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28-Year-Old की Struggle: Skin Problems से लेकर Psoriasis Relief तक की Ayurvedic Journey

Information By Dr. Keshav Chauhan

विदित अग्रवाल, 28 वर्षीय कॉर्पोरेट कर्मचारी, हल्की खुजली की शुरुआत से लेकर गंभीर Psoriasis समस्या तक का सफर तय कर चुके हैं। Dermatologist की सलाह और दवाइयों से राहत नहीं मिलने पर उनका आत्मविश्वास गिर गया था। लेकिन जीवा आयुर्वेद, फरीदाबाद में डॉ. आदर्श के मार्गदर्शन से वे Psoriasis Management Program में शामिल हुए। 6 महीनों में न केवल त्वचा में स्पष्ट सुधार हुआ, बल्कि आगे बीमारी को रोकने की समझ भी विकसित हुई। उनकी आयुर्वेदिक यात्रा ने दिखाया कि सही दिशा और जीवनशैली बदलाव कितना बड़ा फर्क ला सकते हैं।

कई बार शरीर सबसे पहले संकेत देता है, लेकिन हम उसे हल्के में ले लेते हैं। थोड़ी खुजली, हल्की जलन या सूखापन—अक्सर लोग इसे मौसम का असर या साधारण त्वचा समस्या मानकर टाल देते हैं। लेकिन जब यही परेशानी धीरे-धीरे बढ़ने लगे और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दख़ल देने लगे, तब समझ आता है कि मामला सिर्फ़ त्वचा का नहीं है।

28 वर्षीय Vidit Aggarwal के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। व्यस्त कॉरपोरेट जीवन के बीच शुरू हुई मामूली खुजली कब Psoriasis जैसी समस्या में बदल गई, इसका अहसास देर से हुआ। शुरुआत में इलाज लिया गया, लेकिन जब बताया गया कि यह बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं होती, तब मन में डर और निराशा घर कर गई।

यहीं से उनकी खोज शुरू हुई ऐसे इलाज की, जो केवल ऊपर से राहत न दे, बल्कि बीमारी की जड़ को समझे। जीवा आयुर्वेद, फरीदाबाद में Dr. Adarsh से कंसल्टेशन के बाद विदित को पहली बार यह भरोसा मिला कि सही मार्गदर्शन और जीवनशैली बदलाव से स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। यह ब्लॉग उसी यात्रा को सामने रखता है, जहाँ सही समझ, धैर्य और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण ने सोरायसिस को देखने और संभालने का नज़रिया पूरी तरह बदल दिया।

28 साल की उम्र में Skin Problems की शुरुआत कैसे हुई?

विदित अग्रवाल की परेशानी बहुत आम तरीक़े से शुरू हुई। शुरुआत में हल्की खुजली थी, जिसे उन्होंने सामान्य त्वचा की समस्या समझा। कभी हाथों पर, कभी गर्दन या पीठ पर हल्की जलन और खुजली होती थी। उस समय यह महसूस नहीं हुआ कि यह कोई गंभीर संकेत हो सकता है।

कॉरपोरेट क्षेत्र में काम करने की व्यस्त दिनचर्या के बीच शरीर के छोटे संकेतों को नज़रअंदाज़ करना आसान हो जाता है। विदित के साथ भी यही हुआ। लंबे समय तक बैठकर काम करना, अनियमित भोजन, देर रात तक जागना और तनाव—इन सबके बीच खुजली को उन्होंने प्राथमिकता नहीं दी। अक्सर लोग सोचते हैं कि थोड़ा समय बीतते ही सब ठीक हो जाएगा, और आप भी शायद कभी ऐसा ही सोच चुके होंगे।

सबसे बड़ी वजह थी इसे आम स्किन प्रॉब्लम समझ लेना। कोई बड़ा दर्द नहीं था, इसलिए इलाज टाल दिया गया। क्रीम लगाई, कभी घरेलू उपाय अपनाए, लेकिन अंदर से समस्या बढ़ती रही। यही वह चरण था जहाँ सही समय पर ध्यान दिया जाता, तो स्थिति इतनी नहीं बढ़ती। लेकिन ज़्यादातर लोगों की तरह विदित को भी तब समझ आया, जब परेशानी साफ़ तौर पर दिखने लगी।

जब त्वचा की छोटी समस्या ने सोरायसिस का रूप लिया, तब क्या चुनौतियाँ सामने आईं?

समय के साथ खुजली सिर्फ़ खुजली नहीं रही। त्वचा पर लाल चकत्ते, मोटी परत, लगातार जलन और खुजली बढ़ने लगी। अब सोरायसिस की यह समस्या केवल दिखने तक सीमित नहीं रही, बल्कि शरीर और मन—दोनों पर असर डालने लगी।

सबसे ज़्यादा असर पड़ा मानसिक स्थिति पर। जब त्वचा पर दाग साफ़ दिखने लगें, तो व्यक्ति खुद को असहज महसूस करने लगता है। विदित के लिए भी यह आसान नहीं था। काम की मीटिंग्स, लोगों से मिलना, छोटे कपड़े पहनना—हर जगह एक झिझक बनी रहती थी।

रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर भी इसका असर साफ़ दिखने लगा।

  • लगातार खुजली के कारण नींद पूरी नहीं होती थी

  • ध्यान भटकता था

  • काम में मन कम लगने लगा

  • आत्मविश्वास धीरे-धीरे कम होता चला गया

आप भी अगर किसी लंबे समय की त्वचा समस्या से जूझ रहे हैं, तो समझ सकते हैं कि यह केवल शरीर की नहीं, पूरे जीवन की परेशानी बन जाती है। विदित के लिए भी यह वही दौर था, जहाँ बीमारी केवल त्वचा तक सीमित नहीं रही।

त्वचा विशेषज्ञ के इलाज के बावजूद सोरायसिस में सुधार क्यों नहीं हुआ?

जब स्थिति बढ़ने लगी, तब विदित ने त्वचा विशेषज्ञ से सलाह ली। वहाँ सबसे पहला वाक्य जो उन्होंने सुना, वह था— “यह बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं होती।”

यह सुनना किसी के लिए भी मुश्किल होता है। जब आप इलाज की उम्मीद लेकर जाते हैं और सामने से ऐसा जवाब मिले, तो मन टूटने लगता है। विदित के साथ भी यही हुआ।

दवाइयाँ दी गईं, जिनसे कुछ समय के लिए लक्षण दबते ज़रूर दिखे, लेकिन धीरे-धीरे समस्या और बढ़ने लगी। त्वचा पहले से ज़्यादा संवेदनशील हो गई, खुजली तेज़ हो गई और बार-बार दवाइयों की ज़रूरत पड़ने लगी।

यहाँ एक अहम बात सामने आई— दवाइयों से केवल ऊपरी लक्षण दब रहे थे, लेकिन बीमारी की जड़ पर कोई काम नहीं हो रहा था।

यही अंतर है अस्थायी राहत और स्थायी समाधान में।

  • अस्थायी राहत में थोड़े दिन आराम मिलता है

  • लेकिन कारण वही रहता है

  • और समस्या बार-बार लौट आती है

विदित को महसूस हुआ कि जब तक शरीर के अंदर हो रहे असंतुलन को नहीं समझा जाएगा, तब तक यह समस्या यूँ ही चलती रहेगी। यही सोच उन्हें एक ऐसे रास्ते की ओर ले गई, जहाँ इलाज केवल दवा तक सीमित न होकर, पूरे शरीर और जीवनशैली को समझने पर आधारित था।

जीवा आयुर्वेद तक पहुँचने का फ़ैसला कैसे लिया गया?

जब लगातार इलाज बदलने के बाद भी सोरायसिस में सुधार नहीं हुआ, तब विदित अग्रवाल को यह साफ़ समझ आने लगा कि अब कोई अलग रास्ता तलाशना ज़रूरी है। दवाइयों से थोड़े समय के लिए लक्षण दब जाते थे, लेकिन समस्या बार-बार लौट आती थी। इस स्थिति में मन में एक ही सवाल था—क्या सच में इसका कोई स्थायी समाधान नहीं है?

यहीं से वैकल्पिक सोच की शुरुआत हुई। विदित ने ऐसे इलाज की तलाश की जो केवल त्वचा को नहीं, बल्कि पूरे शरीर को समझकर काम करे। इसी खोज ने उन्हें जीवा आयुर्वेद, फरीदाबाद तक पहुँचाया। यहाँ आने का फ़ैसला किसी मजबूरी में नहीं, बल्कि समझदारी से लिया गया कदम था।

फरीदाबाद सेंटर में कंसल्टेशन के दौरान Dr. Adarsh ने बीमारी को देखने का बिल्कुल अलग नज़रिया दिया। पहली बार विदित को यह एहसास हुआ कि सोरायसिस को केवल त्वचा की समस्या मानकर इलाज करना अधूरा है। बातचीत के दौरान बीमारी के कारण, जीवनशैली और भोजन—हर पहलू पर चर्चा हुई। 

यह सिर्फ़ सलाह नहीं थी, बल्कि बीमारी को समझाने की प्रक्रिया थी। जब डॉक्टर समय लेकर आपको यह बताते हैं कि समस्या क्यों हुई और आगे कैसे बढ़ सकती है, तो आपके मन का डर भी धीरे-धीरे कम होने लगता है। Vidit के लिए यही भरोसा इस यात्रा की सबसे मज़बूत शुरुआत बना।

Psoriasis को लेकर आयुर्वेद का नज़रिया क्या कहता है?

आयुर्वेद में त्वचा रोगों को केवल बाहर दिखने वाली परेशानी नहीं माना जाता। यहाँ यह समझा जाता है कि त्वचा शरीर के अंदर चल रही गड़बड़ी का संकेत देती है। अगर अंदर संतुलन ठीक है, तो त्वचा अपने आप स्वस्थ रहने लगती है।

सोरायसिस के मामले में भी आयुर्वेद यही कहता है कि जब शरीर के अंदर दोष का असंतुलन होता है, तब उसका असर त्वचा पर दिखाई देता है। यह असंतुलन गलत भोजन, अनियमित दिनचर्या, मानसिक तनाव और पाचन से जुड़ी समस्याओं के कारण बढ़ सकता है।

यहाँ एक महत्वपूर्ण बात समझने लायक है—

  • जो बीमारी बाहर दिखती है, उसकी जड़ अक्सर अंदर होती है

  • केवल क्रीम या दवा से ऊपर की परत ठीक हो सकती है

  • लेकिन अंदरूनी गड़बड़ी बनी रहे, तो समस्या लौटती रहती है

विदित को भी यही बात समझाई गई। उन्हें बताया गया कि जब तक शरीर के अंदर संतुलन नहीं बनेगा, तब तक सोरायसिस पूरी तरह नियंत्रण में नहीं आ पाएगा। आयुर्वेद का यही दृष्टिकोण इलाज को गहराई तक ले जाता है, जहाँ केवल लक्षण नहीं, बल्कि कारण पर काम किया जाता है। 

अगर आप भी यह महसूस करते हैं कि आपकी त्वचा की समस्या बार-बार लौट आती है, तो यह समझना ज़रूरी है कि इलाज की दिशा सही है या नहीं।

Psoriasis Management Program (PMP) क्या है और इसमें क्या शामिल था?

Dr. Adarsh ने विदित को Psoriasis Management Program के बारे में बताया, जो केवल दवा देने तक सीमित नहीं था। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था बीमारी को जड़ से समझना, शरीर को संतुलन में लाना और भविष्य में समस्या बढ़ने से रोकना।

इस इलाज का एक स्पष्ट ढाँचा था। शुरुआत में शरीर की प्रकृति और मौजूदा स्थिति को समझा गया। इसके बाद ऐसा उपचार तय किया गया, जो विदित के शरीर के अनुसार हो। यहाँ कोई एक जैसा इलाज सभी के लिए लागू नहीं किया गया।

इस कार्यक्रम में शामिल था—

  • शरीर के अनुसार तय किया गया उपचार

  • भोजन से जुड़ी सही सलाह

  • नियमित मार्गदर्शन

  • और यह समझ कि आगे किन बातों से बचना ज़रूरी है

इसी वजह से इसे सिर्फ़ दवा का कोर्स नहीं कहा जा सकता। यहाँ इलाज के साथ-साथ सीखने की प्रक्रिया भी चलती है। आप यह जान पाते हैं कि आपकी बीमारी किन वजहों से बढ़ती है और आप अपने रोज़मर्रा के जीवन में क्या बदलाव कर सकते हैं।

विदित के लिए यह कार्यक्रम केवल सोरायसिस से राहत पाने का तरीका नहीं बना, बल्कि अपनी सेहत को बेहतर समझने का माध्यम भी बना। यही वजह है कि यह यात्रा सिर्फ़ इलाज तक सीमित नहीं रही, बल्कि एक स्थायी बदलाव की ओर बढ़ी।

सोरायसिस से जूझ रहे लोगों के लिए विदित अग्रवाल की Journey क्या सिखाती है?

विदित अग्रवाल की कहानी उन सभी लोगों के लिए एक सीख है, जो लंबे समय से त्वचा की समस्या से जूझ रहे हैं और निराश हो चुके हैं। उनकी यात्रा सबसे पहले यह सिखाती है कि समय पर इलाज कितना ज़रूरी होता है। शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज़ करने से समस्या बढ़ सकती है, जैसा कि उनके साथ हुआ।

दूसरी सबसे बड़ी सीख है उम्मीद बनाए रखना। जब विदित को बताया गया कि सोरायसिस पूरी तरह ठीक नहीं होता, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। सही जानकारी और सही इलाज की तलाश ने उन्हें आगे बढ़ने की ताक़त दी। अगर आप भी ऐसी स्थिति में हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि हर समस्या का समाधान एक जैसा नहीं होता, लेकिन रास्ता ज़रूर होता है।

इस यात्रा में सही मार्गदर्शन की भूमिका सबसे अहम रही। जब डॉक्टर बीमारी को केवल दवा तक सीमित न रखकर, आपके जीवन और आदतों को समझकर इलाज तय करते हैं, तो इलाज का असर गहरा होता है। विदित को यही मार्गदर्शन मिला, जिसने उन्हें सोरायसिस को समझने और संभालने का तरीका सिखाया।

उनकी कहानी यह याद दिलाती है कि त्वचा की बीमारी केवल बाहर से नहीं, भीतर से भी जुड़ी होती है। सही समय पर सही दिशा में उठाया गया कदम न केवल बीमारी को कंट्रोल करता है, बल्कि आपको अपनी सेहत को लेकर आत्मविश्वास भी देता है।

निष्कर्ष

विदित अग्रवाल की कहानी किसी चमत्कार की नहीं, बल्कि समझदारी से लिए गए फैसलों की कहानी है। हल्की खुजली से शुरू हुई परेशानी जब सोरायसिस तक पहुँची, तब डर, उलझन और निराशा आना स्वाभाविक था। लेकिन सही समय पर सही दिशा चुनने से उनका अनुभव बदल गया। आयुर्वेदिक इलाज ने उन्हें यह सिखाया कि बीमारी से लड़ने के लिए केवल दवाइयों पर निर्भर रहना ज़रूरी नहीं, बल्कि शरीर को समझना और जीवनशैली में संतुलन लाना भी उतना ही अहम है।

इस यात्रा में उन्होंने जाना कि जब आप अपनी सेहत की ज़िम्मेदारी खुद लेना शुरू करते हैं, तब बदलाव धीरे-धीरे लेकिन स्थायी होता है। आज उनका अनुभव उन लोगों के लिए उम्मीद बन सकता है, जो लंबे समय से त्वचा की समस्या से जूझ रहे हैं और समाधान की तलाश में हैं।

अगर आप भी सोरायसिस या इससे जुड़ी किसी अन्य त्वचा समस्या से परेशान हैं, तो आज ही हमारे प्रमाणित जीवा डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श के लिए संपर्क करें। डायल करें: 0129-4264323

FAQs

  1. सोरायसिस क्या सच में ठीक हो सकता है?

सोरायसिस को सही इलाज और जीवनशैली बदलाव से काफ़ी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। जब आप कारण समझते हैं, तो बार-बार बढ़ने की समस्या कम हो जाती है।

  1. क्या सोरायसिस सिर्फ़ त्वचा की बीमारी है?

नहीं, सोरायसिस केवल त्वचा तक सीमित नहीं रहता। यह शरीर के अंदर असंतुलन से जुड़ा होता है, जिसका असर त्वचा पर दिखाई देता है।

  1. आयुर्वेदिक इलाज में कितना समय लगता है?

हर व्यक्ति में सुधार की गति अलग होती है। जब आप नियमित इलाज और सलाह का पालन करते हैं, तो कुछ महीनों में स्पष्ट बदलाव महसूस होने लगता है।

  1. क्या सोरायसिस में खाने-पीने का सच में असर पड़ता है?

हाँ, गलत भोजन सोरायसिस को बढ़ा सकता है। सही और हल्का भोजन अपनाने से शरीर संतुलन में रहता है और त्वचा पर भी सकारात्मक असर दिखता है।

  1. क्या इलाज के बाद सोरायसिस दोबारा बढ़ सकता है?

अगर आप सीखी गई बातों को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो समस्या बढ़ सकती है। सही दिनचर्या और सावधानी से आप इसे लंबे समय तक कंट्रोल में रख सकते हैं।

  1. क्या हर व्यक्ति के लिए एक ही आयुर्वेदिक इलाज सही होता है?

नहीं, हर शरीर अलग होता है। जब इलाज आपकी प्रकृति और समस्या के अनुसार तय होता है, तभी उसका असर बेहतर और स्थायी होता है।

  1. सोरायसिस में मानसिक तनाव कितना असर डालता है?

मानसिक तनाव से समस्या बढ़ सकती है। जब आप तनाव कम करने के तरीके अपनाते हैं, तो त्वचा और शरीर—दोनों को राहत मिलने लगती है।

  1. क्या सोरायसिस मौसम बदलने पर ज़्यादा बढ़ जाता है?

हाँ, कई लोगों में मौसम बदलने पर त्वचा सूखने और असंतुलन बढ़ने से समस्या बढ़ सकती है। सही देखभाल और दिनचर्या से आप इसे संभाल सकते हैं।

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