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भगंदर (Fistula) का आयुर्वेदिक इलाज – जड़ से राहत देने वाले हर्बल उपाय

Information By Dr. Arun Gupta

अगर कभी आपको ऐसा अनुभव हुआ हो कि गुदा के आसपास एक छोटी सी सूजन बनी रहती है जो कभी गर्माहट देती है, कभी दर्द और कभी उससे हल्का सा स्राव भी निकलता है, तो आप जानते होंगे कि यह समस्या कितनी परेशान करने वाली होती है। शुरू में इसे लोग सामान्य फोड़ा मान लेते हैं और सोचते हैं कि यह कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा। पर जब वही जगह बार-बार सूजने लगे, बैठने में तकलीफ़ होने लगे और कपड़ों पर नमी के निशान दिखने लगें तब समझ आता है कि शरीर भीतर कुछ गहरा संकेत दे रहा है।

भगंदर की सबसे कठिन बात यही है कि यह एक बार उभरने के बाद शांत नहीं रहता। यह आते-जाते रहता है। एक दिन सब ठीक लगता है और अगले ही दिन अचानक दर्द, सूजन और जलन बढ़ जाती है। कई लोग इससे इतने परेशान हो जाते हैं कि सामान्य काम, ऑफिस, यात्रा या बैठकर आराम करने में भी असहजता महसूस करते हैं। शरीर आपको बार-बार बताता है कि अंदर कहीं सूजन और संक्रमण का मार्ग बना हुआ है जिसे सुधारे बिना राहत संभव नहीं है।

आयुर्वेद इस रोग को केवल संक्रमण नहीं मानता। यह वात, पित्त और कफ के गहरे असंतुलन का संकेत है जिसमें गुदा क्षेत्र की नलिकाएँ कमजोर होकर एक असामान्य मार्ग बनाने लगती हैं। इसलिये उपचार केवल फोड़ा सुखाने या दर्द कम करने का नहीं है। आपको भीतर की सूजन को शांत करना होता है, मार्ग को बंद करना होता है और दोषों को संतुलित करना होता है ताकि रोग की जड़ पूरी तरह शांत हो सके।

इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि भगंदर वास्तव में क्या है, क्यों बनता है, कौन-सी आदतें इसे बार-बार भड़काती हैं और आयुर्वेद कैसे अपने पारंपरिक उपचारों से इसे जड़ से ठीक करने की दिशा में काम करता है।

भगंदर क्या है?

भगंदर एक ऐसी अवस्था है जिसमें गुदा के आसपास एक छोटा फोड़ा अंदर ही अंदर एक मार्ग बनाकर त्वचा तक पहुँच जाता है। इस मार्ग से लगातार स्राव निकल सकता है और सूजन, दर्द और जलन बनी रहती है। यह संक्रमण अक्सर बार-बार आता है क्योंकि मार्ग पूरी तरह बंद नहीं होता।

आयुर्वेद में इसे भिन्न नामों से वर्णित किया गया है और इसे एक गहन, जटिल रोग माना जाता है जिसमें दोष असंतुलन, नाड़ी-दुर्बलता और क्षेत्र में सूजन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भगंदर क्यों बनता है?

आधुनिक दृष्टि से देखा जाए तो भगंदर कई कारणों से बन सकता है। अक्सर यह गुदा क्षेत्र के किसी फोड़े, संक्रमण या नलिकाओं के अवरोध से उत्पन्न होता है। पर कई बार जीवनशैली और खानपान की आदतें भी इसे बढ़ाती हैं।

1. बार-बार होने वाला फोड़ा

गुदा क्षेत्र में फोड़ा बनना और समय से उसकी सफाई न होना इस स्थिति को जन्म दे सकता है।

2. संक्रमण

किसी बैक्टीरिया संक्रमण के कारण भीतर एक मार्ग बन जाता है जिससे स्राव बाहर आता रहता है।

3. कब्ज

कब्ज से गुदा की नसों पर दबाव बढ़ता है और सूजन बन सकती है जो आगे चलकर मार्ग बनाती है।

4. पाचन की गड़बड़ी

अग्नि कमजोर हो तो विषाक्त पदार्थ शरीर में बढ़ जाते हैं और रोग की प्रक्रिया को तेज़ करते हैं।

5. लंबे समय तक बैठकर काम करना

इससे गुदा क्षेत्र में रक्तप्रवाह कम होता है और सूजन बढ़ सकती है।

आयुर्वेद की दृष्टि – दोष असंतुलन और सूक्ष्म मार्गों की रुकावट

आयुर्वेद में भगंदर को केवल संक्रमण नहीं बल्कि शरीर की गहरी रुकावटों और असंतुलनों का परिणाम माना जाता है।

1. वात की वृद्धि

वात सूक्ष्म मार्गों को संचालित करता है। जब यह बढ़ जाता है तो मार्ग कमजोर होकर असामान्य दिशाओं में चल सकते हैं।

2. पित्त का उग्र होना

पित्त बढ़े तो क्षेत्र में सूजन, गर्माहट और स्राव की प्रवृत्ति बढ़ती है।

3. कफ का स्थिर होना

कफ गाढ़ा होकर मार्ग को भर देता है जिससे अंदर संक्रमण पनपता है।

4. अग्नि का मंद होना

अग्नि कमजोर हो तो विषाक्त पदार्थ बढ़ जाते हैं और क्षेत्र की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

5. मन का प्रभाव

लंबे समय तक तनाव शरीर के आरोग्य चक्र को बाधित कर देता है। इससे रोग बार-बार उभर सकता है।

भगंदर के लक्षण

भगंदर की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह एक बार शांत होने के बाद भी बार-बार वापस आता है। कई रोगी बताते हैं कि उन्हें शुरू में बस हल्की सी सूजन महसूस हुई, फिर कुछ दिनों बाद वहाँ गर्माहट, दर्द और नमी आने लगी। धीरे-धीरे यह स्थान दबाने पर कोमल और गीला सा महसूस होने लगता है। कभी-कभी कपड़ों पर भी हल्का स्राव दिखने लगता है जिससे रोगी असहज हो जाता है।

कई बार रोगी को यह भी लगता है कि उसी जगह पर छोटा फोड़ा बार-बार बन रहा है। लेकिन असल में भीतर एक मार्ग बन चुका होता है जो बाहर तक खुला है। यही मार्ग बार-बार समस्या को जन्म देता है।

मुख्य लक्षण

  • गुदा क्षेत्र में सूजन
  • गर्माहट
  • हल्का या लगातार दर्द
  • स्राव निकलना
  • बैठते समय असहजता
  • बार-बार फोड़ा बनना
  • बार-बार सूजन का लौट आना

ये लक्षण बताते हैं कि भीतर सूजन का मार्ग बन चुका है और शरीर उसे बंद नहीं कर पा रहा।

भगंदर के प्रकार – हर मार्ग एक जैसा नहीं होता

हर भगंदर की प्रकृति और गहराई अलग होती है। इसे समझना आवश्यक है क्योंकि उपचार भी इसी के अनुसार चुना जाता है।

1. बाहरी भगंदर

इसमें मार्ग त्वचा के ऊपर वाले हिस्से तक खुलता है और स्राव आसानी से दिखता है।

2. आंतरिक भगंदर

इसमें मार्ग अंदर गहरा होता है और स्राव कम दिखाई देता है पर दर्द और सूजन अधिक रहती है।

3. जटिल भगंदर

कई जगह शाखाएँ बन जाती हैं। ऐसा भगंदर बहुत जिद्दी होता है और बार-बार उभरता है।

4. सरल भगंदर

इसमें सिर्फ एक ही मार्ग होता है और यह तुलनात्मक रूप से शांत प्रकृति का होता है।

किन लोगों में भगंदर तेजी से बनता है?

कुछ लोगों में भगंदर बनने की प्रवृत्ति अधिक होती है क्योंकि उनकी प्रकृति या आदतें समस्या को बढ़ावा देती हैं।

उच्च जोखिम वाले लोग

  • पित्त प्रधान प्रकृति वाले लोग
  • जिन्हें बार-बार फोड़ा बनता है
  • जो लंबे समय तक बैठकर काम करते हैं
  • जिनकी पाचन अग्नि कमजोर रहती है
  • जिनमें कब्ज की आदत रहती है
  • जिनकी दिनचर्या अनियमित होती है

इन लोगों में मार्ग बनने और बार-बार सूजन उभरने की संभावना अधिक होती है।

कौन-सी आदतें भगंदर को भड़काती हैं?

कई साधारण आदतें भगंदर की स्थिति को तेज़ कर देती हैं जबकि रोगी को इसका एहसास भी नहीं होता।

बुरी आदतें

  • मसालेदार भोजन
  • तला हुआ भोजन
  • बहुत देर तक बैठना
  • सफाई में लापरवाही
  • कब्ज
  • भारी भोजन के तुरंत बाद बैठ जाना
  • देर रात सोना

ये सभी आदतें गुदा क्षेत्र की सूजन को बढ़ाती हैं और संक्रमण को पनपने देती हैं।

भगंदर में उपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ – भीतर की सूजन और मार्ग को शांत करने वाली औषधियाँ

आयुर्वेद भगंदर में उन जड़ी-बूटियों का उपयोग करता है जो सूजन शांत करने, मार्ग भरने और संक्रमण को रोकने में सहायक होती हैं। ये औषधियाँ शरीर को भीतर से स्थिरता लौटाती हैं।

1. हल्दी

हल्दी सूजन कम करती है और भीतर के संक्रमण को शांत करती है।

2. नीम

नीम शुद्धिकरण के लिये विशेष माना जाता है। यह क्षेत्र की सफाई और संक्रमण घटाने में सहायक है।

3. त्रिफला

त्रिफला पाचन सुधारता है और शरीर के विषाक्त पदार्थ कम करता है जिससे रोग की पुनरावृत्ति घटती है।

4. गिलोय

गिलोय शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और सूजन शांत करती है।

5. हरिद्रा-खदिर योग

ये योग क्षेत्र के संक्रमण को शांत करते हैं और मार्ग को धीरे-धीरे भरने में सहायता करते हैं।

6. घृत (औषधीय घृत)

औषधीय घृत सूजन शांत करने और ऊतकों के पुनर्निर्माण में सहायक होते हैं।

भगंदर में क्या खाएँ – ऐसा भोजन जो संक्रमण और सूजन को शांत करे

उपयुक्त भोजन

  • गुनगुना जल
  • मूंग दाल
  • खिचड़ी
  • भाप में पकी सब्ज़ियाँ
  • दलिया
  • काला चना
  • लौकी
  • तोरई

ये खाद्य पदार्थ पाचन को हल्का रखते हैं और क्षेत्र की सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

भगंदर में क्या न खाएँ – बीमारी की आग को भड़काने वाले खाद्य पदार्थ

बचने योग्य भोजन

  • तला हुआ भोजन
  • बहुत मसालेदार भोजन
  • भारी मिठाइयाँ
  • दही
  • आइसक्रीम
  • बहुत गरम भोजन
  • बहुत ठंडा भोजन


ये सभी भोजन पित्त बढ़ाते हैं और सूजन को शांत नहीं होने देते।

भगंदर का आयुर्वेदिक उपचार – जड़ पर काम करने वाला उपचार

भगंदर का उपचार केवल बाहरी फोड़ा सुखाने का नहीं होता। इसका लक्ष्य भीतर बनी असामान्य नलिका को भरना, सूजन शांत करना, संक्रमण हटाना और दोषों को संतुलित करना है। आयुर्वेद इसका उपचार तीन मार्गों से करता है – शोधन, शमन और पुनर्निर्माण।

1. क्षार-सूत्र

यह भगंदर के लिये आयुर्वेद का सबसे प्रभावी पारंपरिक उपाय है। औषधियुक्त धागा नलिका में स्थापित किया जाता है। यह धागा भीतर की सूजन शांत करते हुए नलिका को धीरे-धीरे भरने की दिशा में ले जाता है।

क्षार-सूत्र क्यों उपयोगी माना जाता है:

  • नलिका धीरे-धीरे संकुचित होती है
  • संक्रमण कम होता है
  • आसपास के ऊतक सुरक्षित रहते हैं
  • पुनरावृत्ति की संभावना घटती है
  • सर्जरी की आवश्यकता कई मामलों में नहीं पड़ती

2. क्षार प्रयोग

कुछ रोगियों में नलिका के भीतर क्षार लगाए जाते हैं जिससे वह सूखकर भरने लगे। यह प्रक्रिया केवल विशेषज्ञ ही करते हैं।

3. व्रण-धावन (घाव की आयुर्वेदिक शुद्धि)

त्रिफला, नीम, पंचवल्कल आदि के काढ़े से धावन क्षेत्र को स्वच्छ करता है और संक्रमण को शांत करता है।

4. बस्ति चिकित्सा

भगंदर में दो प्रकार की बस्तियाँ लाभकारी मानी जाती हैं:

स्नेह बस्ति

यह भीतर की सूक्ष्म सूजन को शांत करता है और वात को स्थिर रखता है।

पिच्छिल बस्ति

यह नलिका की भीतरी सतह पर स्नेह और सुरक्षा बनाता है जिससे भराव की प्रक्रिया तेज़ होती है।

5. अभ्यंग और स्वेदन

गुदा क्षेत्र के आसपास हल्की गर्माहट देने से रक्तप्रवाह बढ़ता है, सूजन कम होती है और ऊतकों में गति आती है।
स्वेदन शरीर के विषाक्त पदार्थ निकालने में सहायक है।

6. औषधीय लेप

  • हल्दी
  • नीम
  • हरिद्रा
  • खदिर

जैसे घटकों से बने लेप घाव पर शांति देते हैं और नलिका को भरने में मदद करते हैं।

7. अग्नि और पाचन सुधारने वाले योग

  • त्रिफला
  • गुग्गुलु
  • गिलोय
  • नीम

इनका सेवन शरीर की शुद्धि करता है और पुनरावृत्ति कम करता है।

घरेलू उपाय – सूजन और जलन कम करने के सरल उपाय

घर पर किये जाने वाले उपाय रोग को जड़ से खत्म नहीं करते पर ये सूजन, दर्द और जलन को काफी हद तक नियंत्रित रखते हैं। सही आदतों के साथ ये उपाय तेजी से आराम देते हैं।

1. गुनगुने जल से सिट्ज़ बाथ

गुदा क्षेत्र को गुनगुने जल में कुछ मिनट रखने से रक्तप्रवाह बढ़ता है, सूजन कम होती है और दर्द शांत होता है।

2. हल्दी वाला गुनगुना जल

हल्दी संक्रमण घटाती है और सूजन को कम करती है।

3. सादे भोजन का पालन

हल्का भोजन पाचन को सहज रखता है जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।

4. पर्याप्त जल सेवन

जल सूजन घटाने में मदद करता है और विषाक्त पदार्थ बाहर निकालने में सहायक है।

5. वजन कम करना

अधिक वजन गुदा क्षेत्र पर दबाव डालता है जिससे मार्ग और सूजन बढ़ सकती है।

पुनरावृत्ति रोकने का उपाय

भगंदर बार-बार इसलिए बढ़ता है क्योंकि जीवनशैली दोषों को विचलित कर देती है। जब आप कुछ सरल दिनचर्या नियमों को अपनाते हैं तब शरीर स्वयं मार्ग को भरने लगता है।

1. कब्ज से बचें

कब्ज भगंदर को बहुत बढ़ाता है। इसमें छोटी-छोटी चीज़ें फर्क डालती हैं जैसे सुबह गुनगुना जल, रेशेयुक्त भोजन और समय पर सोना।

2. लंबे समय तक न बैठें

लगातार बैठने से क्षेत्र में रक्तप्रवाह कम होता है। आपको बीच-बीच में उठकर चलना चाहिए।

3. मसालेदार भोजन कम करें

मसाले पित्त को उग्र करते हैं जिससे जलन और सूजन बढ़ती है।

4. शरीर को हल्का रखें

  • हल्का भोजन
  • नियमित जल सेवन
  • सुबह हल्की गतिविधि

ये शरीर को संक्रमण विरोधी बनाते हैं।

5. तनाव कम करें

तनाव शरीर की प्राकृतिक उपचार क्षमता को कमजोर करता है।

निष्कर्ष

भगंदर एक ऐसा रोग है जो शरीर और मन दोनों को थका देता है। यह सिर्फ एक फोड़ा नहीं बल्कि भीतर बना असामान्य मार्ग है जिसे शरीर स्वयं बंद नहीं कर पाता। आयुर्वेद इस रोग का उपचार सतही स्तर पर नहीं करता बल्कि उस मार्ग, उस सूजन और उस असंतुलन को शांत करता है जिसने इसे जन्म दिया है। क्षार-सूत्र जैसे पारंपरिक उपचार वर्षों से रोगियों को राहत देते आये हैं और कई बार सर्जरी की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। जब आप सही भोजन, नियमित दिनचर्या, सूजन कम करने वाली जड़ी-बूटियाँ और साफ-सफाई जैसी सरल आदतों को अपनाते हैं तब रोग धीरे-धीरे शांत होता है और जीवन की गुणवत्ता वापस लौटती है। यह सुधार समय लेता है पर यह टिकाऊ होता है और आपको जड़ से राहत की दिशा में ले जाता है।

अगर आप भी भगंदर (Fistula) या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज ही हमारे प्रमाणित जीवा डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श लें। कॉल करें — 0129-4264323

FAQs

1. क्या भगंदर पूरी तरह ठीक हो सकता है?

हाँ। सही उपचार और क्षार-सूत्र जैसी प्रक्रियाओं से मार्ग भर सकता है और पुनरावृत्ति कम होती है।

2. क्या सर्जरी जरूरी है?

हर बार नहीं। कई लोग आयुर्वेदिक क्षार-सूत्र से अच्छे परिणाम पाते हैं।

3. क्या भगंदर में दर्द हमेशा रहता है?

नहीं। कुछ लोगों को हल्का दर्द होता है पर स्राव और सूजन अधिक परेशान करते हैं।

4. क्या घर के उपाय रोग को खत्म कर सकते हैं?

घरेलू उपाय आराम देते हैं पर रोग की जड़ बंद करने के लिये विशेषज्ञ उपचार जरूरी होता है।

5. क्या मसालेदार भोजन स्थिति को बढ़ाता है?

हाँ। मसाले पित्त बढ़ाकर सूजन को तेज़ करते हैं।

 

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