता है। यह कब्ज़ के साथ होने वाली असहजता को कम करता है।

सही दिनचर्या — कब्ज़ को जड़ से ठीक करने की कुंजी

कब्ज़ केवल भोजन की गलती नहीं है। दिनचर्या बिगड़ जाए तो आंतें अपनी प्राकृतिक क्षमता खो देती हैं। सही आदतें इन्हें दोबारा शक्ति देती हैं।

1. निश्चित समय पर भोजन करना

अनियमित भोजन अग्नि को कमजोर करता है। रोज़ाना एक निश्चित समय पर खाना पाचन को बहुत मजबूत बनाता है।

2. पूरे दिन पर्याप्त पानी पीना

थोड़ा-थोड़ा पानी पीते रहने से शरीर में सूखापन नहीं बढ़ता और आंतें सहज रहती हैं।

3. पर्याप्त नींद

कम नींद वात को उग्र करती है। जितनी नींद टूटेगी उतनी पाचन की लय भी बिगड़ेगी।

4. भोजन के बाद छोटी टहल

खाने के बाद कुछ मिनट टहलने से भोजन सही दिशा में आगे बढ़ता है और मल त्याग का मार्ग खुला रहता है।

5. तनाव कम रखना

तनाव बढ़ता है तो पाचन की अग्नि अस्थिर होती है। हल्के श्वास अभ्यास मन को शांत रखते हैं और आंतों को सहारा देते हैं।

निष्कर्ष

कब्ज़ शरीर का एक संकेत है कि पाचन, वात और दिनचर्या एक साथ असंतुलित हो चुके हैं। इसे दबाया नहीं जाना चाहिए बल्कि समझकर सुधारा जाना चाहिए। जब आप अपने भोजन को हल्का रखते हैं, पर्याप्त पानी पीते हैं, नियमित दिनचर्या अपनाते हैं और आंतों को स्नेह और गर्माहट देते हैं तब शरीर धीरे-धीरे अपनी प्राकृतिक लय वापस पा लेता है। आयुर्वेद का उद्देश्य केवल मल त्याग को आसान बनाना नहीं बल्कि शरीर को वह संतुलन लौटाना है जिससे पेट सहज, मन शांत और दिन ऊर्जा से भरा महसूस हो।

हर व्यक्ति में कब्ज़ का कारण अलग होता है। इसी वजह से जीवा आयुर्वेद प्रत्येक व्यक्ति को उसकी प्रकृति और स्थिति के अनुसार उपचार देता है। यह उपचार लंबे समय में स्थायी राहत प्रदान करता है। अगर आप भी कब्ज़ या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज ही हमारे प्रमाणित जीवा डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श लें। कॉल करें — 0129-4264323

FAQs

1. क्या कब्ज़ पूरी तरह ठीक हो सकती है?

हाँ। सही आहार, नियमित दिनचर्या और उचित आयुर्वेदिक उपचार से कब्ज़ पूरी तरह नियंत्रित हो सकती है।

2. क्या रोज़ इसबगोल लेना सुरक्षित है?

हाँ, यदि नियंत्रित मात्रा में लिया जाए। बहुत अधिक मात्रा लेने पर उल्टा असर भी हो सकता है।

3. क्या दही कब्ज़ बढ़ाता है?

हाँ। दही शरीर में भारीपन और रुकावट बढ़ा सकता है।

4. क्या नींद का कब्ज़ से संबंध है?

हाँ। कम नींद वात बढ़ाती है जिससे आंतों की चाल भी धीमी हो जाती है।

5. क्या बच्चों में आयुर्वेदिक उपचार सुरक्षित है?

हाँ। हल्के और विशेष अनुरूप उपचार बच्चों के लिये सुरक्षित हैं और अच्छे परिणाम देते हैं।

Related Blogs

Top Ayurveda Doctors

Social Timeline

Our Happy Patients

  • Sunita Malik - Knee Pain
  • Abhishek Mal - Diabetes
  • Vidit Aggarwal - Psoriasis
  • Shanti - Sleeping Disorder
  • Ranjana - Arthritis
  • Jyoti - Migraine
  • Renu Lamba - Diabetes
  • Kamla Singh - Bulging Disc
  • Rajesh Kumar - Psoriasis
  • Dhruv Dutta - Diabetes
  • Atharva - Respiratory Disease
  • Amey - Skin Problem
  • Asha - Joint Problem
  • Sanjeeta - Joint Pain
  • A B Mukherjee - Acidity
  • Deepak Sharma - Lower Back Pain
  • Vyjayanti - Pcod
  • Sunil Singh - Thyroid
  • Sarla Gupta - Post Surgery Challenges
  • Syed Masood Ahmed - Osteoarthritis & Bp
Book Free Consultation Call Us