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क्या ठंड बढ़ते ही त्वचा फटना, लाल धब्बे और खुजली Psoriasis को ट्रिगर करते हैं? आयुर्वेद की नज़र से जानें

Information By Dr. Keshav Chauhan

सर्दियाँ आते ही आपकी त्वचा जैसे बदलने लगती है। सूखापन बढ़ जाता है, त्वचा फटने लगती है, और कई बार लाल धब्बे व खुजली अचानक तेज़ हो जाती है। अगर आपको सोरायसिस है, तो यह मौसम और भी चुनौतीपूर्ण महसूस हो सकता है। दिन छोटे, धूप कम, हवा ठंडी, ये सब मिलकर आपकी त्वचा को ऐसा बनाते हैं कि वह ज़रा-सी भी रगड़ या ठंड को बर्दाश्त नहीं कर पाती।

बहुत से लोग नुभव करते हैं कि जैसे ही तापमान नीचे आता है, उनके सोरायसिस के धब्बे मोटे होने लगते हैं, पपड़ी बढ़ जाती है और खुजली लगातार परेशान करती है। ऐसा क्यों होता है? क्या सिर्फ मौसम ज़िम्मेदार है, या शरीर के भीतर भी कुछ बदलता है?

इस लेख में आप समझेंगे कि ठंड आपकी त्वचा पर वास्तव में क्या असर डालती है, सोरायसिस क्यों भड़कता है और आयुर्वेद इस समस्या को किस तरह विस्तार से समझाता है। साथ ही, आप जानेंगे कि थोड़े-से बदलाव सर्दियों को आपके लिए आसान कैसे बना सकते हैं।

सर्दियों के आते ही आपकी त्वचा क्यों ज़्यादा फटने लगती है और यह सोरायसिस को कैसे बढ़ाती है?

जैसे ही ठंड बढ़ती है, हवा की आद्र्रता कम होने लगती है। आप भी यह महसूस करते होंगे कि सर्दियों में आपकी त्वचा जल्दी सूख जाती है, फटने लगती है और खिंचाव होता है। यही रूखापन सोरायसिस के लक्षणों को और तेज़ कर देता है।

ठंड में नमी की कमी 

जब हवा में नमी कम होती है, आपकी त्वचा अपनी प्राकृतिक चिकनाई खोने लगती है। त्वचा की ऊपरी परत में मौजूद तेल और नमी जल्दी सूख जाते हैं। इससे त्वचा पतली, संवेदनशील और चटकने वाली हो जाती है। अगर आपको पहले से सोरायसिस है, तो यह सूखापन आपकी त्वचा पर बने लाल धब्बों, परतों और खुजली को कई गुना बढ़ा देता है।

त्वचा का रूखापन बढ़ना 

रूखापन केवल बाहर की ठंड से नहीं आता। आप घर में हीटर चलाते हैं, बहुत गर्म पानी से नहाते हैं या चेहरे पर बार-बार हाथ फेरते हैं — ये सब आपकी त्वचा की नमी और भी घटा देते हैं। रूखी त्वचा में दरारें जल्दी बनती हैं, और यह दरारें सोरायसिस वाले हिस्सों को ज्यादा चुभन और जलन देती हैं। 

आपने भी कभी देखा होगा कि सर्दियों में सोरायसिस के धब्बे मोटे या ज्यादा दिखने लगते हैं। इसका कारण यही बढ़ता हुआ रूखापन है, जो आपकी त्वचा को शांत होने नहीं देता।

सोरायसिस के फ्लेयर-अप का सीधा संबंध 

सर्दी का मौसम आपके शरीर में वात दोष बढ़ा देता है। वात का बढ़ना मतलब शरीर में सूखापन, खिंचाव और त्वचा की नलिकाओं में रुकावट। आयुर्वेद के अनुसार यही बदलाव सोरायसिस की परतों, लालिमा और खुजली को और बढ़ा देते हैं। 

तो अगर आप सोचते हैं कि सर्दियों में ही क्यों लक्षण तेज़ हो जाते हैं, तो इसका सबसे बड़ा कारण है — नमी की कमी और त्वचा की प्राकृतिक रक्षा परत का कमज़ोर होना। अगर आप अपनी त्वचा को सही तरीके से नम रखें, तो इन फ्लेयर-अप को काफी हद तक रोका जा सकता है।

क्या ठंडी हवा, कम ह्युमिडिटी और पसीने की जलन आपके सोरायसिस के लक्षणों को ट्रिगर कर सकती है?

सर्दियों की ठंडी हवा बाहर से त्वचा को सुखा देती है और घर की बंद हवा भी ज्यादा राहत नहीं देती। इस मौसम में कम आद्र्रता, कपड़ों की रगड़ और पसीने की जलन — तीनों मिलकर सोरायसिस को भड़काने का काम कर सकते हैं।

हवा की शुष्कता 

ठंडी हवा आपकी त्वचा की ऊपरी नमी को खींच लेती है। जब त्वचा की सतह सूखती है, तो लाल धब्बे और परतें और ज़्यादा दिखती हैं। सूखापन आपके प्रभावित हिस्सों को खुरदरा बना देता है, जिससे खुजली बढ़ती है और आप बार-बार उसको खुजाते हैं। खुजाना आपके धब्बों को और बिगाड़ देता है, जिससे लक्षण फैल भी सकते हैं।

गर्म कपड़ों की रगड़ 

सर्दियों में आप ऊनी कपड़े, जैकेट और थर्मल पहनते हैं। ये कपड़े शरीर को गर्म तो रखते हैं, लेकिन त्वचा पर लगातार रगड़ भी पैदा करते हैं। अगर आपको सोरायसिस है, तो यह रगड़ पहले से संवेदनशील त्वचा को और परेशान कर देती है। 

रगड़ से लालिमा बढ़ सकती है, छोटे-छोटे कट बन सकते हैं और परतें मोटी होने लगती हैं। इसलिए सूती अंदरूनी परत पहनना आपकी त्वचा के लिए बेहतर होता है।

पसीने की जलन 

कई लोग सोचते हैं कि पसीना तो गर्मी में आता है, लेकिन सर्दियों में गर्म कपड़ों की वजह से शरीर बंद और गरम रहता है, जिससे पसीना भी आता है। यह पसीना फंसा रहता है और संवेदनशील हिस्सों में जलन पैदा करता है। 

यदि आपके सोरायसिस वाले क्षेत्र में पसीना फँस जाए, तो खुजली अचानक बढ़ सकती है और लाल धब्बे और उभरे हुए दिख सकते हैं। इसलिए हल्के कपड़े पहनना और त्वचा को साफ-सूखा रखना बहुत ज़रूरी है।

सर्दी में त्वचा पर लाल धब्बे, पपड़ी और खुजली क्यों बढ़ जाती है?

सर्दियों में आपका शरीर जिस तरह प्रतिक्रिया करता है, वह सीधा आपकी त्वचा पर असर डालता है। अगर आपके पास पहले से सोरायसिस के धब्बे हैं, तो ठंड उनकी परतें, खुजली और लालिमा और तेज़ कर सकती है।

इन लक्षणों के पीछे क्या होता है 

सोरायसिस में त्वचा की कोशिकाएँ सामान्य से बहुत तेज़ गति से बनती हैं। जब ठंड बढ़ती है, तो यह प्रक्रिया और भी तेज़ हो सकती है। इससे त्वचा की सतह पर मोटी परतें, लाल उभरे धब्बे और खुजली लगातार बनी रहती है। रूखी हवा इस खुरदरी सतह को और भी कड़ा बना देती है।

धूप की कमी 

सर्दियों में धूप कम मिलती है। धूप में मौजूद किरणें आपकी त्वचा की सूजन को शांत करती हैं और शरीर को प्राकृतिक विटामिन-डी देती हैं। जब आप धूप में कम जाते हैं, तो सूजन बढ़ने लगती है। 

इसके परिणामस्वरूप आपके लाल धब्बे जल्दी फैल सकते हैं और खुजली भी ज्यादा महसूस होती है। विटामिन-डी की कमी भी शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा कम कर देती है, जिससे लक्षण लंबे समय तक बने रह सकते हैं।

इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया 

ठंड में आपका इम्यून सिस्टम थोड़ा कमज़ोर हो जाता है। सोरायसिस में आपका इम्यून सिस्टम पहले ही ज्यादा सक्रिय रहता है। जब मौसम बदलता है, तो यह बढ़ी हुई सक्रियता आपकी त्वचा को और प्रभावित कर सकती है। यही कारण है कि सर्दियों में सूजन, जलन और लाल परतें अधिक दिखाई देती हैं।

आयुर्वेद के अनुसार सर्दियों में सोरायसिस क्यों भड़कता है?

आयुर्वेद सर्दियों के मौसम को ऐसा समय मानता है जब आपके शरीर में स्वाभाविक रूप से वात और कफ बढ़ जाते हैं। यही बढ़े हुए दोष आपकी त्वचा को प्रभावित करते हैं और सोरायसिस को भड़काने का कारण बनते हैं।

वात-कफ वृद्धि 

सर्दियों की ठंडी और शुष्क हवा आपके शरीर में वात को बढ़ाती है। वात बढ़ने पर शरीर में रूखापन, खिंचाव, दर्द और त्वचा पर परतें बनना स्वाभाविक है। जब वात अत्यधिक बढ़ जाता है, तो त्वचा की ऊपरी परतें कड़ी होने लगती हैं और सोरायसिस वाले धब्बे ज्यादा मोटे और लाल दिखने लगते हैं।

साथ ही, सर्दी का मौसम कफ को भी बढ़ाता है। कफ बढ़ने पर त्वचा की नलिकाओं में रुकावट आती है, जिससे लालिमा, सूजन और पपड़ी बनने की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है।

शुष्कता और अस्वेद की व्याख्या 

आयुर्वेद में ‘अस्वेद’ का मतलब है पसीने का न निकलना। सर्दियों में शरीर का पसीना घट जाता है। जब शरीर में पसीना नहीं निकलता, तो त्वचा काफी सूखी रहने लगती है। यह सूखापन सोरायसिस के पैचेस को अधिक संवेदनशील और खुजलीदार बना देता है। 

जब पैचेस पर नमी नहीं रहती, तो उनमें दरारें और जलन भी बढ़ सकती है, जिससे आपका दर्द बढ़ जाता है।

दोष असंतुलन से लक्षण बढ़ना 

वात और कफ दोनों के बढ़ने से आपका शरीर संतुलन खो देता है। यह असंतुलन त्वचा की सुरक्षात्मक परत को कमज़ोर करता है।

परिणामस्वरूप:

  • लालिमा बढ़ती है

  • परतें मोटी होती हैं

  • खुजली तेज़ होती है

  • धब्बे फैल सकते हैं

इसलिए आयुर्वेद मानता है कि सर्दियों में सोरायसिस एक “वात-कफ असंतुलन” से उत्पन्न समस्या है। अगर आप इस असंतुलन को समझकर मौसम के अनुसार आदतों में बदलाव करते हैं, तो काफी राहत महसूस कर सकते हैं।

क्या आपकी रोज़मर्रा की आदतें सर्दियों में सोरायसिस को और खराब कर रही हैं?

कई बार आपको लगता है कि ठंड ही आपकी त्वचा को बिगाड़ रही है, लेकिन सच यह है कि आपकी कुछ रोज़मर्रा की आदतें भी लक्षणों को तेज़ कर सकती हैं। अगर आप इन्हें पहचानें और बदलें, तो आपके लिए सर्दियों का मौसम काफी आसान हो सकता है।

गर्म पानी से स्नान 

सर्दियों में गर्म पानी अच्छा लगता है, लेकिन यह आपकी त्वचा का सबसे बड़ा दुश्मन बन सकता है। बहुत गर्म पानी आपकी त्वचा की प्राकृतिक नमी को छीन लेता है। अगर आपको सोरायसिस है, तो यह रूखापन परतों को कठोर बना देता है और खुजली कई गुना बढ़ जाती है।

अगर आप गुनगुने पानी से नहाएँगे, तो त्वचा अपनी नमी को लंबे समय तक बनाए रख पाएगी और जलन भी कम होगी।

ऊनी कपड़ों की रगड़ 

सर्दियों में आप ऊनी स्वेटर और जैकेट पहनने से बच नहीं सकते, लेकिन ऊनी कपड़े आपकी त्वचा को लगातार रगड़ते हैं। अगर आपके सोरायसिस वाले हिस्से पर ऊन की रगड़ पड़े, तो जलन, लालिमा और परतें बढ़ सकती हैं। सबसे अच्छा तरीका यह है कि ऊनी कपड़ों के नीचे सूती कपड़े पहनें। इससे आपकी त्वचा सीधे रगड़ से बचती है।

तनाव 

सर्दियों में दिन छोटे हो जाते हैं, धूप कम मिलती है और रोज़मर्रा की भागदौड़ बढ़ जाती है। इन सबके कारण तनाव बढ़ सकता है, और तनाव सोरायसिस का बड़ा ट्रिगर है। तनाव होने पर शरीर में ऐसे बदलाव होते हैं जो त्वचा की सूजन को बढ़ा देते हैं। अगर आप रोज़ कुछ मिनट आराम, प्राणायाम या ध्यान कर लेते हैं, तो सोरायसिस के लक्षण काफी कम हो सकते हैं।

गलत आहार 

सर्दियों में तला-भुना, भारी भोजन और मीठा अधिक खाया जाता है। ये चीज़ें कफ को बढ़ाती हैं, जिससे सूजन और लालिमा बढ़ सकती है। अगर आप हल्का, गर्म, आसानी से पचने वाला भोजन खाएँगे, तो आपका शरीर भी राहत महसूस करेगा और त्वचा भी।

सर्दियों में त्वचा फटना और रूखापन कम करने के लिए आप क्या तुरंत कदम उठा सकते हैं?

अगर आपको लग रहा है कि ठंड ने आपकी त्वचा को बहुत परेशान कर दिया है, तो कुछ सरल बदलाव आपकी त्वचा को तुरंत राहत दे सकते हैं। इन आदतों को अपनाकर आप सोरायसिस के फ्लेयर-अप को काफी हद तक कम कर सकते हैं।

त्वचा को नम रखना बहुत ज़रूरी है 

मॉइस्चराइज़ेशन आपकी सबसे पहली ज़रूरत है। आप नहाने के तुरंत बाद त्वचा पर मॉइस्चराइज़र लगाएँ, ताकि नमी आपकी त्वचा के अंदर बंद हो जाए। दिन में दो-तीन बार मॉइस्चराइज़र लगाना सर्दियों में बिल्कुल सामान्य है। इससे परतें नरम रहती हैं, खुजली कम होती है और फटने की समस्या कम हो सकती है।

ह्यूमिडिफ़ायर का उपयोग 

अगर आपके कमरे की हवा बहुत सूखी है, तो ह्यूमिडिफ़ायर चलाना बेहद लाभकारी हो सकता है। यह हवा में नमी बढ़ाता है, जिससे आपकी त्वचा सूखने से बचती है। अगर आप रात में इसे चलाकर सोते हैं, तो सुबह आपकी त्वचा काफी शांत लग सकती है।

सही स्नान तरीका अपनाना

  • केवल गुनगुने पानी का उपयोग करें।

  • नहाने का समय कम रखें।

  • त्वचा को जोर से मत रगड़ें।

  • नहाने के बाद तुरंत नमीयुक्त क्रीम लगाएँ।

अगर आप इस सरल दिनचर्या को अपनाएँगे, तो त्वचा का रूखापन कम होगा और सोरायसिस के धब्बे भी ज्यादा परेशान नहीं करेंगे।

सोरायसिस में सर्दियों में कौन-से आयुर्वेदिक आहार बदलाव आपके लक्षण कम कर सकते हैं?

सर्दियों में मौसम का असर सीधे आपकी त्वचा पर पड़ता है, और अगर आपको सोरायसिस है, तो आपका भोजन आपके लक्षणों को कम भी कर सकता है और बढ़ा भी सकता है। आयुर्वेद मानता है कि सही आहार से बढ़े हुए वात-कफ दोष शांत होते हैं, जिससे आपकी त्वचा को राहत मिलती है।

गर्म, तैलीय और पौष्टिक भोजन 

सर्दियों में शरीर को अंदर से गर्मी और चिकनाई की ज़रूरत होती है। गर्म और तैलीय भोजन वात को शांत करता है, जिससे त्वचा का रूखापन कम होता है। अगर आप सोरायसिस से परेशान हैं, तो ये चीज़ें आपको आराम दे सकती हैं:

  • हल्का गर्म सूप

  • एक कटोरी खिचड़ी

  • घी से बनी दाल या रोटी

  • उबला हुआ कंद-सब्ज़ी

  • ताज़ा, घर का बना हल्का भोजन

इनसे आपका पाचन भी अच्छा रहता है और शरीर में सूजन कम होती है।

ओमेगा-3 के प्राकृतिक स्रोत 

ओमेगा-3 अम्ल शरीर की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। अगर आप रोज़ थोड़ी मात्रा में ये चीज़ें शामिल कर लें, तो आपकी त्वचा की परतें और लालिमा धीरे-धीरे शांत हो सकती है:

  • अलसी के बीज

  • अखरोट

  • तिल

  • सरसों का तेल

इनमें मौजूद गुण त्वचा को भीतर से पोषण देते हैं और रूखापन कम करते हैं।

क्या न खाएँ 

कई बार हम भारी, तला-भुना या ठंडा भोजन खाकर खुद ही अपना नुकसान कर लेते हैं। अगर आपको सोरायसिस है, तो इन चीज़ों से दूरी रखें:

  • बहुत ठंडे पेय

  • बासी खाना

  • तला-भुना भोजन

  • अत्यधिक मीठा

  • बहुत सूखी, कठोर चीज़ें

  • बिना पका हुआ या कच्चा भोजन

ये खाद्य पदार्थ वात-कफ को बढ़ाते हैं और आपकी त्वचा में सूजन, रूखापन और खुजली को तेज़ कर सकते हैं।

अगर आप सर्दियों में आयुर्वेदिक आहार का पालन करते हैं, तो धीरे-धीरे आपकी त्वचा मुलायम महसूस होगी और सोरायसिस के धब्बे कम परेशान करेंगे।

क्या विटामिन-डी की कमी और कम धूप आपके सोरायसिस फ्लेयर-अप का बड़ा कारण बन सकते हैं?

सर्दियों में जब धूप धीमी हो जाती है, तो इसका असर आपकी त्वचा और शरीर दोनों पर पड़ता है। बहुत से लोग नहीं जानते कि विटामिन-डी की कमी सोरायसिस के लक्षणों को बढ़ा सकती है।

कम धूप का असर 

सर्दियों में अक्सर आप घर में ज़्यादा रहते हैं, गर्म कपड़ों में ढँके रहते हैं और बाहर जाने का मन नहीं करता। धूप कम मिलने पर शरीर में प्राकृतिक विटामिन-डी की कमी होना शुरू हो जाती है। धूप में मौजूद किरणें आपकी त्वचा को शांत करती हैं और कोशिकाओं की तेज़ी से बनने वाली प्रक्रिया को धीमा करती हैं। इसलिए जब धूप नहीं मिलती, तो लाल धब्बे, परतें और खुजली बढ़ सकती है।

शरीर में सूजन पर असर 

विटामिन-डी केवल हड्डियों के लिए नहीं, बल्कि आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता के लिए भी ज़रूरी है। कम विटामिन-डी होने पर शरीर में सूजन तेज़ हो सकती है, जिससे सोरायसिस के धब्बे उभरने लगते हैं और कई बार फैल भी सकते हैं। अगर आप रोज़ाना 10–15 मिनट हल्की धूप में बैठें, तो आपको कुछ ही दिनों में आराम महसूस हो सकता है। ध्यान रहे, धूप बहुत तेज़ हो तो उस समय बाहर न जाएँ, बल्कि सुबह या शाम की हल्की धूप चुनें।

सर्दियों में थोड़ी सी धूप आपकी त्वचा को बहुत राहत दे सकती है।

निष्कर्ष

सर्दियों में सोरायसिस का बढ़ना सिर्फ मौसम की वजह से नहीं होता, बल्कि आपकी त्वचा, आपकी रोज़मर्रा की आदतें और शरीर के भीतर हो रहे बदलाव—तीनों मिलकर इसका असर और तेज़ कर देते हैं। अगर आप अपनी त्वचा की ज़रूरतों को समझ लें और मौसम के हिसाब से कुछ सरल बदलाव कर लें, तो आप इस समस्या को काफी हद तक काबू में रख सकते हैं। 

गुनगुना पानी, नियमित मॉइस्चराइज़ेशन, हल्की धूप, सही आहार और तनाव कम करने वाली छोटी-छोटी आदतें आपकी त्वचा को अंदर से मज़बूत बना सकती हैं। आयुर्वेद आपको यह सीखने में मदद करता है कि ऋतु बदलने पर आपका शरीर कैसे प्रतिक्रिया देता है और आप उसे संतुलित कैसे रख सकते हैं।

अगर आप भी सोरायसिस से परेशान हैं और सर्दियों में लक्षण तेज़ हो जाते हैं, तो अपनी स्थिति को गंभीर होने का इंतज़ार मत कीजिए। विशेषज्ञ से बात करना कई बार सबसे बड़ा अंतर ला सकता है।

अगर आप सोरायसिस से जूझ रहे हैं, तो आज ही हमारे प्रमाणित जीवा डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श लें। कॉल करें: 0129-4264323

FAQs

  1. क्या ठंड का मौसम सोरायसिस को ट्रिगर कर सकता है?

हाँ, ठंड आपकी त्वचा को सुखा देती है, जिससे पैचेस, खुजली और लाली अचानक बढ़ सकती है। अगर आप त्वचा को नम रखें, तो लक्षण काफी कम हो सकते हैं।

  1. शरीर पर लाल चकत्ते और खुजली क्यों होती है?

जब त्वचा बहुत सूख जाती है या भीतर सूजन बढ़ती है, तो लाल चकत्ते और खुजली हो सकती है। अगर आपको सोरायसिस है, तो ये लक्षण और तेज़ महसूस होते हैं।

  1. सोरायसिस रोग किसकी कमी से होता है?

विटामिन-डी की कमी, तनाव और कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता से सोरायसिस बढ़ सकता है। ये कमी आपकी त्वचा को संवेदनशील बनाती है और लक्षण उभरने लगते हैं।

  1. आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस क्यों होता है?

आयुर्वेद में सोरायसिस वात, कफ और कभी-कभी पित्त के असंतुलन के कारण माना जाता है। बढ़ा हुआ सूखापन और नलिकाओं में रुकावट लक्षणों को बढ़ा देती है।

  1. क्या सर्दियों में धूप कम मिलने से सोरायसिस भड़क सकता है?

हाँ, कम धूप से विटामिन-डी घटता है और त्वचा की सूजन बढ़ सकती है। रोज़ थोड़ी देर हल्की धूप लेने से आपको काफी राहत मिल सकती है।

  1. क्या रोज़मर्रा की गलत आदतें भी सोरायसिस को बढ़ा सकती हैं?

हाँ, बहुत गर्म पानी, ऊनी कपड़ों की रगड़, तनाव और अनियमित खाना आपकी समस्या को बिगाड़ सकते हैं। हल्की दिनचर्या बदलकर आप लक्षण शांत रख सकते हैं।

  1. क्या सोरायसिस वाले लोगों को सर्दियों में अधिक पानी पीना चाहिए?

हाँ, सर्दी में प्यास कम लगती है, लेकिन शरीर में नमी बनाए रखना ज़रूरी है। पर्याप्त पानी पीने से त्वचा अंदर से हाइड्रेट रहती है और सूखापन कम होता है।

  1. क्या सोरायसिस पूरी तरह ठीक हो सकता है?

यह लंबे समय का रोग है, लेकिन सही देखभाल, आयुर्वेदिक उपचार और मौसम के अनुसार आदतें बदलकर आप लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित रख सकते हैं।

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